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________________ Lalbhai Dalpatbhai Series No. 8 KAVI LAVANYASAMAYA'S Nemirangaratnakara Chanda Edited by Dr. Shiylal Jesalpura M. A, Ph. D. भारतीय BAIGTAS LALBHAI DALPATBHAI BHARATIYA SANSKRITI VIDYAMANDIRA AHMEDABAD-9.
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________________ Lalbhai Dalpatbhai Series General Editors: Dalsukh Malvania Ambalal P., Shah No. 8 KAVI LAVANYASAMAYA'S Nemirangaratnakara Chanda Edited by Dr. Shivlal Jesalpura M. A, Ph. D. 102 STA LALBHAI DALPATBHAI BHARATIYA SANSKRITI VIDYAMANDIRA AHMEDABAD-9
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________________ First Edition : 500 copies Kankaria Road, Ahmedabad and Published by Dalsukh Malvania. Director, L. D. Institute of Indology, Ahmedabad-9 Price Rupees 6/= Copies can be trad of L. D. Institute of Indology Ahmedabad-9. Gurjar Grantha Ratna Karyalaya Gandhi Road, Ahmedabad-1. Motilal Banarasidas Variasi, Patna, Delhi. Sarasvati Pugtak Bhaader Matbikchagia, Ratanpople. Mamabal. Munshi Ram Manoharalal Nai Sarak, Delhi.
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________________ कवि लायसवरचित नेमिरंगरत्नाकर छंद [उपोद्घात अने शब्दकोश सहित] संपादक डा. शिवलाल जेसलपुरा एम. ए. पीएच. डी. HRC ASTE लालमा अहमदाबाद पद:25) प्रकाशक: लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अमदावाद-९
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________________ अनुक्रमणिका विषय 1 उपोद्घात 1. प्रतपरिचय अने संपादनपद्धति 2. कवि लावण्यसमय - जीवन 3. कवि लावण्यसमय - कवन 1. सिद्धांत चोपाई 2. गौतमपृच्छा चउपइ 3. स्थूलिभद्र एकवीसो 4. नवपशवपाश्र्वनाथ-स्तवन आलोयण विनति 6. नेमनाथ हमचडी 7. सेरीसापार्श्वनाथ-स्तवन 8. रावणमन्दोदरीसंवाद वैराग्य विनति 10. सुरप्रियकेवली रास 11. विमलप्रबंध 12. करसंवाद 13. अन्तरीक पार्श्वनाथ छन्द 11. सूर्यदीप-वाद छंद 15. देवराज-वच्छराज रास 16. सुमतिसाधुसूरि विवाहलो 17. चतुर्विंशति जिनस्तवन 18. खिमऋषि (बोहा), बलिभद्र-यशोभद्र रास 19. प्रकीर्ण 1. नेमिरंगरत्नाकर छन्द - समालोचना 1. रचनासमय 2. काव्यस्वरूप 3. पद्यबन्ध 1. कविप्रतिभा 5. समाजचित्र 6. भाषास्वरूप 2 नेमिरंगरत्नाकर छंद -काव्य 1. प्रथम अधिकार . 2. द्वितीय अधिकार शब्दकोश 85-108
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________________ प्रास्ताविक सोळमी शताब्दीमां श्रयेला जैन कविओमां कवि श्री. लावण्यसमयनुं स्थान घणुं ऊंचुं छे. त्रीश जेटली कृतिओमां तेमणे गुजराती कविताना प्रबंध, रास, छन्द, संवाद, हमचडी, विनति, स्तवन, विवाहलो वगेरे विविध प्रकारो खेड्या छे अने ए द्वारा पोतानी सर्वतोमुखी प्रतिभानो परिचय कराव्यो छे. आ कृतिओमां तेमणे धर्म, समाज, कला, उत्सव, रीतरिवाज, पहेरवेश, युद्ध, विरह, मिलन वगेरे विषयो उपर मार्मिक अने वेधक प्रकाश आपतां चित्रात्मक वर्णनो आलेख्यां छे. तेमां एमना कवित्वनां, तेमज भाषा-प्रभुत्व, शब्दभंडोळ, अलंकारसौन्दर्य तथा छंद अने प्रासनी पासादार शैलीनां दर्शन थाय छे. कवि लावण्यसमय विशे श्री. कनैयालाल मुनशीए 'नरसिंहयुगना कविओ' मां अने डॉ० धीरजलाल धनजीभाई शाहे तेमना पीएच्. डी. नी पदवी माटे लखेला 'विमलप्रबंध'ना निबंधमां आपणने घणी हकीकतो जाणवा मळे छे, तेथी तेमने विशे वधु कहेवु उचित नथी. कवि लावण्यसमये 'नेमिरंगरत्नाकछन्द' नामनी आ नानी कृतिमां पण वर्ण्यविषयनी रसिक संकलना, प्रसंग चित्रो अने भावचित्रो तथा समृद्ध अलंकारो द्वारा पोतानी प्रतिभा बतावी छे अने आवेगभरी छटादार शैली अपनावी छे. कविए आ विषयतुं एक 'नेमिनाथ हमचडी' नामे काव्य रच्युं छे. बंने कृतिओनो विषय एक होवा छतां एनी रजूआतमां नवीनता जोवाय छे. क्यांय पण वर्ण्यविषय बेवडाय नहीं अने रसक्षति थाय नहीं एनी तेओ चीवट राखता होय एम पण जणाई आवे छे.. . आवी सुन्दर कृतिनुं संपादन करवानुं डॉ० जेसलपुराए पसंद' कयु ए एमनी आ विषयनी विद्वत्तानो ख्याल करावे छे. तेमणे काव्य अने भाषाना लगभग बधा विषयोनी उपोद्घातमां संक्षेपमां सारी छणावट करी छे. शब्दकोशमां एमनो ठीक ठीक परिश्रम पण वरताय छे.
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________________ विद्वान् संपादके चार प्रतिओनो उपयोग करी मूळ पाठने शुद्ध करवानो प्रयत्न कयों छे. एकंदरे आ संपादन बधी रीते जूनी गुजराती साहित्यना अभ्यासीओ-विद्यार्थीओने उपयोगी थाय एवं छे. विद्वान संपादक आवां सुन्दर संपादनो वधु ने वधु आपता रहे एवी आशा अमे राखीए. अंबालाल प्रेमचंद शाह ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अमदावाद-९ 4-11-1965
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________________ संपादकीय निवेदन नेमिनाथ- राजिमती विशे गुजराती भाषामा विविध प्रकारनी कृतिओ ई. स. नी तेरमी सदीथी रचाती आवी छे. तेमां कवि लावण्यसमयकृत ' नेमिरंगरत्नाकर छन्द ' मध्यकालीन गुजराती साहित्य, भाषा अने संस्कृतिना अभ्यास माटे महत्त्वनी कृति छे, तेथी तेनुं आ संपादन तैयार कयु छे. नरसिंहयुगना तेमज समग्र मध्ययुगना गुजराती कविओमां लावण्यसमयनी साहित्यसेवा उच्च पंक्तिनी छे, तेथी तेमनां जीवन अने कवन विशे उपयोगी माहिती पण उपोद्घातमां विस्तारथी आपी छे. कृतिनी हस्तप्रतो सद्भावपूर्वक मेळवी आपी, आखीये वाचना वांची जई उपयोगी सूचनो करवा माटे पूज्य मुनिश्री पुण्यविजयजीनो हुँ अत्यन्त ऋणी छं. डॉ० हरिवल्लभ भायाणी, डा० भोगीलाल सांडेसरा तथा मु. अध्या० श्री. के. का. शास्त्रीए आद्यये पुस्तक वांची जई उपयोगी सूचनो कर्या छे ते बदल ए विद्वानोनो आभारी छु. मारा आ कार्य अंगे घणी हस्तप्रतो जोवानी मारे जरूर पडी हती. ते सुलभ करी आपवा बदल अने आ पुस्तकना प्रकाशननी जवाबदारी उठाववा बदल श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरना संचालक श्री. दलसुखभाई मालवणियानो आभार मानवानी आ तक लडं छु. बीजी केटलीक मुद्रित कृतिओनो पण मारे उपयोग करवो पड्यो छे, जेनो उल्लेख पुस्तकमां यथास्थाने कों छे. ए सौ लेखकप्रकाशकोनो पण आभार मानुं छु. देसाई चन्दुलाल मणिलाल शिवलाल जेसलपुरा आर्ट्स अने कॉमर्स कॉलेज, विरमगाम. ता० 15-11-1965
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________________ मुद्रणदोषो अने अनुपूर्ति पंक्ति 14 छेल्ली पंक्ति 18 26 आणी पणे 10...::.::::..... अशुद्ध बच्चे गोळ वच्चे गोळ अमदाबाद अमदावाद ओलखतो ओळखतो ब्यावहारिक व्यावहारिक (उमेरो) लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरमां आ कृतिनी नं. 4389, 4544 अने 5082 नी हस्तप्रतो छे. लग्र आ काव्य हजु आ काव्य 'बुद्धिप्रकाश' ना * अप्रसिद्ध छे. आक्टोबर, १९३१ना अंकमां छपायुं छे. संपादक स्व० श्री. मोहनलाल दलीचंद देसाई छे. आणा विमलती विमलनी पण समान्य सामान्य तमां तेमां जेटल जेटला कचोळनो कचोळांनो (1-30), (1-30). जसु जस जसु, जस अनिबार अनिवार धिकारा धिक्कारा विरचिअ जमा विरचिअ जंगा वली मांड मांडइ दिवज दिवस बेटी अंअः अंः 98 झखइ? 98 सालइ. सल्लइ. B सल्लइ AC सालइ तुहिम तुमि वला त्रटी झखइ? बोजु कालम
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________________ A संज्ञक प्रति प्रथमपत्र। पाश्रीगोमायामाग्रीनारदानेमाबंदोनिवि वरिपबंधबंधुरका रंगरनाकानमारदमार दयारादीउमण्यकमलविमलवायामामुमतिमदानशदवारमनिराधिकानादवी॥२ दिवशीबाल मिदीमायाकवियणडणाकरीमाया|बुऊगMAMBअंगिममाया अश्यणअवरअनंतगमाया। उक मम्मादऊऊलकंतीनिमाविशदायरिकलकंतीाण्यघघघुश्चमकतीसगमणिवालश्चमका त॥४वाल चमकंत्राऊगिजयावीणापतक पराकरिकमलकमंमलाकानकंमलारविन उलयरिकतिकरशहायमितियाणीमुणिकवाणायकबहामानहानिया दिनानिमिणदशनमवदिशक कीपिदिवाकाइनदीजमाता गसरमनिबनशमुझनरनिरगनवारणी लकदीविलवाणवाणीदिही दावा मिहीकिहीमश्रियासिवमागरमनिवाथाना हावाकरिवाकवितामाबालश्कवियामुगिने सवियाकनिअतिआणानिनवगनिगायुमुदिगतिगिनिनिमिजिएदाऊन नासम्मतिकिमिमिकवितावावाधीबुधिगाश्मरणानमीमकायाशिमुनाविश्ताव
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________________ A संज्ञक प्रति अन्तिमपत्र / दिवनाश श्रीमोमऊगरुभएसयामुमतिमाबुराणघरा श्री नरेइमविवापियरमदाफलायमंमया मरियरुजयुमदायलिविवला| गराजिमंमितपवरक्तिसमनमोधोनमुयायामीसीमनामीस्मिदिन याय नाश्वानाममदान आपकायेवितियाasnामायासवानियकोवादिविरिसदाशिला/विमानवाणीनि]ि माणीवनजाणीवकामारमाववामिश्वरमना भिमादमाममानामयोगयोगिविधिमयोगिवारवारदिपायगेमचंद कियपविविध मजिसमश्नविधियामायामयी धाकल्पवधीकरिवडीवरधिकामातीकिसागीदिममिनोनित वापदालगीएम मनापागरोगनागदिश्व हन जऊगडिपासदामुककगनमिनयरोदिया / मानमायरममिदिवायमिमारिगयणगणनकमा मुमुनश्चमक समुरमुरनगंगाजारप्रतिवन वरऊलावलायनिश्शुलझांलगमशिन मिडिगाव सवरियाविरमागितालगाधकलाम दविजयकुलकमल्लिाविमलजगिमोदवडावभरकवललगी वहिमनामश्वरिसमावाहकम्मनिरजली वासनावि नंजा अविवलपदिश्रवरियानमार गजया अवसौरवण्यायश्वरित ऊसवादवनकोश्वरालादण्यममय निवरणाशनयुजगधिजीक्षकम्पारणका१५६निनमिनायबोधगंगानाकरामाधादातीयोपबंधः। सलारंगवहनल ताशुनाबाश्रीरामाश्री। श्रा माग
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________________ ||ngolgीधीतरागायनम:||समची श्रीमारदामा दोनिर्वावधबंधुरंधीरंगनाकगनिधारामारक्षमारदयाकरदेवीकृिपया कमविश्वदेवामागूसुनिसहानदेवादरनिरिकीनवसाहिवह बोली मेहत्तीमायाक चीयाजणकरजीमायावहाउस | Bसंज्ञक प्रति। गनमायाप्रवगुण अननगमाया॥३॥ॐनमापकता पूनिमशशिरपरिफलकनापयघमघमघुघरघमकताहमगमशिनासरचम कनापाचावयचकनीAMARHamकरवरघरकारकमखिEAPाकानउसमन्वयारकनिकरहिआगीसाMil. वाला153.करमानामनिया232बदरकहपारिवीकोनमधशतवसासरसानेबानासुरनारकिरगaिil नदीचीअविरवाMEnasनाणदहापरावसहाकहासुपरिपारानवसागरतरिवापातकहारवाकावहारमबारकचियाकka यानवियराममनिप्रतियादेशानिननवनवगनगा सविगतनपने मिजिदः॥ 2वीसरसानमनसुदेशका हिसुकविता |३चारदिरागसुलनामामारकेराापोषिमनानासारापEnकवितकातक होसहवागाकरितamgणलाबनजागशसोश्कक्निजि समनोविजनलागूERSणादेवीवरच कागहरपशवमपिशरिपरिषाकवाकविताबरन चाहासाइकविन कहानी गायिकरिसकविननेस्य इहोमिडासिवाकोविनतनोसिशहिवमूत्रवश्स्पूालसामिणायणमा वामएकावनतडावाला योहाइएकदिनमाहिही कहीदानमसूरीरमारेरणाद्वारिकामायाकंसधाविहारहरयाजिरासिधुनाययादव करयावागगयारयणयारनामसहायताanaaniसातिमापदेकीचचरबोहायावहरनहाकार घरकरणामारीसुरवरवरासंगाराममंदिरपोनिगारानगियुगतानिहाजनविहारााउपरिकनककलसावकारा मरदानासाकिविचरनरगानंगासापरिघापकरनियारातिनियरिइंनिजयरकारारिमासमुहविजयजय / धरणामासाहयगयपायकहरवागाasanarसरदारासमपरलीयपसाराामवादविसाहजरसविचारातिपरत्नकरावण शाधमाधमप्रमअपारानासऊयाररित्रवनाशाचऊदमपनस्पखामिहमाराचिनवनमोहचडावहाराजिनम्याधन२नामकुमार |20॥उरेजनम्पाचनजिनसामसरन नमिजमारनारदघसियागारीनारासविसविचारमंगलबमधुरसतवमरवरावदा 20
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________________ C संक्षक प्रतिः श्री.ऐनमास्वाशाशारदानामदनिविविश्विबिधबंधुरकरिंमरनाकगतिधाश्शारदमाश्याएरदेवाच मण्यकमलविमलवादवामागसमतिमदानदेवाडरमतिमरधिकी निंदा राहवद बालमेलीमायाकविय रंगरामागर प्रचण्डकेरामाटाबजयणमणिउगिसमायाश्वयुवरश्नतगमाया|उमततमाहश्डालकंतीप्रिनि ममसिहरण्यकलकंतापयशमयमधारयाघमकतीहिंसममणिवालश्चमकतामधवालश्चमकंतीगिडया विंतीवीणामकएवरक्षरशकारकमलकममलकाने ऊंडलरविमंडलपरिकतकरशडियाहितागास णिमझदाणाझॐउमबड़मान लदलमना बाणेदश्नमिझिएवंदनवरदकवितकद देवीकाश्नईतखडलेशतवनतीमारमतिबु . लशसुस्तरकिंनरराडिपारणीतिउमदीक्ष वरलवाणीनिश्वाणीदीचाहविपमिक्षाकिही सुरियशर.तदमागरतरिोकारवाकवितनदार पातगड मबालश्कदिशामुणियानविणमजयनिति आदानिवनवश्यागनिगायमगिनि लगनिने हरवा मिडिरदायितीमरमनिमनशक्षिकादमुक्तिधाबुशिंगासुसुगनिमासकेगा ऐघिसुनावईनाव नलगाकवितश्कदीमकदवाणशकविणाघानावनडाण-शमाश्कवितासागमा मनमशकाविद उनमनिलागसमारण्देशवंदवकाराहरपिशवविशधिया रएरशकारमादितडवरना। वाह शसाश्कवितकहाश्रयामाहाकारसविततनमहोसिशरासिलीगाकाविदडलडोमिश
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________________ उपोद्घात प्रतपरिचय अने संपादनपद्धति कवि लावण्यसमय नरसिंह युगना समर्थ कवि छे अने प्रथम पंक्तिना जैन कविओमां घj ऊंचुं स्थान धरावे छे. एमणे नानी-मोटी त्रीसेक कृतिओ रची छे. एमांथी केटलीक कृतिओ प्रसिद्ध थई चूकी छे, पण मोटा भागनी कृतिओ अप्रसिद्ध छे. कविनो नेमिरंगरत्नाकर छंद' गुणवत्तावाळी कृति छे अने ए हजु अप्रसिद्ध छे. मध्यकालीन गुजराती भाषा, साहित्य अने सांस्कृतिक इतिहासना अभ्यासमां ए उपयोगी थई पडे एम छे. एना संपादन माटे नीचेनी हस्तप्रतोनो उपयोग करवामां आव्यो छे. 1. A प्रत -सागरगच्छना जैन ज्ञानभंडारनी आ हस्तप्रत पाटणना श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरमाथी प्राप्त थई छे. त्यांना ग्रंथभंडारमा एनो क्रमांक 9726 (डा. 210) छे. एमां कुल 9 पत्र छे. पत्रनुं माप 10.5"x 4.4" छे. पत्र 1 अने 2 नी आगळपाछळ दरेक पृष्ठ पर 11 लीटी छे, पत्र 3 थी 8 नी आगळपाछळ दरेक पृष्ठ पर 13 लीटी छे, ज्यारे छेल्ला पत्रमा आगळनी बाजुए 13 अने पाछळ 12 लीटी छे. दरेक पाननी पाछळनी जमणी बाजुए हांसियामां नीचे पत्रांक 1 थी 8 काळी शाहीमां अने पत्रांक 9 लाल शाहीमां लखेल छे. दरेक पृष्ठनी डाबी अने जमणी बाजुए लाल शाहीथी आशरे 0.6" नो हांसियो पाडेलो छे अने दरेक पृष्ठनी उपरनीचे पण 0.6" जग्या कोरी राखेली छे. दरेक पृष्ठनी वच्चे कलशाकृति छे अने एमां लाल गोळ वर्तुल मूकेल छे, तेमज संख्यांकवाळां पृष्ठोनी डाबी अने जमणी बाजुए पणं हांसियामां बच्चे गोळ वर्तुळ मूकेलां छे. आखीये प्रत एक ज हाथे देवनागरी लिपिमा लखायेली छे, तेमज अखंड अने सुवाच्य छे. प्रतनो मोटो भाग पडीमात्रामां छे, पण कोई कोई स्थळे खडी मात्रा मळे छे. अक्षरो काळी शाहीमां लखायेला छे, पण शरूआतमां " // एद० श्रीगौतमाय॥" एटला अक्षरो, दंड अने कडीओनी संख्या ( पहेला अधिकारमा 1 थी 66 अने बीजा अधिकारमा 1 थी 115) लाल शाहीमां छे. प्रतमां पुष्पिका के लेखनसंवत नथी.
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________________ 2. B प्रत-श्री संघना जैन ज्ञानभंडारनी आ हस्तप्रत पण पाटणना श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरमांथी प्राप्त थई छे. त्यांना ग्रन्थभंडारमा एनो क्रमांक 3140 (डा. 114) छे. एमां कुल 5 पत्र छे. पत्रनुं माप 10x4.3" छे. पत्र 1, 2 अने 6 नी आगळपाछळ दरेक पृष्ठ उपर 17 लीटी, ज्यारे पत्र 3 अने ४नी आगळपाछळ दरेक पृष्ठ उपर 18 लीटी लखेली छे. दरेक पृष्ठनी डाबी अने जमणी बाजुए 0.5" नो काळी शाहीथी हांसियो दोरेलो छे, तेमज उपरनीचे ०.३"थी 0.4" जग्या कोरी राखेली छे. पृष्ठांक 1 थी 5 दरेक पत्रनी पाछळनी जमणी बाजुए नीचे हांसियामां काळी शाहीथी लखेल छे. आखीये प्रत एक ज हाथे देवनागरी लिपिमां, खडी मात्रामां, काळी शाहीमां सळंग लखायेली अने अखंड छे. दंड अने कडीओनी संख्या (पहेला अधिकारमा 1 थी 70 अने बीजा अधिकारमा 1 थी 113 ) पण काळी शाहीमां छे. वच्चे कलशाकृति के स्वस्तिक नथी. अक्षरो नाना छतां सुवाच्य छे. आ प्रतमां पण पुष्पिका के लेखनसंवत नथी. 3. C प्रत-लहेरु वकील जैन ज्ञानभंडारनी आ हस्तप्रत पण पाटणना श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरमाथी प्राप्त थई छे. त्यांना ग्रन्थभंडारमा एनो क्रमांक.१०८१३ (डा. 230) छे. एमां कुल 10 पत्र छे. पत्रनुं माप 10.2"x4.4" छे. दरेक पत्रनी आगळपाछळ दरेक पृष्ठ उपर 13 लीटी लखेली छे, पण पहेलं पत्र पाछळनी बाजुए कोरं छे. दरेक पृष्ठनी डाबी अने जमणी बाजुए ०.७"थी०.८" नो काळी शाहीथी हांसियो दोरेलो छे, तेमज उपरनीचे *4" थी .5" जग्या कोरी राखेली छे. पृष्ठांक 1 प्रथम पत्रनी आगळनी जमणी बाजुए, ज्यारे पृष्ठांक 2 थी 10 पत्रनी पाछळनी जमणी बाजुए नीचे हांसियामां काळी शाहीथी लखेल छे. आ पृष्ठांकवाळां पत्रनी डाबी बाजुए हांसियामां मथाळे पण 'रंगरत्नाकरप्रबंध' ए शब्द पछी पृष्ठांक लखेला छे. आखीये प्रत एक ज हाथे देवनागरी लिपिमां, खडी मात्रामां (पहेला पृष्ठनी पहेली बे लीटीमां पडीमात्रानो उपयोग थयेलो छे), काळी शाहीमां लखायेली, अखंड अने सुवाच्य छे. दंड अने कडीओनी संख्या ( पहेला अधिकारमा 1 थी 70 अने बीजा अधिकारमा १थी 116) पण काळी शाहीमां छे. दरेक पृष्ठनी वच्चे कलशाकृति छे. आ प्रतमां पण पुष्पिका के लेखनसंवत नथी / 4. आ उपरांत आ कृतिनी एक हस्तप्रत अमदावादना लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरना ग्रंथभंडारमाथी मळी हती. ए प्रतनी पुष्पिका आ प्रमाणे छ :
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________________ " श्रीरस्तुः // लेखकपाठकयोश्चिरं जीयात् // संवत् 1600 वर्षे जेष्ठ सुदि 1 रखौ लखितं श्रीमति गजपाठके // श्रीरस्तु कल्याणमस्तु // दीर्घायु // इति श्रेय // " पण आ प्रत अशुद्ध होवाथी, तेमज एमां घणे स्थळे अक्षरो घसाई गया होई, संपादनमा एनो प्रत्यक्ष उपयोग को नथी. त्रणे प्रतोमा लेखनसंवत नथी, पण प्राचीनतानी दृष्टिए C अने A नुं स्थान प्रथम आवे छे, त्यारपछी B नुं स्थान आवे छे. ला. द. भा. सं. विद्यामंदिरनी वि. सं. १६००मां लखायेली प्रतनी तुलनाए तेमज भाषास्वरूप अने लिपिनी दृष्टिए A अने C प्रतो वि. सं. 1600 पहेलां अने B प्रत ए पछीथी थोडां वर्षमां लखायेली होवी जोईए. त्रणे प्रतमां लेखनसंवत नहि होवाथी, तेमज कोई प्रत अर्थ अने छंददृष्टिए संपूर्ण शुद्ध नहि लागवाथी, कोई एक प्रतने मुख्य प्रत तरीके स्वीकारी आ कृतिनी वाचना तैयार करवानुं योग्य मान्यु नथी. पण त्रणेमांथी अर्थदृष्टिए, छंददृष्टिए अने भाषादृष्टिए जे पाठ स्वीकारवा जेवा लाग्या ते स्वीकारी बाकीना पाठ नीचे पादटीपमां नोंध्या छे. ए रीते पाठान्तरोनी पसंदगीपूर्वक थयेली ( eclectic ) वाचना आपवानो अहीं प्रयत्न कर्यो छे. एक पण शब्द हस्तप्रतोनी बहारनो लीधो नथी के एमां फेरफार कर्यो नथी. मूळनी जोडणी अने लेखन( उच्चारण )भेद यथातथ जाळवी राख्यां छे, शब्दना सौथी जूना स्वरूपने अपनाववानुं वलण राख्युं छे, अने ए रीते कर्ताना के एमना नजीकमां नजीकना समयनी भाषाने जाळववानो प्रयत्न कर्यो छे. एम छतां संपादनमां मूळना दंडने स्थाने अर्वाचीन अर्थानुसारी विरामचिह्नो मूक्यां छे. हस्तप्रतोमां कोई वार त्रण के चार लीटीनी कडीने संख्यांक अपायो छे. संपादनमां सामान्यतः बे लीटीनी कडी गणी नवेसरथी क्रमांक आप्या छे. कवि लावण्यसमय जीवन सामान्य रीते प्राचीन-मध्यकालीन कृतिओना कर्ताना जीवन विशेनी माहिती एमनी पोतानी तेमज समकालीन-अनुगामी कविओनी कृतिओ सिवाय भाग्ये ज बीजेथी मळे छे. लावण्यसमये पोते ज विमलप्रबन्ध'नी प्रशस्तिमा जणाव्युं छे ते मुजब 'नवरंग गूर्जर देश'ना सुप्रसिद्ध पाटण नगरमां मंग नामनो श्रीमाळी वणिक रहेतो हतो. पाटणमां दानी तरीके एनी ख्याति हती. कोई कारणे ए कुटुम्ब पाटण छोडी अमदावाद आवी वस्यु. मंगने आ वखते त्रण पुत्रो हता. सौथी मोटा पुत्रनुं
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________________ नाम श्रीधर हतुं. अमदाबाद शहेरने आ वखते घणां परां हतां. एमांना 'अजदर पुरा'मां आ कुटुम्ब रहेतुं हतुं. आ श्रीधर वणिकने एमनी पत्नी झमकलदेवीथी चार पुत्रो वस्तुपाल, जिनदास, मंगलदास अने लहुराज अने एक पुत्री लीलावती हता.' आ लहुराज (लहुजी>लवजी ) ते ज आपणा कवि लावण्यसमय, एमनो जन्म वि. सं. 1521 = ई. स. 1465 मां पोष वदि त्रीजना रोज थयो हतो. आ वखते अमदावादमां जैनोनुं प्रभुत्व हतुं. ('गुजरातर्नु पाटनगर : अमदावाद'-रत्नमणिराव भीमराव-पृ. 400 ). अजदरपुर परामां पण जैनोनी वस्ती हती. ( 'गुजरात, पाटनगरः अमदावाद'-रत्नमणिराव भीमराव-पृ. 226 ). जैनोना लत्तामां जैन मन्दिर अने पासे धर्मशाळा ( उपाश्रय ) हतां. आ उपाश्रयमां चातुर्मास रहेला मुनि समयरत्नने श्रीधर वणिके लहुराजना जन्माक्षर देखाड्या. जन्माक्षर जोईने समयरत्ने कयुं, के 'आ बाळक महान तपस्वी, मोटो यति, महा विद्वान के बहु तीर्थयात्रा करनारो थशे... 1. गूजर देस देस नवरंग, पट्टण नगर प्रसिद्धउं चंग, संघ मुख्य श्रीमाली मंग, करइ पुण्य जगि मोटा जंग. 31 दीइ दांन व्यवहारी वादि, तिहांथा आव्या अमदावादि; त्रिणि पुत्र तस कुलशृंगार, प्रथम पुत्र शीधर सुविचार. 32 अजदरपुरि कीधा आवास, झमकलदेवी घरुणी तास; च्यारि पुत्र तेहनइ जिनमति, पंचम पुत्री लीलावती. 33 वस्तुपाल जमलि जिणदास, त्रीजु बंधव मंगलदास, चतुर चंग चउथउ लहराज, तेहनई पुण्य सरिसुं काज. 34 ('विमलप्रबन्ध'-सं. मणिलाल ब. व्यास, सं. 1970) धर्मशाल जिनमन्दिर पाशि, समइरत्नगुरु तिहां चुमाशि, जनमयोग देषाडिउ जशइ, सहिगुरु हृदय विमांसइ तिगइ. 35 संवत 1521 धिन, शके तेर छयाशीउ प्रसन्न, पोष वदी दिन त्रीज पवित्र, आविउ अश्लेषा नक्षत्र. 36 घडी पाछिली जव नव राति, जन्म अर्क ऊगीउ प्रभाति, तुला लग्न सरिसु संकेत, मूरति मंगल जमलु केत; 37 वृश्चिक बुध रवि वीजउ रहिउ, शुक्र मकरि ते चउथइ कहिउ, गुरु शनि कुंभि रह्या पांचमइ, मेषि राहु सोहइ सातमइ. 38 दसमइ चन्द रहिउ निज घरे, जन्मयोग जोइउ सहिगुरे; हृदयस्थलि रवि नक्षत्र वशिउं, सहिगुरि वचन प्रकासिउं इशंः 39 सुणउ श्रेष्टि होशि तपधणी, कइ ए जाशइ तीरथ भणी; कइ ए थाशइ मोदन यती, वर विद्या होशइ दीपती. 40 ('विमलप्रबन्ध')
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________________ मुनि समयरत्नना कहेवाथी मातापिताने पगे लागीने बाळक लहुराज वैरागी थयो. नवमे वर्षे, वि. सं. 1529 ना जेठ सुदि दसमना दिवसे पाटणमां पालणपुरी उपाश्रयमा तपगच्छशाखाना अधिपति लक्ष्मीसागरसूरिए एने दीक्षा आपी, अने एनुं मुनि तरीकेनुं नाम लावण्यसमय राखवामां आव्यु. दीक्षानो आ उत्सव खूब धामधूमथी थयो हतो. लावण्यसमये / विमलप्रबन्ध 'नी प्रशस्तिमा कह्यं छे ते मुजब मुनि समयरत्ने एमने अनेक विषयो, अध्ययन कराव्युं हतुं अने सोळमा वर्षथी एमणे कविता रचवी शरू करी हती. रास, छन्द, कवित, चोपाई, प्रबन्ध, संवाद, विविध प्रकारनां गीत (स्तवन, सज्झाय, आदि) एम अनेक प्रकारो एमणे खेड्या हता. विविध प्रकारनी काव्यरचना साथे ठेकठेकाणे एमणे धर्मोपदेश को हतो. विद्वत्ता अने कवित्वशक्तिने परिणामे एमना उपदेशथी मोटा मोटा मन्त्रीओ अने राजाओ प्रसन्न थया हता. राज्यकर्ता मुसलमान सरदारोए एमनी आज्ञाने मान आप्युं हतुं अने भक्त श्रावकोए स्थळे स्थळे देरासरो अने उपाश्रयो बंधाव्यां हतां . एमना उपदेशथी मेवाडना महाराणा रत्नसिंहना मन्त्री कर्माशाहे सौराष्ट्रमां आवेल श→जय तीर्थनो सातमो उद्धार को हतो.' एमनी आ शक्तिओने कारणे एमने वि. सं. १५५५मां पण्डितपद आपवामां आव्युं हतुं. 3. गुरुवचने वइरागी थयु, माततात-पय लागी रहिउ; जेठ शुदि दिन दसमी तणउ, उगणत्रीसइ उच्छव घणउ. 41 पाटणि पाल्हणपुरी पोसाल, जंग हुइ चउपट चुसाल, दिइ दीक्षा अति आणंदपूरि, गच्छपति लखमीसागरसूरि . 42 संघ सजन सहू साखो समइ, नाम ठविउं मुनि लावण्यसमइ : (विमलप्रबन्ध') नवमइ वरसि दीष वर लीध, समयरत्नगुरि विद्या दीध. 43 सरसति मात मया तव लहो, वरस सोलमइ वांणो हुइ3; रचिआ रास सुंदर संबंध, छन्द कवित चउपई प्रबन्ध. 44 विविध गीत बहु करिया विवाद, रचीया दीप सुरस संवाद; सरस कथन नहों आलि करइ, मोटा मंत्रीराय रंजवइ. 45 जस उपदेस हवु सुविशाल, बहु थानकि देहरां पोसाल; मीर मलिक ते मांडइ विनइ. पंडितपद ते पंचावनइ. 46 (विमलप्रबन्ध') पूज्य पं. समयरत्न-शिष्य पं० लावण्यसमयस्त्रिसंध्यं श्रीआदिदेवस्य प्रणमतीति भद्रं... लावण्य समयाख्येन पंडितेन महात्मना / सप्तमोद्धारसक्ता च प्रशस्तिः प्रकटीकृता // ('प्राचीन जैन लेखसंग्रह' भा. २-सं. जिनविजय )
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________________ लावण्यसमयनी कृतिओ उपरथी जणाय छे के चातुर्मासने कारणे तेमज यात्रानिमित्ते अओए सौराष्ट्र , गुजरात अने रजपुतानामां जुदे जुदे स्थळे विहार को हतो अने त्यां रही जुदी जुदी कृतिओ रची हती . आ रीते एमणे वि. सं. 1558 मां नवपल्लव पार्श्वनाथनी यात्रा करी हती. वि. सं. 1562 मा वामज नगरमां 'आलोयण विनति , ए ज वर्षमां सेरीसामां 'सेरीसा पार्श्वनाथस्तवन ,' वि. सं. 1567 मां खम्भात( त्रंबावतो )मां 'सुरप्रिय केवलीरास, वि. सं. 1568 मां पाटण पासे मालसमुद्रमां -- विमलप्रबन्ध, 10 वि. सं. 1575 मां शांतिज(साती)नगरमां 'करसंवाद'," ए ज वर्षमां कतपुरमा ‘देवराज- वच्छराज चोपाई 15 अने वि. सं. 1589 मां अमदावादना परा बुहादीनपुरामा ‘बलिभद्र - यशोभद्र रास' एमणे रच्यां हता. गिरनारनी यात्रा पण एओए करी हती." 6. संवत पन्नर अठावनि रे चैत्रह वदि चउसाल, ए तु मुनि लावण्यसमय नवपल्लव कीधी यात्र रसाल. ('नवपल्लव पार्श्वनाथस्तवन-ह. प्र. ला. द. सं. मं. नं. 6995) 7. संवत पनर बासिठई आदिश्वर रे अलवेसर साष तु, वामिज मांहि वीनव्यो सीमंधर रे, देव दर्शन दाषि तु. ('जन गूर्जर कविओ भाग १'-मोहनलाल दलीचन्द देसाई) 8. संवत पन्नर बासठि प्रसाद सेरीसा तणो, लावण्यसमें इम आदि बोलें नमो नमो त्रिभुवनधणी. ('जै. गू. कविओ-भाग 1) 9. संवत पनर सतसठइ आसो सुदि रविवार, रचिउं चरित्र सोहामणुं त्रंबावती मझारि. (जै. गु. क.-१) 10. अणहिलवाडा पट्टण पाशि, मालसमुद्रि रहिआ चउमासि, बोल सकल संघिइ बिनविउ, विमल रास तेणइ कारणि कविउ. 48 (विमलप्रबंध) 11. जिहां पोढां जिणहर पोसाल, वसइ लोक दीपता दयाल, शांतिज(साती) नगर मंडि सुविशाल, गायु करसंवाद रसाल. संवत पनर पंचिहुतरइ. मुनि लावण्यसमइ उचरइ, पामी चन्द्रप्रभ जिनराय, बे कर संपिइ पूज्जइ पाय. (जै. गू. क. 1) 12. शिष्य तास पयतलि नमीए नयर कतपरिमाहि. संभवनाथ पसाउलें ए रास रचिओ उछाहि. (जै. गू. क. 1) 13. संवत पनर नव्यासीइं माघ मासि रविवारि. अहिमदावाद विशेषीइं पुरु बुहादीन मझारि, संघ सुगुरु आदेसडइं जिह्वा करी पवित्र, बोहा बलिभद्र किन्ह रसि जसभद्र रचिउं चरित्र. (जै. गू. क. 1) 14. सोहइ गण तपगच्छ शणगार, देसविदेशिइ करइ विहार, सोरठदेशि रही गिरनारि, पुहता गुज्जर देस मझारि. 47 (विमलप्रबन्ध)
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________________ - 7 लावण्यसमयना शिष्यसमुदाय विशे कशी माहिती मळती नथी. लावण्यसमय पोतानी कृतिओमां लक्ष्मीसागरसूरि अने समयरत्नसूरिने पोताना गुरु तरीके गणावे छे, पण ए बे उपरांत सुमतिसाधुसूरि, सोमसुन्दर, सोमजय, सोमगुण, राजप्रिय, इन्द्रनंदि वगेरेनो पण एओ पोताना गुरु तरीके उल्लेख करे छे. वि. सं. १५४३मां रचायेल 'सिद्धांत चोपाई'ने अन्ते अओ कहे छे : "अम्ह गुरु श्रीसोमसुन्दरसूरि, जासु पसाइं दुरिआं दूरि, तपगच्छनायक सुगुणनिधान लक्ष्मीसागरसूरि प्रधान, श्रीसोमजयसूरींद सुरींद सुजाण, जसु महिमा जगि मेरु समाण, अहनिसि हरषि प्रणमु पाय, सुमतिसाधु सूरि तपगछराय; गुणमंडित पंडित जयवंत समयरत्न गिरूआ गुणवंत." वि. सं. १५४६मां रचायेल 'नेमिरंगरत्नाकर छन्द 'मां आ उपरांत सोमगुण अने राजप्रियनो उल्लेख मळे छः "श्रीमत्सोमगुणव्योम सोमसौभाग्यसुन्दरः . प्रज्ञावज्ञातमत्सूरिः सूरिश्री सोमसुन्दरः श्रीसोमसुन्दर लब्धिसायर सोमदेवमुनीश्वराः श्रीसोमजय गुणधरगिरूआ सुमतिसाधु गुणेश्वराः श्रीइंद्रनंदिसुरिंद राजप्रियसूरि सदाफला, तपगच्छमंडण सवे सहिगुरु जयु महीयलि अविचला. गुणराजिमण्डित पवर पंडित समयरत्न मुनीश्वरो, तसु पाय पामी सीस नामी स्तविउ तूं नेमीश्वरो. 'गौतमपृच्छा चउपइ' (वि. सं. १५४५)मा इन्द्रनंदि अने राजप्रियसूरिनो उल्लेख मळे छ : "तपगच्छनायक आणंदपूरि, वंदं श्रीसोमसुन्दरसूरि, तास अवनइ सोहइ गुरुचंद, सिरि लक्ष्मीसागरसूरिंद. सिर सिरिसोमदेवसूरि सोम समान, सोमजयसूरि संप्रधान, तपगच्छनायक नयणानंद गुरु सुमतिसाधु सुरिंद. श्रीइंद्रनंदिसूरि गणधर, किरि अभिनव गोयम-अवतार, तपगछि उपइ अविचल भाण श्रीराजप्रियसूरि सुजाण, समयरन जयवंत मुणींद, इम जंपइ जगि तेहनउ सीस."
