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विश्वनाथ पाठक उत्तरार्ध में स्थित 'वच्चामि' क्रिया का हेतु-वाचक हो जायेगा क्योंकि लक्ष्मण के जाते ही विरही और अकेले राम को ढाढ़स मिल जायेगा। 'वियोगी राम के पास जल लेकर जाता हूँ' की अपेक्षा 'प्यासे राम के पास जल लेकर जाता हूँ' यह कहना अधिक सार्थक है क्योंकि पूर्वोक्त अनुवाद में जलानयन को ही प्राधान्य दिया गया है। मन्दोदरी सीता को रावण से प्रेम करने की सलाह देती हुई कहती है-.
जे रामलक्खणा वि हु तुज्झ हिए निययमेव उज्जुत्ता।
तेहिं वि किं कीरइ विज्जापरमेसरे रुटे ।। ४६।४० इसका अर्थ देखिये-“जिन राम और लक्ष्मण ने तुम्हारे हृदय में स्थान प्राप्त किया है वे भी विद्याधरेश रावण के रुष्ट होने पर क्या करेंगे?'' 'राम और लक्ष्मण ने तुम्हारे हृदय में स्थान प्राप्त किया है' यह उक्ति नितान्त असंगत है क्योंकि सीता के हृदय में केवल राम ने स्थान प्राप्त किया था, लक्ष्मण ने नहीं। यहाँ हिअ का अर्थ हित है और उज्जुत्त(उद्युक्त)का संलग्न (उत्+युक्त) । अतः गाथा का अर्थ इस प्रकार होना चाहिये-तुम्हारे हित (कल्याण) में निश्चय ही संलग्न जो राम और लक्ष्मण हैं उनके द्वारा भी विद्यापरमेश्वर रावण के रुष्ट होने पर क्या किया जा सकता है।
सीता के वियोग में व्यथित रावण की विक्षिप्तावस्था के वर्णन के तुरन्त बाद ही यह गाथा आती है
अच्छउ ताव दहमुहो मंतीहिं समं विहीसणो मंतं ।
काऊण समाढत्तो भाइसिणेहउज्जय मईओ ॥४६३८५ इसका यह अनुवाद है-"रावण को रहने दो-यह सोचकर भ्रातृस्नेह से उद्यत बुद्धि वाला विभीषण मन्त्रियों से परामर्श करने लगा।" परन्तु यह विभीषण के सोचने का प्रसंग नहीं है । वस्तुतः यहाँ रचनाकार विमल सूरि 'अच्छउ ताव दहमुहो (आस्तां तावद् दशमुखः) कह कर प्रकरणान्तर की अवतारणा कर रहे हैं।
खरदूषण का वध हो जाने के पश्चात् संभिन्न नामक राक्षस-मंत्री की उक्ति का उदाहरण प्रस्तुत है
सुहकम्मपहावेणं विराहिओ लक्खणस्स संगामे । सिग्धं च समणुपत्तो वहमाणो बन्धवसिणेहं ॥ ४६१८८ चलिया य इमे सव्वे कइद्धया पवणपुत्तमाईया।
काहिन्ति पक्खवायं ताणं सुग्गीवसन्निहिया ॥ ४६।८९ हिन्दी अनुवाद --"शुभकर्म के उदय से लक्ष्मण के संग्राम में बन्धुजन के स्नेह को धारण करने वाला विराधित शीघ्र ही वहाँ आ पहुँचा है। सुग्रीव के पास रहने वाले हनुमान आदि ये सब चंचल कपिध्वज उसका पक्षपात करते हैं।"
- संभिन्न की उक्ति में शुभकर्म के साथ कोई सम्बन्धवाचक शब्द न होने के कारण यह अर्थ निकलता है कि राक्षसों के ही शुभ कर्मोदय से विराधित लक्ष्मण के संग्राम में
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