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साहित्यिक उन्नयन में भट्टारकों का अवदान
डा० पी० सी० जैन
तीर्थंकर महावीर के निर्वाण के पश्चात् उनकी शासन-परम्परा में ऐसे अनेक जैन सन्त, आचार्य और कवि हुए हैं जिनके अगाध अध्ययन और चिन्तन ने भारतीय साहित्य के निर्माण और उसकी समृद्धि में योगदान ही नहीं किया वरन् अपने चारित्रिक गुणों और लोकहितैषी कार्यों द्वारा जन-जन को प्रभावित किया है। महावीर निर्वाण की कुछ शताब्दियों बाद (लगभग वीर निर्वाण सम्वत् की १३वीं शती से ) इस परम्परा में भट्टारकों की परम्परा आ जुड़ती है । इन भट्टारकों को जैन संतों के रूप में स्मरण किया जा सकता है क्योंकि संतों का स्वरूप हमें इन भट्टारकों में देखने को मिलता है । इनका जीवन ही राष्ट्र को आध्यात्मिक खुराक देने के लिए समर्पित हो चुका था तथा वे देश को साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं बौद्धिक दृष्टि से सम्पन्न बनाते थे । वे स्थान-स्थान पर विहार करके जन-मानस को पवित्र बनाते थे ।
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ये भट्टारक पूर्णतः संयमी होते थे । इनका आहार एवं विहार श्रमण परम्परा के अन्तर्गत होता था, व्रत विधान एवं प्रतिष्ठा समारोहों में तो इन भट्टारकों की उपस्थिति आवश्यक मानी जाती रही है ।
ये भट्टारक पूर्णतः प्रभुत्व सम्पन्न थे । वैसे ये आचार्यों के भी आचार्य थे क्योंकि इनके संघ में आचार्य, मुनि, ब्रह्मचारी एवं आर्यिकाएँ रहती थीं । साहित्य की जितनी सेवा भट्टारकों ने की है वह तो अपनी दृष्टि से इतिहास का अद्वितीय उदाहरण है । शास्त्रभण्डारों की स्थापना, नवीन पाण्डुलिपियों का लेखन एवं उनका संग्रह, शास्त्र - प्रवचन, अध्ययनअध्यापन आदि सभी इनके अद्वितीय कार्य थे ।
भट्टारकों ने भारतीय साहित्य को अमूल्य कृतियाँ भेंट की हैं। उन्होंने सदैव ही लोकभाषा में साहित्य निर्माण किया । संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी आदि भाषाओं में रचनाएँ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । भट्टारकों ने साहित्य के विभिन्न अंगों को पल्लवित किया । वे केवल चरित काव्यों के निर्माण में ही नहीं उलझे अपितु पुराण, काव्य, बेलि, रास, फागु, पंचासिका, शतक, पच्चीसी, बत्तीसी, बावनी, विवाहलो, आख्यान आदि काव्य के पचासों रूपों को इन्होंने अपना समर्थन दिया और उनमें अपनी रचनाएँ निर्मित करके उन्हें पल्लवित होने का सुअवसर दिया । यही कारण है कि काव्य के विभिन्न अंगों में इन भट्टारकों द्वारा निर्मित रचनाएं अच्छी संख्या में मिलती हैं ।
आध्यात्मिक एवं उपदेशात्मक रचनाएँ लिखना इन भट्टारकों का सदा ही प्रिय रहा है । अपने अनुभव के आधार पर जगत् की दशा का जो सुन्दर चित्रण इन्होंने अपनी कृतियों में किया है वह प्रत्येक मानव को सत्पथ पर ले जाने वाला है । इन्होंने मानव को जगत् से भागने के लिए नहीं कहा किन्तु उसमें रहते हुए ही अपने जीवन को समुन्नत बनाने का
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