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________________ __ आ उपरथी लावण्यसमयना गुरु कोण एवी शंका थवा संभव छे, परन्तु सुमतिसाधु, सोमसुन्दर, सोमगुण, इन्द्रनंदि, राजप्रिय, शुभरत्न, सुधानन्दन, रत्नमण्डन, जिनहंस आदि दस मुनिओने लक्ष्मीसागरसूरिए आचार्यपद आप्यानो उल्लेख मळे छे." सोमविमळ नामना साधुए वि. सं. १६०२मां रचेल ‘गच्छनायक पट्टावली सज्झाय'मां पण आ अगियार मुनिओने लक्ष्मीसागरसूरिए आचार्यपद आप्यानो उल्लेख छे." एटले ए सर्वे लावण्यसमयना गुरुभाई समजाय छे. तपागच्छनी पट्टावली मुजब लक्ष्मीसागरसूरिनी पाटे सुमतिसाधुसूरि आव्या छे. एमने विशे लावण्यसमयने अत्यन्त मान छे अने 'सुमतिसाधुसूरिविवाहला'मां सुमतिसाधुना दीक्षाना प्रसंगने एमणे रसिकताथी वर्णव्यो छे. लावण्यसमये गुरु तरीके लक्ष्मीसागरसूरि अने समयरत्नसूरि बनेनो उल्लेख को छे, एनो अर्थ कई रीते घटाववो ए प्रश्न रहे छे. परन्तु लावण्यसमयने दीक्षित थवा तैयार करनार समयरत्न हता. लक्ष्मीसागरसूरि पासे दीक्षा लीधा पछी अनेक . विषयोनुं अध्ययन पण एमने समयरत्ने कराव्यु छे. लक्ष्मीमागरसूरिनो स्वर्गवास वि. सं. १५३७मां थयेलो.“ए पछी लावण्यसमयना प्रेरक समयरत्नसूरि होय ए स्वाभाविक छे. आम पहेला गुरु समयरत्नसूरि छे, ज्यारे दीक्षागुरु लक्ष्मीसागरसूरि छे. शजय-प्रशस्तिमां "पूज्य पं. समयरत्न-शिष्य पं.लावण्यसमय" एवो उल्लेख छे. ए परथी भक्तसमुदाय पण लावण्यसमयने समयरत्नना शिष्य तरीके ओलखतो लागे छे. लावण्यसमये समयरत्नने माटे 'गिरूआ गुणवंत', 'गुरुराय', 'मुनीश्वरो' जेवा विशेषणोनो उपयोग को छे. वळी एक ज गुरुनो उल्लेख करे छे त्यां एओ समयरत्ननो ज उल्लेख करे छे. आ उपरथी पोताना गुरुभाई प्रत्ये लावण्यसमयने मान छे, एमने पोताना गुरु समान गणे छे, दीक्षागुरुने पण एओ अत्यन्त मान आपे छे, पण गुरु तरीके सौथी वधु मान तो समयरत्नने आपे छे, ए स्पष्ट छे. लावण्यसमय, अवसान क्यां अने क्यारे थयु ए विशे कशी माहिती मळती नथी, परंतु एटलुं चोकस कही शकाय के वि. सं. 1589 सुधी एओ हयात 15. “ऐतिहासिक राससंग्रह भाग २-सं. श्री विजयधर्मसूरि, सं. 1978 -प्रस्तावना 16. "ऐतिहासिक सज्झायमाला'' भाग 1 17. जैन गूर्जर कविओ, भाग 2 18. जैन गुर्जर कविओ, भाग 1 . 19. क्यारे स्वर्गस्थ थया ए जाणवा कई साधन उपलब्ध थयुं नथी.” (जै. गू. क. १-पृ. 70) "तपास करवा छतां कविनो देहोत्सर्ग काहां अने कया समये थयो ते काई जाणवामां आव्यु नथी.'' ('ऐतिहासिक राससंग्रह भा. २-सं. श्रीविजयधर्मसूरि-प्रस्तावना, पृ.१६)
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________________ हता. आ वर्षमां अमदावादमां शाहआलमना रोजा पासे आवेला बुहाद्दीनपुरामां रही एमणे * खेमऋषि( बोहा )रास-यशोभद्रसूरिरास 'नी रचना करी छे. आम कविनी 68 वर्षनी उमर ( वि. सं. 1521 थी 1589 ) निश्चित छे. ___ लावण्यसमयनी प्रथम दीर्घकृति * सिद्धांतचोपाई' वि. सं. १५४३मां अने छेल्ली कृति 'यशोभद्रसूरिरास' सं. १५८९मां रचाई छे. वच्चेना गाळामां नानी-मोटी त्रीसेक कृतिओ रची छे. एमां एमणे जैन धर्मनां तीर्थक्षेत्रो, उत्सवो, आचारविचार, व्रतनियमो इत्यादिनो महिमा गायो छे ने ए धर्मना सिद्धांतोनुं प्रतिपादन कयु छे. 'गौतमपृच्छा,' 'आलोयण सज्झाय, ' ' पुण्यफल सज्झाय, ' 'आत्मबोध सज्झाय,' 'चतुर्विंशतिजिनस्तवन' वगेरे कृतिओमा एमनो अंतःकरणनो वैराग्य अने भक्तिभाव ऊभराइ जतो जणाय छे. ऐमनी बधी कृतिओ सांप्रदायिक छे, छतां तक मळतां सामाजिक रीतरिवाजो, ज्ञातिओ, देश, नगर, वन, सामुद्रिक लक्षणो, अस्त्रशस्त्रो, आभूषणो, पहेरवेश, शुकन-अपशुकन, अश्वप्रकार, पुरुषनी कला, स्त्रीनी कला इत्यादिनां वर्णनो एमणे करेला छे. कहेवतो अने सामान्य विधानो-अर्थान्तरन्यासनो बहोळो उपयोग कर्यो छे ने ब्यावहारिक उपदेश आप्यो छे. विविध छन्दो अने रागरागणीनो उपयोग करी पद्यरचना अने भाषा पर ऊंचा प्रकार- प्रभुत्व दर्शाव्युं छे. 'करसंवाद ' अने केटलीक हरियाळीओमा चातुर्य अने विनोद जोवा मळे छे. वर्णन करवानी अने रस जमाववानी शक्ति एमणे स्थळे स्थळे दावी छे. एमनी 'सिद्धांत चोपाई' एमना स्वभाव- सुन्दर दर्शन करावे छे. ए वखते " लोंका नामना अमदावादना एक श्रावके जिनधर्मनी चालती परम्परा विरुद्ध नवो पंथ चालतो कर्यो हतो. परिस्थिति एवी अनुकूळ हती के नवो पन्थ चालती आवेली मान्यताओनी विरुद्ध होवा छतां पण श्रावकोने ए गम्यो अने एक पछी एक, हजारो श्रावको ए पन्थमां भळी जवा लाग्या. x x आ पन्थ ऊभो थतां जैन संघने अने खास करीने श्वेतांबर जैनसंघने एवो आकरो धक्को लाग्यो के एनां एके कोडमां ऊछळता हता.""एमणे लोकाशाना मतनो प्रतीकार करती 'सिद्धांत चोपाई' रची; पण “एमां नथी सामा पक्षने हलको पाडवानी हलकी युक्तिओ, नथी कांई आक्षेपो 20. आ संबन्धमा श्री. क. मा. मुनशी 'नरसिंहयुगना कविओ'मां लखे छे : "छपायेला 'ऐतिहा सिक राससंग्रह'मां आ ग्रंथ रच्यानो सं. 1589 आप्यो छे, पण मारी पासेनी प्रतिमां सं 1582 नी साल लखी छे, अने ते ज साल खरी लागे छे." 21. 'नरसिंहयुगना कविओ?-क. मा. मुनशी
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________________ के नथी कशो धूंधवाट; मात्र सूत्रो टांकीने गुजरातीमा एनो अर्थ समजाव्यो छे. काव्यने छेडे एमणे आ प्रमाणे कयुं छे : "क्रोध नथी पोषिउ मइ रति, वात कही छइ सघली छती, बोलिउ श्री सिद्धांतविचार, निंदानु सिउ अधिकार. 73 जे जिम जाणउ ते तिम करउ, पण जिनधर्म खरउ आदरउ."३१७४ ___ आ उपरथी स्पष्ट कही शकाय एम छे के लावण्यसमय मात्र धर्मरत के धर्मचुस्त साधु नहि, पण स्वस्थ, बहुश्रुत अने रसिक विद्वान हता. धर्म जेटलो ज समाजमां एमने रस हतो. एमनुं व्यक्तित्व विद्वत्ता अने रसिकताथी मान मेळवे तेवू छे, तो निर्मळ साधुताथी पूजाय तेवं छे. कवन लावण्यसमये प्रबन्ध, रास, चोपाई, छन्द, संवाद, हरियाळी, हमची, सज्झाय, स्तवन, एम अनेक प्रकारनी कृतिओ रची छे. एमांथी केटलीक कृतिओ जैन गृहस्थोना जीवनप्रसंगने लगती छे, केटलीक कृतिओ जैन साधुपुरुषो विशे छे, तो केटलीकमां जैन तीर्थंकरोतुं गुणानुदर्शन छे. 'विमलप्रबन्ध' जेवी कृतिमा इतिहासने तो 'देवराजवच्छराज चोपाई 'मां लोककथाने गूंथी देवामां आवेल छे. केटलीक कृतिओ आठदस कडीनी छे, तो केटलीक सारी रीते मोटी छे. आमांनी केटलीक कृतिओ सामयिकोमा अने पुस्तकाकारे प्रसिद्ध थयेल छ, परन्तु मोटा भागनी अप्रसिद्ध छे. मोटा भांगनी कृतिओमां रचनासमय मळी रहे छे. .. 1. सिद्धांत चोपाई आ कृतिनी रचना वि. सं. १५४३ना कार्तिक सुदि 8 ने रविवारे थई छे. एमां 181 कडी छे : 'ए चउपइ रची अभिराम, लुंकट-वदन-चपेटा नाम. 179 संवत्सर दह पंच विशाल, त्रिताला वरषे चउसाल, काती शुदि आठमी शुभ (रवि)वार, रची चउपइ बहुत विचार. 180 // 181 // इति श्रीसिद्धांत चतुष्पदी / लुकटवदने चपेटा विधाना / लिखिता परोपकाराय // 29 22. जनयुग', पुस्तक 5, अंक 9-10 (वि. सं. १९८६)मा प्रकाशित. 23. 'जैनयुग', पु. 5 अने 'जैन गुर्जर कविओ'-१
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________________ विक्रमनी सोळमी सदीनी शरूआतमां अमदावादना लोकाशाह (वि. सं. 1508) नामना साधुए जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदायना प्रचलित रीतरिवाजो अने जैनोनी आवश्यक क्रियाओ, प्रतिमापूजा वगैरेनो विरोध करी नवो पन्थ स्थाप्यो हतो. लोकाशाहना आ नवा मत--सिद्धांतो- 'सिद्धांत चोपाई (लुंकावदन-चपेटा) मां खण्डन तेमज पोताना मतनुं प्रतिपादन छे. कविनी बावीस वर्षनी युवानवये आ कृतिनी रचना थई छे छतां एमां लगार पण क्रोध के निंदानो भाव नथी. मात्र शास्त्रना सिद्धांत बतावीने पोतानो प्रश्न खरो छे अने सामो पक्ष खोटो छे एम सिद्ध करवानो एमां प्रयत्न करवामां आव्यो छे." दृष्टांतो द्वारा विषयने असरकारक बनाववानी कविनी शक्तिनुं पण एमां दर्शन थाय छे : 'मदि झिरतु मयगल किहाँ, किहां आरडतूं ऊंट, पुण्यवंत मानव किहां, किहाँ अधमाधम खूट. 152 राजहंस वायस किहां, (किहां) भूपति किहां दास, सपतभूमि मंदिर किहां, किहां उडवसे वास. 153 मधुरा मोदक किहां लवण, किहां सोनूं किहां लोह, किहां सुरतरु किहां कयरडु, किहां उपशम किहां कोह. 154 किहां टंकाउलि हार वर, किहां कणयरनी माल, शीतल विमल कमल किहां, किहां दावानल झाल. 155 भोगी भिक्षाचर किहां, किहां लहिवू किहां हाणि, जिनमत लुका-मत प्रतिइं एव९ अंतरि जाणि."" आ कृतिनी हस्तलिखित अनेक नकलो थई छे, ए एनो जैन समाजमां थयेलो प्रचार बतावे छे. 2. गौतमपृच्छा चउपइ आ कृति सांप्रदायिक अने उपदेशप्रधान छे. प्राकृत ‘गौतमपृच्छा' प्रकीर्णकने आधारे एनी रचना थई छे. भगवान महावीरना प्रथम शिष्य गौतम गणधरना मनमां जैन सिद्धांतो अंगे केटलाक संशय थयेला, तेना निवारणार्थे एमणे केटलाक प्रश्नो महावीरने पूछेला. आ प्रश्नो तेमज एना उत्तरनी गूंथणी आ 'चउपइ'मां छे. एमां कविना अंतःकरणनां वैराग्य अने भक्तिभाव ऊभराई जतां जणाय छे :28 24. 'ऐतिहासिक राससंग्रह' -भाग २–प्रस्तावना. 25. 'नरसिंहयुगना कविओ' 26. 'जनयुग', पुस्तक 5, अंक 9-10 27. आ कृति 'सज्झायमाला' (शा. भीमशी माणेक प्रकाशित) मां प्रसिद्ध थई छे. 28. 'नरसिंहयुगना कविओ,'
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________________ 'धर्म करु चितु मम माहि, आलस वइरी आगलि थाइ; पापी परहु करी न सकाइ, रातिदिवस इम आलि जाइ. 16 आरति न टली एकु वार, जनम मरण वचि एक लगार, भवसागरि हूं भमिउ अपार, तुझ विण सामी कुहु कुण तारइ. 17 घरघरणीनि भारिइं जूतु , आगइ जनम धणाइ विगूतु, महिआं मोहनिद्राभरि सूतु, पापकरमि कलि-कादमि खूतु. 18 बालपणइ क्रीडारसि हूंतु, यौवनवय युवतीमुखि जूतु, वडपणि व्याधि घणी जोगवतु, धर्महीण भव इम भोगवतु.' 19 एनो रचनासमय वि. सं. 1545 चैत्र सुदि 11 ने गुरुवार छे. काव्यमां एनो उल्लेख चमत्कृतिपूर्वक थयो छ : 'पहिलु तिथिनी संख्या जाण, संवत जाणु इणि अहिनाण, बाणवेद जउ वांचउ वाम, जांणउ वरष तणो तुमे नाम. 117 वासुपूज्य जिणवर बारमु, चैत्र थको मास जिने नमो, अजुआली इग्यारशि सार, तहीई सुरगुरु गिरुउ वार. 1118 कोई हस्तप्रतमां आ कृतिनी 119, तो कोई हस्तप्रतमां 121-122 कडीओ मळे छे. 3. स्थूलिभद्र एकवीसो आ काव्यनी रचना वि. सं. १५५३ना दिवाळीना दिवसोमां थई छ : 'संवत पंनर त्रिपनइ, संवत्सरे दिवस दीवाली तणउ, थूलिभद्र गायु मय सुणायु एकवीसु ए भणउ.'' एमां एकवीस कडीओ छे. स्थूलिभद्र एक मोटा जैन आचार्य थई गया. एओ पूर्वाश्रममां पाटलिपुत्रमा नन्दराजाना मन्त्री शकटालना पुत्र हता. पाटलिपुत्रनी कोशा नामनी एक प्रसिद्ध गणिकाना प्रेममां पडीने एओ एना घरमां बार वर्ष सुधी रह्या हता. पिताना मृत्यु पछी राज्यखटपट जोईने एमने संसार उपर वैराग्य थयो अने एमणे तुरत ज संभूतिविजय गुरु पासे जईने दीक्षा लीधी. दीक्षा लीधा पछी एमना वैराग्यनी कसोटी करवा गुरुए एमने पहेलो 29. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदाबाद-ह. प्र. नं. 1669 30. अप्रसिद्ध. 31. 'जैन गूर्जर कविओ'-भाग 1
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________________ चातुर्मास कोशाने घेर गाळवानो आदेश आप्यो. पोताना प्रेमाने पाछो आवतो जोईने कोशाने आनन्द थयो, एने चळाववा एणे खूब प्रयत्न कर्या, परन्तु स्थूलिभद्रे तो हवे काम उपर विजय मेळव्यो हतो. कोशाना बधा प्रयत्नो सामे अडग रही, नियत समय सुधी एना घरमां रही, एने प्रतिबोध पमाडी, एओ गुरु पासे आव्या. आ रसिक प्रसंगने आ काव्यमां गूंथवामां आव्यो छे. आये काव्य शब्दलालित्यथी भरपूर छे. एमांनी वर्णसगाई, अंतर्यमक तथा प्रासनी तेमज अगाउनी कडीनी छेल्ली लीटीना शब्दने पछीनी कडीनी शरूआतमां सांकळी लेवानी योजना कवि- छंदप्रभुत्व अने भाषाप्रभुत्व दधेि छे. कविनी आ प्रकारनी वर्णन करवानी अने रस जमाववानी शक्ति काव्यमां स्थळे स्थळे देखाय छे. स्थूलिभद्रने चळाववा माटे शणगार सजी कोशा प्रयत्न करे छे एनुं वर्णन सरस छे : 'कवि कहइ केती–परि जेती, लहइ कोशा कामिनी, पहिरंति चरणा चीर चोली भावभोली भामिनी; कर चूडि खलके, नेउर रणके, पाय धमके घूघरी, झव झालि अबके झूमणां ने खींटली खलके खरी. भोलावया रे भाव भला देखाडती, ___ मरकलडइ रे मानवनां मन पाडती; प्रीय-पाए रे लाडे सीस लगाडती, वर वेणा रे वंस विशेष वजाडती. वर वेणा वाइ, गीत गाइ, भेर भूगल वजए; दोंदी किं सद्धइ, निवल महइ, वंश-सहे वजए; चचपट्ट चूपट, ताल मेलति, करति अलवि थिनगनि, धिधिकटि परगटि, पाय पाडि, पाय परतई पदमिनी.२२ कोशाना प्रयत्न निष्फळ जाय छे. स्थूलिभद्रनो उपदेश एना अन्तरमां खूपी जाय छे. एनुं वर्णन पण सचोट छ : . 'ए तो तृषा रे, सायर परितृप्ति नहीं ए तो जीवीय रे, संध्या-राग जिस्युं लही; 32-33. 'गुजराती साहित्वना स्वरूपो'-डा, मंजुलाल र. मामूदार
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________________ सुणि सुन्दरि रे, जोव्वण जलबुदबुद समो, इम जाणि रे, आलि कहो किम नींगमो ? किम नींगमुं दिन आलिं माटे, एणि वाटे जग जयों; रसभोग केरां, अति भलेरां, भोगवि थिर कुण रह्यो ? संसार पडीयो, विषय नडीयो, जीव जो चेते नहीं, आवीओ ठालो, गयो भूलो, धरम विण नर भव वही.' 4. नवपल्लवपार्श्वनाथ-स्तवन कविए वि. सं. १५५८मां नवपल्लवपार्श्वनाथनी यात्रा करी हती ते प्रसंगे आ काव्य रचायेलं छे : 'संवत पन्नर अठावन्नि रे, चैत्र वदि चउसाल, ए तु मुनि लावण्यसमय नवपल्लव कीधी जात्र रसाल." आ नानकडा काव्यमा जैनोना त्रेवीसमा तीर्थंकर पार्श्वनाथनुं स्तवन छे. कविनो भक्तिभाव एमां ऊभराय छे. 5. आलोयण विनति करेलां पापोनी आलोचना जैनोना प्रथम तीर्थंकर आदीश्वर समक्ष एमां करवामां आवी छे. एमां 57 कडी छे. एनी रचना वि. सं. १५६२मा वामजनगरमां थयेली छे. : 'संवत पंनर बासठइ आदीसर रे अलवेसर साषि तु, वामज माहे वीनवइ सीमंधर रे देव दरिषण दापि तु.१ 54 एमां कविनी झळहळती साधुता अने ऊभराई जतो भक्तिभाव मालूम पडी आवे छे. 6. नेमनाथ हमचडी आ कृतिनो रचनासमय वि. सं. 1562 छे : 'संवत पनर बासठे रे गायु नेमिकुमारो, मुनि लावण्यसमय इम बोलइ, वरतिउ जयजयकारो'. पण केटलीक हस्तप्रतमां रचनासमय वि. सं. 1564 छ : 'संवत पनर चउसठइ रे गाया नेमिकुमारो, मुनि लावण्यसमइ इम बोलइ, वरतिउ जयजयकारो'. 34. ऐतिहासिक राससंग्रह' भाग 2; ला.द.भा.सं.मंदिर-ह. प्र. नं. 6995. आ काव्य अप्रसिद्ध छे. 35. जैन गूर्जर कविओ'-भाग 1; ला.द.भा.सं.मंदिर-ह. प्र. नं. 3351 36. 'मरसिंहयुगमा कविओ.' आ काव्य अप्रसिद्ध छे. 37. 'जैन गूर्जर कविओ'-भाग 1. 38. ला. द. भा. सं. मंदिर -ह. प्र. नं. 6211. आ काव्य अप्रसिद्ध छे,
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________________ एना बे अधिकार( विभाग)मां मळीने 84 कडीओ छे. केटलीक हस्तप्रतोमा 83 के 85 कडी पण छे. यादव राजा समुद्रविजय अने एमनी पत्नी शिवादेवीना पुत्र, जैनोना बावीसमा तीर्थकर नेमिनाथ लग्न करवा इच्छता नहोता, पण एमना काकाना दीकरा तथा वयमां एमनाथी मोटा श्रीकृष्णनी पत्नीओए एमने वसंतखेल करीने मांड लग्न करवा माटे मनाव्या. राजा उग्रसेननी रूपवती पुत्री राजिमती किंवा राजुल साथे एमर्नु लग्न नक्की करवामां आव्युं; पण नेमिनाथनी जान लग्नमंडप पासे आवी त्यारे जानैयाओना जमण माटे एकत्र करवामां आवेलां अनेक पशुओने एमणे जोयां. आ रीते थनार हिंसानी कल्पना आवतां नेमिनाथने वैराग्य उत्पन्न थयो अने लग्न कर्या विना ज, वलवलती राजिमतीने मूकीने एओ पाछा फर्या. मांडवेथी पाछा फर्या बाद गिरनार पर जई तप द्वारा एमणे मुक्ति प्राप्त करी अने राजिमतीए पण नेमिनाथनी पाछळ जई आत्मसाधना द्वारा ज्ञान प्राप्त कयु. आ प्रसंगर्नु अनेक जैन कविओए उमळकाथी वर्णन कर्यु छे. लावण्यसमये पण एनुं रसिक वर्णन कर्यु छे. आखी कृति शब्दलालित्यथी भरपूर छे अने एमां सरस शब्दचित्रोनुं सर्जन थयु छे. कवितुं छन्दप्रभुत्व अने समाजदर्शन पण एमां देखाई आवे छे. 'रंभा रूपि कलंकी,' 'अधर सुवि द्रुम चोला,' 'मयणची वाटडी,' 'करण जिस्या हीडोला' जेवी पंक्तिओमां कविनी मौलिक ने मनोहर अलंकार योजवानी शक्ति ध्यान खेंचे एवी छे. वसंतखेल करती गोपीओनुं वर्णन कवि आ प्रमाणे करे छ : 'सोल सहस अन्तेउरी श्रीपति सवि बोलावी, करि अद्भुत शिणगारडु रे गोपी गोरडी आवी. 16 कसका चरणा चोलमजीठी, कसका घुग्घरीआला, कसके छायलि छयलि सु छलीआ, कसका चरणा काला. 17 कसके पहिरणि पीत पटुली, कसके राता रंगा, कसके पहिरणि सेत शिणगारा, कसके चीर सुचंगा. 18 कसके उर-वरि नवसर हारा, झालि तणा झबकारा, रंगि रूडाला सोविन चूडला, पाए झांझर झमकारा. 19 काला कांचू कमल-स-कूअला कसका यज लाषीणा, माणक मोती चूडल बइठा कसका कमषा झीणा. 20 पीण पयोहर अमीय घडला, अधर सुवि द्रुम चोला, दंतावली दाडिमकुली रे मुषि ताजा तंबोला. 21
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________________ निरमल नाशा सरल तीषाली, भुमहि भुअंगम–काली, आंजी दो आंषडी, मस्तकि राषडी, वेणि सूं फूंमतीआली. 22 परी तूं पीटली, हाथि वीटली, हरिषी हरिणालंकी, जंघा जुअली कदलीयंभा, रंभा रूपि कलंकी. 23 तपइ सूं त्रोटडी कांने मोटडी, कोटडी कोडि सिंगारू, उढणि घाटडी रंगची माटडी, मयणची वाटडी वारू. 24 पीयलि पनुती कुंकुमलोला सहजि सुरंगा रोला, पाये पाडगलां, कंचिणि कडलां, करण जिस्या हीडोला. 25 शिरि सइंथा सींदूरीआ रि, सोनानां मादलीआं, अवलासवला बहिरषा रे बाहूंडली बिहूं वली. 26 नलवटि चन्द सु चहुटीउ रे, काने नाग वलाया, पाये लगाड्या वींछीआ रे सुरपति सेव मनाया. 27 कसके हाथि कमलचा नाला, कसके चंपकमाला, कसके करि छइ चंदन-सीपा, कसके काला वाला. 28 हंसलागमणी चंदलावयणी मृगलानयणी नारी, रमिझमि नेउरी अमर अन्तेउरी गोपी सवि सिणगारी. 29 * राजिमतीना विरहनुं वर्णन पण हृदयस्पर्शी छे : 'देइ दान चडिउ गिरिनारी, झूरइ राजलि नारी. 67 कंकण फोडइ हइडं मोडइ, त्रोडइ नवसर हारो, षिणि षिणि लोडइ, बि कर जोडइ, जंपई नेमिकुमारो. 68 आधीपाछी थाइ माछी जव जल देषइ थ्योडु, 'सामलीआ, कां वलीआ वेगिं ? नवभव-नेह म छोडु.' 69 वाटइ लोटई, ऊभी उटइ नेमिकुमरनइं कोडे, सूनइ हीइडइ साद करइ रे रही रही ऊभी टोडइ : 70 'चंद्रा विण सी चांदणी रे ? पासा विण सी सारि ? मयगल वण सी हाथिणी रे ? प्रीयडा विण सी नारि रे ? 71 39. ला. द. भा. सं. मंदिर-ह. प्र. नं. 6211. त्रण पत्रनी आ हस्तप्रतनो लल्यासंवत 1635 छे.
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________________ हंस विहूणी हांसली रे ? मांडवडा विण वेल्यो ? कंत विहूणी गोरडी रे किसिउं करेसि गेलो रे ? 72 कइ मई मोडया कर कसा रे ? कइ मई मोल्या मरमो ? कइ मई साडी झाटकी रे ? कीधां कूडां करमो ? 73 कइ मई रषि संतापीआ रे ? माय विछोहिआं बालो ? कइ मई रतन विणासी रे ? दीधां अजुगतां आलो ? 74 कइ मई द्रह फोडावीआ रे ? कइ मइ परधन लीधां ? कइ मइं काम को हीणा कीधा ? अणगल पाणी पीधां ? 75 कइ संषारा ऊलटिआ रे ? सरोवर फोडी पालो ? सील पालिआं सां चिलां रे ? मोडी तरुअर-डालो ? 76 सहिगुरु-गुरुणी नवि संतोष्या ? सातइ क्षेत्र न पोष्यां ? संपतिसा सूं दान न दीधां? थपिणि-मोसा कीधा ?' 77 अडवडती पडती आषडती चडती गढ गिरिनारी, नेमि जिणेसर नयणे देषी रंजी राजलि नारी रे., 78 7. सेरीसापार्श्वनाथ-स्तवन कविए वि. सं. १५६२मां शेरीसानी यात्रा करी जणाय छे. ए प्रसंगे रचायेली पंदर कडीनी आ कृति छ : _ 'संवत पन्नर बासठि प्रसाद सेरीसा तणो, लावण्यसमें इम आदि बोलें नमो नमो त्रिभुवनधणी'." एमां जैनोना त्रवीसमा तीर्थंकर पार्श्वनाथनी स्तुति छे. काव्य छन्दोबद्ध अने शब्दलालित्यथी भरेलुं छे.४२ 8. रावणमन्दोदरीसंवाद सीतार्नु हरण करीने रावण एने लंका लई गयो, त्यारपछी मंदोदरी अने रावण वच्चे थयेल काल्पनिक संवाद आ काव्यमां छे. 63 कडीनुं आ नानुं काव्य रसभर्यु छे. संवादनी शरूआत कवि मंदोदरी पासे, जाणे सूतेला सिंहने जगाव्यो होय ए रीते, वेगथी करावे छे : 'सूतेलो सींह जगावीउ, नडीओ वासग नाग रे, सीत हरी तिं स्यु कयु, रूठा रामना पाग रे. 1 40 ला. द. भा. सं. मंदिर-ह. प्र. नं. 6211 41. जैन गूर्जर कविओ'-भाग 1. 42. 'नरसिंहयुगना कविओ.' आ काव्य अप्रसिद्ध छे.
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________________ सांभलि रावण राजीया, जासे महियलि माम रे सती सीता तइं का हरी, विरी वंकडो राम रे.' 2 एनी रचना वि. सं. १५६२मा थई छ : ‘संवत पंनर बासठि रच्यो रास संवाद रे.'४७ 59 9. वैराग्य विनति जैनोना प्रथम तीर्थंकर आदीश्वरनी आ प्रार्थना छे. 'आदिनाथ विनति' ने नामे पण ए मळे छे. एनी रचना वि. सं. १५६२ना आसो सुदि 10 ना रोज थई छ : 'पंनर बासठइ आदिजिन तुइ, करी वीनती ऊलटि घणइए, आसो मसवाडइ दसमी दिहाडइ, मुनि लावण्यसमइ भणइ ए. 47 47 कडीनी आ कृतिमां कवि, छन्द अने प्रास उपरनुं प्रभुत्व जणाई आवे छे. 10. सुरप्रियकेवली रास जैनोना चोवीसमा तीर्थंकर महावीरना शिष्य श्रेणिकना समयमां थई गयेला सुरप्रिय नामना जैन संतनुं चरित्र आ काव्यमां छे. एनी रचना खंभातमां थयेली छे ने एनो रचनासमय वि. सं. 1567 ना आसो सुदि 6 ने रविवार छ : 'संवत पंनर सत(ड)सठइ आसो सुदि रविवार, रचिउं चरित्र सोहामणुं त्रंबावति मझारि.' आ रासमा 201 कडीओ छे. 11. विमलप्रबंध कविनी आ एक सुदीर्घ अने श्रेष्ठ कृति छे. एनी रचना पाटण पासे आवेला मालसमुद्रमा वि. सं. 1568 मां थई छे : 'संवत पंनर अठसठइ वड्डु रास विस्तार, ते प्रमाणि पूरं चडिउं मालसमुद्र मुझारि.' कविए एने 'रास' अने 'प्रबंध' एम बने नामे ओळखाव्यो छे. ए नव खंड अने एक चूलिकामां वहेंचायेलो छे. कविए गणाव्या मुजब एमां 1356 कडीओ छे ने मुख्यत्वे चोपाई तेमज दुहा, वस्तु, कवित छन्द अने जुदा जुदा ढाळोनो उपयोग करेलो छे. 13. "जैन गूर्जर कविओ'-भाग 1 आ काव्य हजु अप्रसिद्ध छे. 44. 'जन गूर्जर कविओ'- भाग 1. आ कृति हजु अप्रसिद्ध छे. 45. 'जैन गूर्जर कविओ'-भाग 1. ऐतिहासिक राससंग्रह'-भाग 1. आ रास हजु अप्रसिद्ध छे. 46. एन बे संपादन आपणे त्यां प्रकट थयां छे : (1) 'विमलप्रबंध' (सं. मणिलाल ब. व्यास) अने (2) 'विमलप्रबंधः एक अध्ययन (डा. धीरजलाल ध. शाह)
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________________ पाटणना पहेला भीभदेव सोलंकीना वीर, मुत्सद्दी अने कलाप्रेमी मन्त्री विमलशानुं चरित्र एमां विस्तारथी आलेखवामां आव्युं छे. प्रथम त्रण खंडमां विमलना पूर्वजो, एमनां पराक्रमो तथा श्रीमाळी ओसवाळ अने पोरवाड वणिकोनी उत्पत्तिनु वर्णन करवामां आव्युं छे. चोथा खंडमां विमलना जन्म, बाळपण अने विद्याभ्यासनुं तेमज पांचमा खेडमां श्रीदेवी साथे एना लग्ननुं वर्णन करवामां आव्युं छे. छठा खंडमां विमले पाटणना राजा भीमदेवने पोतानी बाणविद्याथी प्रसन्न करी दंडनायकनी पदवी प्राप्त कर्या, तेमज दुश्मनोनी कानभंभेरणीथी भीमदेवे विमलनु कासळ काढवा करेली युक्तिओ अने एमां विमले मेळवेल विजयनुं वर्णन करवामां आव्युं छे. सातमा खंडमां पाटण छोडी विमले चन्द्रावतीनगरीनु राज्य मेळवी, त्यां स्थिर थई, रोमनगरना सुलतान पर विजय मेळव्यानु, तथा आठमा खंडमां विमले ठठानगरना राजाने हरावी गुर्जरनरेश भीमदेवनी भेट मेळव्यानुं अने चन्द्रावतीने नवेसरथी वसाव्यानुं वर्णन छे. छेल्ला नवमा खंडमां विमले मुश्केलीओनो सामनो करी आबु उपर 'विमलवसही'नां प्रख्यात देरासर बंधाव्यानी विगत छे. ___आम, विमलनुं समग्र चरित्र आ प्रबंधमां आलेखवामां आव्युं छे, पण “जैन कविओए लखेलां अन्य जीवनचरित्रोनी जेम सांप्रदायिक अने धार्मिक वर्णनोथी ते मुक्त नथी. आबु पर्वत उपर बंधावेलां जगप्रसिद्ध 'विमलवसही'नां मन्दिरोने कारणे विमळ जैनोमां आदरणीय अने अनुकरणीय व्यक्ति तरीके प्रशंसायेल छे; आजे पण प्रशंसा पामे छे. आथी एना प्रत्येक कार्यमां लावण्यसमयने अद्भुतता जोवा मळे अथवा आ इष्ट व्यक्ति विशे एवां एवां कार्योनो उल्लेख थाय जेनाथी जैन धर्मनी प्रतिष्ठा वधे, ए आ चरितना आलेखन पाछळनी कविनी दृष्टि छे....आथी 'विमलप्रबंध'ना सुदीर्ध विस्तारमा कथाओ, वर्णनो, धार्मिक उत्सवो, लांबा उपदेशो वगेरे विशेषपणे जोवा मळे छेइतिहासतत्त्व ओळु.५४० आ रीते जैन धर्मनो प्रताप वधारवानो कविनो उद्देश होई, आ प्रबंध सांप्रदायिकताथी रंगायेलो छे. एम छतां तक मळतां कविए एमां अढार वर्ण, विद्याभ्यासनी पद्धति, सामुद्रिक लक्षणो, लग्नना रीतरिवाज, भोजन, कलियुगनां लक्षणो, अस्त्रशस्त्र, अश्वप्रकार, स्त्रीनी चोसठ कला, शुकन-अपशुकन, नगररचना, रागरागणी, जुदा जुदा देश, भाषाना भेद इत्यादि विशे सारी माहिती पीरसी छे. तत्कालीन समाजजीवनना अध्ययन माटे ए उपयोगी सामग्री पूरी पाडे छे, पण एर्नु य प्रमाण एटलं मोटुं छे के तेथी वस्तुनो प्रवाह शिथिल लागे छे अने रसक्षति थाय छे. तेथी ज तो 15. 'विमलप्रबन्ध-एक अध्ययन'-डॉ. धीरजलाल ध. शाह
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________________ आपणा एक सुप्रसिद्ध विवेचके का छे : " इतिहास अने कविता लेखे आ प्रबंधनुं मूल्य एटलुं नथी, जेटलं ए युगनी समाजस्थिति अने लोकाचार पर परोक्ष प्रकाश पाडनार कृति तरीके छे."४८ आम छतां गुणपक्षे आ कृतिमां घणुं छे. लावण्यसमयनी आवी शक्तिमा एमनी वर्णनशक्ति खास ध्यान खेंचे छे. श्री. कनैयालाल मुनशी आ शक्तिने बिरदावतां कहे छे : " कविनी वर्णन करवानी शक्ति ऊंचा प्रकारनी छे. वर्णननो विषय गमे तेटलो शुष्क होय पण ए एवी छटाथी वर्णन करे छे के वांचवानुं अधूरं मूकीने ऊठवानुं मन न थाय."४९ विमलना जन्म वखते कलियुग हतो. कलियुगनां माणसोनां स्वभावचित्रो कवि सरस आलेखे छे. उच्छृखल स्त्री एना पतिने कहे छे : 'छोरू घरि कुंआरा सात, कहिनु तात नि कहिनी मात, रलइ तूंह निते घर भरइ, ते खाइ सहू ठालू करइ. 10 आपण बे जण केरु वरु, मांनु बोल अम्हारु खरु, मायबापथी थाउ जुआ, धन मेलीनि भरीइ कूआ. 11 रातिदिवस रलखू घर भणी, किशी वात मावित्रह तणी, राछपीछ मझ पीहर तणां, आण। घर भरेशृं घणां.' 12 (खंड 3) वहुनुं मानीने छोकरो जुदो रहे छे. माबाप विचारे छ: 'जोज्यो कलयुग करणी इशां, मायबापि दुष सहीआं किशां. 16 देवदेवाडे मांन्या भोग, मायताय मिलया संयोग. 17 दस मसवाडा दोहिल धरिउ, जणिउ पुत्र नि पोढउ करिउ. 18 मायतात तव हरषिइं भरियां, धन वेची घर ठालां करियां, जोज्यो ते बेटानां हेज, मायबाप बिहु अलगी शेज. 21 बेटानां धोयां मलमूत्र, जांणिउं राषेशि घरसूत्र, 22 मस्तकि टोपी मदघणी, करि कडली ते फइअर तणी. 23 48. 'गुजराती साहित्य' (भाग पहेलो)-श्री, अनन्तराय म. रावक 49, 'नरसिंहयुगना कविओ.'
