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प्रो० नन्दलाल जैन अन्तर्गहण-विधि पर आधारित भेद
भगवतीसूत्र और प्रज्ञापना में अन्तर्ग्रहण की विधि पर आधारित आहार के तीन भेद बताये गए हैं-ओजाहार, रोमाहार और कवलाहार। इसके विपर्यास में वीरसेन ने धवला' में छह आहार बताये हैं : ऊष्मा या ओजाहार, लेप या लेप्याहार, कवलाहार, मानसाहार, कर्माहार, नोकर्माहार। वहाँ यह भी बताया गया है कि विग्रहगति-समापन्न जीव, समदघातगत केवली और सिद्ध अनाहारक होते हैं। लोढ़ा ने वनस्पतियों के प्रकरण में ओजाहार को स्वांगीकरण (एसिमिलेशन) कहा है, यह त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है । इस शब्द का अर्थ अन्तर्ग्रहण के बाद होने वाली क्रिया से लिया जाता है जिसे अन्नपाचन कह सकते हैं। वस्तुतः इसे शोषण या एबसोर्शन मानना चाहिए जो बाहरी या भीतरी-दोनों पृष्ठ पर हो सकता है। हमारे शरीर या वनस्पतियों द्वारा सौर ऊष्मा एवं वायु का पृष्ठीय अवशोषण इसका उदाहरण है। लेप्याहार को भी इसी का एक रूप माना जा सकता है। रोमाहार को विसरण या परासरण प्रक्रिया कह सकते हैं। यह केवल वनस्पतियों में ही नहीं, शरीर-कोशिकाओं में निरंतर होता रहता है। कबलाहार तो स्पष्ट ही मुख से लिये जाने वाले ठोस एवं तरल पदार्थ हैं। ये तीनों प्रकार के आहार सभी जीवों के लिये सामान्य हैं। जब भावों और संवेगों का प्रभाव भी जीवों में देखा गया तब विभिन्न कर्म, नोकर्म एवं मनोवेगों को भी आहार की श्रेणी में समाहित किया गया। यह सचमुच ही आश्चर्य है कि भारत में इस मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया का अवलोकन नवीं सदी में ही कर लिया गया था। ये तीनों ही सूक्ष्म या ऊर्जात्मक पुद्गल हैं। अंतरंग या बहिरंग परिवेश से रोमाहार द्वारा इनका अन्तर्ग्रहण होता है और अनरूपी परिणाम होता है। फलतः वीरसेन के अन्तिम तीन आहार सामग्री-विशेष को द्योतित करते हैं, विधि-विशेष को नहीं। अतः अन्तर्ग्रहण विधि पर आधारित आहार तीन प्रकार का ही उपयुक्त मानना चाहिए। घटक-गत भेदों का वैज्ञानिक समीक्षण आधुनिक वैज्ञानिक मान्यतानुसार, आहार के छह प्रमुख घटक होते हैं : नाम
उदाहरण
ऊर्जा १. कार्बोहाइड्रेटी या शर्करामय पदार्थ : गेहूँ, चावल, यव, ज्वार, कोदों, कंगु २. वसीय पदार्थ
: सर्षप, तिल, अलसी ३. प्रोटीनी पदार्थ
: माष, मूंग, चना, अरहर, मटर ४. खनिज पदार्थ
: फल-रस, शाक-भाजी ५. विटामिन-हार्मोनी पदार्थ
: गाजर, संतरा, आंवला ६. जल
: शोधित, छनित जल
१. स्वामी वीरसेन; धवला खंड १-१, एस० एल० ट्रस्ट, अमरावती १९३९, पृ० ४०९ २. लोढ़ा, कन्हैयालाल; मरुधर केसरी अभि० ग्रन्थ, १९६८, पृ० १३७-८४ ३. पाइक, आर० एल० एवं ब्राउन, मिरटिल; न्यूटीशन, बइली-ईस्टर्न, दिल्ली १९७०, अध्याय २-४
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