Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 45
________________ समवसरणि बइठा चीत मोरइ पईठा. असुख अति अरीठा उपड्या ते उबीठा. सुपरि करि गरीठा सौख्य पाम्यां अनीठा. भव हूअ मझ मीठा, संभवस्वामि दीठा. 3 लहक सिरि धजानु, ज्ञान केरु खजानु, जिनवर नहीं नाह्नउ, सामि साचउ प्रजानउ, जस जगि वर-वानउ छइल मांहिं न छानु सुत समरथ मानउ मात सिद्धार-पानउ. 4 विषम विषयगामी केवलज्ञान पामी दुरगति दुख दामी जे हुआ सिद्धिगामी, हृदय धरि न धामी, पूरवइ पुण्यकामी, सकल सुमति सामी सेवीइ सीस नामी. 5 म करि अरथ माहरु, लोभना लोढ वारु; भविक ! भव म हारु, पिंड पापिइं म भार. नरयगति निवारु, चीति चेतेस वारु. पदमप्रभ जुहारु; सांभलउ बोल सारु. 6 किय शिवपुर वासो सामि लीलाविलासो, जय जगति सुपासो, जेहनई देव दासो. दलिअ करमपासो राग नाठउ निरासो, गुरुअ-गुण निवासो दोष दोषिइ न जासो. 7 मदन-मद नमाया, क्रोध-योधा नमाया, भवभमर भमाया, रोग-सोगा गमाया, सकल गुण समाया, लक्ष्मणा जास माया, प्रणमिसु जिन-पाया चंग चन्द्रप्रभाया. 8 3. B चीति. A सोख्य. Bहआ. 4. B लहिक A धजा तु. B साचु; प्रजानु. B वरवानु. A माहे. B मानु; सिधारषानु. 5. B हूउ; सिधि. 6. A म्हारु. B चीति; वहारु. A नरयगति वारु. B सांभलु. 7 A गुरूअ. 8. A नडाया. A भवभरम.

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