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________________ मोटां मादलीआं वांकडी, माय तणि मांनि मोजडी, अलजइआं आण्यां अंगलां, काने कनक तणां वेटलां. 24 पाये घूधरडी घमघमइ, बालूअडु ते अंगणि रमइ, . साहामूं जोइ करती काम, माडी हैअडि धरती हाम. 25 करइ काम हालरडां गाइ, माता हैअडि हर्ष न माइ, पोढउ थातु पगलां भरइ, पंच वरस जव वुल्यां परइ.' 25 - ( खंड 3) पछी एने भणाव्यो, परणाव्यो, त्यारे छेवटे 'आज अम्हारू वडपण इशृं, बेटइ ए ते बोलिउं किशउ, बलतइ बोलइ साहामु धशउ, जै बेटउ अनेषिइं वशउं. 41 वहूअरना तव माग्या पड्या, मनवंछित मनोरथ फल्या. 42 (खंड 3) आवां प्रसंगचित्र अने स्वभावचित्र साथे कवि कलियुगनी लोकस्थितिनां चित्रो पण वेगथी सर्जे छ : 'जोउ कलियुग केरु अपाय, लोभिइ वाधइ रंकह राय. 77 यौवन माटइ मोडइ अंग, परनारीशू झाझा रंग, घरघरणीशू नावि घाटि, करइ वेठि नर फोकट माटि. 78 मनि मिल नितु करइ सनांन, वधइ जीव नि आपि दांन, धन ऊधारि करणि करइ, विण आलइ रणिउ थै मरइ. 79 जे जाणइ जे माहारु मित्र. जाते दिनि ते थाइ शत्र. 81 वसुधां हशि घणा विषवाद, सागर मेल्हे शि मर्याद. 83 को कहिनइ नवि मांनइ गणइ, सहू चालइ छंदिइ आपणइ. 85 विनय गयु वाधिउं अभिमान, लखपरि लोभिई मांडइ कान. 86 हाट घाट ते मांड्यां जाल, करइ कूड ते नान्हां बाल, .. मोटां नगर गयां ते घठी, रा लोभी कर मागइ हठी.' 87 ( खंड 3) लग्नोत्सुक श्रीदेवीनुं कर्णमधुर शब्दोमा करवामां आवेलुं वर्णन पण नोंधपात्र छे;
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________________ 'कुंअरि अंग करइ मांजणउं, सिंगारी सोहावी घणूं, पहिलू आंज्यां आछां नेत्र, पटउलू पहिरइ पानेत्र. 85 लंब वीणि लहकि गोफिणउ, रूअडू रंग राषडी तणउ, मने रंगिइं माता पूरिउ, शरि सहिथउ ते सिंदूरिउ. 86 नीलवटि टीली व्युतपति घणी, झालि झबूकि सोना तणी, मादलीयां वलीयां वेढलां, कंचू कसण कसि ते भला. 87 करि चूडी कंकण खलकती, शरि बावनचन्दन बहिकती, रिमिझिमि पयल करि झांझरां, जांणे मयण तणां पांजरां. 88 मुष जोइ आरिसा मांहि, वीजणडे वीजावि वाइ, सहीयर सहीयर सरसी मिलइ, टोलइ टोडर घालि गलइ. 89 उढी घूघरीआली घाट, वेगि' जोइ वरनी वाट.' 90 (खंड 4) नगरठद्वाना राजा सामे विमले करेला युद्धनुं जुस्सादार ने झडझमकथी भरपूर भाषामा करेलुं वेगभर्यु वर्णन आ बधां वर्णनोमां जुदी ज भात पाडे छे : 'झूझाला झूझइ वीर वडा, रणि रोसि भर्या भय भीम भडा. 44 नव खंड अखंड ति षंड करइ, भड घेले पांडे पंति धरइ. 46 घण गोला गोफिगि फार फिरइ, रणसागरि संध्या वीर तरइ, सिरि बाजि गुरज ते सुरज समी, पल खूटते खूट ते जाइ नमी. 47 मदभीभल गज गर्जित भमइ, असवार रसि समरि रमइ, दंतूसलि मूसलि सूंठि मुडइ, भड चंप्या कंप्या पुहवि पडइ. 49 तप तपता तपता प्रगट पड्या, करि काती राती के विकटा, भडतां भडतां लटकंति ढल्या, जण जाणे झूबि वृक्ष वटा. 50 घण घूम्या दूम्या घाय वडि, भयभीता जीता रानि रडइ, गयणे उडती अंगि अडि, समली जमली जम लीजत पडइ. 51 सुर किंनर कोटी लोक लषा, रण जोई होइ पंच पषा, कट कट्टरि कट्ट विकट कटा, गढ कूटी कीधा लोटवटा. 52 हय वाल्या ढाल्या वीर तपइ, रणझालि फालि टोप टपइ, दवि पक्खर पक्खर पंष पिरइ, तिम सक्खर सक्खर लक्ख वरइ. 53
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________________ हब हब हब हबडी हाक पडइ, झब झब झब वीज षडाग विढइ, धब धब धब धींगड धीर धसइ, कमकमता कायर षेटि पिसइ. 54 रण रण रणकाहल रणकी चलइ, डम डम डम डमरू डमकी चलइ, ढम ढम ढम ढोल ढमक्की चलइ, चम चम चम चंग चमक्की चलइ. 55 भड भीषण रीषण रूपि थया, बालापण आपणा आज भया, जण धूजी मूंजी मांहि मिल्या, धरणीधर धोरी धुरि ढल्या. 56 भड उट्ठी अंगोअंगि इशु, तड तड तड त्रूटइ कसण कसु, सीह अग्गलि जंबूक जीव यशु, विमलग्गलि पंडीउ राउ तिशु. 57 तर तर तरडी दृष्टि करी, मुहि मरडी माणइ मूछि भरी, कड कड कड करडी दंतकुली, भड धायु पंडी पुठि वली. 58 रणघंघल मंगल तूर रवा, नफ्फेरी भेरी नाद नवा, जगि विमलमंत्रि जयलच्छि वरइ, बंदीजन जयजयकार करइ.' 61 __(खंड 8) आ दरेक स्थाने कवि छन्द उपर प्रभुत्व दर्शावे छे. सर्वत्र योग्य शब्द कृत्रिमता वगर पद्यमां गोठवाई जाय छे. प्रसंगोपात्त भाषामां माधुर्य अने ओजस सर्जाय छे. झडझमक उपरांत अलंकारोनो पण बहोळो उपयोग कवि करे छे. एने लीधे यादी जेवां वर्णनो रसिक थई पडे छे. ए रीते कन्या श्रीदेवीनां सामुद्रिक लक्षणोनुं वर्णन जोवा जेवं छे : 'चंदवदनि चंपक वनी, निर्मल हृदय विशाल, रामा राता अधर जस, संपत्ति सुख्ख रसाल. 3 मृगनयणी मृगकंघरी, मृगपेटी सुकुमाल, हंसगमणि सा सुन्दरी, भूपतिनि घरि भालि. 7 कृष्ण सरीखी सांमली, गोरी चंपक वांनि, अंग वदन कर कोमला, झीलइ रंग निधान. 10 कनक कमल पहि पिंगली, देहकंति झलकंति, मणिमाणिकसोवन तणां घर आभरण लहंति. 11 सत्थल कदलीथंभ जस, करचरणे नहीं रोम, विपुल गुह्य मणि गूढ जस नीलवटि लद्धउ सोम.' 15 (खंड 5)
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________________ रोमनगर पर विमले चडाई करी ते वखते एनी सेनाना हाथीओनुं वर्णन पण आ प्रकारचें. छे : अंगि रंगि रूडा चित्रांम, के मयगल जयमंगल नाम, फूंकफोड के सांकलत्रोड, के विषछोड महामदमोड. 48 ' पर्वतढोल धरणिधंधोल, परदलबोल कि विरीरोल, एकताल के दुर्जनसाल, के विषकाल चमरबंबाल. 49 गढगंजण भंजण वड ठाम, सिंघलीयाला साचा नाम, वाट मयगल मदकल्लोल, चिहु पाशे चालि चकडोल.' 50 (खंड 7) क्यारेक तो वर्गनने तादृश बनाववा कवि उपराउपरी अलंकारो प्रयोजे छे. भीमदेवनी सभानुं वर्णन एजें सुन्दर उदाहरण छ : ' तां चंदा नि तां चांद्रिणी, दीपइ दीप-झलामल घणी, तारा तेज तणां तां पूर, जं नवि ऊआइ अम्बरि सूर, 41 सोहि सभा मद्धि सुरि घणी, विसहर विकट शेष जिम फणी, तरुअरि कल्पवृक्ष उयम सीम, मणिमाहिइं चिंतामणि जिम, 42 भूपति मांहि रह्या ज्यम रांम, रूपवंत शरि सोहि काम, दातारिइं अवतरिउ कर्ण, उपइ सकल सभा आभर्ण; 43 साहसि सूरु विक्रम वीर, मेरु सरीषु महीअलि धीर, न खमि तेज भीम ते भयु, मझ मत्था ऊपहरु थयु. 44 सभा सरोवर सोहइ कमल, भीम हशी बोलावि विमल.' 45 (खंड 6) कविना मोटा भागना अलंकारो रूढ छे, छतां एमां कोई कोई वार मौलिकता अने प्रतिभाना चमकारा देखाय छे. उ. त., भीमदेवे विमलती समृद्धि जोइ त्यारे 'जव दीडउं घरनूं बारणउं, स्वर्गविमान करिउं पारणउं.' (6-49) श्रीदेवीना झांझर माटेनी उत्प्रेक्षा पण चमकृतिभरी छे : ' रिमिझिमि पयल करि झांझरां, जांणे मयणतणां पांजरां.' (5-88) भीमनी सभामां बेठेला विमल माटेनी उपमा पण मनोहर छ : 'सभासरोवर सोहइ कमल, भीम हशी बोलावि विमल.' (6-45) आ दीर्घ काव्यमां कवि प्रसंगवशात् अर्थान्तरन्यास-सामान्य विधान अने कहेवतो पण प्रयोजे छे. उ. त.,
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________________ अर्थान्तरन्यासः' रहि रानि मृगला तृण चरइ, माछी नीर विणासि करि, सज्जन सुखिइं रहि घर मांहि, त्रिहु निकारणि विरी थाइ.' (6-35) 'धन विण माणसनु मद टलइ, धन विण मोटाइ सवि गलइ, धन विण कोइ न मांनि बोल, धन विण थाशि रंक निरोल, धन लीवू तु लीधा प्राण, नीर वीइणउं जशू निवांण.' (खंड 7) कहेवतो: बाइनां फूल बाइनइ चडइ. (1-88) मागण मरण समाणउ जोइ. (2-9) अणतेडिउ जे परघरि जाइ, मान महुत नवि पामइ राय. (2-11) गाजवीज घण थोडा मेह. (3-63) गुलइ मरइ जे मानवी, तेह विस दीजइ कीम. (6-66) आमांनी केटलीक कहेवतो अत्यारे पण प्रचलित छे.. आ बधी वस्तुओने परिणामे डॉ. धीरजलाल शाहे का छे तेम, काव्यनो विशाळ पट अनेक चांदरणांथी आकाश दीपी ऊठे तेम दोपी ऊठे छे.५० लांबी मुसाफरी पण मार्गमां आवती अनेक हरियाळीओथी आनन्दजनक थई पडे छे, तेम आ बधां तत्त्वोने लीधे आ सुदीर्घ कृति रसिक नीवडे छे. 'विमलप्रबन्ध' रचाया पछी दश वर्षे, वि. सं. 1578 मां सामा पक्षना गच्छपति सौभाग्यनन्दीसूरिए ए- संस्कृतमां भाषान्तर कयु हतुं अने कविना काळ पछी 70-80 वर्षे कोई गृहस्थे एनी संख्याबन्ध नकलो करावी ए वखतना बधा भंडारोमां मोकली आपी हती, ए हकीकत आ कृतिनो प्रभाव ए जमानामां केटलो बधो हतो एनो पुरावो छे. 12. करसंवाद जैनोना प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव वरसी तपना पारणे श्रेयांसकुमारने त्यां पधारे छे. श्रेयांसकुमार पोते ऋषभदेवने वहोरावे छे. आ प्रसंगे श्रेयांसकुमारना जमणा अने डाबा हाथ वच्चे थतो कल्पित विवाद आ कृतिमां आपवामां आप्यो छे. बन्ने हाथ पोतपोतानी महत्ता बताववा दलीलो करे छे." 50. 'विमल प्रबन्ध-एक अध्ययन' 51. ला. द. भा. सं. विद्यामन्दिर-ह. प्र. नं. 6147. आ काव्य हजु अप्रसिद्ध छे.
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________________ जमणो हाथ कहे छे के जोशी मारामां पडेली रेखाओ जोईने विद्या, धन अने आयुषनुं प्रमाण कहे छे. त्यारे डाबो हाथ कहे छ : 'कहइ डाबु, जोसी सवि लहइ, ते लक्षण अपलक्षण कहइ, आप वषाणइ ऊछांछलु, ते माणस नही भारझलु'. 29 आगळ जतां जमणो हाथ दलील करे छे : 'दक्षण मारगि बिसइ पंति, दक्षण कर प्रीसइ एकंति, दक्षण कर सवि लहइ दक्षणा, कहइ दक्षण कर अम्ह गुण घणा.' 40 त्यारे डाबो हाथ जवाब आपे छे : 'दक्षण दिसिथी डाबु मेर, दक्षण डाबी वाजइ भेर, दक्षण डाबी पांति इ रहइ, कहइ डाबु, पराभव का सहइ.' 41 आ रीते बन्ने हाथ केटला उपयोगी छे ए दर्शाववामां आव्युं छे. एमां कविना विनोद अने चातुर्यनो परिचय मळे छे. मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां आ प्रकारना केटलांक कल्पित संवादकाव्यो छे तेमां आ काव्य महत्त्व- स्थान प्राप्त करे एवं छे. नयसुन्दरे वि. सं. 1665 मां अने समयसुन्दरे वि. सं. 1673 मां 'नलदवदन्ती रास' लखेल छे तेमां दवदन्तीनो त्याग करती वखते नळ वस्त्र चीरवानो विचार करे छे त्यारे एवं पापकर्म न करवा माटे एना डाबा अने जमणा हाथ वच्चे संवाद योजवामां आव्यो छे, एनी पण ए याद आपी जाय छे. 69 कडीनुं आ काव्य शांतिज(साती)नगरमां वि. सं. १५७५मां रचायुं छे : 'जिहां पोढां जिणहर पोसाल, वसइ लोक दीपता दयाल, शांतिज(साती)नगर मंडि सुविशाल, गायु करसंवाद रसाल. 68 संवत पनर पंचहुत्तरइ, मुनि लावण्यसमय उच्चरइ.१६९ 13. अन्तरीक पार्श्वनाथ छन्द चोपन कडीनुं आ सांप्रदायिक काव्य वि. सं. 1585 के 86 मा रचायुं छे : 'संवत पनर पंच्यासीया (पाठा. छयासीउ) वषांण, .. सुदि वैसाष तणो दिन जाण, उलट आषात्रीजे थयो, गायो पास जिणेसर जयो." 53 52. 'जैन गूर्जर कविओं'-भा. 1., ला. द. भा. सं. विद्यामन्दिर- ह. प्र. नं. 6147 53. जैन गुर्जर कविओ-भाग 1
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________________ कोई हस्तप्रतमा रचनासमय वि. सं. 1550 पण मळे छ : ‘पन्नर पचासें वरष प्रमाण, सूद वैसाष तणो दिनमान, जांणि उलट आषात्रिज गयो, गायो पास जिनेश्वर जयो.५४ 50 लंकानो राजा खरदूषण एक वार देरासर जवानुं भूली गयो, तेथी एने कोढ थयो, एनुं वर्णन एमां करवामां आव्युं छे. काव्य सामान्य प्रकारचं छे. 14. सूर्यदीप-वाद छंद सूर्य अने दीपक पोतपोतानी महत्ता दर्शाववा विवाद करे छे ए छप्पय छन्दनी त्रीस कडीओनी आ नानी कृतिमां कविए सुन्दर रीते रजू करेल छे. एमां बन्नेनुं महत्त्व दर्शाववामां आव्यु छ : 'प्रहि ऊगमि अवतार, दीप दिनकरण भणिज्जइ, जेह-सिउं जेहवां काम, ताम लोके बहु किज्जइ; . दीपक देइ साखि, देव देहरासरि नमीइ, भोजन कूर कपूर, भाण-अजूआलइ जिमीइ. लावण्यसमय कहइ भाव सुणि, जउ रहिउ तु राखु किमइ; तप तपइ तेज दीपक तणुं, जो जाइ सूर संध्या-समइ. 11 रयणी-दीपक चंद, दिवस-दीपक जो दिणयर, कामिणी-दीपक कंत, देस-दीपक राजेश्वर. त्रिभुवन-दीपक दान, ज्ञान-दीपक गुरु भणीइ, वंश-दीपक सुपुत्त, विनय-दीपक सुणीइ. दीपक दिनकर देखि करि, अणप्रीछिइ कां तडफड ? लावण्यसमय कहइ, सूरथी जो दीपक--गुण दीपइ वडु.२३ काव्यमां कविनी विनोदशक्ति झळकी ऊठे छे. उपदेशनुं तत्त्व पण एमां गूंथायेलु छे. कवि, छन्दप्रभुत्व पणे एमां देखाई आवे छे. आ कृति हजु अप्रसिद्ध छे. एनो रचनासमय मळतो नथी." 15. देवराज-बच्छराज रास ___ आ रासनी रचना कतपुरमा थयेली छे, अने वि. सं. 1572 मां ए लखायो होवानो संभव छ : 54. ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर-ह. प्र. नं. 7155 55-56 गुजराती साहित्यनां स्वरूपो-डॉ. मंजुलाल र. मजमूदार 57 जैन गूर्जर कविओ-भाग 1. आ रास 'आनन्दकाव्यमहोदधि मौक्तिक 3 (सं. जीवणचन्द साकरचन्द झवेरी, ई. स. १९१४)मा प्रगट थयेलो छे,
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________________ 'पहेलो अक्षर लाभनो ए, मा० बीजो भवनो जाणी, त्रीजो पुण्यवन्त बीजलं ए, मा० आगलि समय ठवेइ.' सिंधु देशना चंद्रावतीनगरीना वीरसेन राजा अने एनी राणी धारिणीना बे पुत्रो देवराज अने वच्छराजमांथी मोटो पुत्र देवराज पिताना मृत्यु पछी गादीए आवतां नाना भाई वच्छराजने मारी नाखवा- कावतरं करे छे. ए जाणतां ज वच्छराज माता अने बहेननी साथे नासी छूटे छे अने माळवामां उजेणीनगरीमां सोमदत्त वणिकने त्यां रही, अद्भुत पराक्रमो करी श्रीदत्ता, रत्नावती अने कनकवती ए त्रण राजकुंवरीओने परणी, मोटा भाईने युद्धमा हरावी सिंधुदेशनुं राज्य मेळवे छे एर्नु एमां छ खंडमां अने चोपाई, दुहा, गाथा तेमज वस्तु छन्दमां अने पवाडानी देशीमां विस्तारथी वर्णन करवामां आव्युं छे. रासमां कविए प्रसंगोपात्त शृङ्गार, वीर अने अद्भुत रस जमाव्यो छे अने तक मळतां समाजचित्रो आलेख्यां छे. ए रीते खंड पहेलानुं ज्ञातिओनुं तथा खंड चोथार्नु भोजनसामग्रीचें वर्णन तत्कालीन समाजजीवन पर प्रकाश पाडे एवं छे. कविनी दृष्टांतकला अने समान्य विधानो योजवानी शक्तिनो पण आ रास वांचतां वारंवार परिचय थाय छे. वीरसेन राजा अने धारिणीदेवीनी प्रीतिनुं वर्णन करतां कवि कहे छे : 'जिसी प्रीति गौरी ने शंभु, जिसी प्रीति माछलडी-अंबु, जिसी प्रीति मधुकर-केतकी, जिसी प्रीति गयवर-सल्लकी, जिसी प्रीति इंद्राणी-इंद्र, जिसी प्रीति कमलिनी-दिणंद. जिसी प्रीति चंदा-चांद्रणी, तिसी प्रीति राजा-धारणी.' (खंड 1) वच्छराजना गुणोनुं वर्णन करती वखते पण कवि आ ज कला अजमावे छे : 'गुणे करीने अति अभिराम, लहुओ वच्छराज तस नाम: राजा पदवी एहने होय, मनह मनोरथ पूजे तो य. लहुअ लगे वछराज विनीत, चतुर तणां चमकावे चित्त; . अवगुण अंग थीको परिहरे, लहुअ लगे लक्षण आदरे लहुओ रवि सोहे अतिघणो, दश दिशि तेज तपे जेह तणो; लहुओ मृगपति मयगल भिडे, लहुअ दीप तिमरनें नडे;
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________________ लहुअ चंपक परिमल आवास, लहु चिंतामणि पूरे आश; लहुओ पण पोते गुण बहु, एह राजे हुए सुखीआं सहु.' (खंड 1) वच्छराज उजेणीमां सोमदत्त वणिकनुं घर भाडे लई रहे छे त्यारे कवि कर्मनी गहनता आ रीते रजू करे छे : 'सोमदत्त-घर इण परे रह्यां, करम-वसे दुखियारां थयां; करम करे ते न करे कोय, राज करे ते रळता जोय. आगे करमें घणा रोळव्या, नंदिषेण सरखा भोळव्या; करमें रावण पडीओ चूक, सीताहरण रण कीधो भूक. कीचक पडीआ पंडव पास, पंडव पंच गया वनवास; करम तणी शी कीजे वात, रविरथ हयवर सरज्या सात. करमें पेख कलंकित चंद, मरण लहे भालडी मुकुंद; करमविपाक कीसुं हुं भ', नळ रांधे पर घर रांधणुं. करमें कदरथी चंदन बाल, नरग गयो श्रेणिक भूपाल; करमें बलि घाल्यो पाताल, दुःख सह्यां तिम गय सुकुमाळ.' (खंड 2). कविनां आ दृष्टांतो एमना पौराणिक ज्ञाननी साक्षी पूरे छे. देवराज अने वच्छराज वच्चे थयेला युद्धनुं जुस्सादार भाषामां आवेलुं वेगभयु वर्णन कविनी वर्णनशक्तिनो सारो नमूनो छ : 'बिहु दळ घाव वण्या नीसाणे, ने रण वागां तूर; कोह करंता बे दळ झुझे, शूरमें चढिया शूर. घोडे घोडा रथ रथीआ-शु, गयवर गयवर साथि; खडगयधर खडगयधर साथि, पायक पायक साथि. हाकबूक मुख अहनिश जंपे, मेहेले खडगप्रहारः वीर वडा झूझता देखी कायर छंडे थहार. बिहुं दळे भाट सरंगमि चडिय बोले बहुविध छंद; भास दूहवीता गयंवर अतिहिं करे आक्रंद. रयण दीसनी विगती न लाभे, आप–पर नवि सूझे; रोसे चड्या रण राउत केरा मस्तक विण धड झूझे. तव वछराज मूके सिंहनाद, सुहड छंडाव्या छीक; महवडी पेसी सडसड सूडे, वहे रुधिरनी नीक.
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________________ 30 मोडोधा मंकड जिम खेले, रडवडिया रेवंत; मंडलिक मान मूकाव्या, कियो परदळनो अन्त.' (खंड 6) आ लोककथानक विशे मध्यकाळमां आपणे त्यां घणां काव्य लखायां छे, तेमां आ काव्य एना सांप्रदायिक रंगोने लीधे विशिष्ट स्थान धरावे छे. 16. सुमतिसाधुसूरि विवाहलो लावण्यसमय पोतानी कृतिओमां पोताना गुरु तरीके जेमनो वारंवार उल्लेख करे छे ते सुमतिसाधुनी दीक्षानो प्रसंग 92 कडीना आ काव्यमां 'विवाहला'ना जेटल उमंगथी अने गौरवथी वर्णववामां आव्यो छे. शब्दलालित्य अने प्रवाही छन्दने कारणे ए चित्तने प्रसन्न करी जाय एवो छे. दीक्षाना वरघोडानुं वर्णन तादृश छे : 'चउरी गूडर ताडिआ ए, तलिया तोरण चंग तु, माहाजन सहू जीमाडीइ ए, मंदरि मोटउ जंग तु. कुंवर हिव सिणगारीइ ए, मस्तकि भरीउ खूप तु, बांहे सोवन–बहिरखा ए, दीसइ रूअलडउं रूप तु. कडिं नवरंग पछेवडउ ए, ओढणि आछउं चीर तु, सार तुरंगम आणिउ ए, चडिउ बावनवीर तु. कामिणि मुखि मंगल भणइं ए, भट्ट भणइ बहु छंद तु, लूण उतारई बहिनडी ए, कुंअर अति आणंद तु. वर पोसालई आविउ ए, दुरिअ गयां सवि दूरि तु, श्रीरत्नशेखरसूरि वंदिआ ए, मनह मनोरथ पूरि तु.' एवी ज रीते मात्र थोडी ज लीटीओमां गुर्जर नारीनु सुरेख चित्र कविए सज्यु छ : 'ज्ञालि झबूकई गालि रे, जाणे ससि नइ सूर रे; रागवसिई सेवा करई ए, अतिघण तेजनउं पूर रे. मस्तकि सोहइ राषडी, आंखडी अति अणिआली रे, ओढणि आछी चूनडी, पहिरणि नवरंग फालि रे. साव सुलक्षण सारिअ, सारिअ काजलरेष रे, रूपिई रंभा अवतारिअ, दीसइ रूअडलउ वेस रे.' आ कृतिनो रचनासमय उपलब्ध नथी.१८ 58. आ काव्य ‘ऐतिहासिक राससंग्रह भाग 1' मां प्रसिद्ध थयेळं छे.
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________________ 17. चतुर्विशति जिनस्तवन __ आ कृति वि. सं. 1587 पहेला रचाई होवानो संभव छे, कारण के आ कृतिनी शरूआतमां 'आदिनाथ भास सं. 1587' एवो उल्लेख छे.५१ 28 कडीनी आ कृतिमा प्रथमनी 24 कडीमां जैनोना चोवीस तीर्थंकरोनी, दरेक कडीमां एकेक तीर्थकरनी, स्तुति छे. एमांनी प्रथम 27 कडीओ मालिनी छन्दनी अने छेल्ली चार लीटीनी कडी हरिगीत छन्दनी छे. कवितुं छन्द प्रभुत्व उच्च कोटिनुं छे. प्राचीन मध्यकालीन गुजराती साहित्यमा अक्षरमेळ वृत्तोनो प्रयोग ओछो मळे छे अने अक्षरमेळ वृत्तोमां रचायेली सळंग कृति तो गणीगांठी छे." ए रीते तेमज तत्कालीन गुजराती भाषाना अभ्यासनी दृष्टिए उपयोगी होवाथी आ आखीये कृति अहीं आपी छे." वर्णसगाई, अन्तर्यमक तथा प्रासनी योजना, तेमज चार ज लीटीमां दरेक तीर्थकरनुं व्यक्तित्व सर्जवानी कविनी शक्तिने कारणे पण आ कृति नोंधपात्र छे. - मालिनी छंद कनकतिलक भाले, हार हीइ निहाले, ऋषभपय पषाले, पापना पंक टाले. अरचि नव रसाले फूटडी फूलमाले, नर भव अजूआले, राग नई रोग टाले. 1 अजित किणि न जीतु, जेहनई मान वीतु, अवनिवर वदीतु मानीइ मानवी तु. लहसि सुख निचीतु, पूजि रे मानवी तु... जु जिन मनि चीतउ मुकीइ मान-वीतु. 2 59. जैन गूर्जर कविओ-भाग 3, खंड 1 60. 'प्राचीन गुजराती साहित्यमां वृत्तरचना'-डॉ. भोगीलाल ज. सांडेसरा (ई. 1941) 61. आ कृति 'जनयुग' पु. 1 (पृ. 178-79, सं. मोहनलाल दलीचन्द देसाई) मां प्रसिद्ध थई छे पण ला. द. भा. सं. विद्यामंदिरना ग्रंथभंडारमांथी वधारे शुद्ध अने जूनी हस्तप्रतो नं. 5253 (त्रण पत्रनी) अने 4143 (बे पत्रनी) मळी होवाथी, ए परथी अहीं एर्नु संपादन करवामां आव्यु छे, अने ए हस्तप्रतने अनुक्रमे A अने B संज्ञा आपीने पाठमेद नोंध्या छे. कोई प्रतमां लख्यासंवत नथी पण लिपि (पडीमात्रा अने खडीमात्रा बनेनो उपयोग एमां थयो छे ए) उपरथी वि. सं. 1600 लगभग ए लखायाना संभव छे. बनेमां A प्रत वधारे जूनी छे. 1. A रिषभ AB पाय. 2. A कणि. B लहेसि. A मति. B चीतिउ.
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________________ समवसरणि बइठा चीत मोरइ पईठा. असुख अति अरीठा उपड्या ते उबीठा. सुपरि करि गरीठा सौख्य पाम्यां अनीठा. भव हूअ मझ मीठा, संभवस्वामि दीठा. 3 लहक सिरि धजानु, ज्ञान केरु खजानु, जिनवर नहीं नाह्नउ, सामि साचउ प्रजानउ, जस जगि वर-वानउ छइल मांहिं न छानु सुत समरथ मानउ मात सिद्धार-पानउ. 4 विषम विषयगामी केवलज्ञान पामी दुरगति दुख दामी जे हुआ सिद्धिगामी, हृदय धरि न धामी, पूरवइ पुण्यकामी, सकल सुमति सामी सेवीइ सीस नामी. 5 म करि अरथ माहरु, लोभना लोढ वारु; भविक ! भव म हारु, पिंड पापिइं म भार. नरयगति निवारु, चीति चेतेस वारु. पदमप्रभ जुहारु; सांभलउ बोल सारु. 6 किय शिवपुर वासो सामि लीलाविलासो, जय जगति सुपासो, जेहनई देव दासो. दलिअ करमपासो राग नाठउ निरासो, गुरुअ-गुण निवासो दोष दोषिइ न जासो. 7 मदन-मद नमाया, क्रोध-योधा नमाया, भवभमर भमाया, रोग-सोगा गमाया, सकल गुण समाया, लक्ष्मणा जास माया, प्रणमिसु जिन-पाया चंग चन्द्रप्रभाया. 8 3. B चीति. A सोख्य. Bहआ. 4. B लहिक A धजा तु. B साचु; प्रजानु. B वरवानु. A माहे. B मानु; सिधारषानु. 5. B हूउ; सिधि. 6. A म्हारु. B चीति; वहारु. A नरयगति वारु. B सांभलु. 7 A गुरूअ. 8. A नडाया. A भवभरम.
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________________ मुविधि सुविधि मांडी, पापनां पूर छांडी, मयण-मद नमांडी, चीत चोखू लगाडी, कुगति मति शमाडी, मुक्तिकन्या रमाडी, सुणि-न-सुणि नमाडी देषवा ते रुहाडी. 9 कनकवरणि पीला जेणि जीती प्रमीला, सिरि धरिअ सुशीला, दूरि कीधी कुशीला, प्रगटित तपशीला, शीतल स्वामि शीला, म करसि अवहीला, जेहनी लील लीला. 10 भविक नर ! भणीजइ, सिउं भमु माग बीजइ ? अहनिशि समरीजइ, सेव श्रेयांस कीजइ, विविध सुख वरीजइ, पुण्यपीयूष पीजइ, . अनुदिन प्रणमीजइ, लाछिनु लाह लीजइ. 11 जस मुख–अरविंदो ऊगीउ कइ दिणंदो, किरि अभिनव चंदो पुन्निमानउ अमंदो, नयण अमिअबिंदो जासु सेवई सुरिंदो, पय नमिअ नरिंदो वासुपुज्जो जिणंदो. 12 असुख-सुख हणेवा, सौख्यनां लक्ष लेवा, भवजलधि तरेवा, पुण्य पोतूं भरेवा, मुगति-वहू वरेवा, दुर्गतिइं दाह देवा, विमल विमल सेवा चित्त चीतिइ करेवा. 13 अकल नवि कलायु, पार केणइ न पायु, त्रिभुवनि न समायु, जेहनइं ज्ञान मायु, जस जगि वर जायु, रोगनउ अंत आयु, हृदयकमलि ध्यायु ते अनंतु सुहायु. 14 9. A चीत. 10. A सिरि धरि सुशीला. A करिसि. 11. चोथी लीटी-B तिम तिम यम पीजइ. A लाहु. 12. A अरवंदो. A करि. B पुन्निमानु; वासुपुज्जे. 13. A असुख गति. A सोख्यनां लख़्य. A चीतइ करेवा. 14. A कलाव्यु त्री नी. लोटो-A जव जिनवर जायु. B रोगनु.
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________________ धरम धरम भाषइ, मुक्तिनउ मार्ग दाषइ, जगि जिनवर पाषइ पाप जाइ न पाषइ. वरस दिवस पाषइ जे प्रभो चित्ति राषइ, पुरुष अणिअ आषइ सौख्य ते चंग चाषइ. 15 मयगल घर बारी नारि सिंगारि भारी, रयण कनक सारी कोडि केति विचारी, प्रभु तसु परिहारी ज्ञानचारित्रधारी त्रिभुवनि जयकारी सांति सेवु सधारी. 16 वर कनकि घडाया हार हीरे जडाया, मुगट सिरि अडाया सूर तेजिइं नडाया, तिवल तडतडाया पाप पूंठिई पडाया, कुसुमचय चडाया कुंथु पूजंति राया. 17 करम मरम जाली, पुण्यनी नींक वाली, . रति-अविरति राली, केवलज्ञान पाली, अखय-सुख रसाली सिधि पामी सुंहाली, अर अरचि सुमाली आपि रे फूल टाली. 18 सुणि-न सुणि-न हल्ली पुण्यनिई पूरि घल्ली, घर तरुअर-वल्ली पुत्तपुत्तेहिं भल्ली, नितु नवल-नवल्ली भूरि भोगेहिं फुल्ली, प्रणमइ जिण-मल्ली, तासु कल्लाणवल्ली. 19 विगत-कलि-कुरंगा पामीआ पुण्य तुंगा, नविलि गविल जंगा दूष दोषा दुरंगा, जव हूअ जिन संगा सुव्रतस्वामि चंगा, किरि तरल-तरंगा आलसू मांहिं गंगा. 20 15. B मुक्तिनु. A सोख्य. 16. A अंगारि. B संति. A सेवु जुहारी. 17. B कनक. A मुकुट; तेजेई; तिविल. 18. A करमरम. 19. B सुणि न थल्ली. A जिन. 20. A विगतिकलिकुरंगा. B नवल गिवल जंगा. A दोख्या. B हुआ. A माहि.
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________________ नमि नरय निवारइ, मान-माया विडारइ, भवजलधि अपारइ हेलि हेलां ऊतारइ, भगत-जन सधारइ, लोभ नाणइ लगारइ, जिन जुगति जुहारइ, ते सवे काज सारइ. 21 कुगति कुमति छोडी, पापनी पालि फोडी, टलिअ सयल षोडी, मोहनी वेलि मोडी, जिणि शिववहु लोडी, को नही नेमि जोडी, प्रणमइ लक्ष कोडी नाथ बि हाथ जोडी. 22 जल जलण वियोगा, नाग संग्राम सोगा, हरि मयगल मोगा, वात चोरारि रोगा, सवि भयहर लोगा, पामीआं पास जोगा, नर नही कहि जोगा, पूजतां भूरि भोगा. 23 कठिन करम मेल्ही काठीआ तेर ठेली, विमल विनयवेली भावि भोलइ गहेली, निसुणि हरषि हेली, भेटि पामी दुहेली, सविसविहूं पहेली वीर वदू वहेली. 24 दुरित दल दुकाला, पुण्य पाणी सुगाला, जसु गुणवर बाला रंगि गाइ रसाला, भविक नर त्रिकाला, भावि वंदुं मयाला जय जिनवर माला, नामि लच्छी विशाला. 25 अमिअरस समाणी देवदेवे वषाणी, वयणरयणखाणी, पापवल्ली-कृपाणी, सुणि-न सुणि-न, प्राणी ! पुण्यची पट्टराणी जगि जिनवर-वाणी सेवीइ सार जाणी. 26 रिमिझिमि झमकारा नेउरीचा उदारा, कटि-तटि पलकारा मेषलीचा अपारा, 22. A प्रणमइ सुर कोडी; बे. 24. B मेहली. A भोरइ गहेली. 25. A जस गुणवर; लछी.
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________________ 36 कमलि-रमलि-सारा देह लावण्यधारा, सरसति जयकारा होउ मे नाणधरा. 27 तपगच्छि दिणयर लब्धिसायर सोमदेवसूरीसरा, श्रीसोमजय गणधार सेवीय समयरत्न मुणीसरा; मालिनीछंदिई झमकबंधिइं स्तव्या जिन ऊलटि घणइ, मिई लहिउ लाभ अनंत सुखमय, मुनि लावण्यसमय भणइ. 28 18. खिमऋषि (बोहा), बलिभद्र-यशोभद्र रास आ रासनी रचना वि. सं. १५८९मां अमदावादमां बुहाद्दीनपरामा पूर्ण 'संवत पनर नव्यासीइं, माघ मासि रविवारि, अहिमदावाद विशेषीई, पुरू बुहादीन मझारि.' एमां यशोभद्र अने एमना शिष्य खिमऋषि अने बलिभद्र, ए त्रण जैन मुनिओर्नु चरित छे. आम तो रास त्रण खण्डमां वहेंचायेलो छे; दुहा अने चोपाई छन्दनी पहेला रासमा 213, बीजा रासमा 126 अने त्रीजा रासमां 173 कडीओ छे छतां गुरुशिष्यना संबन्धने कारणे सळङ्गसूत्रता जळवाई रहे छे. खिमऋषिना कठिन अभिग्रहो तथा बलिभद्र अने यशोभद्रसूरिना चमत्कारो, एमां विस्तारथी वर्णन करवामां आव्यु छे, जे कंटाळाजनक थई पडे छे, छतां झडझमकभरी शैली अने विषयने विशद. बनाववानी कविनी दृष्टांतकलाथी कोई कोई भाग आकर्षक नीवडे छे : ‘भमतां चक्र भरइं कुंभार, भमतां भूप भरई भंडार, भमतु योगी भिक्षा लहइं, भमती नारी निज कुल दहई. + + + वृक्ष न लेइ फल तणउ सवाद, वीण अरथि न आवई नाद; सूर सदा अजुआलू करइ, उत्तम पर-उपगारी सिरई. नदी न पीइं नीर लगार, कूरम कांइ धरई भुइं भार; महीअलि मेह सरोवर भरई, उत्तम पर-उपगारी सिरई. 27. B रमझम. 28. A लछिसायर. A सेविभ; मुनीसरा. A मलिनी, B मालिनीय A यमकबंधिइ, B तव्या. A मई. A लावण्यसमय सदा भणइ. 62. आ कृति 'ऐतिहासिक राससंग्रह भाग 2' मा प्रगट थयेली छे.
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________________ 37 पान पदारथनी वेलडी, दूध दहीं दीसई सेलडी, . साकर सरस सर सरस झरइं, उत्तम पर-उपगारी सरइं.' (खंड 3) 19. प्रकीर्ण आ उपरांत लावण्यसमये केटलीक नानी कृतिओ रची छे, तेमांथी नीचेनी कृतिओ विशे -- ऐतिहासिक राससंग्रह 'नी प्रस्तावनामा नोंध छ : 1. गौतमरास, 2. गौतमछन्द, 3. जीराउला पार्श्वनाथ विनति, 4. पंचतीर्थस्तवन, 5. राजिमतीगीत, 6. दृढप्रहारीनी सज्झाय, 7. कर्माशाहे करावेला उद्धारनी प्रशस्ति, 8. पंचविषय स्वाध्याय, 9. आठमनी सज्झाय, 10. सात वारनी सज्झाय, 11. पुण्यफलनी सज्झाय, 12. आत्मबोध सज्झाय 13. चौद स्वप्ननी सज्झाय, 14. दाननी सज्झाय, 15. श्रावकविधि सज्झाय, अने 16. ओगणत्रीस भावना. 'जैन गूर्जर कविओ' भाग १मां आ सिवाय बीजी केटलीक कृतिमओनी नोंध छः 1. मनमांकड सज्झाय, 2. हितशिक्षा सज्झाय, 3. पार्श्वनाथजिनस्तवन प्रभाती, 4. आत्मप्रबोध, 5. नेमराजुल बारमासो, अने 6. वैराग्योपदेश". ए ज पुस्तकना भाग 3 खंड १मां 1. गर्भवेली-(११४ कडी) अने 2. गौरीसांवली गीतविवाद ए बे कृतिओनो उल्लेख छे. आ बधी कृतिओमा कविनो धर्मप्रेम, वैराग्य अने भक्तिभाव जोवा मळे छे. __ आ उपरांत कविनां केटलांक गीत अने हरियाळीओ हस्तप्रतोमां मळे छे. कविनी हरियाळीनो नमूनो जोवा जेवो छ : 'बीज विण वधइ केलि, केलि नही उजलवन्तउ, ऊजलवन्तउं हंस, हंस नही जलि उपन्नउं, जलि ऊपनउं कमल, कमल नही जलि सीदाइ, जलि सीदाइ अग्नि, अग्नि नही सहू को खाइ, सहू को खाइ अन्न, न फल तसु को कहइ; लावण्यसमय मुनिवर भणइ. जाण पुरुष लीलां करइ." 63. आ उल्लेखमांनी कृति नं. 4, 5, 6 शा. भीमशी माणेक प्रकाशित 'सज्झायमाला'मां मळे छे. 64. ला, द भा. सं. विद्यामन्दिर-ह. प्र. नं. 8460
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________________ कवितुं जीभलडीनुं गीत प्रीतमदासना ए ज प्रकारना गीतनी याद आपे एवं छे : 'जीव भणइ, सुणि जीभडली, पापइ पिंड भरावइ; आपसवारथ आघी थाइ, अम्हचइ काजि न आवइ, भइ. बापडली रे जीभडली, ढालि पडी तुं एहवइ, . खाटाखारा षटरस सेवइ, अरिहंत नाम न लेवइ, भइ. ध्यान धरूं जव सामी केलं, तव तुं सहीअ बोलावइ, जपमाला कर थिकी पडावइ, मझनई मांड डोलावइ, भइ. काया पुर पट्टण, हूं छउं राजा, तुं थापी पटरांणी, आज लगइ गुरुवचन विहूणी, मइ इसी अभगति जाणी, भइ. तुहइ नीलजपणउं न छांडइ, बोलइ छंदाचारा, भइ. तुं बंधावइ, तुं छोडावइ, तुझ जामलि कुण आवइ, नारि भली जेह ज प्रीअ भगती, घरनू सूत्र चलावइ, भइ. सावअ-लक्षण बहु गुणवंती, घणउं किस्यउं तुझ कहीइ, जीव भणइ, सनमारगि चालउ, तिम रूडइ निरवहीइ, भइ. जीव-सीखामण जिह्वा लागी, जिनगुण गावा लागी, कहइ लावण्यसमय वइरागी, पापभ्रंति सहू भागी. भइ". आम लावण्यसमय- साहित्यसर्जन ठीक ठीक विपुल छे. छन्द अने भाषा पर एओ घणो काबू धरावे छे. छन्दमां शब्दोने तो एओ धार्या प्रमाणे रमाडे छे ने प्रसंगोपात्त माधुर्य के ओजस प्रयोजे छे. अलंकारो, दृष्टान्तो अने सामान्य विधानोथी कोई पण विषयने तेओ दीप्तिवन्त बनावी मूके छे. एमनुं पांडित्य अने सामाजिक जीवनऊंडे ज्ञान एमनी कवितामा वारंवार प्रगट थाय छे. कोई पण प्रसंग, पात्र के भावना वर्णनने रसमय बनाववानी कळा एमने सहज छे. ए रीते लावण्यसमय मध्यकाळना प्रतिभाशाळी कवि छे. श्री. कनैयालाल मुनशी कहे छे तेम प्रथम पंक्तिना जैन कविओमां एमनुं स्थान घणुं ऊंचुं छे". 65. ला. द. भा. सं. विद्यामन्दिर-ह. प्र. नं. 533 649, 1595 66. 'नरसिंहयुगना कविओ.'
