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पउमचरियं के हिन्दी अनुवाद में कतिपय त्रुटियाँ
जसु चमरें अमरें दिण्णु वरु । सूलाउह सयलाउहपवरु
यहाँ भी चमर के द्वारा मधुकुमार को त्रिशूल प्रदान करने का वर्णन है । अत: 'असुर रावण ने मधुकुमार को शूल रत्न दिया था।' अनुवादक का यह कथन भ्रामक है । इसके अतिरिक्त 'हरिवाहणस्स मंती भणइ, इसका अर्थ भी ठीक नहीं है क्योंकि इस में रावण के मंत्रियों द्वारा हरिवाहन को कोई बात नहीं बतायी गयी है बल्कि हरिवाहन का ही मन्त्री रावण को अपने राजकुमार की योग्यता से परिचित करा रहा है । इस प्रकार उद्धृत गाथा का पूरा अनुवाद अशुद्ध है, अतः इसका संशोधन होना चाहिये ।
वज्रकर्ण उपाख्यान में लिखा है कि राम और लक्ष्मण क्रमशः भ्रमण करते हुये एक तापसाश्रम में पहुँचे । आश्रम का वर्णन इस प्रकार है
नाणा संगहियफलं अकिट्टधण्णेण रुद्धपहमग्गं । उम्बरफणसवडाणं समिहासंघायकयपुंजं ॥ ३३॥२
इसका अनुवाद यों है - " वह आश्रम नानाविध फलों से परिपूर्ण था । उदुम्बर, पनस और बड़ के पत्तों के न हटाये जाने से उसके रास्ते रुक गये थे और उसमें इकट्ठी की हुई समिधों का ढेर लगा था ।" इस अनुवाद में 'अकिदुधपणेण रुद्धपहमग्गं' को उचित रूप से नहीं समझाया गया है। उसका अर्थ यह करना चाहिये - अकृष्टेन धान्येन रुद्धपथमार्गम् । सम्पूर्ण गाथा का शुद्ध अर्थ यह है
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उस आश्रम में नाना प्रकार के फलों का संग्रह था, वहाँ का मार्ग बिना जोते-बोये उगने वाले धान्यों से अवरुद्ध था और वहाँ गूलर, कटहल तथा बरगद की समिधाओं का ढेर
लगा था।
इसका अर्थ यों उद्यान में ठहरे हुये हैं कहूँगा ।" इस अर्थ में
।
यों समझें
तृषाकुल राम के लिये लक्ष्मण अकेले जल लेने जाते हैं । कल्याणमाल नामक राजकुमार उन्हें अपने घर ले जाता है और उनका वृत्तान्त पूछता है । लक्ष्मण कहते हैं
सो भइ विप्पउत्तो महभाया चिट्ठए वरुज्जाणे ।
जाव न तस्स उदं तं वच्चामि तओ कहिस्से हं ||३४|७
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किया गया है - " उसने कहा- मेरे भाई मुझ से वियुक्त होकर उत्तम यावत् उनके पास पानी नहीं है, अतः मैं वह लेकर जाता हूँ । बाद में मैं 'जाता हूँ' के पहले 'वह लेकर' बाहर से
जोड़ना पड़ता है । अतः इसे
‘जाव' अव्यय अवधारण या निश्चय के अर्थ में प्रयुक्त है ( पाइयसद्दमहण्णव ) ।
'उदं तं' को एक साथ उदंतं पढ़िये । अब उदंतं की व्याख्या इस प्रकार कीजिये - उत् + अन्तम् = उदन्तम् । उत् का अर्थ समुच्चय है और अन्त का अर्थ है अब निकट । अब उत्तरार्ध का अर्थ इस प्रकार कीजिये
उसने कहा- मेरे भाई वियुक्त होकर उत्तम उद्यान में ठहरे हैं और मैं निश्चय ही उनके पास जाता हूँ। उसके पश्चात् कहूँगा । ऐसा अर्थ करने पर पूर्वार्ध में स्थित 'विप्पउत्त' शब्ब
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