________________
१२६
डॉ० निज़ामउद्दीन और सावधानी बरतने पर, विवेकशील होने पर जो हिंसा होती है, आचार्यों ने उसे हिंसा नहीं कहा और ऐसी हिंसा से मनुष्य पाप का भागी भी नहीं बनता । आचार्य कुंदकुद के प्रवचनसार ( ३, १७) की गाथा है -
___ मरदु व जीवदु जीवो अजदाचारस्स पिच्छिदा हिंसा।
पयदस्स पत्थि बंधो हिंसामेत्तेण समिदस्स ॥ संसार में सभी जीवों को अपना जीवन प्रिय है, सुखप्रिय है, कोई दुःख नहीं चाहते, सब जीना चाहते हैं--
सव्वे पाणा पियाउआ, सुहसाया, दुक्खपडिकूला, अप्पियवहा । पियजीविणो जीविउकामा, सव्वेसिं जीवियं पियं ॥
__ --आचारांग जैनधर्म की अहिंसा भावों पर निर्भर है, जिसके मन में दूसरों को सताने, कष्ट देने का भाव उत्पन्न हुआ तो वह हिंसा करने वाला होगा जिसने अपने को संयत कर लिया उससे हिंसा नहीं होगी, या कम होगी।
___इस्लाम धर्म अम्नो-आशती का धर्म है। इस्लाम शब्द 'सलम' से निकला है जिसका अर्थ है सलामती, बंदगी, तस्लीम । यहाँ भी भाव या नियत का बड़ा दख्ल है। नियत खराब होना कुछ विद्वानों की दृष्टि में गुनाह का मुखकिब होना है। यह भी माना जाता है कि जब तक बुराई सरज़द न हो तो गुनाह नहीं माना जा सकता। कुरआन में बार-बार अल्लाह का आदेश है कि तुम में सब से अच्छा वह व्यक्ति है जो मुत्तकी और परहेजगार है। मत्तकी या परहेजगार होना संयमी होना है, सावधानी बरतना है। 'दशवैकालिक' (१११) के प्रथम अध्याय की प्रथम गाथा में उसे ही धर्म और उत्कृष्ट मंगल माना गया है जो अहिंसा संयम और तपमय हो, ऐसे मंगलमय धर्म में जो लीन रहता है, उसका देवता भी वंदन करते हैं। धर्म का सम्बन्ध आत्मा से है और वह आत्मा को परमात्मा बनने का मार्ग दर्शाता है। यही आचार या चारित्र धर्म है। धमें विचार तथा आचार दोनों में होना चाहिए । अतः सम्यगदर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनों मोक्षमार्ग कहे गये हैं।
- इस्लाम में रोजा-नमाज़ का महत्त्व बहुत है, लेकिन साथ में यह भी माना गया है कि ऐसी नमाज से या रोजे से क्या लाभ जो व्यक्ति को बुराइयों से पाक न करे उसके आचरण को न सुधारे, उसे संयमी तथा परहेज़गार न बनाये, उसे नफसपरस्ती या इन्द्रियानुराग से न रोके । जैनधर्म की भाँति इस्लाम में भी नफस पर काबू पाने या इन्द्रियनिग्रह करने पर विशेष बल दिया है। कुरआन में 'रहीम' और रहमान शब्दों का प्रयोग अनेक वार किया गया है । इनसे मतलब है दयालुता, अहिंसा, रहम करना। ये खुदा के विशेषण भी हैं लेकिन अल्लाह जहाँ 'रहमान' तथा 'रहीम' है वहाँ वह 'कहारु' भी है गजब ढाने वाला भी है, जालिम को सजा देने वाला भी है।
जैनधर्म में राग-द्वेष से ऊपर उठने पर ही आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। रागद्वेष के रहते ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता, आत्मा परमात्मा नहीं बन सकता। कुरआन का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org