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________________ नेमिरंगरत्नाकर छन्द समालोचना लावण्यसमयरचित 'नेमिरंगरत्नाकर छन्द' मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां विशिष्ट स्थान धरावे एवी, अनेक दृष्टिए महत्त्वनी, कृति छे. 1. रचनासमय सामान्य रीते प्राचीन-मध्यकालीन साहित्यकृतिना अन्ते रचनासंवतनी संख्या आपवाआं आवे छे. पण केटलीक वार जेनी संख्या निश्चित होय तेवी वस्तुओनो उल्लेख करी रचनासाल सूचववामां आवे छे. उ. त., जैनकवि जीवणजीए पोतानी चोवीसीने अन्ते तेनी रचनासाल नीचे प्रमाणे जणावी छ : शशि मुनि शंकर लोचन, परवन वर्ष सोहाया; भादो मासनी वदि आद्या गुरु, पूर्ण मंगल वरताया रे. अहीं शशि=१, मुनि=७, शंकरलोचन=३ अने परवत=८ ए प्रमाणे सीधा क्रममा संख्या लेतां चोवीसीनी रचना सं. १७३८मां थयानुं समजाय छे. केटलीक वार आवी रीते सूचवायेली संख्या ऊलटा क्रममा लेवानी होय छे. उ. त., यशोविजयजीकृत 'जंबूस्वामी रास'मां रचनासाल आ प्रमाणे आपी छे : नंद तत्त्व मुनि उडुपति संख्या वरस तणी ए धारो जी, खंभनयर मांहिं रहिअ चोमासु, रास रच्यो छइ सारो जी. अहीं नंद-९, तत्त्व=३, मुनि-७ अने उडुपति-१, ए रीते ९३७१नी संख्या आवे छे, पण तेनो स्वीकार थई शके एम नहि होवाथी एने ऊलटा क्रममा लेवी पडे छे अने ए रीते रच्यासमय सं. 1739 समजाय छे. लावण्यसमये पण आवी ज युक्तिपूर्वक 'नेमिरंगरत्नाकर छन्द'ना रच्यासमयनो उल्लेख कर्यो छे : तिथिमान आणी तिणि प्रमाणी, संवत जाणी सुहकरो, रसवेद वामिई वरस नामिई माह मास मनोहरो. (अधिकार २-कडी 154) अहीं रस-६ अने वेद=४, वामिइं एटले डाबी तरफथी-ऊलटा क्रममां. लावण्यसमयनो जन्म वि. सं. १५२१मां थयो हतो अने वि. सं. १५८९मां एमणे
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________________ 40 . छेल्ली कृति रची हती. ए रीते वि. सं. १५४६मां, कविनी पचीस वर्षनी जुवानवयमां, 'नेमिरंगरत्नाकर छन्द'नी रचना थयेली छे. 2. काव्यस्वरूप ___ आ काव्यनी केटलीक हस्तप्रतोनी पुष्पिकामां (A B, अने D हस्तप्रतोमां प्रथम अधिकारने अंते अने B हस्तप्रतमां बीजा अधिकारने अंते पण) एने 'छंद' तरीके ओळखावेल छे. आ रीते मध्यकाळमां झडझमकवाळी भाषामां अने एक के जुदा जुदा छन्दमां लखायेल काव्यने 'छन्द'नी संज्ञा आपवामां आवी छे. उ. त., रणमल्ल छन्द, मयण छन्द, गुणरत्नाकर छन्द वगेरे. परन्तु कविए काव्यमां ज स्पष्टपणे एनो 'प्रबन्ध' तरीके पण उल्लेख कयों छे. (जुओ प्रथम अधिकारनो आरंभनो श्लोक अने बीजा अधिकारनी कडी 155). संस्कृत साहित्यकृतिओमा 'प्रबन्ध'नो अर्थ सुसंकलित, सुव्यवस्थित साहित्यरचना एटलो ज छे.' कालिदासे 'मालविकाग्निमित्र'ना प्रारंभना प्रास्ताविक भागमां 'प्रबन्ध'नो अर्थ 'काव्यनाटकादिक रचना' एवो को छे. वासवदत्ताना प्रणेता सुबन्धुए 'कथात्मक रचना'ने माटे 'प्रबन्ध' शब्दनो प्रयोग को छे. विक्रमनी चौदमीथी सोळमी सदीमां संस्कृतमा केटलाक प्रबंधो रचाया छे. तेमांना 'कुमारपालप्रबन्ध' जेवा प्रबंधो पद्यमां, तो मेरुतुंगनो 'प्रबन्धचिन्तामणि' अने राजशेखरनो 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध' गद्यमां छे. बल्लालनो 'भोजप्रबन्ध' गद्यपद्यमिश्रित छे. आमांथी केटलाकमां एक ज ऐतिहासिक व्यक्तिनुं चरित्र विगते आलेखवामां आव्युं छे, तो 'प्रबन्धचिन्तामणि' के 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध'मां जुदी जुदी ऐतिहासिक व्यक्तिओना प्रसंगो निरूपवामां आव्या छे. प्राचीन-मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां पण केटलाक प्रबंधो रचाया छे. तेमांना पद्मनाभरचित 'कान्हडदे प्रबन्ध' (वि. सं. 1512) अने लावण्यसमयरचित 'विमलप्रबन्ध' (वि. सं. 1568) नुं वस्तु चरित्रात्मक अने ऐतिहासिक छे. एमां बीजा रसो साथे मुख्य रस वीर छे. आख्यानमां कडवां पडवामां आवतां तेने बदले तेमां लांबा विभाग के खंड पाडवामां आव्या छे, अने दूहा, चोपाई जेवा मात्रामेळ छन्दोनो मुख्यत्वे उपयोग करवामां आव्यो छे. 1. अनुज्झितार्थसंबन्धः प्रबन्धो दुरुदाहरः-शिशुपालवध 2-73 * 2. प्रथितयशसा भाससोमिल्लकविपुत्रादीना प्रबन्धानतिक्रम्य वर्तमानकवेः कालिदासस्य क्रिया यां कथं. परिषदो बहमानः-मालविकाग्निमित्र, अंक 1
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________________ . आ उपरथी ऐतिहासिक व्यक्तिना चरित्रने निरूपता सुबद्ध, सुदीर्घ अने सळंग वीररसकाव्यने 'प्रबन्ध' तरीके ओळखवामां आवतुं एम लागे छे.' * नेमिरंगरत्नाकर छन्द ' मां आपणी दृष्टिए पौराणिक पण जैन धर्मनी दृष्टिए ऐतिहासिक एवो उदात्त प्रसंग आलेखवामां आव्यो छे. जैनोना तीर्थंकर नेमिनाथनुं चरित्र विगते तेमां वर्णववामां आव्युं छे. बीजा रसनी साथे एनो मुख्य रस धर्मवीर छे. एना बे खंडमां बहुधा मात्रामेळ छंदनो उपयोग करवामां आव्यो छे. एनी रचना सळंग, सुसंकलित अने सुव्यवस्थित छे. आ रीते एमां प्रबन्धनां लक्षणो जळवायां छे. 3. पद्यबन्ध 'नेमिरंगरत्नाकर छन्द 'मां नीचे प्रमाणे छन्दो वपराया छे. 1. अनुष्टुप-पहेला अधिकारना आरम्भना श्लोकमां अने बीजा अधिकारनी 149 मी कडीमां आ छन्द प्रयोजायो छे. एमां आठ अक्षरनां चार चरणोमांनो पांचमो अक्षर लघु अने छठ्ठो अक्षर गुरु होय छे, तेमज पहेला अने त्रीजा चरणनो सातमो अक्षर गुरु अने बीजा तथा चोथा चरणनो सातमो अक्षर लघु होय छे. दरेक चरणनो आठमो अक्षर गुरु होय छे. 2. दुहा-बीजा अधिकारनी कडी 1 थी 6, 11 थी 15, 20 थी 25, 30 थी 41, 45 थी 50 तेमज 66 अने ६७मां आ छन्द प्रयोजायो छे. __ दुहामा पहेला तथा त्रीजा चरणमा 13 तेमज बीजा अने चोथा चरणमा 11 मात्रा, 13 मी मात्रा गुरु अने पंक्तिने अन्ते अनुक्रमे गुरुलघु अक्षर होय छे. कोई वार पंक्तिना छेल्ला अक्षर गुरु पण होय छे. तेनां उदाहरण बीजा अधिकारनी 20 मी अने 33 मी कडीमां मळे छे. 3. रोळा अने छप्पा-पहेला अधिकारनी कडी 88, 89 अने 90 मळीने छप्पो बने छे. एवी रीते बीजा अधिकारनी कडी 97 थी १२०-दरेक त्रण कडी मळीने छप्पो बने छे. 160, 161 अने 162 कडीनो पण छप्पो छे. 3. प्राचीन-मध्यकालीन गुजरातो साहित्यमा साहस अने प्रेमनां कथाकाव्यने पण प्रबन्धनुं नाम आपवामां आव्यु छे. उ. त., भोमनो 'सदयवत्सवीर प्रबन्ध' (वि. सं. 1466) अने गणपतिनो 'माधवानल-कामकन्दला प्रबन्ध' (वि. सं. 1574). आ परथी लागे छे के कोई पण प्रकारनी सुदीर्घ अने सुबद्ध रचनाने प्रबन्धनु नाम आपवामां आपतुं. बीजो तरफथी नाल्हकविकृत 'विसलदे रासो' (वि. सं. 1272), अंबदेवसूरिकृत 'समरारासु' (वि. सं. 1371 पछी) वगेरेनुं वस्तु ऐतिहासिक होवा छतां तेमने 'रास' तरीके ओळखाववार्मा आवेल छे. आ परथी लागे छे के रास अने प्रबन्धनो मेद बहु कडक नहोतो.
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________________ 42 छप्पामा पहेली बे कडी-चार लीटी रोळानी अने छेल्ली बे लीटी उल्लाळा छन्दनी होय छे. रोळानी पंक्तिमां कुल 24 मात्रा अने 11 मी मात्रा पछी यति आवे छे. उल्लाळानी पंक्तिमा कुल 28 मात्रा अने १४मी मात्रा पछी यति आवे छे. 4. हरिगीत-बीजा अधिकारनी कडी 150 थी 159 हरिगीत (हरिगीतिका) छन्दनी छे. एमां दरेक पंक्तिमा 28 मात्रा आवे छे अने छेल्लो अक्षर गुरु होय छे. 5. आर्या-पहेला अधिकारनी ५५मी कडी अने बीजा अधिकारनी 148 मी कडी आर्यानी छे. एमां पहेली लीटीमा 30 अने बीजी लीटीमा 27 मात्रा होय छे. दरेक लीटीमां 12 मात्रा पछी यति आवे छे. 6. चरणाकुळ-काव्यमा सौथी वधारे उपयोग आ छन्दनो थयो छे. नीचेनी कडीओमां ए प्रयोजोयो छे. पहेला अधिकारनी कडी 1, 2, 3, 6, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 23, 26, 37, 38, 45, 51, 54, 55, 56, 58, 59, 60, 63, 66, 69, 72, 73, 74, 75, 76, 77, 80, 81, 82, 85 बीजा अधिकारनी कडी 71, 72, 75, 76, 77, 80, 81, 82, 83, 84, 85, 87, 91, 93, 94, 121, 122, 123, 126, 127, 129, 130, 131, 132, 133, 134, 135, 138, 141, 142, 143, 144, 145 चरणाकुळमा दरेक चरणमां सोळ मात्रा अने छेल्ला बे अक्षर गुरु आवे छे. उपरांत 1, 5, 9 अने 13 मात्रा उपर ताल आवे छे. 7. पद्मावती-आमां दरेक पंक्तिमा 32 मात्रा तेमज 10, 8 अने 14 मात्रा पछी यति आवे छे. छेल्लो अक्षर गुरु तेमज त्रीजी मात्राए अने पछी दर चार चार मात्राए ताल आवे छे. प्रथम बे यतिखंडो वच्चे प्रास योजवामां आवे छे.' 5. दश आठे खासा, धरि अनुप्रासा, उपर कळा चौदे आवे, पद्मावति नामे, छंद सुकामे, गुणवंता कविजन गावे; लीलावति जेवा, ताळ ज लेवा, कोमळ पद रचशे कविता, उसळो जश जामे सघळे ठामे, ते शोमे जेवो सविता. 'दलपत पिंगळ' पृ. 21
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________________ नीचेनी कडीओमां आ छन्द प्रयोजायो छे. पहेला अधिकारनी कडी 4, 5, 21, 22, 24, 25, 27, 31, 32, 35, 36, 39, 40, 43 अने 44. बीजा अधिकारनी कडी 95, 96 अने 146 8. त्रिभंगी-आ छन्द पद्मावतीने मळतो छ, पण पद्मावतीथी आगळ जई एमां आठ मात्राए एक यति वधारे होय छे अने एथी थयेला त्रणेय यतिखंडो एक ज प्रासथी सांधेला होय छे. पहेला अधिकारनी कडी 28 मा अने बीजा अधिकारनी कडी 73, 74, 78, 79, 88, 89, 124, 125, 136, 137, 139, 140 अने 147 मां आ छन्द प्रयोजायो छे. 9. दुमिल-आमां दरेक पंक्तिमा 32 मात्रा, 16 मात्रा पछी यति, अने दरेक चरणनो छेल्लो अक्षर गुरु छे. बब्बे चरणना प्रास मळेला छे. 'दलपत पिंगळ'ना दुमिला अने डिंगळना दुमेलने घणे अंशे ए मळतो आवे छे. पहेला अधिकारनी कडी 29, 30, 33, 34, 41, 42, 48 अने ५७मां तथा बीजा अधिकारनी कडी 86, 90, 92 अने १२८मां ए प्रयोजायो छे. 10. मरहट्ठा-आ छन्द पद्मावतीने बहु ज मळतो छे. फरक एटलो ज छे के पद्मावतीनो अंत्य खंड 14 मात्रानो छे एने बदले आमां अंत्य खंड 11 मात्रानो, दोहराना उत्तर पदनो आवे छे.' पहेला अधिकारनी कडी 7, 8, 46, 47, 49, 50, 52, 53, 61,62, 64, 65, 67, 68, 70, 71,78, 79, 83, 84, 86 अने ८७मां आ छन्द प्रयोजायो छे. 5. मात्रा दश आणो, आठ प्रमाणो, वळि वसु जाणो, रस दीजे, अंते गुरु आवे, सरस सुहावे, भणतां भावे, त्यम कीजे; लीलावति जेवा, ताळ ज देवा, त्रिभगि तेवा, छन्द करो, जति पर अनुप्रासा, धरिये खासा, सरस तमासा, शोधि धरो. 'दलपत पिंगळ' , पृ. 19 6. मात्रा दश आठे, धर जति पाठे, उपर कळा अगियार, मरहट्ठा नामे, कविता कामे, छन्द बनावो सार: छे गुरु लघु छेल्लो, एम ज मेलो, खेलो लावी खांत, तजि बे चच्चारे,, ताळ ज धारे, त्यारे थाय निरांत. 'दलपत पिंगळ
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________________ 11. हनुमंत पधडी-दलपतरामे जेने ‘पद्धरी' कह्यो छे ते ज आ हनुमंत पधडी छे. एमां दरेक चरणमा 16 मात्रा अने चरणने अन्ते जगण होय छे. दलपतराम प्रमाणे दरेक चरणनी 3, 6, 11 अने 14 मात्रा पर, ज्यारे हेमचन्द्रनी रीते 1, 5, 9, 13 मात्रा पर ताल आवे छे. बीजा अधिकारनी कडी 68 थी ७०मां आ छंद प्रयोजायो छे. 12. पधडी-बीजा अधिकारनी ५६थी 65 कडी आ छन्दनी छे. एमां दरेक चरणमां बार मात्रा छे अने अन्ते गुरुलघु अक्षर छे. 13. प्रकीर्ण-बीजा अधिकारनी कडी 7, 8, 9, 1., 16, 17, 18, 19, 26, 27, 28, 29, 42, 43, 44, 51, 52, 53 अने 54 मां कोई देशोनो उपयोग थयेलो छे.. 4. कविप्रतिभा जैनोना बावीसमा तीर्थंकर नेमिनाथना चरित्रे संख्याबंध कविओने आका छे अने तेमणे ए विशे विविध प्रकारनां नानांमोटां काव्यो रच्यां छे. वि. सं. १२८९मां पाल्हण नामना कविए ' आबुरास ' के ' नेमिजिननो रास ' रच्यो छे. त्यारपछी वि. सं. १५९६मां पुण्यरत्ने ' नेमिरास' रच्यो छे. नेमिनाथविषयक संख्याबंध फागुकाव्यो पण रचायां छे. तेमां राजशेखरसूरिकृत -- नेमिनाथ फागु' (सं. 1405), जयसिंहसूरिकृत 'नेमिनाथ फागु' (सं. 1422 आसपास ), समुधरकृत ' नेमिनाथ फागु' (सं. 1437 पूर्वे ), जयशेखरसूरिकृत * नेमिनाथ फागु' ( सं. 1450 नजीक), माणिक्यचंद्रसूरिकृत -- नेमि फाग ' (सं. 1478), समरकृत 'नेमिनाथ फागु' (सं. 1493 पूर्वे), पद्मकृत 'नेमिनाथ फागु' (सं. 1493 पूर्वे ), सोमसुन्दरकृत 'रंगसागर नेमिनाथ फागु' (सं. 1496 आसपास), धनदेवगणिकृत ‘सुरंगाभिध नेमि फाग' (सं. 1502) अने विनयविजयकृत ' नेमिनाथ भ्रमरगीता' (सं. 1706) प्रसिद्ध छे. नेमिनाथविषयक बारमासी काव्योमां विनयचन्द्रनी ' नेमिनाथ चतुष्पदिका' (सं. 1305) समयदृष्टिए प्रथम आवे छे. त्यारबाद सं. 1549 आसपास काहन कविए, सं. 1581 पूर्वे चारित्रकलशे, सं. १६६२मां लालविजये, सं. १७०६मां विनयविजये. सं. 1709 आसपास जयवन्तसूरिए, 7. प्रतिचरण सोळ मात्रा प्रमाण, ते चरण अंत जो जगण आण; त्रण चक्र रुद्र रत्ने ज ताळ, पद्धरी छन्दनो ए ज ढाळ. 'दलपत पिंगळ,' पृ. 14
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________________ सं. १७४२मां माणिक्यविजये, सं. १७४४मां नयविजये, सं. १७५५मां विनयचन्द्रे, सं. 1729 थी 1762 दरम्यान जिनहर्षे, सं. १७९५मां उदयरत्ने, सं. १७९५मां देवविजये, सं. १८४५मां महानन्दे--एम केटलाय कविओए आ विषयनां बारमासीकाव्यो रच्यां छे. आ उपरांत सं. १५२४मां मतिशेखरे -- नेमिनाथ वसन्तफूलडां', सं. १५६२मां लावण्यसमये ' नेमिनाथ हमचडी' अने सोळमा शतकना अन्तभागमां विनयदेवसूरिए ' नेमिनाथ धवलविवाहलु ' रच्यां छे. आ बधां काव्योमा 'नेमिरंगरत्नाकर छन्द ' विशिष्ट भात पाडे छे. नेमिनाथना जन्मथी मांडीने तेमना किशोरवयनां पराक्रम, लग्न करवा माटेनो तेमनो इन्कार, उग्रसेन राजा अने शिवादेवीनी पुत्री राजिमती साथे नेमिनाथना लग्न कराववा माटे कृष्णनो प्रयत्न, वसंतखेल द्वारा गोपीओनी विनवणी, एमना आग्रहनो नेमिनाथे करेलो स्वीकार, लग्ननी तैयारी, लानप्रसंगे थनार जीवहत्याथी नेमिनाथने उत्पन्न थयेल निर्वेद अने तेमणे करेल संसारत्याग, आशाभंग राजिमतीनी विरहव्यथा, गिरनार पर जईने नेमिनाथे लीधेल दीक्षा अने करेली केवलज्ञाननी प्राप्ति, राजिमतीने अने संसारीओने नेमिनाथे आपेल उपदेश--- ए प्रसंगो तेमां लावण्यसमये विस्तारथी अने उमळकाथी आलेख्या छे. आ दरके स्थळे तेमनी उच्च वर्णनशक्तिनो परिचय थाय छे. गोपीओ नेमिकुमारने लग्न करवा वीनवे छे, तेनी सामे दलील करतां स्त्रीओ पतिने केवी रीते हेरान करे छे तेनु नेमिकुमार वर्णन करे छे. (अधिकार 1, कडी 59 -76). गृहजीवननुं अने स्त्रीस्वभावनुं आ तादृश चित्र लावण्यसमयनुं मौलिक सर्जन छे. नेमिनाथविषयक अन्य काव्यमां ते मळतुं नथी. तेने लीधे काव्यमां हास्यनी छांट उत्पन्न थाय छे अने काव्यना उद्देशने असरकारक बनाववामां ते उपयोगी नीवडे छे. ___ लग्नने अंगे थनार पशुओनी हत्यानी कल्पना आवतां ज नेमिकुमार लग्न कर्या विना लानना मांडवेथी पाछा फरे छे. . त्यारे राजिमतीनुं मन भांगीने भूका थई जाय छे. तेनी आ विरहावस्थानुं वर्णन लावण्यसमये बीजा कविओ करतां विस्तारथी कर्यु छे. (अधिकार 2, कडी 83 थी 111 ). 'कव्यां कवीश्वरि अविरल आगइ' ए पंक्तिमां कविए पोते जणाव्युं छे तेम वि. सं. ना पंदरमा शतकमां
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________________ रचायेल 'मयण छन्द' जेवी कृतिनी स्पष्ट असर तेमां वरताय छे.* छतां चमत्कृतिभर्या प्रासानुप्रास अने आंतर्गमकथी तेमज अनुभावोना तादृश आलेखनथी ए हृदयस्पर्शी थई पडे छे अने विप्रलंभ शृंगारनो अनुभव करावी जाय छे. काव्यने अन्ते कडी 121 थी 140 मां आवेलो नेमिनाथनो उपदेश पण लावण्यसमयनो उमेरो छे. काव्यने सांप्रदायिक रंग आपी शांत रसनी निष्पत्ति करवामां ते महत्त्वनो फाळो आपे छे. आये काव्य शब्दलालित्यथी भरपूर छे. स्वाभाविक रीते ज प्रयोजायेला प्रासानुप्रास अने आंतर्यमक तेमां स्थळे स्थळे जोवा मळे छे. समान उच्चारना शब्दो द्वारा जुदा जुदा अर्थ व्यक्त करवानुं कवितुं चातुर्य ध्यान खेंचे एवं छे / प्रथम अधिकारनी कडी 36 अने 38 तेमज बीजा अधिकारनी कडी 85, 86, 87, 90 अने ९२मां तेनां उदाहरणो प्राप्त थाय छे. कवि, भाषाप्रभुत्व उच्च कोटिनुं छे. भाषानी जेम कवितुं छंदप्रभुत्व पण आकर्षक छे. सर्वत्र योग्य शब्द कृत्रिमता वगर छंदमां गोठवाता जाय छे ने माधुर्य सर्जता जाय छे. तेमां ये चरणाकुळ, मरहदा, पद्मावती अने त्रिभंगीनो प्रवाह अति वेगवन्त छे. उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अत्युक्ति, दृष्टान्त अने व्यतिरेक जेवा अर्थालंकारो कविए आ काव्यमा प्रयोज्या छे. तेमांना केटलाक अलंकारो रूढ छे, पण केटलाकमां मौलिकता अने कविप्रतिभाना चमकारा देखाय छे. उ. त., _ 'अलगी नांषइ सोवनत्रोटी, जिम जवरोटी कागई बोटी' (2-94) अने 'थूक जिम अलगी लांषइ' (2-104) ए पंक्तिओनी उपमा सचोट छे. बीजा अधिकारनी कडी 15, 16, 17, 18, 19, 20 अने २१मां रहेला व्यतिरेक के प्रतीप अलंकार चमत्कारभर्या छे. * आ वर्णनमांनो कडो 97, 98 अने 99 साथे सरखावो मयण छन्द'नो नीचेनो छप्पोः " बहिन तुहिन हार, गलि धरूं कि ? अहं अहं : मणिमय मंदिर कुसुम-सेजि पच्छरुं कि ? अहं अहं : कोइल केकि कपोत, कोर कहि प्रहूं कि ? अहं अहं : काम कुतूहल करण कथा, सखि ! कहू कि ? अहं अहं : सारंग-ज्योति सामी टलत, अवर किंपि मनि न न सहइः तिणि कारणि सही पडुत्तरु, अणखि अबल 'अहं अहं' करइ." (' गुजराती साहित्यनां स्वरूपो : पद्यविभाग,' पृ. ११५-डॉ. मंजुलाल र. मजमूदार)
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________________ 47 बीजा अधिकारनी कडी ९२नी नीचेनी पंक्तिमा अत्युक्ति अलंकारमा पण कविनी मनोहर कल्पनानां दर्शन थाय छे. 'जे सिर वरि सोवन राषडी ए, झालइ सोइ करी राषडी ए.' कथनने सचोट बनाववा लावण्यसमय कहेवतोनो पण सुभग प्रयोग करे छे. तेमनी आ शक्तिनो परिचय पहेला अधिकारनी ७०मी कडीमां मळे छे. पत्नीना त्रासथी कंटाळी गयेल पति दैवने फरियाद करतां कहे छे : 'ए भरीय अणत्थिई तई मुझ मस्थिई भागी काइ कुहाडि.' कुहाडी तो खूब वपराया पछी, पोतार्नु बळ न चाले त्यारे भांगे. पत्नीना त्रासनी अतिशयतानुं अने तेनी सामे पतिनी निःसहायतार्नु आमां सरस सूचन थयुं छे. 'गुल गलिउ नइ साकर भेली' (1-54), 'शाणा आगलि सुंडल मांडई' (176), ए कहेवतो पण ध्यानपात्र छे. 5. समाजचित्र लावण्यसमयनी अन्य काव्यकृतिओनी जेम आ काव्यमां पण तत्कालीन समाजजीवननां केटलांक सुरेख चित्रो जोवा मळे छे.. नेमिकुमारना जन्मप्रसंगना वर्णन परथी लागे छे के ए जमानामां पुत्रजन्म वखते राजदरबारमा उत्सव ऊजवातो. ते प्रसंगे मुंगळ, भेरी, ढोल वगेरे वाजिंत्रो वागतां. भाट, चारणो अने बंदीजनो राजाओना गुणगान करता ने नट लोको खेल करता. शेरीओने शणगारवामां आवती. राजमहेल अने राजमार्गों पर आसोपालवनां तोरण बांधवामां आवतां. स्त्रीओ नवां बस्त्रो पहेरीने एकठी थती ने मधुर स्वरे गीतो गाती. राजमहेलमां आवनार लोकोनो पाननां बीडांथी सत्कार करवामां आवतो. ब्राह्मणो अने भाटचारणोने राजा तरफथी दान अपातुं. बाळ नेमिकुमारनां आभूषणो अने पहेरवेशना उल्लेखो पण काव्यमां मळे छे. ते परथी जणाय छे के राजकुंवरने नानी वयमां हाथमां कडली, केडे सोनानो कंदोरो, गळामां रत्नजडित हार अने माथे टोपी पहेराववामां आवतां. पोशाक अने आभूषणोना उल्लेख पण काव्यमां मळे छे. ते मुजब स्त्रीओ चीर, कमखा अने घाट के घाटडी ए वस्त्रो पहेरती तेमज माथे राखडी, अंबोडे गोफणो, कानमां झाल, गळामां सोनानो हार अने त्रोटी, कांडे चूडो ने कंकण तथा पगमां नूपुर ए आभूषणो धारण करती. पुरुषो माथे सोनानी खींटली, कानमां कुंडळ, गळामां हार अने बाहु पर बहेरखां ए आभूषण धारण करता. तेमां माणेकमोतीनो उपयोग थतो.
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________________ 48 नेमिकुंवर अने गोपीओना वसंतविहारना वर्णन परथी लागे छे के ए समयमां वावना पाणीने कस्तूरी, कपूर, केसर, चंदन अने पुष्पोथी सुवासित करवामां आवतुं अने युवान स्त्रीपुरुषो तेमां स्नान करतां. कृष्णनी आयुधशाळामां नेमिकुमारे दावेल पराक्रमथी पृथ्वी पर मचेला खळभळाटनुं काव्यमा वर्णन करवामां आव्युं छे. ते परथी लागे छे के ए वखते वस्तुओ साचववा माटे घरमां उतरेड अने सीकां प्रचलित हता. कळी गाय अने भेसने दोरडा वडे खीले बांधवामां आवती अने गोळीमां दहीं वलोववामां आवतुं. गोपीओ नेमिकुमारने लग्न करवा वीनवे छे, तेनी सामे दलील करतां नेमिकुमार लग्न कर्या पछीनी मुसीबतो वर्णवे छे. तेमांथी तत्कालीन गृहजीवन- समृद्ध चित्र प्राप्त थाय छे. ते मुजब लागे छे के संयुक्त कुटुम्बमां जेठाणी देराणीने दुःख आपती. देरागीए जेठाणीने पगे पडवू पडतुं. खराब स्वभावनी स्त्रीओ कीमती वस्त्रो ने आभूषणो मागीने पतिने पजवती. घी, तेल, बळतण, मीठं, मरचुं, पान, कंकु वगेरे चीजो बजारमांथी पतिए खरीदी लाववी पडती ने तेमां मोडं थतां आवी स्त्री रिसाई जती, के रोककळ करती ने सारो संगाथ मळतां पियर पण जती रहेती. घर छोडीने जती रहेती स्त्रीनी घेर घेर वात थती ने पियरमां तेनी सखीओ तेने ठपको आपती. पति पण पछीथी कायर थईने तेने तेडावी लेतो ने कह्यागरो बनी जतो. पुरुष कायरपणुं बतावतो तेम तेम स्त्री तेने वधारे दबावती. माथाभारे स्त्रीओ पतिने मारती. आवी पत्नीथी पति डरतो. ते समयनी लग्नविधिनी माहिती पण नेमिकुमारना लग्नप्रसंगमांथी मळे छे. ए उपरथी जणाय छे के ए काळे मागुं लईने कन्याने त्यां कोई वडील सगास्नेहीने मोकलवानो रिवाज हतो. लानसम्बन्ध ज्ञातिमां ज पसन्द करवामां आवतो. लग्नसम्बन्ध बांधती वखते सगांसम्बन्धीओ अने स्त्रीओ एकठां थतां. स्त्रीओ गीत गाती. फूल अने पानसोपारीथी ए बधांनुं सन्मान करवामां आवतुं. लग्ननुं मुहूर्त ज्योतिषी पासे कढाववामां आवतुं. पछी लग्ननी तैयारीओ थती. पकवान अने वडी बनाववामां आवतां. लग्नमंडप बांधवामां आवतो. तेमां चाकळा अने चंदरवा बंधाता. चोकमां चोरीनी विधि थती. मांडी, मुरकी, हेसमी, गलपापडी, लाडु, खाजां, दाळ, भात, कूर ( दहीमिश्रित भात), दही, अथाणां ए जमवानी वानगीओ हती. जम्या पछी महेमानोने पान, सोपारी ने लविंग आपवामां आवतां.
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________________ ' वरराजा घोडा पर सवार थईने कन्याने घेर परणवा जतो. तेने माथे मुगट अने ते पर खूप ( पुष्पनो शणगार ) पहेराववामां आवतो. ते उपरांत माथे खींटली, कानमां कुंडळ, गळामां सोनानो हार अने हाथ पर बहेरखां ते धारण करतो. तेनी पाछळ पान चावता जानैया अने तेनी पाछळ मंगळ गीत गाती स्त्रीओ चालतां. लग्नप्रसंगे सुगन्धी जळ अने द्रव्योनो उपयोग थतो. जाननी आगळ ढोल अने वाजिंत्रो वागतां, वरने तोरणे पोखवामां आवतो. बेसवानां साधन तरीके पाटला अने जाजम (चाउरि)नो तथा जमवानां साधन तरीके भाणां अने कचोळंनो उल्लेख काव्यमां थयो छे. ___ लानोत्सुक राजिमती शणगार सजे छे त्यारे भावि अनिष्टनुं सूचन आ रीते करवामां आव्युं छे : 'क्षिणि फरकिउं दक्षिण अंग ताम.' (2-70). तेथी राजिमती -- मुखि घूघूकार करइ अपार.' आ विगत ए समयना लोकोनी शुकनअपशुकनमां श्रद्धा व्यक्त करे छे. आम लावण्यसमयनी वर्णनशक्ति अने अलंकारशक्ति, छन्द अने भाषा परनुं तेमनुं उच्च प्रकारचं प्रभुत्व तेमज तेमां आलेखायेखें तत्कालीन समाजचित्र 'नेमिरंगरत्नाकर छन्द 'ने मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां विशिष्ट स्थाननो अधिकारी बनावे छे.
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________________ भाषास्वरूप ' नेमिरंगरत्नाकर छन्द' भाषानी दृष्टिए महत्त्वनी कृति छे. तेनी ध्वनिमालामां ऋ के ळ देखाता नथी. तद्भव शब्दोमा अन्त्य के उपान्त्य स्वरयुग्मों अइ के अउ मांथी हजु ऐ के औ संयुक्त स्वरो विकस्या नथी, जो के एनुं उच्चारण थतुं हशे. ऐ अने औ संस्कृत तत्सम शब्दोमां सचवाया छे. उ. त., दैव (2-104), सौभाग्य (2-149) ऋ बहुधा रि मां रूपान्तरित थयो छे. उ. त., रिदय (1- 77, 1-78), रिधि (2-106) चरणान्त प्रासमां कोई वार इ अने य नो प्रास सधायो छे. उ. त., पाय ........ सुहाइ (2-69), जे इ - प्रतिसंप्रसारण सूचवे छे. क्वचित् लघुप्रयत्न य मळे छे. उ. त., देस्यू (1-55), सुणिज्यो (2-5), च्यारि (2-65), जाज्यो (2-71) - हनुं उच्चारण स्वरसहित जुएं मळे छे. उ. त., नान्हडली (1-27), एहवी (1-78), साहमा (2-10), तुम्हारउ (2-130) क्वचित् त्वरित उच्चारणने कारणे शब्दोना वर्णोनुं संकोचन थयुं छे. उ. त., ल्यावइ (1-74), नापु (1-84) क्वचित् र नो प्रक्षेप थयो छे. उ. त., त्रोडी (1-37), त्रूटइ (1-40) केटलाक अर्ध-तत्सम शब्दोमां विप्रकर्ष मळे छे. उ. त., दुरमति (1-1), भगतिइं (1-8), सिरिवछ्छ (1-29), कीरति (2-137) मूळ संस्कृत न नो प्रा. अप. द्वारा मध्य. गुजरातीमां ण चालु रह्यो छे, तेम अहीं पण कवियणजण (1 -2), हंसगमणि (1-3), पदमिणि (1-48), देसण (2--143) मळे छे. तेवी रीते मूळ संस्कृत र नो प्राकृत द्वारा चालु रहेलो ल मळे छे. उ. त., सुकुमाल (2-98), सुकमाला (2-140) बहुधा तद्भव शब्दोमां अने क्वचित् तत्सम शब्दोमां ज्यां ष आवे छे त्यां ख ना लेखनप्रतीक तरीके ते वपरायेलो छे. उ. त., चोषी (1-9), वषाणइ (1-10), पारषि परपई (1-11), शंष (1-31), मुषि (1-42), दिषाडइ (1-45), दष (2-132), राषजे (2-153)
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________________ कवचित् क्ष नो ख थया पछी ष रूपे लखायेलो छे. उ. त., षिणि (1-52,2-85, 2--87), अषय (2-162), लष (2--132) संस्कृत तत्सम शब्दोना श अने प ने बदले कोई कोई स्थळे स वपरायो छे. उ. त., आस (1-60), सोलह (1-80), देस-विदेसि (2-6), ससिसूरमंडल (2-58), दोस (2-109), उपदेस (2-120) आ उपरांत (1) दुसमन (1-10), तिविल (1-23) जेवा फारसीअरबी शब्दोनो, (2) सोइ (1-11, 2-92), बहुत (2-40), हइ (2-111), भयं (2-147) जेवा व्रज-हिन्दी शब्दोनो, (3) तोरी (2-27), मोरं (2-102) जेवा राजस्थानी शब्दोनो, तेमज (4) हरिची (1-30), सुणिल्ला-धुणिल्ला (2-75) जेवा मराठी धाटीना शब्दोनो तेमा प्रयोग थयो छे. व्याकरण नाम, विशेषण, सर्वनाम, क्रियापद अने अव्यय ए संस्कृत व्याकरणनां पांचे शब्दस्वरूप आ कृतिनी भाषामां ऊतरी आव्यां छे. (1) नाम : जाति-संस्कृत-पालि-प्राकृत-अपभ्रंश जेम नामो त्रणे जातिमां मळे छे. ___ नरजातिमां अ आ इ ई कारान्त नामो मळे छे. उ. त., जनम, कुंअर, धूप, पगर, हार, वरराजा, हरि, पति, मणि, स्वामी. आ उपरान्त नरजातिमां उ अने ओ प्रत्ययान्त नामो मळे छे. उ. त., कंदोरउ, पाटलउ, वालु, गोफणु, जीवडउ, मरूउ, नेमिनाहो, दिणयरो, नेमिजिणेसरो. ___ नारीजातिमां अ आ इ ई उ कारान्त नामो मळे छे. उ. त., भूगल, वाट, वात, टेव, जान, वेदन, माया, वीणा, गदा, पुहवि, लाछि, कुहाडि, भमहि, सूइ, कंती, वाणी, सेरी, ताली, वस्तु. नान्यतरजातिमां अ, इ, ई, उ कारान्त नामो मळे छे. उ. त., कवित, चीर, अंगण, लगन, ठाइ, पानि, मोती, तनु. आ उपरांत नान्यतरजातिमा उं-ऊं प्रत्ययान्त नामो मळे छे. उ. त., परिणवू, कायरपणउं, पानडउं, नातलं. वचन--नरजातिमां बहुवचननो सामान्य प्रत्यय आ छे. उ. त., सिंगारा, कमषा,भमरा, विहारा. पण कोई वार ओनो उपयोग थयो छे. उ. त., देवो मिली (2-114). आ उपरांत अप्रत्यय रूपो पण मळे छे. नारीजातिमा बहुवचननो सामान्य प्रत्यय आ छे. उ. त., नीका (1-30)
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________________ नान्यतरजातिमा बहुवचननो सामान्य प्रत्यय आं छे. उ. त., प्रवालां, भाणां, वाणां, वयणलां, टीलां, दूषडां. आ उपरांत अप्रत्यय रूपो पण मळे छे. घणी वार बहुवचननो प्रत्यय लागतो नथी, पण विशेषणोने के भूतकालीन क्रियापदोने बहुवचननो प्रत्यय नरजातिमां आ अनें नान्यतरजातिमां आं लागे छे, ते परथी बहुवचननो अर्थ सूचवाय छे. उ. त., पयकमल मुंहालां (1-28), नेमितणा गुण (1-12), दानव मलिआ (1-36), जीतां रातां कमल (2-20) मानार्थे बहुवचननो प्रयोग पण जोवा मळे छे. उ. त., तु रे जनम्या धन धन जिन सामलवन (1-21) विभक्ति-पहेली तेमज बीजी विभक्तिनो प्रत्यय नथी. त्रीजी विभक्तिनो प्रत्यय असंयुक्त अने संयुक्त इ-इं तेमज ए छे. उ. त., सीलइ (1--80), सुगंधइ (2-61), छंदइं (1-5), बुधिई (1-9), वेगिई (1-14), माहवि (2-33), नेमिविरहिं (1-94), मोतीडे (2-52), नयणे (2-66). चोथीमां नई ए अनुग अने रेसि ए नामयोगी वपराया छे. उ. त., नारीनई (1-81), हरिनइं (1-85), पितानइं (2-9), झीलण रेसि (1-50). ___ पांचमीमां थिकी (1-44), थिउ (1-18), थी (2-135) ए अनुग वपराया छे. ___ छट्ठीमां विशेष्यनां जाति अने वचनना संदर्भमां नउ (1-15), नी (2-52), नं (1-87), तणउ (1-47), तणी (1-46), तणइ (2-12), तणेइ (2-52), तणा (2-75), तणां (1-43), केरु (2-53), केरउं (1-55), केरी (1-2), केरइ (2-142), केरा (1-9), चु (1-55), ची(१-३०) ए अनुग वपराया छे. आरंभनी भूमिकामां मळतो ने पछी लुप्त थयेलो ह प्रत्यय (सं. स्य>प्रा. स्स>अप. स्सु-सु-) क्वचित् मळे छे. उ. त., मूलह विण (1-39), हरषह पाणि (2-26). ___ सातमी विभक्तिना प्रत्यय असंयुक्त ने संयुक्त इ-इं तेमज संयुक्त ए छे. उ. त., चहुटइ (1-63), चउमासइ (2-30), हियडई (1-5), मनि (1-8), अंगि (1-2), भालिं (1-27), काने (1-4), धवलहरे (1-25). संस्कृत नारीजातिना आम् प्रत्ययनो अवशेष पण क्वचित् मळे छे. उ. त., आउधशालांपुहतउ (1-30), मांहइ (2-101), माहिइं (1-11), मांहि (2-13), मांहिं (2140), वरि (1-16), ऊपरि (1-41), पे (2-103), मझारि (2-11), मझारे (1-13) पण सातमीना अर्थमां वपराया छे.
