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प्रो० नन्दलाल जैन
चाहते हैं । पान, पेय और पानक भी स्पष्ट तो होने ही चाहिये । आशाधर' ने लेप को भी आहार माना है और तैल मर्दन का उदाहरण दिया है। इसमें तेल का किंचित् अन्तग्रहण तो होता ही हैं । बृहत्कल्पभाष्य में साधुओं के लिए तीन आहारों का वर्णन किया है जो स्नेह और रसविहीन आहार के द्योतक हैं। मूलाचार में चार और छह दोनों प्रकार के घटक बताये गये हैं । ऐसे ही कुछ वर्णनों से इसे संग्रह ग्रन्थ कहा जाता है ।
सारिणी ३. आहार के घटकगत भेद
दशवैकालिक
१. अशन
२. पान
३.
खाद्य
४. स्वाद्य
५.
६.
७.
८.
मूलाचार रत्नकरंड
१ २
श्रावकाचार
अशन अशन
पान
पान
खाद्य
खाद्य
स्वाद्य
भक्ष्य
लेह्य
पेय
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खाद्य
स्वाद्य
लेह्य
पेय
सागार
धर्मामृत
खाद्य
स्वाद्य
पेय
लेप
अन०
धर्मामृत
अशन
पान
खाद्य
स्वाद्य
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उदाहरण
'अशन' कोटि का विस्तृत निरूपण देखने में उपशमन है । इस कोटि में मुख्यतः अन्न या धान्य
नहीं आया है । इसका उद्देश्य क्षुधालिया जा सकता है । यद्यपि श्रुतसागर धान्य के ७ या १८ भेद बताये हैं पर पूर्ववर्ती साहित्य' में २४ प्रकार के धान्यों का उल्लेख है । इनमें वर्तमान में इक्षु और धनिया को धान्य नहीं माना जाता । इसीलिए श्रुतसागर की सूची में भी इनका नाम नहीं है । प्राचीन साहित्य " में पेय पदार्थों के सामान्यतः तीन भेद माने गये हैं पर आशाधर ने सभी को पानक मानकर उसके छह भेद बताये हैं। ( सारिणी ४ ) । व्रतविधानसंग्रह में 'कांजी' जाति को पृथक् गिनाया गया है पर उसे 'पानक' में ही समाहित मानना चाहिए। यह स्पष्ट हैं कि आशाधर के छह पानक पूर्ववर्ती आचार्यो .से नाम व अर्थ में कुछ भिन्न पड़ते हैं । अशन की तुलना में पानकों को प्राणानुग्रही माना जाता है । सारिणी ४ ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है ।
ओदनादि
जल, दुग्धादि
खजूर, लड्डू पान, इलायची मंडकादि लप्सी, , हलुआ जल, दुग्ध तैलमर्दन
१. पंडित, आशाधर
२. मूलाचार १, पृ० ३६१ एवं भाग २, पृ० ६६
३. सेन, मधु; कल्चरल स्टडी ऑफ निशीथचूर्णि, पार्श्वनाथ विद्याश्रम, काशी, १९७५, पृ० १२५ ४. श्रुतसागर सूरि; तत्त्वार्थवृत्ति, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, १९४९, पृ० २५१
५. मुनि नथमल (सं० ); दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन, तेरापंथी भ्रातृसभा,
१९६७, पृ० २०७
६. अष्टपाहुड पृ० ३३३
७. आचार्य, शिवकोटि; भगवती आराधना, जीवराज ग्रन्थमाला, शोलापुर १९१८, पृ० ४९८
कलकत्ता
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