Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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________________ " श्रीरस्तुः // लेखकपाठकयोश्चिरं जीयात् // संवत् 1600 वर्षे जेष्ठ सुदि 1 रखौ लखितं श्रीमति गजपाठके // श्रीरस्तु कल्याणमस्तु // दीर्घायु // इति श्रेय // " पण आ प्रत अशुद्ध होवाथी, तेमज एमां घणे स्थळे अक्षरो घसाई गया होई, संपादनमा एनो प्रत्यक्ष उपयोग को नथी. त्रणे प्रतोमा लेखनसंवत नथी, पण प्राचीनतानी दृष्टिए C अने A नुं स्थान प्रथम आवे छे, त्यारपछी B नुं स्थान आवे छे. ला. द. भा. सं. विद्यामंदिरनी वि. सं. १६००मां लखायेली प्रतनी तुलनाए तेमज भाषास्वरूप अने लिपिनी दृष्टिए A अने C प्रतो वि. सं. 1600 पहेलां अने B प्रत ए पछीथी थोडां वर्षमां लखायेली होवी जोईए. त्रणे प्रतमां लेखनसंवत नहि होवाथी, तेमज कोई प्रत अर्थ अने छंददृष्टिए संपूर्ण शुद्ध नहि लागवाथी, कोई एक प्रतने मुख्य प्रत तरीके स्वीकारी आ कृतिनी वाचना तैयार करवानुं योग्य मान्यु नथी. पण त्रणेमांथी अर्थदृष्टिए, छंददृष्टिए अने भाषादृष्टिए जे पाठ स्वीकारवा जेवा लाग्या ते स्वीकारी बाकीना पाठ नीचे पादटीपमां नोंध्या छे. ए रीते पाठान्तरोनी पसंदगीपूर्वक थयेली ( eclectic ) वाचना आपवानो अहीं प्रयत्न कर्यो छे. एक पण शब्द हस्तप्रतोनी बहारनो लीधो नथी के एमां फेरफार कर्यो नथी. मूळनी जोडणी अने लेखन( उच्चारण )भेद यथातथ जाळवी राख्यां छे, शब्दना सौथी जूना स्वरूपने अपनाववानुं वलण राख्युं छे, अने ए रीते कर्ताना के एमना नजीकमां नजीकना समयनी भाषाने जाळववानो प्रयत्न कर्यो छे. एम छतां संपादनमां मूळना दंडने स्थाने अर्वाचीन अर्थानुसारी विरामचिह्नो मूक्यां छे. हस्तप्रतोमां कोई वार त्रण के चार लीटीनी कडीने संख्यांक अपायो छे. संपादनमां सामान्यतः बे लीटीनी कडी गणी नवेसरथी क्रमांक आप्या छे. कवि लावण्यसमय जीवन सामान्य रीते प्राचीन-मध्यकालीन कृतिओना कर्ताना जीवन विशेनी माहिती एमनी पोतानी तेमज समकालीन-अनुगामी कविओनी कृतिओ सिवाय भाग्ये ज बीजेथी मळे छे. लावण्यसमये पोते ज विमलप्रबन्ध'नी प्रशस्तिमा जणाव्युं छे ते मुजब 'नवरंग गूर्जर देश'ना सुप्रसिद्ध पाटण नगरमां मंग नामनो श्रीमाळी वणिक रहेतो हतो. पाटणमां दानी तरीके एनी ख्याति हती. कोई कारणे ए कुटुम्ब पाटण छोडी अमदावाद आवी वस्यु. मंगने आ वखते त्रण पुत्रो हता. सौथी मोटा पुत्रनुं

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