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________________ सति सप्तमीनो प्रयोग पण क्यारेक मळे छे. उ. त., प्रहि ऊगमि परणवु करेसिइं (2-76). - (2) विशेषण-अविकारक विशेषणो विशेष्यनी पूर्वे अने पछी कोई पण जातना फेरफार विना ज प्रयोजाय छे. विकारक विशेषणनां पहेली विभक्तिनां एकवचननां रूप ए प्रस्ताव अछइ अति मोटउ (1-55), नान्हडली कडली (1-27), बीहुं त्रीजउं उपमान (2-13) ए प्रमाणे थाय छे. बहुवचनमां कवित ते रूडां होइसिइं (1-12), भट्ट भला (1-40) थाय छे. विशेष्यनी जेम त्रीजी अने सातमी विभक्तिना प्रत्यय इ-ई-ए विशेषणने पण लागे छे. उ. त., तिणई दुषिइं (1-44), इणि परि (1-26), मननई रंगि (2-3), सहीयरनइं टोलइ (2-87), मोटे मोटे मोतीडे जडी (2-52). __ संख्यावाचक-संख्यावाचक विशेषणोमां अध, साढा (बार); इक, इग, एक बि, बे, बेउ, बेहु; तिन्निचार, च्यारइ, च्यारि, चउ; सत्त, सात; अट्ठः नवः दह, दसः बारसोल; अढार, अढारह; छत्तीस; च्यालि, चउपन्न, चउप्पन्नह; सहि; चउसठि; एकोतरः बहुत्तरिः सई, सु, शत; सहस; लक्ख, लाष; कोडि-ए रूपो मळे छे. आवृत्तिवाचक-प्रथम, पहिलउं, बीजु, बिहुं, बिमणु, त्रीजउं, छठइं, अहमि, नवमइ ए रूपो मळे छे. - __अनिश्चित संख्यावाचकमां बहुलां, परघल, बहुत, अतिघण, घणाला ए विशेषण ध्यानपात्र छे. (3) सर्वनाम—हूं, तूं, ति-ते-तेह, ए-एह, जे, इ, आप, कु-को, सिउं वगेरे सर्वनामो एनां विविध विभक्तिजन्य रूपोमां प्रयोजायेला मळे छे.
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________________ हूं विभक्ति ए. व... ब. व. वि. ए. व. ब. व. _ - 2 3 - मई - - 2 3 - तई ه م 6 मुझ, मझ, मोरं, अम्ह, अमारा _ 6 तुझ, तोरी, तुह्मचु, 7 तुह्म, तुह्मारउ ए. व. ब. व. . जं, जि / # rrr- 3 जिणि, जीणइं. जेणइ / / / / 6 जसु जस वि. 1 दर्शक अने त्रीजो पुरुष सर्वनामो ए. व. सा, स, सं, सो, सोइ, तेअ, ति, ते, तेह, तं, एह, ए, इ, ओ 3 इणि, तिणि, तिणइं ه س ه م 6 तसु, तासु, तास, तेहना, तेहनी 7 तिणि, तिथि, इणइ
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________________ स्ववाचक-आप, आपई, आपुलइ अनिश्चित-कु, को, कोइ, कांइ, कइ, किंपि, केवि, सवि, सहू, केता प्रश्नवाचक-सिउं, सिउ, स्या, किसिइं संबंधक -- जे, जे-ते, जं-तं / साधित रूपोमा इसिउं, इसिउ, :एहवी, जेवड, त्रेवडी, किसिउं, एतइ, एतलइ, केता, जिस्यां ए विशेषणात्मक रूपो वपरायां छे. (4) क्रियापद--क्रियापदनां त्रणे काळनां रूप मळे छे. वर्तमानकाळ-कर्तरि रूप पु. ए. व. ब. व. 1 बोलउँ, कहउं, मागं, जंपूं कहीइ, थइइ, कहीयइ, लहीयइ 2 डरइ. आणइ, झषइ, कहि मानउ, जाणउ 3 करइ, चालइ, अछइ, पडए करइ, करए, धूजई, लडथडए, रडइए कर्मणि रूप कर्मणि रूप मुख्यत्वे त्री. पु. ए. व. अने ब. व. मां मळे छे. तेनां संख्याबंध रूप प्रयोजायां छे. उ. त., दीजइ (2-29), जोइइ (1-64), मुंकीइ (2-40), चूरियइ (2-40) इत्यादि. कर्मणिर्नु नपुं रूप कहाइ (2-31), सुहाइ (2-42), षमाइ (2-131) वगेरे पण आ. कृतिमां मळे छे. दीजइ (2-46), कीजइ (2104), लीजइ (2-103), थाइ (2-126) वगेरेनो अर्थ कर्तरि पण थई चूक्यो छे. ____ भविष्यकाळ-कर्तरि ब. व. गाइसु, करसिउं, करिसु, कहिसिउं, देस्यूं खासिउ, जासिउ 3 करसिइ, करेसिइ, बोलसिइ जोसिइ, जोइसिई, वधेसिइं होसिइ, हुसिइ आज्ञार्थ (1) शुद्ध आज्ञार्थ- शुद्ध आज्ञार्थमां बीजा पुरुष एकवचनमां कहइ, कहि, कर, करि, सुणि, पालि, आपे, कापे इत्यादि अने बहुवचनमा जोउ, थाउ, जाणउ, करु, आपु, रहु इत्यादि रूप मळे छे. . शुद्ध आज्ञार्थमां बी. पु. ए. व.मां कर्मणिनां रूपोनो पण प्रयोग थयो छे. उ. त., कीजइं (1-58), कीजइ (1-83), लीजइ (2-107). ا م م له
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________________ भविष्यार्थ आज्ञार्थ-भविष्यार्थ आज्ञार्थमां बी. पु. ए. व.मां राषजे, दापजे (2-153) अने ब. व. मां सुणिज्यो, धरज्यो, जाज्यो जेवां रूपो प्रयोजायां छे. प्रेरकनो प्रयोग मूळ धातुना उपान्त्य अ नो आ थईने के मूळ धातुने आव अने आड प्रत्यय लागीने बनेलां प्रेरक रूपो आ कृतिमां मळी आवे छे. उ. त., वालइ, तारइ, ऊडाडी, नमाडी, रमाडी,रिमाडया, दिषाडइ, परणावउं, सुणाविउ, हरषावउ, मनाव्या. कृदंत वर्तमान, भूत, हेत्वर्थ, संबंधक अने विध्यर्थ के सामान्य कृदन्त अहीं जोवा मळे छे. वर्तमान कृदन्तमां रमतु, जातउ, ऊपजतु (ए. व.), माता, रोतां, जिमतां (ब. व.) उपरांत सं. ०अन्त् (एनुं निर्बळ रूप अत्) मांथी प्राकृतमा विकसेला अन्त अंगथी बनेला झलकंती, वहंतु, धृजंतउ, वाजंति, बोलंति, माचंता, नाचंता, विहरंता, पडतां, करंतां रूप पण ठीक ठीक संख्यामां मळे छे. सं. कर्मणि रूप बनावता य् नो विकास ई पण केटलांक वर्तमान कृदन्तनी पूर्वे आवी मळयो छे. उ. त., वदीता, कहीतां. भूतकृदंतमा हुउ, कीधउ, गयु, तुटउ, दिउ, दीठउ, चडीउ, वूठउ, पूरिउ जेवां रूपो पुंल्लिंग एकवचनमां अने समाया, आया, आव्या, डरिया, त्राठा, नाठा, पइठा, नठा, तेडया, जनम्या जेवां रूपो पुंल्लिंग बहुवचनमां मळे छे. मराठीनी जेम प्राकृत भूतकृदंतना इल्ल प्रत्ययवाळां रूपो पण तेमां प्रयोजायेलां छे. नपुंसक ए. व.मां लागउं, करिउं, नीठउं, दीठउं, लीधं, थy, जोयउं, हतूं, नडतूं अडतूं अने नपुंसक ब. व.मां काढीयां, जीतां, कीधां, ग्यां, पइठां जेवां रूपो मळे छे. स्त्री. ए. व. मां चडी, ऊपाडी, दीधी, पइठी, कही, हुति अने स्त्री. ब. व.मां सिणगारी, परिवरी, सनकारी जेवां रूपो मळे छे. सौराष्ट्रमा व्यापक आणी प्रत्ययवाळां रूपो पण स्त्री. ए. व. अने ब. व. मां मळे छे. उ. त., कहाणी (1-85), ऊजाणी (1-72). सामान्य रीते भूतकृदंत क्रियापदनुं काम सारे छे. हेत्वर्थमां करिवा, तरिया, वरवानु, करवानु, सूवा जेवां रूपो मळे छे. * संबंधकमां कही, लोपी, टाली, पामी, प्रणमीय जेवां रूपो मळे छे. अप
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________________ भ्रंशथी चाल्या आवेला एवि, एवी अंत्यगवाळां रूपो पण मळे छे. उ. त., वंदेवी (1-1), पिक्खेवि (2-107). विध्यर्थ (सामान्य) कृदंतमां परणवू (1-85) जेवा रूप मळे छे. ___ (5) अव्यय-अव्ययोमा क्रियाविशेषण, नामयोगी, उभयान्वयी अने केवळप्रयोगीनो विकास आ भूमिकामां ठीक प्रमाणमा छे. क्रियाविशेषण अव्यय आ कृतिमां नीचेनां क्रियाविशेषण अव्यय मळे छे. स्थळवाचक-जहिं, जां, वरि, ऊपरि, दूर, दूरि, परतखि, पे, पापलि, धुरि, भीतरि. काळवाचक हिवइ, हिव, हवई, जव, तव, आगइ, आज, जाम, ताम, किवारइं, पुनरपि, अहनिसि, सदा, पूरविं, वार वार, त्याहर पछी, पछइ रीतवाचक- जिम, तिम, जं, तं, इम, किम, एमई, किमइ, परि, परे, पाणइं, पाणि, सहजइं, अनिबार, कारणवाचक-कां, काइ, किम, कांई, सिउं निश्चयवाचक- निश्चइं, निटोल, नीम, सही संशयवाचक-- कि, किरि, रषे | नकारवाचक- न, नही, नहीं, नवि, म, अंअः नामयोगी अव्यय स्थळवाचक-पासि, पासई, वरि, ऊपरि, मझारि, मझारे, सरिसु, लगइ, मांहि, मांहइ, भणी, पे, प्रतिइं, पति काळवाचक-पाछिली हेतुवाचक-रेसि सहितार्थक–सिउं, सरसिउं, सहित, साथिइ रहितार्थक--विण, पाषइ, पषइ तुलनावाचक-समाण, समान, पाहि, पाहि साधनवाचक-थिकी, करी
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________________ उभयान्वयी अव्यय समुच्चयवाचक - नइ, नई, अनइ विकल्पवाचक-कि, कइ, के विरोधवाचक-पुण, पणि, पण संबंधवाचकः-जइ-तु, जु-तु, जउ-तु, जं-तं, जउ, तु, वली, जिम ज़िमतिम तिम परिणामवाचक-नहींतरि . केवळपयोगी अव्यय संबोधनवाचक—हो, रे शोकवाचक हा हा विनय-संमतिवाचक-ज़ी जी कि. रे, रि, य अने अ पादपूरक तरीके वपराया छे.
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________________ कविश्री लावण्यसमयविरचित नेमिरंगरत्नाकर छंद प्रथम अधिकार स्मृत्वा श्रीशारदां नेमेश्छन्दोभिर्विविधैर्वरैः। प्रबन्धं बन्धुरं कुर्वे रंगरत्नाकराभिधम् // सारद सार दया कर देवी, तुझ पयकमल विमल वंदेवी, मागू सुमति, सदा तई देवी दुरमति दूर थिकी नंदेवी. 1 हिवइ हउं बोलउ मेल्ही माया, तूं कवियणजण केरी माया; बहु गुणमणि तुझ अंगि समाया, अवगुण अवर अनंत गमाया. 2 तुझ तनु सोहइ ऊज्जल कंती, पूनिमशशिहर परि झलकंती; पय घम घम घुग्घर घमकंती, हंसगमणि चालइ चमकंती. 3 चालइ चमकंती जगि जयवंती, वीणा पुस्तक पवर धरइ, करि कमल कमंडल, काने कुंडल, रविमंडल परि कंति करइ. 4 हियडई हित आणी सुणि मुझ वाणी, जइ हूं तुझ बहुमान लहउं, तु मनि आणंदई, नेमिजिण वंदई, नव नव छंदई कवित कहउं. 5 देवी कोई नही जसु तुल्लइ, तव तूठी सा सरसति बुल्लइ; सुरनर किंनर राज वषाणी, ते तुझ दीधी अविरल वाणी. 6 A एर्द * श्री गौतमाय. B एर्द० // श्री वीतरागाय नमः C श्रीः ऐ नमः // B समृत्वां. A शारदा. B सारदा. AB नेमे. C नेमै. A छंदोभिविविधैर्वरैः B छंदोभिर्ववधेवरैः C छंदोभिविविधिर्वरैः AB प्रबंध. C प्रबंधं बंधुरं. ABC रंगरत्नाकराभिधं. 1. C शारद. AC दया पर. B मांगू, C मांगु. B तइ. A दूरमति. B दूरि थकी. 2. BC हिव. AB हूं बोलू. B मेहली. B केरडो. A बुहु. A गणमणि, B गुणमण. ___B अंग न माया. B अव अनंत. 3. C ससिहर पय झलकती. A घघुर, B घुघर. 4. B जे चालय. B वेणी. C धरई. B करि कमलि कमंडलु. C कंत. 5. A होयडि, B हइडइ. A जय हूं. AB लहूं. Bहूं. C मन. A. आणदिइं. B 'नेमिजिण वंदई' ए शब्दो नथी. A छंदिइं. B ‘कवित' ने बदले 'छंद' छे. AB कहूं.. 6. B जस, C तसु. A तूठी सरसति, C तूठी सारसति. B बोलइ. A सुरुनर. BC राजि. A अविचल.
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________________ तई वाणी दीधी पुहविप्रसिधी, किधी सु-परि अपार; भवसागर तरिवा, पातक हरिवा, करिया कवित उदार. 7 इम बोलइ कवियण, सुणिज्यो भवियण, मुझ मनि अति आणंद; नितु नव नव युगतिइं गाइसु विगतिइं, भगतिइं नेमि जिणंद. 8 जु तूठी सरसति मन सुधिई, कहिसिउं कवित तु चोषी बुधिइं; गाइसु गुण नेमीसर केरा, पोषिसु भावई भाव भलेरा. 9 कवित कवित कही सहूअ वषाणइ, कवित तणा पुण भाव न जाणइ; सोइ कवित जिणि दुसमन दूमइ, कोविदजनमनि लागउं घूमइ. 10 देषी चंद चकोरा हरषइ, वस्तु विशेषई पारषि परषइं, करिउं कवित जउ चतुर न चाहइ, सोइ कवित कहीइ स्या माहिइं ? 11 करिसु कवित ते रूडां होइसिई, रसि लीणा कोविदजन जोइसिइं; हिव अलवइसिउं आलस छांडउं, नेमि तणा गुण गावा मांडउं. 12 इक वीनतडी धरज्यो हीईइ, ते ए कवित मांहिं नहीं कहीइ, जनम हुउ सोरीपुर सारे, पुण पहुता द्वारिका मझारे. 13 कंसप्राण जब जो हरि हरिया, जरासिंधुभयि यादव डरिया, वेगिइं गया रयणायरि नासी, लहीय लाग द्वारिका निवासी. 14 7. A दिधी. B पहुवि. C पातग. 8. C कविअण. B सुणियो. C भविअण मझ. A मुनि. B नित. B युगतइ, C युगति. ___A गायुसु, C गायसु. B विगतइ, C विगति. B भगतइ, C भगति. 9. B सुधइ, C शुधि. BC कहिसु. A कवित हु. B नेमीस्वर. B पोषिस. A भाविई. 10. A सहू A कवितणा गुणभाव. AB जिण. A दूसमन. B कोविदजनमन, A कोविद जणमनि. AB लागू, 11. C हरषिई. AC विशेषिइं. B परिष, C पारिष B परिषइ. B करूं. BC जु. A चाहिइं. B कही स्या गाहिं, C कहोइ स्या माहि. 12. B रूयबूं, C डउ. BC होसिइ. जोसिइं. A अलविइं, C अलवि. A सू, B स्यू. . AB ठंडूं. B मंडूं. 13. B एक. A धरयो, B धरियो. A हइइ, C होइ. A ते कवित. AC माहि. A जन्म. A हऊ, B हवु. B सूरीपुर. A 'हूंता, . C पुहता. C मझारि. 14. कंसप्राणि. B जे. B हरयां C हरिआ. AC भय. B डरया, C डरिआ. BC वेगि. ., A रयणायर. AC लही.
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________________ 61.. ए प्रस्ताव अछइ अति मोटउ, चिहुं पदे कीधउ चरबोटउ; आडउं त्रेडउं हवई न हेरूं, कहिसु चरित्र नेमीसर केरउं. 15 सोरिअपुर वरि वर सिंगारा, गढ मढ मंदिर पोलि पगारा, युगियुगता जहिं जिन-विहारा, ऊपरि कनककलश झलकारा. 16 छाना छइल वसइ दातारा, केवि चतुर नर गुणभंडारा; परिघल पुण्य करइ अनिवारा, तिणिं नयरिई नितु जयजयकारा. 17 समुद्रविजय जय धरणीधारा, हय गय पायक बहु परिवारा, अरिदल दलणि धरइ ऊभारा, जइ-लच्छी उरि नवसर-हारा. 18 तसु पटराणी पुहवि-सारा, शिवादेवी सहजई सुविचारा, रूपई रंभ करइ धिक्कारा, प्राणनाथ-सिउं प्रेम अपारा. 19 तासु उअरि किअ लइ अवतारा, चउद सुपन सिउं सामि अहमारा, त्रिभुवन सोह चडावणहारा, जनम्या धन धन नेमिकुमारा. 20 तु रे जनम्या धन धन जिन सामलवन नेमिकुमार नरिंद-घरे; सिणगारी नारी सवि सविचारी, मंगल बुल्लइ मधुर सरे 21 तव नरवर-विंदा, चउसठि इंदा, आवइ अहनिसि रंगभरे, पय प्रणमीय भत्तिइं, ते एक-चित्तई, उत्सव मंडइ विविह परे. 22 भू मू वज्जइ भूगल भेरी, स्वरमंडल नीसाण नफेरी, तूर तिविल झल्लरी नवेरी, ढोल ढमक्कइ सेरी सेरी. 23 15. B मोटु. A चिहूं ए दिवसि करि उ चरबोटु. C कीधु. B चरबोटु AB आत्रेडू. ___A हिवइं. C नवे5. A कसिसु. B नेमीश्वर. AC केलं. 16. A सोरीपुरु, B सोरीअसुर. AB वर वर. BC जगियुगता. A जिहियां, B जिहां. B जैन विहारा. 17. A छयल. B किंवि. A परघल. A 'करइ' नथी. तीणि. नय भितु. 18. A मां आ कडी नथी. B मां त्रीजुं चरण नथी. B जयलच्छी 19. B तसु. B पहुवइ. A सहजिं, B सहिजइ. A रूपिई. A धिकारा. B स्यूं. 20. A तासुउ, B तास. A ऊरि, B ऊयरि. A किय, B कुलि. ____A चोऊद. B सपन. A सू, B स्यूं B हमारा. C त्रिभुवनि. B मोह. 21. A त रे धन धन जनम्या. BC सुविचारी. AC बोलइ. A विविधु सुरे. 22. A नव. C चुसठि. A अहिनसि. A पय पामी भगतिइं. A मंडव विवह पुरे, - B विवध परे, 23. B सिरमंडल, C सरमंडल. A तविलि, B तिवल. A झल्लर. C निवेरी. B ढमकइ.
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________________ तु रे ढोल ढमक्कइ, घुग्घर घमकइ, पेला पेलई खंति धरे, बंदीजन भाट कि चारण चाट कि वाट कि नट लिव तेणि पुरे. 24 दानई सनमानई, फोफलपानिइं, सवि संतोष्या सुपरिकरे; बंधइ सुविशाला वनरमाला झाकझमाला धवलहरे. 25 इणि परि अभिनव विरचीय जंगा, दिनि दिनि वाधइ कुंअर सुचंगा, अंजनगिरि सम सोहइ अंगा, गयदूषण, भूषण नवरंगा. 26 कु रे भूषण भालिं निहालिं, निरुपम टीलउं जोतां तृपति टली; नान्हडली कडली करि आवडली, वांकडली वांकलडीय वली. 27 आरोपी टोपी मस्तकि उपी, सुजनि समोपी, सुकवि भणइ; पयकमल सुंहालां, बाहु मृणालां, अधर प्रवालां वानि घणइ. 28 कडि कंदोरउ कंचणि घडीउ, उरि सिरिवछूछ रयणमणिं जडिउः कलावंत कुंअर न्हानडीउ, पुण्यवंतनई पदवी चडीउ. 29 रमतु राउलि गिउ गहगहतउ, हरिची आउधशालां पुहतउ, कुतगि कोडि सिला ऊपाडी, लहकइ लेई गदा ऊडाडी. 30 जिणि गदा ऊडाडी गयणि भमाडी, त्राडी पूरिउ शंष वली; हरि धणु हीजाडी, वेगि नमाडी, रंगि रमाडी ठाणि चली. 31 सवि आउध शर्मा, मोटउ मर्मी कर्मी कुंअर गेहि गयु; ते निसुणी नाद विषाद वहंतु, कृष्ण वदन तव कृष्ण थयु. 32 . 24. A त रे. A ढमकइ. A घघर, B घुघर. B भट के वाट नट लिव तिण सरे. C बंदीजण. ___चारण वाट कि वाट नट लिव तिणि पुरे. 25. A दानिइं सन्मानिइं, B दानि सनमानि. B पानि. A बंधिइं. B वन्नरिवाला. 26 C विरचि जमा. A दिन दिन. AC वधइ. A चंगा.. 27. B निहाल. A निरूप. AB टीलू B त्रिपति. A तृपति वली. A न्हान्हाडली, B नाहडली Cवांकडली वांकडी वडी. 28. A आरोपोइ. B वनि. 29. BC कंदोरु. BC कंचण. A सिरिवछ. B रयणिमणि. A कूयर, B कुंवर. B नान्हा___ डीउ, C मान्हडीउ. A पुण्यवंतनिइं, B पुण्यवंतनी. 30. B गयु. AB गहगहतु. BC आयुधशाला. A पुहूतु, B पहुतु. AC कुतिगि. A लहकि B लहिकइ. A उलाली, B ऊलाडी. 31. A जीणइ. A ऊलाली, B पूरयउ. BC ठाण. 32. BC आयुध. B सरमी. B मोटु मरमो. A क्रमी. B करमी. A कूयर गहिगहिउ. वडा.
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________________ तिणि अवसरि धरणी धडहडइए. दह दिसि गयणंगण गडगडए; गज अध-गज जातां आषडइए, गिरिसिरि सिषर सिषर षडहडए. 33 रोसि भरी नारी तडफडए, विण त्रेवडि ऊत्रेवडि पडए; महीयलि नाद सुणी ए वड ए चंदसूर बेहु लडथडए . 34 लडथडिआ कायर चंद-दिवायर, सायर सत्तइ झलहलीया, किंनर झलफलया, सुर पलभलीया, शेषनाग सवि सलवलिया. 35 धरणीधर ढलिया, पुहविइं पलिया, तारा त्रुटवि टलवलीया; कोलाहल कलीआ दानव मलिआ, रलया मानव वलवलिआ. 36 तुंग तुरंगम सरसी घोडी, नाठी गाइ गई गोकल जोडी; खीलउ ढीलउ करी विछोडी भइंसि भडकिइं बंधन त्रोडी, 37 फुट्टइ गोली, गोरस नीका वहइ वसुधातलि धवली नीका; त्रड बड त्राटक त्रूटई सीकां, नारी वदन करइ तव फीकां. 38 करि फीकां नारि कि वदन घरबारि कि केवि असारइ अडवडए; चंपक जासूल कि बहुलां फूल कि मूलह विण वनि रडवडए. 39 भट्ट भला झूझार कि धूजई अपार कि भूपति भूमि पड्या रडवडए; वहूअर-उरि हार कि त्रूटइ तार कि थाहरि थाहरि थलहडए. 40 इसिउं देषी हरि हीअडइ डरीउ, " मझ ऊपरि को हरि अवतरीउ , राजकाजि मुझ पूंठइ फिरीउ,” हा हा हरि गाढउ गहिबरिउ. 41 33. A तीणि. AC धडहडइ. A दह द. B गयणंगणि. A गिरि शिषिरि शिपिरि षडहब्इए. 34. B तडफडइ, C तडफडइए. B त्रेवड. AB ऊत्रेवड. C पडइए. BC महीअलि. C एवडइ 6. A लडथडइए, B लडथए. 35. A लडअडीया, B लडथडया. B सत्तय, AC झलहलया. AB सुरु. AC षलभलया AB सलवलया. 36. B पहवइ. AC टलवलया. AB कलया. A निदवि मिलया. C रुलिश्रा. A वलवलया. 37. B तु रे तुरंगम. AC सरिसी. BC गल जोडी. AB षीलु. B ढीलु. AB करीय. B भटक्कइ, C भटकती. 38. A फूटइ. C गोरस सीकां. AB वहि. A धवली निका BC तड तड. A त्रुट्टई. 39. B फोका. A नारि वदन घरिबार कि, B नारि कि वदन केवि. AC अडवडइए. ___B चंपकि. A बुहूलां. A रडवडइए. 40. A भड, C भट. A रडवडइए, B रडए. A थलवडइए. 41. B इस्यूं A होयडि, B हइडइ. A कोइ. A पूठिइं.
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________________ तव बलिभद्र वचन मुषि वरणइ, " का हो कृष्ण, किसिइं तूं करणइ ? राज नामि ए आणइ अरणइ, एक नारि पाधरी न परणइ. 42 न-न परणइ नारि कि मदन अवतारि कि, नेमीसर संसार तरइ; ए विषयतणां सुष विष सम देषी निश्चई दारा दूरि करइ. 43 तिणई दुषिइं दूष्यां तरस्यां भूष्यां माततात मनि षेद धरइ; कहि कहि रे बाला कान्हा काला, तेह थिकी तूं काइ डरइ ?" 44 तव हरि नेमीसर तेडावइ, कारण जाणी जिणवर आवइ; मिलिया बंधव मालाषाडइ, बाहु तणां बल बेउ दिषाडइ. 45 दिषाडइ बाहु तणां बल, पहिलउं हरि लंबावइ हाथ; ते कमलमृणाल तणी परि ततक्षिणि वालइ त्रिभुवननाथ. 46 वलतु जिणवर-कर लाछि तणउ वर वालणि लग्गउ जाम, ते परि जंपूं किम, जोउ हरि जिम हरि हीडोलिउ ताम. 47 हरि चिंतइ, “ए इसिउ बलिउ, कां हीडइ कामिणिथिउ टलीउ ? माततात हीयडइ हरषावउं, इक पदमिणि प्राणई परणावउं. 48 परणावउं प्राणई कइ विन्नाणई," चिंतइ चित्ति उपाय, 'अंतेउर सरिसु नेमिकुमर वर मेली सवि समुदाय.' 49 हरि हरषिइं पहुतु वनि गहगहितउ झीलण रेसि रसाल; पेषी जल-पोषी, चिहुँ पखि चोषी, चउषंडी चउसाल. 50 42. A बलिभद्द. AC विरणइ. A किरणइ. B नारि ए. 43. AB अवतार. B नेमीश्वर. A विषम सम. B विष सम जाणी. 44. A तीणि. BC दुषि. A मातपिता. A दुष धरइ. A कहिश कहिश. B थकुं, ___C थिकु. BC क. C डरइ ए. 45. B नेमीश्वर. C मिलिआ. A बेहू. B देषाडइ. 46. BC देषाडइ. AB पहिलू. B कमलनाल. C ततषिणि. 47. A वालतु. C तणु. A वालिणि. A लगु, B लग्गु. C जं. A जोइ. B हिंडोल्यु. 48. BC अइसु. A कांइ हीडिइ. B कामिणिथु, C कामिणिथी. A होयडि हरषावू , B हइ. ___डइ हरषावू. B एक. BC पदमिनी. A परणावू', B परिणावू. 49. A परिणावू , B परणावू. C प्राणिइ. B काइ. विनाणइ. C चिंती, B चौंतीत्ति. A अंतेउर नेमिकुमर वर सरिसु. B सरस्यु. A समदाय. 50. A हरिषिई, C हरषि. A पुहुतु, C पुहतु. AB वन. AB गरगहतु. C जलि पेइसिं. A पक्षि. B चुषंडी. B चुसाल.
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________________ कृष्णागर कस्तूरी चूरी, केसर सार कपूरइं पूरी, चंपक चंदन वासई वासी, षडोषलीई नीर निवासी. 51 नानावासी नीर अबीर बहुलपणि बहिकइ अवनि मझारि, अभिनव अंतेउर सरसिउ देउर झीलइ देव मुरारि. 52 इम कूड कमाइ गिउ ऊजाइ, सनकारी सवि नारी, तव लछमछ गोपी लज्जा लोपी कुतिग करइ अपारि. 53 गुल गलीउ नइ साकर भेली, इणि परि अतिघणउ ठांमेली; नेमि प्रतिइं जंपइ अंतेउर, " झीलइ देव अनइ अम्ह देउर. 54 सामी, तुम्हचु वाधइ वानु, बोल प्रमाण करु जउ मानउ, एक नारि परणेवउं मानउ, नहींतरि सम देस्यूं जावानु." 55 रंगई राही राषइ साही, रूपिणि पाय पडइ ऊमाही; आलि करइ अति राणी राउली, कमलनाल भरी छांटइ चंद्राउली. 56 ताल न चूकइ सघली साथइ, पाडइ ताली हसती हाथइ, हावभाव नव नव परि करए, अमीय समी वाणी मुषि झरएं. 57 ठाकुर बोल कहइ वरवानु : " नेमि, न कीजइ नीठर वानु। ठाम नही हीवइ बल करवानु, आ अवसर कन्या वरवानु". 58 "तुनि जाणउ झाझी जेठाणी, अम्ह घरि नारि हुसिइ देराणी; पाय पडतां अति दुष आवइ, किसिउं तेणि परिणवु न भावइ. 59 कइ जाणउ परणतां सुहेली, निरवहितां पणि खरी दुहेली; नारी बिरुद अछइ ए आगइ, जं जं मनि भावइ तं मागइ. 60 51. BC केसर कपूरक पूरई पूरी. A वासिई', B वासिं. 52. AB ननवासी, C न तु वासी. A नीरइ. A बुहलपुण, C बहुलपुण. A सरिसू, B सरस्यं. 53. A जिउ, B गयु. A नारि. A अपार. 54. A गुलिउ. C जई साकर A ठामेली. B इण. BC प्रतई. B देवर 55. AC सामी तु तम्ह वाधइ. B करूं. AB जु मानु. AB परणेवू मानु. AC का तुम्ह सम देसि जावानु, 56. AB रंगिईं; रूपणि. B कमल भरी. 57. AC साथिई. A हाथिई, C हाथि. A नब नव करइए. B अमी समाणी. A अरइए. 58. AB बोल कहु ठरवानु. C हिव; करिवानु. 59. BC तुम्हे. AB जाणु. A हुाँस. A किसि, B किंस्यू. B परणेवू , C परणq. 60. B जाणु; परणेता: सोहेली; B पुणि, C पुण. BC दोहेली. A बिरद.
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________________ कु रे मागइ माणिकमोती मोटां, षोटां नहीअ लगार, वर घाट विशाला कनक प्रवालां चीर सुंहालां सार. 61 षिणि कमषा मागइ, वार न लागइ, आ ऊपन्नउं काज; 'रहु रहु प्रिय धीरा, जाचा हीरा आणी आपु आज. 62 नीम नथी इंधणनी भारी, ते आगिली तुणि परिवारी; आव्या घरि पणि चहुटइ जासिउ, घृत पाषइ लूपूं किम पासिउ ? 63 किम खासिउ लूषउ, सहू को भूषिउं, नही सालणउं सराष; घरि तेल ते नीठउं, मिरी न मीठउं, वानां जोइइ लाष. 64 तुझे हईइ न जाणउ, किंपि न आणउ, वली बहुलु तंबोल, जोईइ घर सारू रूडउ वारू कुंकुम केरु रोल.' 65 वलतूं नर जु फाडइ बांकउ, नारी वदन करइ तव वांकउं; वलं। वचन जु बोलइ 'वाली,' नारी भणइ, 'जा जा रे हाली. 66 जा जा रे हाली,' लज्जा टाली, बोलइ बांगड बोल; घर-अंगण छंडई, कंदल मंडइ, नीठर थई निटोल : 67 'हुं सदा अणूरी, एक न पूरी तइं पुहुचाडी आस;' इम ऊठइ हूंकी, 'रे रे सुषी तुझ-सिउं सिउ घरवास ?' 68 हठि चडी हिहणबा हाकइ, पापिणि पति मारेवा ताकइ; जोइ पाटलउ पडीउ पासई, नर थरहर धूजंतउ नासइ. 69 तु रे नासइ नर थरहर धूजतउ, दैव प्रति दिइ राडि; ए भरीय अणत्थिई तई मुझ मत्थिई भागी काइं कुहाडि. 70 61. A त रे; नही. 62. A ऊपर्नु, B अ ऊपन्नू. C प्रीअ. 63. B नीम. AB ते पाहिली. BC पुण. C चुहटइ. C पखिइ; लूखउं. B षास्युं. 64. B षास्यु. AB लूषू'. B सहूइ. B भूष्यू. A सालणू. B तो. A नीठयू. AB मिरीय. ___AB मीठू. 65. C हीई. B जाणु. B आणु. B बहुल. AB रूडु. 66. C वलतु. AB बाकुं. AB वांकू. A जो बोलइ 67. AB लजा. C बंगड. A परि अंगणि. C थइअ 68. B पहुचाडी . C तई पुह चई सी आस. B तुझ स्यू स्यु. 69. C हिहणाबा. AB पाटल. A धूजतु. 70. A धूजतु. B प्रतिइं. A दि. BC भरी.
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________________ नारिई नर ताजिउ गाढउ लाजिउ, मेहलइ घर घर वात; देसाउर केरुं कोइ नवेरउं, पूछइ तव संघात. 71 दूरि जमाइ जातउ जाणी, आवइ पीहर, चेडि ऊजाणीं; 'कां रे हिली हीआनी नाठी, गयउ नाह, तूं गाढी घाठी !' 72 तव सा हिइ विमासइ ऊंडउं, 'जाइ नाह नही अम्ह रूडउं; एह तणउं आणिउं घरि षाजइ, ए जं बोलइ तं सवि छाजइ.' 73 प्राणइ पति पाछउ तेडावइ, ते बापडउ वली घरि आवइ, त्याहर पछी जं नारी अणावइ, ते ते कायर वेगिई ल्यावइ. 74 पुरुष हुइ पंचानन तोलइ, वलतूं नारी वचन न बोलइ; जिम जिम कायरपणउं प्रकासइ, तिम तिम नर गाढेरउ घासइ. 75 जउ नर फिरतां देउल देषाडई, तु ते नारी न चडइ आडइ; जिम जिम नर नीसत सत छांडइ, शांणा आगलि सुंडल मांडइ." 76 जंपइ नारायणनी राणी, " निसुणउ नेमिकुमर अम्ह वाणी; उत्तम मध्यम हुइ नरनारी, जोउ राजन, रिदय विचारी. 77 कु रे जोउ नारी रिदय विचारी, उत्तम एहवी हुंति; सुषिणी प्रीय-सुषिइ, दुषिणी दुषिइ, नेहा नवि मूकंती. 78 सा अति सुकुलीणी, प्रिय गुणि प्रीणी, प्रमदा प्रेमरसाल; सोहइ शशिवयणी, वर मृगनयणी, चतुरि न चूकइ चाल. 79 दानि करी दक्षिण करि वरसइ, सीलइ सीताना गुण पुरसइ, पुण्य करइ नई पाप निवारइ, ते कुल एकोतर सु तारइ. 80 जं जं नरनई मनि ऊबीठउं, तं नारीनई न गमइ दीठउं; कुवचन किसिउं न बोलइ, बालइ धन अंगणइ सा सुंदरी माल्हइ. 81 71. A नारि. B ताजयु. लाजयु. A मेल्हइ. B नवेरु. A नवु संघात. 72. A जातु. B पीहरि. B हलो, C हल्ली, A हीयानी, B हइआनी. B नाह हवि तू. 73. B सा हइ. AB ऊडूं; रूडूं. AB तणू. B आण्यू. 74. A प्राणि. AB बापडु. C त्यार पछि. A वेगि. 75. A पुरुष पुहुवि पंचानन. AB कायरपणू. 6. BC जु. A जउ फिरतां, C जु फिरतां. A चडिइ. B छडइ. B स्याणा; सुंडर. 77. B निसुणु. B रिदयि, C हृदय. . 78. A तो र जोउ. C हृदयि. C प्रीअ सुखीइ; दुखीइ दुषिणी. B नेह. 79. C सुकलीणी. Bमां प्रीय गुणि' ए शब्दो नथी. C प्रेमि रसाल. BC ससिवयणी. B चतर. 80. B दानिई. A सीलि, C शीलिई. C शीताना; पुरिसइ; एकोत्तर. 81. B नं जं मनि भरतार. AB ऊबी. AB दीठू. B किस्यू. A अंगणि. C घर अंगणि.
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________________ उत्तम मध्यम नारि न सरषी, स्वामी, कांई न परणउ परषी ! तुझ बंधवा राज निरवाहइ, एक बहुअर सिउं नही निरवाहइ ? 82 तु रे चाहइ अंतेउर वींटिउ, देउर, किमइ न मूंकइ केडि ! प्रीछवइ रसाले वचन सुंहाले, नेमि, न कीजइ जेडि. 83 हिवइ थाउ ढीला, अति अडसीला किम न थईइ, देवः / / अम्ह सिउं संतापु ? ऊतर नापु, ए तुम्ह विरूइ टेव." 84 नेमि प्रति परणवू न भावइ, उत्तर देतां मेलि न आवइ; हा न कही, तिम ना न कहाणी, 'मानिउ मानिउ' बोलइ राणी. 85 तु रे बोलइ राणी, श्रवणि सुहाणी, वाणी अमीय समाण; ते नयरी परिसरि समुद्रविजय-घरि हरिनइं कीधउं जाण. 86 कन्या वरवा नेमि पितानूं करसिइ वचन प्रमाण, सुरकिंनर जोसिइ, रूडउं होसिइ, महीमंडलि मंडाण. 87 अथ कलश एमई मन ऊमाहि माइ सरसति सिर नामी, समयरत्न गुरुराय पाय पुण तेहना पामी, 88 पुहुवि-प्रसिधउ प्रगट प्रथम अधिकार सुणाविउ, नेमि सहित परिवार नयरि आणंदिई आविउ; 89 परिणावा उत्सक हुयां, किम पूजइ मननी रली, लावण्यसमय ते बोलसिइ जु लहिसिइ अवसर वली. 90 इति श्रीरंगरत्नाकराभिधे श्रीनेमिनाथछंदोऽधिकारे प्रथमोऽधिकारः संपूर्णः // 82. C सरिषी. A तझ बंधावचा राज न वाहइ. C राज नर्वहइ. A सुं, B स्यं 83. A तु रे वाहि. AB किम्हइ. A केड; जेड. 84. BC हिव. B किहमै. B अहमनई स्यूं संतापु. 85. B परणेवू, C परणवउ, AC ऊतर. C मानिउ. 86. A त रे AC अमीअ. C नयरह परि. A कोवू 87. A वरिवान, C वरिवानउ. A करिसि, C करिसिइ. A सुरु, रूडू. 88. A सरि; समइरत्न; पाय पुण तेहना पुण पामी. 89. A सुणाव्यु, B सुणायु. C परिवारि. B आयु. 90. BC हुआ. AB रुली. A लावण्यसमई. C बुल्लसिइ. A जो होसिइ. ___A इति श्रीरंगरत्नाकराभिघे छंदे प्रथमाधिकारः // Cइति श्रीरंगरत्नाकराभिधाने प्रथमोधिकारा / / छ / /
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________________ द्वितीय अधिकार दूहा ब्रह्मा-वंश विभासती, सती-शिरोमणि मात, सादरि सेविसु शारदा, जाणि जगि विख्यात. 1 सेवक ऊपरि करि कृपा, सामिणि, नयणि निहालि; पूरविलउ तइं पडिवज्यउं, ते प्रतिपन्नउं पालि. 2 मात, मया करि मझ भणी, आवीय अवतरि अंगि; जिम बीजु अधिकार हुं मांडउं मननइ रंगि. 3 वलतुं जंपइ सरसती, ' मई तुझ पुहुवि प्रसिध, आगइ अप्पिउ वचनरस, वली विशेषिई दीध.' 4 लद्धउ वचनरस सरस मई, सुणिज्यो जे जगि जाण; नेमिकुमर वर परणसिइं, करसिई तास वषाण. 5 हरि हरषिउ हीअडइ घणउं, हरण्या दसइ दसार; देसि-विदेसि विलंब विण जोई कुमरी सार. 6 जोइ जोइ कुमरी सार, वली न लाइं वार; जुठला नेमिकुमार, रषे पतलइ. 7 आगइ दोहिला मनाव्या, आज चितइ गोपीराज, वडइ प्रमाणि काज वंछित फलइ. 8 जोवउ जेहनई मस्तकि छत्र, मेहलीय देसनां सूत्र, . पितानइं पूछइ पुत्र रभस भरे. 9 B अने C मां छंदनु नाम नथी. 1. A शरोमणि, B सिरोमणि. B सामिणि सेवसि सारदा. 2. B सामणि, A पूरवलु', B पूरविलं. A पडिवजिउ, B पडिवज्यूं. A प्रतिपन्नू, B प्रतिपन्नू 3. Bमां आ कडी नथी. A मागू, 4. B वलतु बोलइ. C माइ. B तूं पहुवि. A अग्गिइ, B अगइ. A आपिउ, B आप्यु. A वशेषि, B विसेषइ. 5. A दिध, B दिद्ध. B ते सरस मइ. A सुणियो जे जगि तुम्हे जाण. C जुगि जाण. A कहि सिउ, B कहिy. 6. A हरिषिउ. B हइडइ हरष्यू घणू. B देसविदेस. A वण. 7. B बलोअ. BC लागइ वार. A तुठला. 8. BC गोपीनु राज. C वड प्रमाणि.. 9. AC जोउ; मेल्ही, B देसनू. AC पितान पूछइ पुत्र.
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________________ आवइ साहमा वेवाही, चतुर ते कन्या चाही, मूरष मोकल्या वाही आपुलइ घरे. 10 . जोडावाडइ जे मिलइ, तिसी नही को नारि, तिणि कारणि घरि घरि भमइ हरि द्वारिका रि मझारि. 11 उग्रसेन-घरि अंगणइ सषीअ तणइ परिवारि, रमती दीठी रंगभरि राजलि राजकुमारि. 12 रूपई करी रंभा जिसी, कइ उरवसी समान; त्रिभुवन मांहि न ऊपजइ बिहुं त्रीजउं उपमान. 13 कोमल अंगि कला घणी, रंजइ नव नव रंगि; हरि हरषइ निरषइ घणउं बइसारी उछंगि. 14 दंत जिस्या दाडिमकुली, जीह अमीनउ कंद; अवनि-वदीता जे हता जीता वयणे चंद. 15 जीता जीता वयणि चंदला, त्राठा गया गयणि नाठा, दिवज ऊगता माठा लाजि मरई. 16 जीतां जीतां नयणे हरिण, त्राठां करइ हृदइ काठां, वेगइ जु वेडि पइठां छूटा तु शर ई. 17 जीता जीता गतिइं जोउ गजपति, क्षणइ न पामइ रति, हइइ विमासी मति डूंगरे गया. 18 जीता सीहला कटिने लांके, कांइ न चालिउं रंके, आवइ दीहडे वंके दीसता रह्या. 19 10. AC आवइ इस्या साम्हां. वेवाही; कन्या वाही. B मुरषने. B अपुलइ. .. 11. B तिण. 12. A आंगणइ AB सषि. 13. AC रूपि; त्रिभुवनि. A त्रीजु. 14. C हरषइ हरषइ घणउ, AB घणू 15. B जस्या; कली. A अमीयनु, C अमीअनु. B हवा. 16. BC वयणे. B पाठां गयणंगणि नाठा. A दिवसि; लगि मरइ. 17. BC करिय हृदय. A वेगि जई. B छूटा तु सर ए. C छूटा तु नासि मरइ. 18. B गति, C गति. B हइडइ. C होइ विमासी मासी मति इंगर गया. 19. Aमां आ कडी नथी. B लंके; चाल्यू; आवे. C दीहाड़ वंके. .
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________________ 71 दूहा वेणई वासग जित्त जव जइ पइआलि पठा; जीतां रातां कमल करि जइ जल मांहि नठा. 20 हरि मृग हरि हरि कमल वसतां एकइ ठाइ, हरि जीणइं जीता कुमरि नाठा दह दिसि जाइ. 21 सोहइ सरली नासिका, अति अणीयाली अंखि; भमहि कसिण, भमरा भमइ भूली भमरी भंति. 22 कला बहुत्तरी-परिवरी हरि-मनि वसी अपारि; धन धन ते विहिहत्थडा जेणइ घडी ए नारि. 23 / उग्रसेन अवसर लही बोलइ एहवी वाणिः / " कइ प्रभु, मेलउ नातलं, कइ परिणाविसु प्राणि ? " 24 क्षण इक हरि हीयडइ हस्या, रंज्या वचनि विनाणि; मेलिइ मेलिउं नातलं, चिंतिउं चडिउं प्रमाणि. 25 चिंतिउं चडिउं प्रमाणि, महीयलि विस्तरी वाणि, प्रगटीय हरषह पाणि, आरति टली. 26 धाई धसमस गाई गोरी वली अंतेवारा सोरी, वंछित केशव ! तोरी आशा फली. 27 बइठा बइठा फूटडा जे फांदि काढी, कुंकमि केसरि गाढी, पीली तेहनी दाढी, टीलां करे. 28 B अने C मा छंदनु नाम नथी. 20. A मां आ कडी नथी. C वेणि. B वासिग मित जवा जइ, C पाया लि. B जीतां गतां कल क्रमि. C जीतां रातां कमल कमि जइ अइ जल माहे नठा. 21. A कमलि AB एक AC हरि जाणइ. B दसि. 22. A कसिणि. B भमरा भणइ. 23. AC बहुतरि. A मुनि. B सी अपार. A ते विहहत्थडा, B ते वहिहत्थडा. AC जेणि. 24. A मेलु नातलं 25 AB एक. B हइडइ,C हीअडइ. C वचन. A पछइ मेलिउ. B मेल्यू नातरूं; चीत्यू. चड! 26. B चीत्यू चडयू B महीअली. A प्रगटी. B हरिषषाणि. 27. C धन धसमस. 28. B फूटरा; केसर. AC डाढो. B पीलइ.
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________________ जोउ जोउनी नही निरोल कीजइ इ ति रंगरोल, दीजइ फूल तंबोल दक्षण करे. 29 जे जगि जोसी-ज्योतिषी ते तेड्या तत्काल; लीवू लगन विलंब विण चउमासइ चउसाल. 30 सरस रसाले वड वडी, वर पकवान कमाइ; जेवड त्रेवड त्रेवडी, किम ते वडी कहाइ. 31 माहवि मंडप मंडणी मंडावइ मंडाणि; जो ऊपरि कीधी किसी, जिसी न दीसइ वाणि. 32 चाचरि चउरी ताडीइ, चीर विछाहइ चंगा; माहवि मोटउ मंडीउ इम जगि जासक जंगा. 33 चोषी चाउरि पाथरइ मंडप मांहि विशाल; बइठउं सोहइ साजनउं, गाइण गाइ रसाल. 34 मंडइ अनुचर चाकुला, आलस अलगां छोडि; भाणां वाणां कनकमइ कचोलानी कोडि. 35 बइठी छेक विवेक धरि, उपइ पउढी पांति; धब धब धब धुंसट पडइ जिमइ अढारइ जाति. 36 नीली सूकी धुरि घणी मूकी फलहुलि फार; षारेकि षुरमां षडहडी साकर सरस अपार. 37 चडचड चार उली चतुरा प्रीसइ परघल छेक; वर वरसोलां वाटली फलहुलि वली अनेक. 38 29. B जोउ रतो नही निरल कीजइ ते रंगरोल दी इ. C जोउ रती नही निरोल कीजइ ति ___ रंगरोल दोजइ. C दक्षिण. 30. B जोतषी, C योतिषी. B ततकाल, C ततकाली. C चुमासइ. 31. B किम त्रेवडी कहाई. 32. BC माहव. A मंडपि; मंडावी मंडाणि; जिसी किसी. 33. BC चुरी. B ताडीयइ. A विछाहि, B विछाया. AB चंग. A नाहवि. B मंडीय. 34. A बइठू सहुइ साजनू. B गुण गाइ, C गाइणि गाइ. 35. A चाउर चाकुला, B अनुचर चाकला, C अनुचित चाकुला. B भाणा त्राणा. 36. B धुरि. AC पोढो. B मांति; धव धव धव. 37. B फाल. AB परमा. 3. BC चारुली. BC परिघल. B थोक. BC फलहुलि अवरि अनेक, AB जंग.
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________________ मांडी मुरकी नई हेसमी पुलकी जिमतां जीह; गुलई गुली गुलपापडी गुलपण एतइ. लीह. 39 मोटा मोदक मूंकीइ मधुरा अमृत समान; परहर पाजां चूरीयइ, बहुत परि पकवान. 40 दुबलि षंडिय बलि छडि तीरि परिई तीषालि, रांधी रांधणहारीइ सारी सोवन सालि. 41 सारी सारी सोवन सालि, सु परिसइ निहालि, आणीऊ रे वइघालि, वली मूंकइ मंडोरा मगनी दालि; नामइ घृतनी नालि, सालणां तणीअ पालि बांधइ वली. 42 जिसिई जिमतां तरस जाणी, सरस साकर. पाणी, मेल्हयां विछेदि आणी वाटलां भरियां. 43 जीरे रे करी सनाढा, वास्यां कपूर गाढा, प्रीस्या करंबा टाढा कूरना करिया. 44 दूहा नामइ घलघल घोल घण, आवइ निर्मल नीर; दीध वली सोवन सिली, कर-चोषालणि चीर. 45 ऊठ्या सजन जिमी जिसिइ दीजइ तवः तंबोला सदलां फोफल फूटडां पान प्रतेकिइ सोल. 46 दीजइ रंग लिवंग वर, वर केवडीउ काथ; टीलां टसरक काढीयां, सोहइ सज्जन-साथः 47. 39 A मरकी. BC फुरकी जिमतां. A गुलि गली. B एती. C गुलपणइ एवइ लीह. 40. B मोदिक; मूकिजइ. AC चूरीइ. B परइ. 41. B खंडी, C खंडिअ. BC तीर. C परइं. A तीषाल B रांधणहारीयाः 42. A सु परिसीनी. B वली चडइ घणों मंडोरा मुगानी दालि. C मुंकी, मुममी. 43. B जिसइ; साकार. B मेहल्या, C मेहलीआ C भरिओ. 44. BC जोरे जीरो करी. B वास्या कपूर गाढा, C कपूर कास्या गाढा प्रीस्था गाढा प्रीस्या. A कूरनां करां, C करना करिआ. B अने C मां छंदनु नाम नथी. 45. C घलेणा घोल. BC निरमल. B वर चोषालणि. 46. B दिज्जइ. A पोफल; प्रतेकिं. C षात प्रत्येकिइ सोल.. 47. B लवंग. B काढीयइ, C काढीइ. A सजन, B सजनह,
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________________ 74 चोषइ चंदनि छांटणां, केतकि करणी जाइ, करि करि दिज्जइ केवडा, करि जेवडा सुहाइ. 48 गिरूउ मरूउ महमहइ, चंपक जंप करंति, कालु वालु सिरि धरइ, दमणु बिमणु दंति. 49 श्रावण शुदि छठई दिवसि नेमिकुमर वर-सीसि षांतइ खूप भलउ भरिउ, मांडिउ चडतइ दीसि. 50 मांडिउ मांडिउ रे चडतइ दीसि, भरिउ भलेरु सीसि; मोह्या मानव तीसि धूप परइ. 51 मोटे मोटे मोतीडे जडी, षींटली सोनानी घडी, खूप तणेइ पासि चडी कुतिग करइ. 52 ते रे ऊपइ, तिसिउ नवेरु, जिसिउ धवल मेरु, फूटडा फूलडा केरु पगर भरिउ. 53 / / साचइ साचइ इसिउ असाबु, जिसी सरल कांबु, टुंकइ मयंक लांछु लीलां धरिउ. 54 - आर्या परिवार सरस हूउ, रायमइ रायपुत्ति परिणयए; नवरंग नेमिनाहो तव तुंग तुरंगमे चडए. 55 पधडी छंद तव चडिउ तुंग तुरंगि, किरि चडिउ पर्वतशृंगि; . तिणि जागवइ जगि जंगि, श्रृंगार उपइ अंगि. 56 48. AC दीजइ. B जेहवा. 49. A महिमहि. B चंप करंति. AC दिति. 50. A छठि, B छट्ठिनइ. B वर सीस. A षांति; भलु. B मांडय चडत. 51: A माडिउ माडिउ, B माडयु माडयु. A भलु र भालरु सोसि, B भरयु भलेरइ सोसि. .. A मानव नासिई. B बूंपइ. 52. B सोनानी जडी: तणे; पासइ. 53. A त रे, C तु रे. B तस्यु; जस्यु धवलह; भरयु. 54. B साचउ साचउ. B अस्यु; कांबउ. A धरउ, B धरयु. 55. AC सारस होउ. चडइए. B मां छन्दनुं नाम नथी. 56. A तवइ चडइ तुरंगि. B चडयु परवतश्रृंग. B तेणइ. BC जागतइ.
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________________ सिरि मुगट मोटउ वाहि, घण तेज दिनकर पाहि; बहिरषा सरषा बांहि, मणि जड्या जासक माहिं. 57 झलकति कुंडल कानि, ससिसूरमंडल-मानि, तिम तिलक सोवनवानि, मम मुंकि मानव मानि. 58 उर-वरि नवसर हार, तप तपइ तेजि उदार; . जे अवर वर सिंणगार, कवि कहइ न लहउं पार. 59 चालं ति यादव जान, मुषि रंगरूडउं पानि; गहगह्या गाइण गानि, वरसंति अविरल दानि. 60 . वासी सुगंधइं वाट, मारगि छाया पाट; श्रृंगारीइ सवि हाट, तप तपइ तोरण त्राट. 61 . माचंति मानव थाट, तिणि जानि कोइ न जाट; जे वचनि करि वाचाट, ते भटित बोलइ भाट, 62 कुंकण अनइ कर्णाट, जे देश मोटउ लाट; एतलइ रंगा घाट, रोपीउ जां वइराट. 63 खेलं ति खेला खंति, ते ताल नवि चूकंति; वाजिन वर वाजंति, घण ढोल ढमढमकंति. 64 सिणगारी सारी नारि, बोलंति मंगल च्यारि; जव जाइ तोरणबारि, जिन इंद्रनइं अवतारि. 65 गुषि रही राजीमती निय नयणे भरतार. जोइ जांनइं परवरिउ वार वार अनिवार. 66 57. BC मुकट. A जास. 58. B मस मूकिं. A मानइ मानि. 59. A तपइ तपइ. B तेज. A परि सिणगार; कहि. 60. A यान, C जानि. A रूअड, B रूयडूं पान. A गायन. C वरिसंति. B दान.. . A वरसी सुगंधि. B पाथरइ पाधर पाट,C पाथरइं पाधरि पाट. B शृंगारीय. BC तोरणि. 62. A नाति. B तेणइ. 63. B नइ. A मोटउ जाट, B गंगा घाट; वयराट. 65. A सिणिगारइ. तोरणि. B जिन इंद्रतणइ अणुहारि. आ कडी पछी A मां 'आया अथ हनुमंत पधडी छंद' लखेल छ: B मां तथा C मां 'आर्या' लखेल छे. 66. C निअणे. A जानि, B जानिइं. A परिवरिउ, B परिवरयू.
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________________ रूप अनोपम रंगभरि निरषिउ नेमिकुमार, / तव राजलि रूडी परि पहिरइ सवि सिणगार. 67 हनुमंत पधडी पहिरइ सिरि सिणगार सार, आरोपिउ रिदय उदार हार; झबकइ झाझी झालि गालि, मयमत्ता मयगल-जित्त चालि. 68 नेउर रमिझमि रणकंति पाय, करि चूडउ रूडउ अति सुहाइ; घण घुग्घर घाट विचित्र चीर, मृगनाभि बहिकइ बहुत अबीर. 69 कीधउ अति उद्भुत वेस जाम, क्षिणि फरकिउं दक्षिण अंग ताम; मुखि घूघूकार करइ अपार, घण अंगि अरति, रति नहीं लगार. 70 सहीयर कहइ, “देवि, म झूरि, तुझ दुषडां जाज्यो दूरि दूरि;" तव कवि कहइ, कोविद ! जोइ जोइ, कृत कर्म न छूटइ कोइ कोइ. 71 पसूअ वाडि जे पासइ भरिया, करणइ मरण तणइ भयि डरीयां; गयउ जनम पडिआ गलि गाला, चिंतइ, कंपइ, न चालइ चाला. 72 न-न चालइ चाला, पडिआ गाला, ससा सुंहाला धूजि मरइ; आहणंति मथाला, छेदई बाला, बांध्या बालां बहुत डरइ. 73 पंषी पंखाला समरइ माला, करइ पषाला पंख खिरइ; न-न फावइ फाला, हरिणा काला, नयणि घणाला नीर झरइ. 74 तव ते नेमिकुमर वरराजा आया तोरणि करीय दिवाजा; पसूय तणा पोकार सुणिल्ला, सदयपणइ धुरि सीस धुणिल्ला. 75 67. A निरिषिउ, B निरष्यु. B राजल; परइ; सयरि सिणगार. C सिरि सिणगार A अने B मां छंदनु नाम नथी. 68. B सयर सिणगार; आरोप्यु रिदयि; मइमत्ता; जित. 69. B रमझिम. C पाइ. AB चूडु. A रूड, B ख्यडू A घुघर. 70. AC कीधु. B अदभत, C उद्भट. B क्षणि, C षिणि. B फुरक्यू', C फुरकिउ 71. B सहोअर. A कहि. BC जायो दूरि. B करम.. आ कडी पछी A अने Cमां 'अथ रूपक' तेम ज B मां 'रूपक' ए शब्दो छे. 72. A वाड; कुरणइ. A भई, B भय. A डरयां. C गयु. A चिंति कपि. 73. B मव. A छदि छालां बालां बहुत केवि डरइ. C छेदि बालां. B बहुत रडइ. 74. A पंषि मरइ, B पंषि षरइ. B फालइ फाला. A नोरि. 75. B बरराजा तोरणि आव्या. C करी दिवाजा. AC पसूअ. A सुणिला, B सुणियल'. B सदइपणइ. A सोस धुरिला. B धुणियला.
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________________ है घिग पडउ इणइ परणेवइ, चिंतइ नेमि, न सरसि इमेवइ, रीव करंतां जीव वधेसिइ, प्रहिं ऊगमि परणवू करेसिइ. 76 सामलवन मनि साचलं जाणी, कूयरि तणी कृपा मनि नाणी, पसूअ-पास छूटता छोड्या, नवि छूटइ ते त्राटक त्रोड्या. 77 कु रे त्राटक त्रोड्या, पास विछोड्या, पातक मोड्यां पसूअ तणां; रही रंगि रिमाड्या, वनि पहुचाड्यां, के ऊडाड्यां गयणि घणां. 78 निरति निरधारी, वात विचारी, परणउं नारी नीम नही; सामी सामलिउ वेगई वलिउ, नेहि न कलिउ नेमि सही. 79 वालिउ पुण न वलिउ जि न जूठउ, वरिस एक दक्षिण करि वूठउ; संयम लेई गिउ गिरिनारी, तव राजलि झूरइ निरधारी. 80 जीवीनूं जीवन सामलीउ, राजलि पेषीउ पाछउ वलिउ; तिणि अवसरि जे दूषडां वीतां, पार न पामउं तेअ कहीतां. 81 कवि कहइ बोल बि-च्यारइ, तुहइ अवसरि कह्या पाषा किम होइ. अधिकइ-उछइ षोडि न लागइ, कव्यां कविश्वरि अविरल आगइ. 82 राजकुमरि राजलदे राणी, टलवलइ जिम मीन थोडइ पाणी; अडवडती ऊबरि आषडइए चेतरहित पुहुवीतलि पडइए. 83 पाषलि फिरी वल्या परिवारा, वालिउं चेत करी उपचारा; “जी जी जगजीवन साधारा," जंपइ “प्रीउ प्रीउ नेमिकुमारा." 84 76. A पडु. B एणइ. A चिंतइ नेमि न सरसि इमे.इ; B चितइ न र रिसइमेवइ. A रीठ, B रीच. A परगणूं करेसि, B परगणू करेस्यइ. 77. B सावलवन. A साचू. B पसूय. C पसूअ पास छुटइं ते छोड्या. 78. A त रे. A पासक मोड्यां. A रहि रगि, B रहि रगि. B रमाडया, C जिमाडयां A ऊडयाया. 79. A परणू. B नारी एह नहीं. A वेगिं. B वलियउ. Aनी कलिउ, Bन क्लीयउ. 80. B वाल्यु पण न वल्यु जिन जूठ. A जिन तूठउ. A वरस्य, B वरस. B दक्षण कर. ___A संजम. A गयु, B गउ. B राजल. 81. AC पेषि. AB ते पाछ उ. B तेणइ. A पामू. AB तेअ कवीता. 82. A च्यारिइ. C कहा. AB हुइ. B कवीश्वर विरलइ. 83. A राजलिदे. BC विलवइ. AC जिमतिम थोडइ. C अषडइए. B पहुवी. 84. B वाल्यूं चेत. A प्रिये प्रिये, B प्रीय प्रीय.
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________________ 7 षिणि पाटई षिणि वाटइ लोटइं, षिणि ऊबरि षिणि ऊभी ओटइ; षिणि भीतरि षिणि वली आंगणइए, प्रीय विण सूनी वलीआं गणइए. 85 करुण सरिई थानकि को रडए, जण जाणइ नारी को रडइए; जाणि ऊजाई पइठी उरडइए, प्रियविरहि राजलि उ रडइए. 86 षिणि पीजइ षिणि सूइ षोलइ, षिणि धूदइ सहीयरनइ टोलइ; क्षणि ऊठी जाइ ऊतारइं, हार दोर कंकण ऊतारइ. 87 ऊतारइ हार कि सवि सिणगार कि, सरला हार कि भार करइः तप तपतां हीर कि चीरयां चीर कि, सकल शरीरि कि सोह हरइ. 88 मणिमाणिक दूर कि कीधां चूर कि, नाख्यां दूर कि दूरि रही; कंकण फोडंति कि जड रोडंति कि तनु मोडंति कि मोहि ग्रही. 89 वालिंभवाट जोइ आंषडीए, रहइ राजलि षडकीई खडी ए; रमण-रूप आलेषइ षडीए, पूजइ फूल तणी पांषडीए. 90 रोतां अंजन ग्यां ऊषडी ए, प्रीय पाषइ भागी भूषडी ए; धरि उधन माता कूषडीए, मिल्या पाषइ मेल्ही सूषडी ए. 91 राजलि इम आणइ आषडी ए, मुखि नवि बोलइ बहुभाषडी ए; जे सिर वरि सोवन-राषडी ए, झालइ सोइ करी राषडी ए. 92 पापीअडउ बापीअडउ प्रिअड्ड संभारइ, सो वासइ निअडउ मधुर सरइ; की गाइ वली संभारइ मेहनइ मोरा, प्रिय विण प्राण हरइ गाढेरा. 93 न गमइ अंगि रतूकल फाली, राजलि नेमिविरहिं विकराली; अलगी नांषइ सोवनत्रोटी, जिम जवरोटी कागई बोटी. 94 85. B मां आ कडी नथी. C प्रीआ A गणइये. 86. A कुर सरिइ. B नारी को रडए. A पइठी रडए. B जाण्यू जई परठी उरडए प्रीय _ विहरई राजलि उ रडए. C रडए. . 87. B क्षणि; सूइ क्षिणि बोलइ. C सूइ षिणि षोलइ. B क्षणि. 88. A उतारइ तार. AB सिणिगार. C सरीर. 89. BC लाघ्यो दूर. BC फोडत; त्रोत. A मोहति. 90. BC वालभ A वाटि; अंषडीए. A रहि. B षडकीयइ. 91, A अंजनि गियां. C प्रिअ. B धरीयु; मेहली. 92. A सिरिवर सोविन; B सिरि वरि सोवन. A जाली सोहइ; B जाली सोइ. 93. A प्रोप्रोअडु बापीउडु संभारइ; B पापोयडुबापीयडो प्रीयडु संभारइ. AB नियड्डु. A मधुर सरि. B की गाइ गाइ मोरा. C की गाई की गाइ मोरा; हरइ गामोरा. 94. B राजल नेमविरह. A लहकइ नांषइ सोविनत्रोटी. A वागि, B काग्इि.
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________________ जिम जवरोटी कागई बोटी, धणचर-बोटी थई अति षोटी; लागा धन कोटी, मानइ मोटी, काजि न आवइ तिम त्रोटी, 95 गिउ गोफणु त्रुटी, वेणी विछुट्टी, झटकइ नेउर ग्यां फुट्टी; आभरण अषूटी भाज्यां कूटी, दयामणी दीसइ लूटी. 96 सहीय भणइ, “सुणि देवि, कहि अन्न करु कि ?" “अंअः अं" "ऊगटि अंगि करेवि, पंक परिहरु कि ?" "अंअः अंअः" 97 "नवउ ति नवसर हार, सा गलि धरूं कि ?" “अंअः अंअ" * "कुसमसेज सुकुमाल सोइ पत्थरूं कि ?" "अंअः अंअः" विरह-ग्रही कहइ राइमइ, “रे रहि रहि सषि ! सिउं झषइ ? 98 अणषि करइ तुझ वयणलां वाल्हा नेमीसर पषइ. 99 सुणि सुणि सहीयर आज राज मुझ न गमइ दीठउं; भोजनि कूर कपूर पूर नवि लागइ मीठउं. 100 कोमल कमल-मृणाल विरहदव-झाल न झल्लइ; प्रिय दीठउ परतखि सोइ मन मांहइ सालइ. 101 तरुणपणइ अरणइ करइ, चंद्र-चंदन नवि गमह;" कहइ “मन मोरं" रायमइ, "नेमीसर सरसिउं रमइ. 102 हूं लीजउ प्रिय-प्रेमि, प्रीय पण प्रेमि न लीजइ; हूं रीझू प्रिय पेषी, प्रिय पेषी मझ-पे षीजइ. 103 95. A कागि. AB लागी. A मानि, C मानिइं. 96. AB छूटी फूटी. A आंभरणि. C आभण. B भ्यांज्या. आ कडी पछी A अने C मां 'अथानि परिछंदांसि / अणषीय' लखेलु छे. B मां 'अथ कवित्त भाषया' लखेलु छे. 97. A कहि करूं कि अं अः Cदेवि अन्न कर कि अंः अ A ऊगट. B पंकि 98. B नवु; सार गलि. C सेजि. B सुकमाल. 99. AC विरहि; कहि. A रायमइ. B तव वयणलां; ते वाहला. 100. AB मझ. B गमय. A दीठ'. B भोजन. A कूर कूपूर. AB मीठु. 101. AC न झालइ. A दीठु. C परतरिक. A सोहइ. AC माहि. B सल्लइ. 102. A अरुणइ. B अरुणइय. C तरुण अरुण अरणइ. C चंदन चंदउ. AC कहि. B देव नेमीस्वर स्यूं रमइ. 103. AB लीजू. B प्रोय प्रेम, C प्रिअ प्रेमि. C प्रीअ पुण. B प्रिअ देषि, C प्रिअ पेषी, B प्रीय मुझ देखइ षीजइ. C प्रीअ मझ पेषी षीजइ.
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________________ 80 जइ मझ सरिषी नारि थूक जिम अलगी लांषइ; सिउं कीजइ सषि ! देषि , दुष्ट जउ दैव न साषइ ?" 104 विलवंती विरहइ भरी, बाला बोलइ गहिबरी; अणप्रीछिई अपराध विण कहि प्रीयडा ! कां परिहरी ? 105 कहइ राजलि, 'जिनराज ! राज सिइं थयुं ऊबीठउं ? रिधिरमणि सुख मेल्ही देव ! डूंगरि सिउं दीठउं ? 106 भोगवि मानव-भोग, योग जु वडपणि लीजइ, तु साचइ मन शुधि सहित पछइ तप कीजइ. 107 अटू भवंतरि नेहलु, नेमि ! न छेहु दाषियउ; / भव नवमइ तइं नाहला ! ए ऊपजतु कां राषिउ ? 108 दीजइ जोसी दोस, जोस नवि जोयउं कांइ; परगट पुहवि-प्रधान कान्ह गयउ कूड कमाइ. 109 तोरणि आविउ निठुर नाह, नाठउ दुष लाइ; सहीयर ! साचलं देषि, आज अम्ह को न सपाइ. 110 तुं हइ.तुं, हूं रायमइ, अवर पुरुष सवि परिहरूं; हत्थिई हत्थ न मेलिउ, प्रिय ! सोइ हत्थ मत्थई करु.” 111 तिणि अवसर चउपन्न दिन्न जिन दीष्या अंतरि; आसो मासि अमासि ज्ञान पामिउ पातक हरी. 112 आवइ चउसठि इंद, चंद नागेंद नरेसर; समोसरण विरचइ विशाल बइसइ परमेसर. 113 104. B मुझ सरषी; अलगू. स्यू. A जु. B सांकइ, C सांषइ. 105. A विरहि. B गहबरी; अणप्रोछइ; कांइ. C प्रीअडां तइ का परिहरी. 106. A कहि. B राजल. A ऊबेठू. B ऊभीठू A देवि. A डूंगरे स्यूं. A दीढूं. 107. B मान भोग; जोग जो वडपण. C पछइ तपछइ तप कीजइ. 108. C भवंतर. A छेह. AC दाषिउ. 109. A जोस तई जोयु कांइ. C जोयु. B कन्ह. AC गिउ. 110. A आयु, B आव्यउ. AB साचू. B कोइ न. 111. A नाह तु हइ तू हूं रायमइ; B तु हइ तु हूं रायमइ; C तु हइ तु हूं रायमइ. A हथिई हथ, B हत्थियइ हत्थ. B मेलीयउ. A सोहइ. B मत्थइ धरू. 112. B तिण. BC चुपन्न दिन. A मां जिन दीष्या अंतरि' ए शब्दो नथी. B पाम्यू. Cपातम. 113, B रचइ. B परमेस्वर, C परमेसरी,
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________________ गयणंगणि देवो मिली दुंदुहिनाद सुणाविउ; . नायक नारायण भणी द्वारिका वधावु आवीउ. 114 अप्पीय सोवन लक्ख बार साढा सुप्रसिधा, वधावानई विमल वस्त्र, भूषण घण दीधां. 115 तव हरषिउ हरिराज भाववंदण धुरि आणी, चल्लइ दसइ दसार, साथिइ राजलदे राणी. 116 इम परिवारि परवरिउ चडिउ विभु गिरिनारि गिरि; पिक्खेवि सामि समोसरणि देवि पय प्रणमइ आणंद भरि. 117 पइठी त्रिगढइ जाम ताम राजलि जिन दीठउ; * सोहइ सिर-वरि छत्र, सामि सिंहासनि बइठउ. 118 पूरी परषद बार पेषि प्रभु-पाय पषालइ; कीजइ किसिउं वखाण, इंद्र जसु चामर ढालइ ? 119 सादरि समता आदरइ, मानव मन ए कंति करि; नेमीश्वर अविरल वाणीई ए दिई उपदेस अनेक परि. 120 अथ रूपक जिनवर-वाणी सुधा समाणी, साकर पाहिं सरस वषाणी; चउ-मुहि चउ-विहि धम्म ज भासइ, दया दान पुण अधिक प्रकासइ.१२१ 114. A गयणि. A देवि, B देवे. B वधाव्यूं आवीयउं. 115. A अपिय, C अप्पिअ. AB लष. 116. A साथि, B सथि. A राजलिदे. 117. B इम परिवारइ परिवरयु चड्यु चतुर गिरनारि. C इम परिवरिई परवरिउ चडिउ चतुर गिरि. . A पिष्येविणु सामि समोसरणि दइय पइखइ आणंद पूरि. B पेषविण सामि समोसरणि देषइ प्रणमइ आणंद भरि. 118. B दीठ. A सिरि छत्र. B स्वामि सिहासण. AB बइठु. 119. B कीजे किसु. AB जस. ' 120. A समता आणि. BC कंत. B वाणीए; दीय. B मां 'अथ रूपक' ए शब्दो नथी. 121. B जिणवर. A पाई, B पाहइ. A चुमहि बइठु विह धर्मज भासइ. B चउ मुहि चउ विह धम्म विमासइ. A पुण्य, B पणि,
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________________ " जे जातु जीवडउ किवारई, मानइ मानव मुहिआं मारइ3; ते नर निश्चइ बे भव हारइ, नवि मारइ ते बेउ समारइ. 122 जीव वधी जे पोसइ पिंडह, ते नर पर-भवि पामइ दंडह; सहइ वेअण घण आय अपंडह, जाइ नरकि थाइ शतषडह. 123 थाइ शतषंड कि आय अपंड कि, वाजइ दंड कि मूंड भणी; देषो दुष रोकि कि आणी शोक कि मेल्हइ पोक कि जीव घणी. 124 धगधगती सूइ कि रोपी भुइं कि सूवा हुइ कि सेज इसी; कलकलइ शरीर कि मागइ नीर कि तपत कथीर कि पाई हसी. 125 सडसड सांडसीए सिउं त्रोडइ, हाथ पाय सिर संधि विछोडइ; घाणइ घाती पिंड कराइ, पुनरपि रूप हतूं तिम थाइ. 126 टाढि तणी जु जंपइ वातइ, अगनि माहिं ऊपाडी घातइ; थाइ तापइ सिउं जु भाषइ, तु असिपत्र तलइ ते राषइ. 127 षडषडतउं पुहुवीतलि पडतउं, तसु पानडउं नव नव परि नडतूं पंधि संधि घण अगि अडतूं, छेदी नाक जाइ रडवडतूं. 128 जिम जिम परमाधामी मारइ, परभवना मुखि पाप पचारइ, तिम तिम रंक तणी परि रगइ, पाय लागी लगलगणा लग्गइः 129 'मागू मान न मारु, वारु, दया करउ, हुं दास तुम्हारउ;' तिम तिम परमाधामी अधिकेरी नीपावइ वेदना नवेरी. 130 -- मई विषमी वेदन न षमाइ', इम जाणी ऊजाइ जाई; नरग तणउ ए परगट परतउ, गली पडइ नासी नीसरतउ. 131 122. C जीतु. A जीवडु, B जीवकु. B किह वारइ. A मानि; मुहियां; नश्चि मवि माद 123. B विड. A वेयण आय. AC नरगि, 124. AC दुख देषइ रोक कि आणी. 125. B सेज जिसी. C होइ कि सेजि इसी. A कलकइ B पाय हंसो. 126. A सांडसीए वोडइ. B सांडसीए स्य त्रोडइ. C शिर सांधि. B घाण घाती; रावा. 127. B स्यूं जु. B तु इसिपत्र वृक्षतलि राषइ C थाइ तापइ भुंजु भाषइ. 128. A षडषडतू. C षडषडतुं. AC पडतूं. B तस. A पान. C खधि; वडतुं 129, A पइ लागी. B पाय लागो न लगणा लगइ. A लगलग लगइए. 130. B म मारु वारु. C तुम्हारु. A तिम परधामी अधिकेरी. AC नीपाइ, 131. B वेदना. A तणु; परतु. AC नीसरतु.
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________________ कूटी कोइ करइ जु चूरउ, तुहइ जीव न थाइ पूरउं; झूरइ घण दष लष अणुसरतु, पाछलि कर्म न जोइ करतु." 132 जंपइ नेमि सुकोमल वाणी, " निरदयपणां तणां फल जाणी, जीवोजीव तणु वध टालउ, अहनिसि आपइं आप पखालउ. 133 दानइ जस कीरति जयकारा, दानइ लाभइ लाछि उदारा; दान तणा गुण केता कहीयइ, दानइ देव तणा पद लहीयइ. 134 देव-रयणी नीम नवेरु, कल्पवृक्ष पाहि अधिकेरु; त्रिभुवन माहिं अनोपम ओपइ, जे नर जिनवर-आण न लोपइ. 135 नवि लोपइ आण कि, जे नर जाण कि लहइ कल्याण कि कोडि गमे; पामइ संयोग कि वंछित भोग कि, रोग न सोग कि तासु तने. 136 मुषि मीठी भाष कि ललना लाष कि, नही अभराष कि वांक धने, कीरति सविलास कि घरि उल्लास कि, कीधी तास कि जगत्र-जने. 137 मदि माता मयगल माचंता, हय हेषारव करि नाचंता; जे घरि ढमढम ढोल ध्रसूकइ, दानवृक्ष करि कुंपल मूंकइ. 138 करि कुंपल मूंकइ, स दल न सूकइ, फल वाढू, कइ फार फले; जं दीसइ परता गंगलि करता प्रगट पहुनुहता पुहवितले. 139 घरि नारि नेहाला, सुत सुकमाला, मित्र मयाला, मूल नहीं; इम त्रिभुवन मांहिं सुरतरु पाहिं ए दानवृक्षफल सफल सही." 14. जिनवरवाणी श्रवणि सुहाणी राजलि राणी हियडइ आणी; मोह मयण मद मच्छर मोडी मागइ संयम बे कर जोडी. 141 132. A पूरु. BC दुष. B अणसरतउ. 133. B सकोमल. A निरदइपणां. B तणा. A टालु; अहिनिसि आपिइ; पषालु. 134. B दामि; विजहकारा. C दानिइं. A लछि, C लच्छि. AB कहीइ, लहोइ. 135. C सपइ. 136. A संयोगि. B सोक; तास. 137. Cमक्खि. AB नही सराष कि. A कीरति तस विलसंति कि करि उल्हास कि. ___B कीरति सुविसाल कि घरि उल्हास कि. 138. B मदमाता; BC जं घरि. A दानि वृक्ष. 139. B गंगल. B पनुता, C पुनेता. .140. A नेहाला सुकुमाला; मयला. B पाहि. 141. A सुवणि सुहाणी. C हीअडइ. AB मछर. A संजिम.
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________________ नेमीश्वर-कर केरइ वासई सा संयम लिइ स्वामि सगासिइ ; पेषी करम मरम उल्हासे सं पुहुती सिवपुर-वर-वासे. 142 नेमीश्वर जिनवर जइवंता देस नगरि आगरि विहरंता; देसण-वाणि सरस सोहावइ, पुण्यबीज पुहुवीतलि वावइ. 143 थिर थयिअ उद्धारह सारह, गणहर मुणिवर सहस अढारह, सहस च्यालि अति अनुपम अज्जा सोहइ सा गुणगण करि सज्जा. 144 एक लक्ख सहसा नव सट्ठी सावय समकित धारह सुठी, तिन्नि लक्ख छत्तीस सहस वली, प्रतिबोधी आवी पुहवीतलि. 145 पुहुवीतलि सामी, पूरचा कामी, वरस तिन्नि सइं कूयरपणइ; सई सत्त वरिस जिणि केवलपद पाली प्रगट प्रमोद घणइ. 146 छउमत्थ सुदिन्नह चउप्पन्नह, वरस सहस इग आय भयं; जिन शुचिं मसवाडइ, इसिअ पषवाडइ, अट्ठमि दिहाडइ परम पयं. 147 नवनवकवित्वकुसुमैर्नवनवपरिमलसमूर्छितदिगंते, इति महितो महिमनिधिः श्रीनेमिर्दुरिततरुनेमिः // 148 श्रीमत्सोमगुणव्योम सोमसौभाग्यसुन्दरः प्रज्ञावज्ञातमत्सूरिः सूरिश्री सोमसुन्दरः // 149 श्री सोमसुंदर लब्धिसायर सोमदेवमुनीश्वराः श्रीसोमजय गणधरगिरूआ सुमतिसाधु गुणेश्वराः // 150 142. AC केरे वासे. A लि. AC सामि सगासे. C उल्लासे; पुहती. 143. B जिणवर. BC जयवंता. 144. A अढारह सारह: B उदारह सारह: C अग्यारह सारह. A सहिस च्यारि. BC सहस च्याल. B अनोपम. 145. A लष, B लख. B सहस. A सावइ, B श्रावय. A तिन्नि लख, B तिन्न लक्ख. BC वलि. B आविय. C बोधी आवी पुहवीतलि. 146. B तिन्न सइ, C तिन्न संय. B कुवरपणइ, C कुंअरपणइ. AC जिण. B केवल पाली, C केवलपद पुण पाली. 147. B चउपन्नह, C चुपन्नह. A सहस गआंय भयं. B सुचि. A असीय. A आठमि चाहडइ. 148. A कुसुमै नवनव B कुसमैनवनव...... B मिहितो महिमनिधि श्री नेमिदुरिततरुनेमि. 149. A व्योमसौभाग्यसुन्दरुः / B मा आ कडी नथी. 150. A लछिसायर, C लाछिसायर. A मुनीश्वरा; श्री सोमजइ; गुरूआ; राणेश्वरा. B मा आ कडी नथी.
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________________ श्री इन्द्रनंदिसूरिंद राजप्रियसूरि सदाफला, तपगच्छमंडण सवे सहिगुरु जयु महीयलि अविचला // 151 गुणराजि-मंडित पवर पंडित समयरत्न मुनीश्वरो, तसु पाय पामी सीस नामी स्तविउ तूं नेमीश्वरो. 152 . मझ दान आपे, पाप कापे, चिंति चोषइ राषजे, तुझ पाय-सेवा नितु करेवा देव दरसण दाषिजे. 153 तिथिमान आणी तिणि प्रमाणी, संवत जाणी सुहकरो, रसवेद वामिई वरस नामिई माह मास मनोहरो. 154 शुभ योग योगिई तिथि संयोगि वार वारू दिणयरो; नव छंदबंधई किय प्रबंधई स्तविउ नेमिजिणेसरो. 155 नव निधि पामी आस सीधी, कल्पवल्ली करि चडी, वर वृधि जागी, भीडि भागी, आपदा अलगी पडी. 156 संताप त्राठा, रोग नाठा, हिवइ हइडइ तुट्ठउ, जव जगत्रि जिणवर सदा सुहकर नेमि नयणे दिहउ. 157 जां सात सायर ससि दिवायर मेरुगिरि गयणंगणं, नव कुंड ससुधा, अनइ वसुधा असुर सुर भुवणंगणं, 158 जां रहइ अविचल वर कुलाचल दूय निश्चल जां लगइ, सिरि नेमि जिणवर- चरिअ चोचूं विस्तरउ जगि तां लगइ. 159 151. A श्रीइंद्रनरेद्र. C प्रिअ, जयु तां अविचला. 152. B गुणराज. A समइरत्न. C मुनीस्वरो. B तस पाया पामी. B तव्यूं, C तविउ तुं B नेमीस्वरो. 153. B मुझ. C पाप कापे' ए शब्दो नथी. B चीत. A राषेजो, B राषये. B सेव. A देवि. BC दरिसण. 154. B आणे तेण प्रमाणे, C तिणि प्रमान आणी. A सुहुकरो, B सहकरो.. B वामइ. ____A नामि, B नामइ. C मासि. 155. A सुभ. B योगइ, C योगि. B दसमि भोगइ, C दसमि भोगिई. A छंदबंधिइं. ____B प्रबंध तवीयउ नेमिजिनेस्वरो. C किअ. A प्रबंधि. C तविउ. 156. A नवि नधि. B पामी आज स्वामी कल्पवल्ली. C पामी भाज सामी कल्पवल्ली. A भागी दसमि भोगिई आपदा. C अलगी टली. B मां बीजी लीटी नथी. 157. B हेव हइडइ तुट्ठए. C देव हिअडइ तुट्ठउ. B जव यात्र जिनवर. C जिनवर.A सुहुकर. 158. B मां आ कडी नथी. 159. B दूअ. C जां रहइ अविचल दूअ निश्चल वर कुलाचल जां लगइ. B चरीय. C चोषु'; विस्तरु.
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________________ अथ कलश समुद्रविजयकुलकमलि विमल जिणि सोह चडावी, केवललच्छी वछिछ सत्तसई वरिस लडावी, 160 अट्ट कम्मनि रजणी घणी भव-भावठि भजी, अविचल पद अवतरिउ नेमिजिण थयउ अगंजी. 161 अषय सौख्य आपइ उचित, जस तुल्लइ देव न कोइ अवर, लावण्यसमय मुनिवर भणइ, जय जगत्र-जीव कल्याणकर. 162 इति श्रीनेमिनाथ छंद संपूर्णः / / B कलस 160. B कुलिकमल; जिण; केवललीछी पछि. A वरिस चडावी. C मां बीजी लीटी नथी. 161. C अष्ट कर्मनि; भाविठि भांजी. A अविचलि पदि. B अवतरु'. A नेमि अगि जय. B नेम जिण. 162. A अखइ. B सौष्य. B तोलइ. C जसु तुलइ. B मुणिवर. A जगत्रि. B कल्याणकरः B संपूर्णम् // A इति नेमिनाथप्रबंधे रंगरत्नाकराभिधे द्वीतीयो प्रबंधः // खेला रंगवर्धमलक्षितं // शुभं ___ भवतु // छ // श्री // छ / C इति श्री नेमिनाथप्रबंधे रंगरत्नाकराभिधे द्वितीयोधिकारः संपूर्णः //
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________________ म. अ.क्रि. प्रेरक आ. शब्दकोश शब्द पछीना अंक अनुक्रमे अधिकार अने कडीना अंक सूचवे छे. संक्षेपसूचि नीचे मुजब छे. अव्यय प्राकृत भकर्मक क्रियापद अप. अपभ्रंश ब, व. बहुवचन अर्वा. गुज. अर्वाचीन गुजराती बी. पु. बीजो पुरुष आज्ञार्थ भवि. भविष्यकाळ उभ. भ. उभयान्वयी अव्यय भू. कृ. भूतकृदंत एकवचन मध्य. गुज. मध्यकालीन गुजराती वर्त. वर्तमानकाळ क्रि. वि. क्रियाविशेषण वर्त. कृ. वर्तमानकृदंत छ. वि. छठ्ठी विभकि विशेषण त्री. पु. त्रीजो पुरुष सकर्मक क्रियापद त्रीजी विभकि सर्व. सर्वनाम .. संस्कृत मपुं. नपुंसकलिंग सं. भू. कृ. संबंधक भूतकृदंत नामयोगी अव्यय सा. वि. सातमी विभक्ति पहेलो पुरुष ब्रीलिंग पुंल्लिग हेत्वर्थक दंत वि. म.कि. की स्त्री: . अषय (2-162) वि अक्षय अफ़्टी (2-96) श्री. अकोटी, काननु एक बाभूषण भर्मनी (2-162) वि. गांज्यो न जाय तेवो. मछह (1-15, 1-60) म. कि. वर्त. त्री. 1. 9. क. छे. पालि अच्छति > प्रा. अप. मच्छइ परथी. डॉ. टनर सं. माक्षेति परथी सूचवे छे. मज्जा (2-144) स्त्री. आर्या, सन्नारीओ, सावीओ. मन (2-108) वि. भाठ. सं. अष्ट - अट्ठमि (2-147) स्त्री. आठम. सं. अष्ट अडवडए (1-39 अ. कि. वर्त. त्री. पु. ए. व. अबवडे, लडथडियां खाय, आखडी पडे. अडसीला (1-84) वि. भाडा शीलवाळा. अढारह (2-144) वि. अढार अणषि (2-99) स्त्री. अणगमो. सं. अन्+अधि अणत्थिई (1-70) पुं. अमर्थथी. सं. अनर्थ अणप्रीछिई (२-१०५)वि. भणप्रीती, प्रिछया ओळख्या वगर अणावड (1-74) वर्त. त्री. पु. ए. व. प्रे, आणावे, मंगावे.
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________________ / अणूरी (1-68) स्त्री. दासी, पत्नी. सं. अनुचरी अनिवार (2-66) क्रि. वि. निवार्या विना, सतत अनिवारा (1-17) क्रि. वि. निवार्या विना, सतत अनुचर (2-35) पुं. नोकरो अप्पीय (2-115) भू. कृ. आपी. . अबीर (2-69) पुं. अबील अभराष (2-137) पुं. अभरखो, असंतोष अम्ह (1-54, 1-59, 1-77) सर्व. अमारा, अमारी अरणइ (1-42, 2-102) स्त्री. शोक, उद्वेग. ___ सं. अरति परथो. अरति (2-70) स्त्री. शोक. सं. आति अलगी (2-94, 2-104) वि अळगी, जुदी, __ दूर. सं. अलग्न अलवई (1-12) क्रि. वि. सहजताथी, सहज रोते. अलव + श्री. वि. ए. व. नो प्रत्यय इं असाबु (2-54) पुं. असबाब, शोभा असारद (1-39) क्रि. वि. सार-अर्थ विना, निरर्थक, नकामो असिपत्र (2-127) नपुं. जैन धर्मनी मान्यता अनुसार नर्कमा आवेलं, तरवार जेवां पांदडांवालु, एक वृक्ष के एनुं पांदडु. पापीओने शिक्षा करवा एनो उपयोग थाय छे. अहनिसि (1--22, 2-133) क्रि. वि. रात दिवस. सं. अहर्निश परथी अंः (2-97, 2-98, 2-99) अ. ऊहुं, ना. (हंअ = हा) अंतेउर (1-49, 1-52, 1-54) नपुं. राणीवास, राणीओ. सं. अंतःपुर > प्रा. अंतेउर अंतेवारा (2-27) नपुं. अंतःपुर मां) आ आउध (1-32) नपुं. शस्त्रो. सं. आयुध आउधशालां (1-30) स्त्री. आयुध-शस्त्र शाळामां. आं सा. वि. ए. व. नो प्रत्यय आषडइए (1-33) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. आखडे छे, मांहोमांहे अथडाय छे, लथडियां खाय छे. आषडी (2-92) स्त्री. बाधा आगइ (1-60, 2-4, 2-8, 2-82) क्रि. वि. अगाउ, पहेला. सं. अप्र> प्रा. अग्ग > मध्य. गुज. आग + सा. वि. ए. व. नो प्रत्यय इ आगरि (2-143) नपुं. गृहोमां. सं. आगारं आगलि (1-76) नाम. अ. आगळ. सं. अग्र > प्रा. अग्ग + इल्ल आडइ (1-76) वि. आडे (मागें) आडउं (1-15) वि. आडु आण (2-135, 2-136) स्त्री. आज्ञा . : आणइ (1 42, 2-92) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. आणे, लावे आणी (1-5) सं. भू. कृ. लावीने. सं. आ नीय>प्रा. आणीअ > अप. आणि परथी आणंदइ (1-5) पुं.त्रो. वि. ए. व. आनंदधी आपुलई (2-10) सर्व. पोताना. सं. आत्मीय> प्रा. अप्पुल्ल>आपुल + सा. वि. ए. व. नो प्रत्यय इ आय (2-123, 2-124, 2-147) नपुं. आयुष्य. सं. आयु आरति (2-26) स्त्री. शोक के दुःखनी __ लागणो. सं. आतिनो अर्वाचीन तद्भव आलि (1-56) स्त्री. मिथ्या वातचीत, बकवाद आवडली (1-27) स्त्री. गोळ भ्रमण. सं... आवर्त -
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________________ आहणंति (2-73) वर्त. त्री. पु. ए. व. मारे छे. आंगणइए (2-85) नपुं. आंगणामां. उपी (1-28) अ.क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. ओपे छे, शोभे छे. उबीठउं (2-106) वि. अणगमतु. सं. उद् + विष्ट, हिन्दी उबीठना उरडइए (2-86) पुं. ओरडामां उरवसी (2-13) स्त्री. उर्वशी, ए नामनी अप्सरा उली (2-38) स्त्री. ओळमां, हारमां. - सरया इक (1-13, 1-48) वि. एक इग (2-147) वि. एक इणि (1-26) वि. आ, ए. सं. एतेन > प्रा. एएण परथी इणि (1-54) वि. एणी. सं. एतेन परथी इणह (2-76) वि. आ. इम (1-8, 1-53, 2-33, 2-92) क्रि.वि. एम, आम, आ प्रमाणे. सं. एवम् > अप. एम-एy परयो इमेवइ (2-76) क्रि. वि. आ ज रीते. सं. एवमेव इसिउ (1-48, 2-54) वि. आवो इसिड (1-41) वि. आ. सं. ईदृशक > प्रा. ईरिसिअ, इसिअ ई (2-29) वि. ए, आ इंद (2-113) पुं. इन्द्र इंदा (1-22) पुं. इन्द्र इंधण (1-63) नपुं. बाळवांना लाकडां.. सं. इन्धन ऊगटि (2-97) पुं. सुगन्धी पदार्थोनो लेप ऊजाई (1-53, 2-86, 2-131) सं. भू. कृ. दोडीने. सं. उत् + या परथी ऊजाणी (1-72) सं. भू. कृ. कूदीकूदीने. सं. उत् + या ऊतारइ (2-87, 2-88) वर्त. त्री. पु. ए.व. ___ उतारे छे, अळगां करे छे. ऊतारई (2-87) पुं. (जानना) उतारे ऊत्रेवडि (1-34) स्त्री. उतरेड, एक पर एक मूकेलां वासण के माटलांनी हार. प्रा. उत्तिरिविडि ऊपइ (2-53,2-53) जुओ उपह ऊपन्न (1-62) भू. कृ. उत्पन्न थयु. सं. उत्पन्न ऊपरि (1-16) नाम. अ. उपर. सं. उपरि > अप. उप्पिरि ऊबीठउं (1-81) जुओ उबीठउं ऊभारा (1-18) पुं. ऊभरा (लागणीना). सं. उभारः ऊमाहि (1-88), ऊमाही (1-56) पुं. होशथो, उत्साहथी. सं. उष्मायित > प्रा. उम्हाइअ उ (2-86) सर्व. ओ, ए उअरि (1-20) नपुं. उदरे. सं. उदर उछह (2-82) वि. ओछे, थोडांथी. प्रा. __ ओच्छ अ उछंगि (2-14) पं. खोळामां. सं. उत्संग > प्रा. उच्छंग > उछंग+ सा.वि. ए. व.नो प्रत्यय इ उद्भुत (2-70) वि. अद्भुत उधन (2-91) नपुं. ओधान, गर्भधारण उपह (2-36) वर्त. त्री. पु. ए. व. ओपे छे, शोमे छे एतइ (2-39) वि. एटलाथी एतलइ (2-63) वि. एटला, एटले ओ ओटइ (2-85) पं. ओटला पर ओपड (2-135) जुओ उपइ
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________________ का (1-49, 1-60, 2-13, 2-24) उभ. ___ अ. के. सं. किम् कचोला (2-35) पुं. कचोळां, प्यालां कडली 1-27) स्त्री. हाथना कांडानु एक आभूषण. सं. कटक + अप. इल्ल प्रत्यय कडि (1-29) स्त्री. केडमां. सं कटि कमषा (1-62) पुं. स्त्रीओन छाती ढांकनालं वस्त्र, कांचळी के कापडं कमाइ (2-31) वर्त. त्री. पु. ए. व. प्रे. (तैयार) कराय. सं. कर्म परथी / कमाई (2-109) सं. भू. कृ. करीने.. __सं. कर्म परथी कम्मनि (2-161) नपुं. कर्मनी करणइ (1-42) अ. क्रि. बी. पु. आ. रडे छे करणइ (2-72) वर्त. त्री. पु. ए. व. आक्रंद करे छे करणी (2-48) स्त्री. करेण करि (1-4) पुं. हाथमां. कर + सा. वि. ए. व. नो प्रत्यय इ करि (2-20) पुं. हाथ वडे करि (1-25) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. करे करि (2-48) स्त्री. हाथीनी ढूंढ करिवा (1-7) हे. कृ. करवा. सं. कृ करेवि (2-97) सं. भू कृ. करीने कर्मी (1-32) वि. (मोटा) कर्म करनारो करंबा (2-44) पुं. दहीमिश्रित भात, पेंश. सं. करंभक > अप. करबउ कलकलइ (2-125) वर्त. त्री. पु. ए. व. कळकळे, कळतर के दुखावो अनुभवे कलश (1-87,2-159) पुं. समाप्तिनी कडीओ कलिआ (1-36) 1. वि डूबेला. सं. कलति (कबजो ले छे) 2. वि. कळी-- जाणी जनारा. सं. कलिता > प्रा. कलिआ कलिउ (2-79) भू कृ. जाण्यो, ओळख्यो कवियण (1-8) पुं. कविजन कवियणजण (1-2) पुं. कविजनोनो समूह. सं. कविगण-जन कसिण (2-22) वि. काळी. सं. कृष्ण कहि (1-44) अ. क्रि. आ. बी. पु. ए. व. कहे. सं. कथ् कहिसिउं (1-9) भवि. (वर्त.ना अर्थमां) प. पु. ब. व. कहीशुं कहीइ (1-11) कह धातुनुं कर्मणिरूप. कहीए. सं. कथ्यते >प्रा. कहिज्जइ > अप. कहीयइ द्वारा कहीतां (2-81) वर्त. कर्मणि कृ. कहेता कंति (1-4, 2-120) स्त्री. कान्ति, प्रकाश कंती (1-3) स्त्री. कान्तिथी. कंति + त्री. वि. ए. व. नो प्रत्यय इ कंदल (1-67) नपुं. आक्रन्द, रुदन कंदोरउ (1-29) पुं. एक आभूषण. सं. कनक + दोरः > प्रा. कणय + दोर काठां (2-15) वि. मजबूत काथ (2-40) पुं. काथो कान्ह (2-109) पु. कृष्ण कान्हा (1-44) पु. कृष्ण काला (1-44) वि. अणसमजु; काळा रंगना कालु (2-49) वि. कालो, काळो कां (1-42) क्रि. वि. केम. सं. कस्मात् परथी कांबु (2-54) स्त्री. कांब, छडी. सं. कम्बिका कि (1-24) उभ. अ. के, अथवा. सं किम् > अप. किं द्वारा विकास किअ (1-20) नाम. अ. करी, थी. सं. कृत किमइ (1-83). क्रि. वि. केमे, केमे करीने किरि (2-56) अ. आणे, खरेखर. सं. किल किवारइं (2-122) क्रि. वि. केटलीये वार. सं. किं वारम्
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________________ किसिई (1-42) सर्व. शी (प्रश्नवाचक), केडि (1-83) स्त्री. केडो, पकडेलो मार्ग, शाथी. सं. कीशिका > अप. कर जिद, हठ सिअ > मध्य. गुज. कइसो, किसि + ई केतकि (2-48) स्त्री. केतकी, केवडो किसीउं (1-59) वि. वेबुं ये पणः केता (2-134) वि. केटला सं. कीदृशकम् > प्रा. केरिस > केवललच्छी (2-160) स्त्रो. केवलज्ञान अप. केरिसरं रूपी लक्ष्मी. किसी (2-32) वि. कोना जेवी, केवी केवि (1-17) वि. केटला क. सं. केजी > सं. कीदृशकम् प्रा. केवि > मध्य. गुज. केइ पण किंनर (1-35) पुं. एक जातिविशेष—देव- . केवि (1-39) सर्व. केटलीक कल्प योनि कोटी (2-95) वि. करोडनी संख्या. 'लागी' किंपि (1-65) वि. कई पण. सं. किम् अपि पाठ लईए तो 'धन'नो 'धन्य' अने कीजइ (2-119) कर्मणिरूप. कोजे, करीए 'कोटी'नो 'डोकमां' अर्थ थाय कु (1-61, 1-78) सर्व. कोई, कोईक. कोडि (1-30) पु. कोडथो, आनन्दपूर्वक सं. कोऽपि > अप. कोवि, कोइ कोडि (2-35,2-136) वि. करोडनी संख्या. कुतगि (1-30) नपुं. आश्चर्यथी. सं. कौतुक सं. कोटि कुतिग (1-53, 2-52) नपु. आश्चर्यकारक कृत (2-71) वि. करेलु ____ हावभाव, आश्चर्य कृष्णागर (1-51) नपुं. एक जात, काळा कुलाचल (2-159) पुं. ए नामनो पौराणिक रंगनुं सुगन्धी लाकडं पर्वत कुहाडि (1-70) स्त्री. कुहाडी. 'भागी कुहाडि' (रूढिप्रयोग) = लाकडां चीरीने षडकीई (2-90) स्त्री. सा. वि. खडकीमां, कुहाडी भांगी गई, अतिशय दुःख दरवाजे वर्षाव्यां षडहडए (1-33) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. कुंकण, कर्णाट, लाट, वाराट (2-63) पु. देशना नाम धातुरूप कूषडीए (2-91) स्त्री. कूखमां, उदरे. षडहडी (2-37) वि. खखडती सं. कुक्षि षड़ी (2-90) वि. ऊभी रहेलो कूड (2-109) नपु'. कपट. सं. कूट षडीए (2-90) स्त्री. त्री. वि. खडी (धोळी कूडकमाइ (1-53) वि. कपट करनारो. माटी) वडे सं. कूटमांथी कूड अने सं. कर्म परथी ___षडोषलीई (1-51) स्त्री. क्रीडा माटेनी कमाई नानी वावमां. प्रा. खुड्डाखुड्डिया कूर (2-100) पु. रांधेला चोखा. सं. कूर खंति (1-24) स्त्री. खंत, होश. सं. क्षान्ति कूरना (2-44) पु. भातना, रांधेला चोखाना > प्रा. अप. खति कुंअर (1-26) पु. कुंवर. सं. कुमार > प्रा. पंधि (2-128) स्त्री. खांध, खभो. सं. स्कंध 'कुमरो > अप. कुमरु, कुवँरु / षाजां (2-40) नपु. एक पकवान कूयरपणइ (2-146) नपु. कुंवारापणे, षारई (2-85) स्त्री. खाट के खाटला उपर कुमारावस्थामां षाणि (2-26) स्त्री. खाण
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________________ षिणि (1-62, 2-85, 2-86, 2-87) स्त्री. क्षणमा खिरइ (2-74) वर्त. त्री. पु. ए. व. खरे छे स्त्रीलउ (1-37) पु. खोलो. सं. कीलकः / षींटली (2-52) स्त्री. कपाळ पर पहेरवानुं एक आभूषण पुरमां (2-37) स्त्री. रोटला . खूप (2-50) पु. माथा उपरनो पुष्पनो एक शणगार. दे. खुंपा षोडि (2-82) स्त्री. खामी, ऊणप षोलइ (2-87) पु. सा. वि. खोळामां गहगहितउ (1-50) वि. आनन्द पामतो गहिबरिउ (1-41) भू. कृ. गभरायो गहिबरी (2-105) सं. भू. कृ. गभराईने गंगलि (2-139) पु. आनन्द गाइ (1-37) स्त्री. गाय गाइ (2-93) वर्त. त्री. पु ए. व. गाय छे गाला (2-72) पु. गाळा, बन्धन गिउ (1-30, 1-53, 2-80) भू. कृ. गयो. . सं. गतः गिरूउ (2-49) वि. गरवो, गौरवशाळी गुणगण (2-144) पु. गुणोनो समूह गुल (1-54) पु. गोळ (खावानो) गुलई (2-39) पु. गोळथी गुली (2-39) वि. गळी . गुषि (2-66) पु. गोखमां. सं. गवाक्ष > प्रा. अप. गउक्ख गेहि (1-32) नपु. गेहे, घरे. सं. गेहं गोकल (1-37) नपु. गायनुं कुळ, वाछरडां. सं. गोकुल गोफणु (2-96) स्त्री. गोफणो, अंबोडे लट काववानुं स्त्रोओन घरेणु. सं. गुंफन > प्रा. गुंफण गज (1-33) 1. पुं. हाथो 2. नपुं. बे फूट अंतर गडगडए (1-33) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. गडगडे. ध्वन्यात्मक धातुरूप गढ (1-16) पुं. किल्ला, ऊंची दीवाल गणइए (2-85) वर्त. त्री. पु. ए. व. गणे छे गणहर (2-144) पुं. गणधर गमाया (1-2) भू. कृ. प्रे. गुमाव्या. अरबी गूम गमे (2-136) स्त्री. दिशाए, बाजुए, उपाये गय (1-18) पुं. हाथी. सं. गज गयणगण (1-33) नपु. गगन- आंगणुं गयणंगणं (2-158) नपु. गगनना आंगणामां गयणगणि (2-114) नपु. गगनरूपी आंग. णामां गयणि (1-31, 2-16, 2-78) नपु'. आकाशमां. सं. गगन गयदूषण (1-26) वि. जेमनां दूषण गयेलां छे तेवा, दोष विनाना गलि (2-72) नपुं. गळामां गली (2-131) सं. भू. कृ. ओगळी, ढीला घण (2-64, 2-69, 2-123) वि. घणा घणाला (2-74) वि. घणा, पुष्कळ घाट (1-61, 2-69) पु. घाटडी, भातीगळ साळु घाट (2-63) पु. रस्ता, सीमाडा घाठी (1-72) भू. कृ. नुकसान पामो. सं. घृष्ट गलीउ (1-54) वि. गळ्यो गहगहतउ (1-30) वर्त. कृ. आनन्दथी भरेलो घाणइ (2-126) पु. घाणामां घातइ (2-127) वर्त. त्री. पु. ए. व. घाले छे, नाखे छे. घाती (2-126) सं. भू. कृ. घालीने घासइ (1-75) वर्त. त्री. पु. ए. व. घसाय छे. सं. घृष्
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________________ घुग्घर (2-69) स्त्री. घूघरो. सं. घुर्घरी > प्रा. घुग्घरी घूमइ (1-10) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. घूमे, भमे घोल (2-45) नपुं. दहीन घोळवू चाउरि (2-34) स्त्री. चादर, जाजम चाकुला (2-35) पुं. चाकळा चाचरि (2-33) पुं. चोकमां. सं. चत्वर > प्रा. चच्चर > मध्य. गुज. चाचर + सा. वि. ए. व. नो प्रत्यय इ चाट (1-24) पुं. खुशामत करनार. सं. चाटु चाला (2-72) 1. पुं. चाळा 2. स्त्री. चाल, गति चाहइ (1-11) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. चउषंडी (1-50) वि. चोखंडी, चार खंडवाळी. सं. चतुर्खण्ड चउपन्नह (2-147) वि. चोपन. नेमिनाथनी केवलज्ञान पाम्या पहेलांनी अव स्थानुं वर्णन आ कडोमां छे. चउमासइ (2-30) नपुं. चोमासामां. सं. चातुर्मास >प्रा. चाउम्मास, चउमास चउ-मुहि (2-121) वि. चार मुखवाळो. सं. चतुर्मुख चउरी (2-33) स्त्री. चारी. सं. चत्वरिका परथी. प्रा. दे. चउरिया, चउरी चउ-विहि (2-121) वि. चार विधिवाळो -प्रकारनो. सं. चतुर्विध चउसठि (2-113) वि. चोसठ चउसाल (1-50, 2-30) 1. वि. विशाळ 2. चार परसाळ वच्चेनो भाग; सा. वि. नो प्रत्यय अध्याहार. सं. चतुःशाला > प्रा. चउस्साल चडचड (2-38) क्रि. वि. चडसथी, वाद करती, झडपथी चरबोटउ (1-15) पुं. एक प्राकृत छंद. प्रा. चरपट चरिअ (2-159) नपुं. चरित्र चली (1-31) सं. भू. कृ. चलित थईने चहुटइ (1-63) नपुं. चौटे, बजारमां. सं. चतुर् + वर्मा > प्रा. चउवट्ट चंगा (2-33) वि. सुन्दर, सं. चंग चंद (2-113) पुं. चंद्र चंदसर (1-34) पुं. चन्द्र अने सूर्य चंद्राउली (1-56) स्त्री. 1. चन्दणी, चन्द- रवा,२. चन्द्रनी हारमाळा(जेवी राणीओ) सं. चन्द्र + आवलि चाहइ (1-83) वर्त. त्री. पु. ए. व. जुए छे चाही (2-10) भू. कृ. जोई चिहुं (1-15, 1- 50. वि. चार. सं. चतुर परथी प्रा. चउ माथी चु द्वारा चुहु, चिहु चिंतइ (1-49) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. विचारे छे चिंति (2-153) नपुं. चित्त चिंतिउं (2-25) वि. चिंतेलु, विचारेलु चीर (1-61, 2--88) नपुं. उत्तम के रेशमी वस्त्र चूडउ (2-69), पुं. चूडो, चूडलो चूर (२-८९),चूरउ(२-१३२) पु. चूरो, भूको चूरी (1-51) स्त्री. भूकी सं. चूर / चरीय (2-40) वर्त. त्री. पु. ए. व. कर्मणिरूप, चूरो-भूको करीए, चूरो कराय. चेडि (1-72) स्त्री. दासीओ. सं. चेटी (मूळ अर्थ 'छोकरो') > प्रा. चेडी चेत (2-83) नपुं. भान. सं. चेतन चोषालणि (2-45) नपुं. चोख्खा करनार साधनमां चोषी (1-9, 1-50) वि. चोखी. सं. चोक्ष च्यारइ (2-82) वि. चार. सं. चत्वारि च्यारि (2-65) जुओ च्यारह च्यालि (2-144) वि. चालीस
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________________ छइल (1-17) वि. छेल, रसिकजनो. सं. छवि (शोभा) उपरथी प्रा. छविल्ल परथी अर्थ विकसीने छउमत्थ (2-147) वि. छद्मस्थ, केवलज्ञान प्राप्त कर्या पहेलांनी अवस्था छंदई (1-5) पुं. छंद वडे छाजइ (1-73) वर्त. त्री. पु. ए. व. शोभे छे, छाजे छे. प्रा. छज्ज् छांडइ (1-67, 1-76) वर्त. त्री. पु. ए. व. छोडी दे, तजे. सं. छर्दयति > प्रा. छड्डेइ, छट्टइ, छंडइ छेहु (2-108) पुं. छेह, दगो छोडि (2-35) वर्त. त्री. पु. ए. व. छोडे छे, तजे छे जइ (1-5) उभ. अ. जो. सं. यदि जइ-लच्छी (1-18) स्त्री. विजयरूपी लक्ष्मी प्राप्त करावनार. सं. जय + लक्ष्मी जई (2-20) सं. भू. कृ. जईने जउ (1-11, 1-76, 2-104) उभ. अ. जो. सं. यतः > प्रा. जओ > अप. जउ > मध्य. गु. जु, जो पण. जगत्र (2-137, 2-162) नपुं. जगत. सं. जगत् (र नो प्रक्षेप) जड (2-89) स्त्री. सांधा जण (2-86) नपुं. जन, लोको जव (1-14) उभ. अ. जो. सं. यतः जवरोटी (2-94, 2-95) स्त्री. जवनी रोटली जस (2-134) पुं. यश, कीर्ति जस (2-162) सर्व. जेनी. सं. यस्य > प्रा. जस्स > अप. जस्सु, जसु जसु (1-6. 2-119) सर्व. जुओ जस जंगा (1-26, 2-33) पुं. जंग, महोत्सव जंगि (2-56) पुं. मोटो उत्सव, जंग जं जं (1-60) वि. जे जे. सं. यद् जंप (2-49) पुं. शांति जंपड (1-54, 1-77, 2-4, 2-84, / 2-127, 2-133) अ. कि वर्त. त्री. पु. ए. व. कहे छे. सं. जल्यू जाइ (1-73, 2-65) वर्त. त्री. पु. ए. व. जाय छे. सं. याति जाइ (2-48) स्त्री. जाई, जाईनां फूल. सं. जाति जागवइ (2-56) वर्त. त्री. पु. ए. व. प्रे. जगाडाय, उत्पन्न कराय जाचा (1-62) 1. वि. जाच्या, मागेला. सं. याच . 2. जातवाळा-ऊंची जातना. सं. जात्य > प्रा. जच्चा जाज्यो (2-71) आ. बी. पु. ब. व. जजो जाट (2-62) पुं. चोरलुटारु / जातु (2-122) वर्त. कृ. जन्मतो जान (2-60) स्त्री. वरराजाने परणाववा जती सवारी जाम (1-47, 2-70, 2-118) उभ. अ. ज्यां, ज्यारे. सं. यावत् > प्रा. अप. जाम जासक (2-33, 2-57) वि. मनगमतो, सुन्दर जासूल (1-39) नपुं. जासूदनां फूल जा (2-63) उभ अ. ज्यां जु (1-9, 1-66) उभ. अ. जुओ जउ . जुठला (2-5) वि. जूठा जूठउ (2-80) वि. जूठो 'जिणि (1-10, 1-31, 2-146) सर्व. जेणे, जेनाथी. सं. येन > प्रा. अप जेण उपरणी जिण + त्री. वि. ए. व. नो प्रत्यय इ जित्त (2-20) वि. जितायेला जिन (2-80) पुं. जिनेन्द्र नेमिनाथ
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________________ झीलइ (1-52) अ. क्रि. बर्त. त्री. पु. ए. व. नहाय छे झीलइ (1-54) आ. बी पु. ए. व. नीलो, स्नान करो झीलण (1-50) नपुं. स्नान, नहावण. प्रा. झिल्ल झूझार (1-40) पुं. योद्धाओ. सं. युद्धकार जिम (1-47, 1-75, 2-83, 2-94) क्रि. वि. जेम. अप. जैव जिमइ (2-36) वर्त. त्री. पु. ए. व. जमे छे जिमी (2-46) सं. भू. कृ. जमीने जिसिह (2-16) सर्व. जेवा जिसिउ (2-53) वि. जेवो जिसी (2-13, 2-32, 2-54) वि. ना जेवी, जेने योग्य. सं. यादृशकम् जिस्या (2-15) वि. जेवा जीणई (2-11) सर्व. जेणे. सं. येन > प्रा. जेण जीरे (2-44) नपुं. जीराथी जीवडउ (2-122) पं. जीव जीवी+ (2-81) नपुं. 'जीवित'र्नु जीह (2-15, 2-39) स्त्री. जीभ. सं. जिहवा जेडि (1-83) स्त्री. विलंब जेणइ (2-33) वि. जुओ जिणिी जो (1-14) उभ. अ. जुओ जउ जोह (2-71) आ. बी. पु. 5. व. जो जोइसिइं (1-12) अ क्रि. भवि. त्री. पु. ब. व, जोशे, निहाळशे जोउ (1-47, 1-78, 2-18, 2-29) ___ आ. बी. पु. ए. व. जुओ. सं. द्योतयत> प्रा. जोअउ >अप. जोउ > मध्य. गुज. जु पण जोडावाडा (2-11) वि. सरखेसरखी, जोडी जोडी (1-37) नाम. अ. जोडे, साथे टलवलीया (1-36) भू. कृ. टळवळ्या. ध्वन्यात्मक रूप टलीउ (1-48) भू. कृ. टळ्यो टील (1-27) नपुं. कपाळ परर्नु आभूषण के सुशोभन टुकड (2-54) स्त्री. (पर्वती) ट्रॅक उपर टोलइ (2-87) नपुं. टोळामां, समूहमा पण ठाइ (2-21) पुं. स्थळे. ठाय, ठाम, ठाह ठाणि (1-31) नपुं. स्थळे, ठेकाणे. सं. स्थान ठांमेली (1-54) वि. ठरेली, घडायेली, पाकी. सं. स्थामवान् ढलिया (1-36) भू. कृ. ढळी पडया, मीचे पडी गया. प्रा. दे. ढल्ल (नीचे पडवू) ढीलउ (1-37) वि. ढीलो. सं. शिथिलकः परथी. प्रा. ढिल्ल झषा (2-99) आ. बी. पु. ए. व. निरर्थक के नाखी देवान बोले छे झल्लइ (2-101) वर्त. त्री. पु. ए. व. झीले, सहन करी शके झल्लरी (1-23) स्त्री. झालर, झांझ. सं. झल्लरी झालह (2-92) स्त्री. (विरहनी) ज्वाळाथी झालि (2-68) स्त्री. कान, एक घरेणु तई (1-1, 1-7, 1-68, 1-70, 2-2, 2-108) सर्व. तें, ताराधी. सं. त्वया > प्रा. तइ > अप. तई तप (2-59, 2-61) पुं. सूर्य / तपइ (2-59, 2-61) वर्त. त्री. पु. ए.व. तपे, झळके छे, प्रकाशे छे. सं. तप् तप तपतां (2-88) वर्त. कृ. प्रकाशता तरिवा (1-5) हे. कृ. तरवा. सं. तु
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________________ तसु (1-19, 2-128, 2-152) सर्व. तेनी, तेनु, तेमना. सं. तस्य > प्रा. तस्स > अप. तस्सु, तमु तंबोल (1-65, 2-29) नपुं. खावानुं नागर- वेलनु पान. सं. तांबूल ताकद (1-69) वर्त. त्री. पु. ए. व. ताके छे. सं. तर्कयति ताजिउ (1-71) भू. कृ. तज्यो. सं. त्यज् ताडीइ (2-33) वर्त. त्री. पु. ए. व. चमके छे. सं. तडित् (वीजळी); प्रा. तडक्क, तडक्कार (चमकारो) ताम (1-47, 2-118) उभ. अ. त्यारे, / त्यां. सं. तावत् > प्रा. अप. ताम ताम (2-70) क्रि. वि. त्यारे. सं. तावत् तास (2-5) सर्व. तेना. जुओ तसु तासु (1-20, 2-136) सर्व. तेना, तेनो. जुओ 'तसु' तिणि (1-33, 2-11, 2-56, 2-62, 2-112) वि. ते, तेणे, तेनाथी. सं. तेन > प्रा. तेण परथी तिणि (1-17) वि. ते. जुओ ‘तिणि' तिन्नि (2-145, 2-146) वि. प्रण तिम (1-75) क्रि. वि. तेम. प्रा. तेव तिविल (1-23) नपुं. तबलां. अरबी तब्लह तुट्ठउ (2-157) आ. बी. पु. ए. व. संतोष थाओ. सं. तुष्ट तुणि (1-63) क्रि. वि. झडपथी. सं. तूर्ण तुम्हचु (1-55) सर्व. तमारो. चु छ. वि. ए. व. नो अनुग, सं. त्य उपरथी तुल्लइ (1-6) स्त्री. तुलनामां, सरखामणीमां. सं. तौल्यके > प्रा. अप. तुल्लइ > मध्य. गुज. तोलइ पण तुरंगम (1-37) पुं. घोडा, अश्व तुरंगमे (2-55) पुं. घोडा उपर तुहइ (2-82, 2-132) उभ. अ. तो पण, सं. ततः > प्रा. तओ > अप. तउ + हइ (हि) निश्चयवाचक तुहिम (1-59) सर्व. तमे तूठी (1-6, 1-9) भं. कृ. प्रसन्न थई. सं. तुष्ट > प्रा. तुट्ठ परथी तूर (1-23) स्त्री. भूगळ जेवू मुखवाद्य. सं. तूर्य तेणि (1-24) वि. ते, तेणे. सं. तेन > प्रा. तेण तेणि (1-59) सर्व. तेणे, तेनाथी तोरी (2-27) सर्व. तारी त्राट (2-61) पुं. दोरडां, दोरा त्राटक (1-38, 2-77, 2-78) नपुं. दोरडां, बंधन त्राठा (2-16, 2-157) भू. कृ. हेरान ___थया, त्रास पाम्या. सं. त्रस्त पाठां (2-17) जुओ 'त्राठा' / प्राडी (1-31) सं. भू. कृ. त्राड-मोटो अवाज करीने त्रुटवि (1-36) सं. भू. कृ. तूटी जईने. सं. त्रुटित्वा त्रेडर्ड (1-15) वि. तेडु, वाकुं. सं. तिर्यक वडि (1-34) स्त्री. त्रेबडे, ताकातथी, आधारे रोटी (2-94, 2-95) स्त्री. काननु एक आभूषण के तब्ल तिसिउ (2-53) वि. तेवो ति-सी (2-11) सर्व. तेना जेवी. सं. तादृश > प्रा. तारिस तीषालि (2-41) वि. तीक्ष्ण, 'शालिग्नुं विशेषण तीसि (2-51) सर्व. त्री. वि. एनाथी तु (1-5, 1-9, 1-21, 1-24, 1-76) उभ. अ. तो. सं. ततः > प्रा. तओ > अप. तउ तुझ (1-1, 1-2, 1-5, 1-6, 1-82, 2-4, 2-99) सर्व. तारा, तारी, तारां, तमारा. अप. तुझु
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________________ प्रोडी (1-37) सं. भू. कृ. तोडीने. सं. त्रुट थाइ (2-116) वर्त. त्री. पु. ए. व. थाय छे थाट (2-62) पुं. समूह, समुदाय, ठठ थानकि (2-86) नपुं. स्थानके, स्थाने थाहरि (1-40) 1. नपुं. स्थाने 2. क्रि. वि. थरथर थिउ (1-48) अनुग. थी. सं. स्थित >प्रा. थिअ थिकी (1-1, 1-44) अनुग. थी, थकी. प्रा. थक्क मांथी थिकउ परथी दुबलि षंडिय (2-41) वि. दूबळी स्त्रीए खांडेला, जेथी भांगी नहीं जतां आखा रहेला दुरमति (1-1) स्त्री. दुर्बुद्धि. सं. दुर्मति दसमन (1-10) पं. फारसी. दुश्मन, शत्र दुहेली (1-60) वि. दोह्यली, दुःखकारक. सं. दुःख > प्रा. दूह + इल्ल दुंदुहि (2-114) पुं. दुन्दुभि, मोटुं नगाएं दूमइ (1-10) अ. कि. वर्त. त्री. पु. ए. व. दुमे, दुःख दे देउर (1-52, 1-83) पुं. दियर. सं. देवर देउल (1-76) नपुं. देवळ, देरासर. सं. देवकुल देसण (2-143) स्त्री. देसना, आदेश, उप देश देसाउर (1-71) पुं. अन्य देश. सं. देश + __ अवर दोहिला (2-8) क्रि. वि. मुसीबतथी . दूय (2-159) नपुं. दुम, वृक्ष, (अहीं) कल्पवृक्ष दक्षण (2-29) वि. जमणा. सं. दक्षिण दष (2-132) नपुं. दुःख दमणु (2-49) पुं. डमरो (सुगन्धी छोड) सं. दमनक > प्रा. दमण दलणि (1-18) नपुं. दळवामां, नाश कर- वामां. दलण + सा वि. ए. व.नो प्रत्यय इ. सं. दलनं दसार (2-6) पुं. समुद्रविजय वगेरे दश यादव राजाओ, दह (1-33, 2-21) वि. दश दंडह (2-123) पुं. शिक्षा दंति (2-49) वर्त. कृ. प्रकाशे छे दाषिजे (2-153) आ. बी, पु. ए. व. . दाखजे, दाखवजे दाषियउ (2-108) भू. कृ. प्रे. बतान्यो, देखायो दारा (1-43) स्त्री. पत्नी, स्त्री. सं. दाराः दियरो (2-155) पुं. सूर्य. सं. दिनकर दिवाजा (2-75) पुं. प्रकाश, शोभा / दिवायर (1-35) पुं. सूर्य. सं. दिवाकर दिहाडइ (2-147) पुं. दहाडे, दिवसे दीष्या (2-112) भू. कृ. देखाया दीसता (2-19) वर्त. कृ. देखाता दीहडे (2-19) पुं. दिवसोमां. सं. दिवसक >प्रा. दिअहड परथी दीहड + सा. वि. ए. व. नो प्रत्यय ए घडहडइए (1-33) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. धडधडे छे. ध्वन्यात्मक धातुरूप धणचर (2-95) पुं. पशु, धणमा फरमार घणु (1-31) स्त्री, धनुष. सं. धनुष् धन (1-20, 1-81, 2-23) वि. धन्य धरणीधर (1-36) पुं. पृथ्वीने धारण करनारा, पर्वतो धरिउ (2-91) भू. कृ. धर्यो, धारण कर्यो धवलहरे (1-25) नपुं. महेलमां, प्रासादमां. __ सं. धवलगृह धारह (2-145) वि. धारण करनार धुणिल्ला (2-75) भू. कृ. धुणाव्यु. इल्ल भू.नो प्रत्यय धुरि (2-37, 2-75, 2-116) क्रि. वि. आगळ, अग्र भागे. सं. धुर धुंसट (2-36) क्रि. वि. उतावळथी, उत्साहथी,
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________________ न (कांइ न) (1-82) अ. भारवाचक-न.. सं. नु नट्ठा (2-20) भू. कृ. नासी गया नफेरी (1-23) स्त्री. शरणाईना आकारनु मुखवाद्य नयरिइं (1-17) नपुं. नगरमां. सं. नगर > प्रा. अप. नयर नयरी (1-86) स्त्री. नगरी नरवर-विंदा (1-22) पुं. श्रेष्ठ राजाओ. वर + नरविंदा. सं. नर + इन्द्र > नरइंदो > नरविदो नरिंद (1-21) पुं. राजा. सं. नरेन्द्र नरेसर (2-113) पुं. नरेश्वर नवमइ (2-108) वि. नवमे, नवमामां नवि (1-78) क्रि. वि. नहि नवेरउं (1-71) वि. नवु, नबु आवेलं. सं. . नवतर नवेरु (2-53) वि. नवलो. सं. नवतर नवेरु (2-135) 1. वि. नवो. 2. न + / ___वेरु = अवेरनो, अहिंसानो नवेरी (1-23, 2-130) वि. नवी नवी, - नवी नवी रीते नंदेवी (1-1) 1. सामान्य कृ. दूर करवी 2. सं. भू. कृ. निंदा करीने नागेंद (2-113) पु. नागेन्द्र नाठा (2-16, 2-21) भू. कृ. नासी गया नाठी (1-72) वि. नष्ट थयेली. से. नष्ट नाठी (1-37) भू. कृ. नासी गई. सं. नष्ट >प्रा. नट्ठ > अप. नट्ठ नाणी (2-77) भ. . न आणी, न लावी. सं. न + आनौता नातरूं (2-24, 2-25) नपुं. ज्ञातिसम्बन्ध, विवाह के लग्नसम्बन्ध. सं. ज्ञाति नानावासी (1-52) वि. विविध प्रकारनी सुगन्धी भरेली नान्हडली (1-27) वि. नानी. सं. "लक्ष्ण. नापु (1-84) आ. बी. पु. ए. व. न आपो नामिइं (2-154) नपुं. नामे, नामर्नु, नाह(१-७२) पुं. पति. सं. नाथ निअउउ (2-93) वि. नजीकनो. सं. निकट निटोल (1-67) 1. वि. पुष्कळ सं. निस्तुल्य. 2. क्रि वि. नक्की निठुर (2-110) वि. निष्ठुर नितु (1-8, 1-17) क्रि. वि. हमेशां. सं. नित्य निरती (2-79) वि. स्पष्ट, निश्चित, बोल्या विना. सं. निरुक्ति > प्रा. णिरुत्ति निरवहितां (1-60) वर्त. कृ. निभावता. सं. निर्वह परथी निरवाहह (1-82) वर्त. त्री. पु. ए. व. निर्वहे-निभावे छे निरोल (2-29) पुं. निराळापणुं, जुदाई निवासी (1-14) भू. कृ. प्रे. वसावी निवासी (1-51) भू. कृ. राखी नी (2-29) अ. (भारवाचक) ने. सं. नु नीका (1-38) 1. स्त्री. धार, नीक. सं. नीका. 2. वि. चोख्खा, श्रेष्ठ नीठउं (1-64) भू. कृ. नीठयुं, खूटी गयु नीठर (1-58, 1-67) वि. निष्ठुर नीम (1-63, 2-79) क्रि. वि. नक्की. सं. नियम परथी नीम (1-135) पुं. नियम, व्रतनियम नीपावइ (2-130) वर्त. त्री. पु. ए. प. प्रे. उत्पन्न करे छे. सं. निष्पादयति नीसत (1-76) वि. निःसत्त्व, ताकात विनानो नीसाण (1-23) नपुं. सवारी के वरघोडा वखते मोखरे वगाडवामां आवतां नगारां के ढोल. सं. निःस्वान > प्रा. निस्साण > अप. निस्साणु (अवाज) परथी नेउर (2-69) नपुं. झांझर. सं. नुपूर
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________________ नेहा (1-78) पुं. स्नेह नेहाला (2-140) वि. स्नेहयुक्त पइआलि (2-20) नपुं. पाताळमां. सं. पाताल > प्रा. पायाल, पयाल पइठां (2-17) भू. कृ. पेठां, प्रवेश्यां. सं. प्रविष्ट > प्रा. अप. पइट्ठ पइठी (2-86, 2-118) भू. कृ. पेठी, प्रवेशी पउढी (2-36) वि. मोटी. सं. प्रौढ पषइ (2-99) नाम. अ. विना पषवाडइ (2-147) नपुं. पखवाडियामां. सं. पक्ष > प्रा. पक्ख पखालउ (2-133) आ. बी. पु. ए. व. पखाळो, धुओ. सं. प्रक्षालू पषाला (2-74) वि. पांखवाळा पषि (1-50) स्त्री. बाजुए. सं. पक्ष > प्रा. पक्ख> मध्य. गुज. पख + सा. वि. ए. व. नो प्रत्यय इ पगर (2-53) पुं. समूह, ढगलो. सं. प्रकरः पचारह (2-129) वर्त. त्री. पु. ए. व. * महेणुं मारे छे. अप. पच्चार पडिवज्यउं (2-2) भू. कृ. सिद्ध कयु. सं. प्रति-पद् . पणि (1-60) उभ. अ. परन्तु. सं. पुनः > अप. पुणु.मांथी पतलह (2-7) वर्त. त्री. पु. ए. व. पीगळे, ढीला पडे. सं. पत् परथी / पत्थरूं (2-98) प. पु. ए. व. पाथरूं. सं. प्रस्तर पदे (1-15) नपुं. (लोकना) पद बडे पय (1-22) पुं. पग. सं. पद पयं (2-147) नपुं. पद परइ (2-51) नाम. अ. पर, उपर परषइं (1-11) अ. कि. वर्त. त्री. पु. ए. __व. पारखे. सं. परि + ईक्ष् परघल (2-38) वि. पुष्कळ ..परणेवर (2-76) नपुं. परणवामां. सं. परि + नय परतउ (2-131) पुं. परचो, परिचय परतखि (2-101) अ. प्रत्यक्ष, आंख सामे परता (2-139) नाम. अ. सामे. सं. प्रति परमाधामी (2-129, 2-130) स्त्री. जैन धर्म अनुसार, पापीओने शिक्षा करनार देवयोनि. सं. परम + अधार्मिक परषद (2-119) स्त्री. परिषद परि (1-3, 1-4, 1-7, 1-26, 1-46, 1-54, 2-40,2-67, 2-120) नाम. अ. पेरे, प्रकारे. सं. प्रकार परिई (2-41) नाम. अ. प्रकारे, जेम परिघल (1-17) जुओ परघल ... परिसह (2-42) वर्त. त्री. पु. ए. व. पीरसे परिसरि (1-86) पुं. सा. वि. राजमार्ग उपर परे (1-22) पुं. प्रकारे पलिया (1-36) भू. कृ. पळ्या, गया पवर (1-4, 2-152) वि. उत्तम, श्रेष्ठ. सं. प्रवर पहुता (1-13) भू. कृ. पहोंच्या. अप. पहुस पहुतु (1-50) जुओ पहुता पहुनुहता (1-139) वि. पनोता, पुण्यशाळी पंचानन (1-75) पुं. सिंह पाइं (2-125) वर्त. त्री. पु. ए. व. पाय छे पाषा (1-63, 2-82) नाम. अ. विना. सं. पक्षे > प्रा. पक्खे > अप. पक्खि > मध्य. गुज. पाखि पण पालि (2-84) नाम. अ. पासे, आसपास. सं. पार्श्वे . पाटलउ (1-69) पुं. पाटलो. सं. पट्ट + अप. उल्ल पातक (2-78) नपुं. पार . पाधरी (1-42) क्रि. वि. सीधी, सीधी रीते, प्रा. दे. पद्धर (वि. सींधु)
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________________ 100 पूंठइ (1-41) स्त्री. पूंठे, पाछळ. सं. पृष्ठ पे (2-103) नाम. अ. उपर पेषी (1-50) सं. भू. कृ. जोईने. सं. प्रेक्ष्य > प्रा. पेक्खिअ पेषीउ (2-81) भू. कृ. पेख्यो, जोयो. सं. प्र + ईक्ष पोषिसु (1-9) भवि. प. पु. ए. व. सत्कार करोश. सं. प्रोक्ष पोषी (1-50) वि. छोटेली. सं. प्रोक्षित पोलि (1-16) स्त्री. (पोळना) दरवाजा. सं. प्रतोली > प्रा. पओली > अप. पोलि. मारवाडीमा 'प्रोल' दरवाजाना अर्थमां जाणीतो छे. अर्थविकासथी 'दरवाजावाळा निवासो'ने 'पोळ' कहे पाय (1-88) पुं. पाद, पग पायक (1-18) पुं. पगे चालनारा सैनिको, पायदळ पारषि (1-11) पुं. पारखनार. सं. परीक्षक पास (2-77, 2-78) पु. पाश, बन्धन, __ दोरडां पासइ (2-72) नाम. अ. पासे. सं. पावें पाहि (2-135), पाहिं (2-57,2-121, __ 2-140) नाम. अ. नी पासे, ना ___ करतां. सं. पावें पांति (2-36) स्त्री. पंगत, जमनारांनी हार. सं. पंकि पिक्खे वि (2-117) विध्यर्थकृदंत सं. भू. कृ. ना अर्थमां. पेखोने, जोईने. सं. प्रेक्ष्य परथी * पिंडह (2-123) पुं. शरीर, देह. 'ह' पादपूरक छे. पीहर (1-72) नपुं. पियर. सं. पितृगृहम् > प्रा. पिमहरं > अप. पिअहरु पुण (1-10, 1-13, 1-88) उभ. अ. पण, परन्तु. सं. पुनः > अप. पुणु पूण (2-121) नपुं. पुण्य पुरसइ (1-80) भवि. त्री. पु. ए. व. पूरशे, पूर्ण करशे पुलकी (2-39) भु. कृ. आनन्द पामी पुहुवाडी (1-68) सं. भू. कृ. पहोंचाडी, पूरी करी पुहतउ-(१-३०) भू. कृ. पहोंच्यो पुहवि (1-7, 1-19, 1-89, 2-109, 2-139, 2-146) स्त्री. पृथ्वी पुहवी (2-145) जुओ 'पुहवि' पुहविइं (1-36) स्त्री. पृथ्वीमां, पृथ्वी उपर पुहुवि (1-89, 2-4) जुओ 'पुहवि' पुहुवी (2-83, 2-128, 2-146) स्त्री. जुओ 'पुहवि' पूरविलउं (2-2) वि. पहेलांनु. प्रा. पुग्विल्ल पूरी (2-119) वि. संपूर्ण पोसइ (2- 123) वर्त. त्री. पु. ए. व. पोषे छे प्रतिपन्न (2-2) भू. कृ. प्रतिज्ञा करेलु. - सं. प्रतिपन्न प्रतेकिइ (2-46) वि. प्रत्येके, दरेकने प्रमाणि (2-25, 2-26) नपुं. प्रमाणे, सत्ये प्रस्ताव (1-15) पुं. प्रयत्न, प्रारम्भ प्रहि (2-76) पुं. पोह, प्रभात प्राणइं (1-48, 1-49) क्रि. वि. पराणे, मांड मांड, आग्रह करीने. सं. प्राणैः प्राणा (1-74) जुओ 'प्राणइं प्राणि (2-24) जुओ 'प्राणई' प्रीछवइ (2-83) आ. बी. पु. ए. व. समजाव प्रीणी (1-79) वि. प्रसन्न. सं. प्रीण प्रीसइ (2-38) वर्त. त्री. पु. ए. व. पीरसे छे. फलहुलि (2-37, 2-38) स्त्री. फळफूलो फाडइ (1-66) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. फाडे, फाटे फार (2-37, 2-139) वि. अतिशय, घणी. सं. स्फार फाला (2-74) स्त्री. फाळ
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________________ 101 फाली (2-94) स्त्री. साडी फांदि (2-28) स्त्री. फांद, ऊपसेलु पेट फूटडा (2-28, 2-53) वि. सुन्दर फोफल (1-25, 2-46) नपुं. सोपारी. सं. पूगफल > प्रा. पोप्फल बोटी (2-94, 2-95) भू. कृ. बोटेली, एठी करेली बोलह (1-8) जुओ 'घुल्लइ' / बइठउं (2-34) वि. बेठेलु बलि छडि (2-41) वि. बळवान स्त्रीए छडेला, जेथी ऊजळा थयेला बहिकह (1-52) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. . ए. व. बहेके छे, महेके छे बहिरषा (2-57) पुं. हाथना कांडां उपर पहेरवानां आभूषण बहुत्तरि (2-33) वि. बोतेर, 72 बहुमान (1-5) पु. अति माननी लागणी, गौरव बहुलपणि (1-52) कि. वि. अधिकताथी, __घणी. बहु + ल + पण + इ . बहुलां (1-39) वि. घणां. बहु + स्वार्थिक प्रत्यय लां बापडउ (1-74) वि. बापडो, गरीबडो. . (देश्य शब्द) बापीअडउ (2-93) पुं. बपैयो पक्षी बालह (1-81) वर्त. त्री. पु. ए. व. बाळे छे बाला (2-73) वि. बाळेला, दुःखी बांकउ (1-66) वि. 1. वांको 2. पराक्रमी के सुन्दर. सं. वक्र परथी . बांगड (1-67) वि. तोछडा, निर्लज्ज बि (2-82) वि. बे. सं. द्वि बिमणु (2-49) वि. बमणो. सं. द्विगुण >प्रा. बिउण, बिवण, बिमण बिहुँ (2-13) वि. बीजं. सं. द्वि+खलु बुधिइं (1-9) स्त्री. बुद्धि वडे. सं. बुद्धि बुल्लइ (1-6) अ. कि. वर्त त्री. पु. ए. व. बोले छे. सं. ब्र धातुना शक्य विकासमां प्रा. बोल्ल मळे छे ते परथी बेहु (1-34) वि. बंने. सं. द्वि + खलु भइंसि (1-37) स्त्री. भेस. सं. महिषी भगतिइं (1-8) स्त्री. भक्तिथी, भक्तिभावे भटित (2-62) वि. उत्साहप्रेरक. सं. मंद / (उत्साह आपवो, वादविवाद करवो) भणइ (2-97) वर्त. त्री. पु. ए. व. कहे छे. सं. भण भत्तिई (1-22) स्त्री. भकिथी. सं. भक्ति भमहि (2-22) स्त्री. आंखनी भम्मर. सं. - 5 > प्रा. भमुह, भमह, भुमह भमाडी (1-31) भू. कृ. घुमावी, चारे बाजु फेरवी. सं. भ्रम् भय (2-147) भू. कृ. वीत्यु. थयु. सं. भूत, व्रज भयो, भयुं भलेरा (1-9) वि. भला, कल्याणकर, मंगळ. सं. भद्र > प्रा. भल्ल परथी भल + सं. तर > प्रा. अर > यर > > इर > एरु नुं ब. व. एरा भवियण (1-8) पुं. मोक्षने योग्य जीव. सं. भव्य जन भंजी (2-161) भू. कृ. भांगी. सं. भजू भागी (2-91) भू. कृ. जती रही. सं. भग्न >प्रा. भग्ग परथी अर्थ विकसीने भाणां (2-35) नपुं. जमवानां वासण थाळीवाटका. सं. भाण्ड भावठि (2-161) स्त्री. भावठ, मुसीबत भाववंदण (2-116) पुं. वास्तविक वंदन भुइं (2-125) स्त्री. जमीन उपर भूषडी (2-91) स्त्री. भूख. सं. बुभुक्षा > प्रा. भुक्खा > अप. भुक्ख > मध्य गुज. भूष + डी स्वार्थिक प्रत्यय भूगल (1-23) स्त्री. मूंगळ, एक प्रकारन मुखवाद्य
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________________ 102 भेरी (1 23) स्त्री. मेर, एक प्रकारचें मुख- वाद्य. सं. मेरी भेली (1-54) भू. कृ. मेळी, भेगो करी भंति (2-22) स्त्री. भ्रान्तिथी. म (2-71) क्रि. वि. मा, नहि. सं. मा / मई (2-4, 2-5) सर्व. में. सं. मया > प्रा. मइ > अप. मइ, मई मछछर (2-141) पुं. मत्सर मझ (1-41, 2-3, 2-103, 2-104) सर्व. मुज, मारा मझारि (1-52, 2-11) नाम. अ. मध्ये, मां, मझार. सं. मध्यागार > प्रा. मज्झार > मध्य. गु. मझार + सा. वि. ए. व. नो प्रत्यय इ मझारे (1-33) जुओ 'मझारिए मढ (1-16) पुं. धर्मस्थान, निवास. सं. मठः / मत्थई (2-111) नपुं, माथे. सं. मस्तक मत्थिई (1-70) जुओ ‘मत्थई' मथाला (2-73) पुं. माथां मम (2-58) स्त्री. माम, गर्व मयगल (2-138) पुं. मद झरता हाथी. सं. मदकल मयगल-जित्त (2-68) वि, हाथणीने जीती लेती. मयण (2-141) पुं. मदन, काम मयमत्ता (2-68) वि. मदथी मत्त मयंक (2-54) पु. चन्द्र सं. मृगाङ्क मया (2-3) स्त्री. कृपा. सं. माया मयाला (2-140) वि, मायाळा, प्रेमाळ मरूउ (2-49) पुं. मरवो (सुगंधी छोड) सं. मरुव(ब)कः > अप. मरुअउ मर्मी (1-32) वि. मर्मनो जाणनार . मलिआ (1-36) भू. कृ. मल्या, एकठा __ थया. सं. मिलित > प्रा. अप. मिलिअ मसवाडइ (2-147) पुं. मसवाडे, महिनामां. सं. मास परथी महमहइ (2-49) वर्त. त्री. पु. ए. व. मघमघे छे, महे के छे. महीयली (1-34) म. पृथ्वी उपर. सं. महीतल मंडइ (1-22) अ. कि. वर्त. त्री. पु. ए. व. मांडे छे, आरंभे छे, रचे छे. प्रा. दे. मंड मंडइ (2-35) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए, व. मांडे छे, मूके छे, पाथरे छे मंडणो (2-32) स्त्री. शोभा. सं. मण्ड् (शोभाववू) मंडाण (1-87) नपुं. शोभा, रचना, आरंभ मंडाणि (2-32) जुओ ‘मंडाण' मंडावइ (2-32) वर्त. त्री. पु. ए. व. प्रे. करावे छे. प्रा. दे. मंड (शरू करवु, सामे मूकवू) मंडीउ (2-33) भू. कृ. मांडयो, आरभ्यो, माचंता (2-138) वर्त. कृ. आनंद करता माचंति (2-62) वर्त. कृ. आनंद करतो. माठा (2-16) वि. खराब माया (1-2) स्त्री. भ्रान्ति, संसारनी जंजाळ (पछीथी अर्थ विकसीने 'प्रेम, ममता') माया (1-2) स्त्री. माता मालाषाडइ (1-55) पुं. मल्लोना अखाडा मां, व्यायामशाळामां. स. मल्ल + अक्षवाट > अक्खाड माल्हइ (1-81) वर्त, त्री. पु. ए व. महाले छे, आनंद करे छे. प्रा. दे. मल्ह माहवि (2-32, 2-33) पुं. कृष्णे, माधवे. स. माधव मांडउ (1-12) अ. क्रि. वर्त. प. पु. ए. व. आरंभ प्रा. दे. मंड (शरू करव) मांडिउ (2-50) भू कृ. मांड्यो, मूक्यो मांडी (2-39) स्त्री. पूरणपोळी जेवी रोटली मिरी (1-64) नपुं. मरी तीखां. स. मरीच > प्रा. मिरिअ मिलिया (1-45) जुओ 'मलिआ'
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________________ 10 // मीठंड (1-64) नपुं. मीठं / रभस (2-9) पुं. वेग, उत्साह. स. रभस् मुझ (1-5, 1-8) सर्व. मारी, मने. अप. रयण (2-135) नपुं. रत्न मुज्झु रयणमणि (1-29) पुं. रत्नमणि बडे मुझ (2-100) सर्व. मारु, मने रयणायरि (1-14) पुं. समुद्रे दरिये. सं. मुरकी (2-39) स्त्री. एक जातनुं पकवान रत्नाकर मुहिआं (2-122) कि. वि. निरर्थक. सं. रलया (1-36) 1. वि. रवडता, भटकता. मुधा परथो 2. भू. कृ. रवडया, रखड्या. प्रा. दें. मूलह (1-39) नपुं. मूळना. मूल + छ. . > प्रा. स्स > अप. स्सु, सु) मेल उ (2-24) आ. बी. पु. ए. व. मेलो, मेळवी, गोठवो. सं. मिल मेलि (1-85) पु. मेळ. सं. मिल परथी मेलिइ (2-25) क्रि.वि. मेळपूर्वक, मेळ जोईने मेलिउ (2-111) भू. कृ. मेल्यो, मूक्यो. प्रा. दे. मेल्ह मेलिउं:२-२५) भू. कृ. मेल्यु, मूक्यु मेली (1-49) सं. भू. कृ. मेलीने, मोकलीने मेहनइ (2-93) पुं. मेघने मेहलह (1-71) स. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए व. मूके छे, फेलावे छे. प्रा. मेल्ह मेल्ही (1-2) सं. भू. कृ. मेलीने, मूकीने, तजी दईने. प्रा. मेल्ह मेल्ही (2-91) भू. कृ. तजी दीधी मोडति (2 89) वर्त. कृ, मचकोडती मोडी (2-141) सं. भू. कृ. दूर करीने मोरा (2-93) पुं. मोर. सं. मयूर मृगनाभि (2-69) स्त्री. कस्तूरी रसवेद (2-154) पुं. रस अने वेद. रस छ अने वेद चार छे. = 46 रंगरोल (2-29) पुं. रंगमा रोळावानी क्रिया रंभ (1-19) स्त्री. रंभा, ए नामनी अप्सरा राउलि (1-30) नपुं. राजमंदिरे. स. राज. कुल परथी राउल + सा. वि. ए. . व. नो प्रत्यय इ राउली (1-56) स्त्री. राजकुटुंबनो स्त्रीओं राषइ (1-56) वर्त. त्री. पु. ए. व. राखे, __ सं. रक्ष परथी राषडी (2-92) स्त्री. माथा उपरमा भागमां वाळमां भराववानुं आभूषण सं. रक्षा राषडी (करो) (2-92) स्त्री. राख, भस्म. सं. रक्षा परथी राषिउ (2-108) भू. कृ. राख्यो, अटकाव्यो राडि (1-70) स्त्री. मोटो अवाज, फरियाद रायपुत्ति (2-55) स्त्री. राजकुंवरी. सं. राजपुत्री राही (1-56) स्त्री. राधिका रि (२-११)केवळ० अ० पादपूरक 'रे' रीव (2-76) स्त्री. चीस, अवाज रूडां (1-12) वि. सारां, उच्च. सं. रूप. ककम् > अप. रूअडउं> मध्य. गुज. रूडउं ढूंकातां रूडूंनुं ब. व. रेसि (1-50) अनुग. माटे. अप. रेसि, रेसिं रोल (1-65) पुं. प्रवाही मिश्रण. प्रा. दे. रुल परथी युगतिई (1-8) स्त्री. युक्तिथी. स. युक्ति / युगियुगता (1-16) वि. झगझगता रगइ (2-129) दर्त. त्री. पु. ए. व. रगरगे छे, करगरे रजणी (2-161) स्त्री. रात्रि. सं. रजनी रडइए (2-86) वर्त. त्री. पु, ए. व. रडे छे रति (2-18) स्त्री. आनंद
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________________ लीलां (2-54) स्त्री. त्री वि. शोभाथी. सं. लीला लीह (2-39) स्त्री. मर्यादा, हद. सं. लेखा (लोटी) परथी लोटई (2-85) वर्त त्री. पु. ए. व. लोटे, फरे. सं. लुटयति ल्यावइ (1-74) वर्त. त्री. पु. ए व. लई आवे लह (1-20) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. ले लक्ख (2-115, 2-145) वि. लाखनी संख्या. सं. लक्ष लष(ख) (2-132) जुओ 'लक्ख' लग्गउ (1-47) भू. कृ. लाग्यो लछमछ (1-53) वि. लथमथ. मषित-- थाकेली अने लथित-लथडेली लडथडए (1-34) अ. क्रि. वते. त्री. पु. ए. व. लथडे. ध्वन्यात्मक धातुरूप लडावी (2-16.) भू. कृ. लाड लडाव्यां लद्धउ (2-5) भू. कृ. लोधो. सं. लब्धकः > द्ध > मध्य. गुज. लाधअ पण लहउं (1-5) अ. क्रि. वर्त. प. पु. ए. व. लहुँ, मेळवु, धरा. सं. लभ् परथी / लहकह (1-30) पुं. लहेकाथी, सहेलाईथी, आनंदपूर्वक लही (2-24) सं. भू. कृ. ओळखीने, समजीने. सं. लभू लहीय (1-14) सं. भू. कृ. लईने, मेळवीने. य पादपूरक लाई (2-7) भू कृ. लगाडी. सं. ला धातु परथी लाष (2-136) जुओ 'लक्ख' लाग (1-14) पुं. मोको, अनुकूळ परिस्थिति. सं. लग्न > प्रा. लग्ग (वळगेलु)नो अर्थविकास लागउं (1-10) भू. कृ. लाग्युं, वाग्यु. सं. लग्न > प्रा. लग्ग परथी लाछि (1-47, 2-134) स्त्री. लक्ष्मी लांके (2-19) पुं. कमरना वलांकथी लांबा (2-104) वर्त. त्री. पु. ए. व. नाखे छे लांछु (2-54) नपुं. लांछन लिव (1-24) अ. कि. वर्त. त्री. पु. ए. व. प्रवृत्ति करे छे. प्रा. दे. लव धातु लिवंग (2-47) नपु. लविंग लीणा (1-12) बि. मन, डूबेला, सं. लोनकाः वइघालि (2-42) सं. भू. कृ. वघारीने वछिछ (2-160) वि. वहाली. सं. वत्सा वज्जइ (1-23) अ. क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. वागे छे. सं. वाद्यते वड (1-34, 2-31) वि. मोटो, मोटी, उत्तम वडपणि (2-107) नपु. वडपणमां, मोटी उमरे वडी (2-31) स्त्री. वडी (खावानी) वणि (2-16) नपुं. वदने, वदनथी वदीता (2-15) वि. प्रसिद्ध. सं. वद् + मध्य. गुज. कर्मणि वर्त. कृ. प्रत्यय वधावानई (2-115) पु. वधावाने, वधा मणियाने वधावु(२-११४) पु. वधामणी--शुभ समा चार आपनार वधेसिई (2-76) भवि. त्री. पु. ब. व. वध करशे वयणे (2-15) जुओ 'वयणि' वयणलां (2-99) नपु. वचनो. सं. वचन परथी वयण + लां स्वार्थिक प्रत्यय वर (1-16, 1-61, 2-31, 2-38, 2 64) वि. श्रेष्ठ, सुन्दर. सं. वरम् वरणइ (1-42. अ.क्रि. वर्त. त्री. पु. ए. व. वरणड (1-42' अकि वर्त वर्णवे छे, कहे छे. सं. वर्ण वरवानु (1-58) नपु. परणवानो वरसोलां (2-38) नपुं. ब. व. खाद्यविशेष वरि (1-16, 2-59, 2-92) नाम. अ. उपर. सं. उपरि > प्रा. उवरि
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________________ 105 वलवलिआ (1-36) भू. कृ. वलवलाट करवा लाग्या वलिउ (2-79, 2-80) भू. कृ. वळ्यो, पाछो फर्यो वली (2-37) भू कृ. वळी, पाछी फरी वली (2-85) उभ. अ. वळी, उपरांत वलीआं (2-85) नपु. 1. वलय बंगडीओ ___2. कमरबन्ध 3. पेट उपरनी त्रिवल्ली वहूअर (1-40) स्त्री. वहु. सं. वधू + वरा वंदई (1-5) सं. भू. कृ. वंदीने. प्रा. वंदिअ नो सामान्य नहि एवो विकास वंदेवी (1 1) सं. भू. कृ. वंदीने वनरमाला (1-25) स्त्री. आसोपालव आदिनां लीला तोरण. सं. वन्दनमाला > प्रा. वंदणमाला. आ शब्दनां वंदरवाल, वंदुवाल, वानरवाल जेवां रूपो जूनी गुजरातीमां मळे छे. वाचाट (2-62) वि. वाचाळ वाट (1-24, 2-61, 2-90) स्त्री. मार्ग. सं. वर्मा > प्रा. वट्टा > अप. घट्ट वाटा (2-85) स्त्री. वाटमां, मार्गमां वाटलां (2-43) नपुं. वाटका वाटली (2-38) स्त्री. वीटो करीने बना वेलो जमवानी वानगी वाडि (2-72) पु. बाडामां वाढू (2-139) आ बो. पु. ए. व. वाढो, कापो वाणां (2-35) नपुं. वानां, चीजवस्तुओ (भोजननी) वातइ (2-127) स्त्री. वात वाघह (1-55) अ. क्रि. त्री. पु. ए. व. वधे. सं. वर्ध वानां .1-64) नपु. वस्तुओ. सं. वर्णक वानि (1-28, 2-58) पु. वर्णमां, सुंदरता. मां. सं. वर्ण वानु (1-55) पु. वान, रंग, सुन्दरता. सं. वर्ण वानु (1-58) पुं दलील, प्रयत्न. सं. वर्ण (भाषा) परथी. अत्यारे पण 'भाटलां वानां केम करावे छे ?' एवो प्रयोग प्रचलित छे . वामिइं (2-154) वि. वामे, डाबी बाजुथी. ए रीते 'रसवेद' एटले 46 थाय. कृतिनुं रचनावर्ष सूचववानी भा पद्धति संस्कृतमां अने मध्य. गुज. साहित्यमा प्रचलित हती. उपोद्घातमा एनी वधु माहिती आपो छे. वारू (1-65) वि. सारो. सं. वरम् वालणि (1-47) हे. कृ. वालणे, वाळवा माटे. सं. वल धातुना प्रेरक परथी वालिंभ (2-90) पुं. वालम, पति. सं. वल्लभ वालु (2-49) पुं. सुगंधी वाळो वासइ (2-93) वर्त. श्री. पु. ए. व. बोले छे. सं. वाश वासई (2-142) स्त्री. सुगन्धथी. जैन साधु मुनिओ बंदवा आवनारने मस्तके सुगन्ध अर्पे छे ते वासी (1-51) वि. सुवासित, सुगन्धित करेली वासी (2-61) भू. कृ. सुवासित करी . वासग (2-20) पु. वासुकि नाग वास्यां (2-44) वि. सुवासित करेलां वाहि (2-57) वर्त. त्री. पु. ए. व. वहे छे, धारण करे छे वाही (2-10) सं. भू. कृ. दोडावीने. सं. वह वांकडं (1-66) वि. वांकु. सं. वक्र . विगतिइं (1-8) स्त्री. विगतथी, विगतवार. विछाहइ (2-33) वि. छायेली, ढांकेली विछेदि (2-43) क्रि. वि. सत्वर, जलदी विनाणि (2-25) नपुं. ज्ञानथी. वचनि विनाणि = समजभर्या वचनथी. सं. विज्ञानम् > प्रा. विण्णाणं > अप. विण्णाणु > मध्य. गु. विन्नाण, विनाण + त्री. वि. ए. व. नो प्रत्यय इ 12
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________________ 106 विन्नाणइं (1-49) नपु. समजथी, समजावीने विरूड (1-84) वि. वरवी. सं. विरूप / विविह (1-22) वि. जुदा जुदा. सं. विविध विशेषइं (1-11) क्रि. वि. विशेषे करीने विहिहत्थडा (2-23) पुं. विधिना हाथ वूठउ (2-80) भू. कृ. वरस्यो. सं. वृष्ट > प्रा. वुट वेमण (2-123) स्त्री. वेदना वेडि (2-15) स्त्री. तकरारमां. वेढि पण वेणई (2-20) स्त्री. वेणी वडे. सं. वेणी, वेणि श शर्मी (1-32) सं. भू. कृ. श्रमीने, श्रम पामीने शशिहर (1-3) पु. चंद्र. सं. शशधर > प्रा. ससहर शांणा (1-76) नपुं. छाणां सई (2-146) वि. सो, 100 सपाइ (2-110) स्त्री, मदद. सं. सख़्य > प्रा. सक्ख परथी सगासिइ (2-142) नाम. अ. पासे. सं. सकाशे सज्जा (2-144) वि. सज्ज सट्ठी (2-145) वि. छ, 6. 'सहसा नव सट्ठी६९००० सत (1-76) नपुं. सत्त्व सत्त (2-146) वि. सात. सं. सप्त >प्रा. सत्त सत्तइ (1-35) वि. साते सत्तसई (2-160) वि. सात सो सदयपणइ (2-75) नपुं. दयाथी. स + दया + पण सदलां (2-46) वि. दळवाळां सनकारी (1-53) . कृ. संज्ञा-सानथी बोलावी. सं. संज्ञा > प्रा. सन्ना परथी सनाढा (2-44) वि. सनाढ्य, छांटेलां. सं. सन्नद्ध (युक्त) सम (1-55) पु. सोगंद समकित (2-145) नपुं. सम्यकत्व, विवेक पूर्वक धर्मनी समज अने तेनु आवरण समता (2-120) स्त्री. सम्यकत्व, सम्यक (शुभ) प्रवृत्ति समाया (1-2) भू. कृ.प्रे. समावेश पाम्या. सं. माति > प्रा. अप. माइ परथी समारह (2-122) वर्त. त्री. पु. ए. व. समारे छे, सुधारे छे समोपी (1-28) भू. कृ. समर्पली समोसरण (2-113) स्त्री. तीर्थकर के एवी महान विभतिना आगमन प्रसंगे रचवामां आवती सभा के परिषद समोसरणि (2-117) जुओ समोसरण' सरई (2-93) पु. स्वरथी सरसति (1-6, 1-88) स्त्री. सरस्वती सरसती (2-4) जुओ 'सरसति' सरसि (2-76) भवि. ए. व. सरशे, पार पडशे सरसिउ (1-52) नाम. अ. सरसो, साथे सरसिङ (2-102) नाम. अ. सरसुं, साथे सरसी (1-37) वि. सरखो, जेवी. सं. सदृशक > प्रा. सरिसिअ सराप (1-64) वि. सारं. सं. सुरेख सरिई (2-86) पुं. स्वरे, स्वरथी. सं. स्वर सरिसु (1-49) नाम. अ. सरसो, साथे सरे (1-21) जुओ 'सरई' सल्लइ (2-101 वर्त. त्री. पु. ए. व. साले, दुःख दे. सं शल्य सवि (1-21, 1-25, 1-35, 1-49, 1-43, 1-73) वि. सर्वे, बधा, बधो. सं. सर्वे > प्रा. सव्वे > अप. सव्वि > मध्य. गुज. सव पण. हिन्दी सब ससा (2-73) नपु. ससलां ससुधा (2-158) नपु. सुधा-अमृत सहित सहस (2-144, 2-147) वि. सहस्र, हजार सहसा (2-145) जुओ ‘सहस' सहिगुरु (2-151) वि.. सद्गुरु सही (2-79) क्रि. वि नक्को
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________________ सहअ (1-10) सर्व. बधा. अ पादपूरक . सं (1-142) सर्व. ते संघात (1-71) पुं. संगाथ संधि (2-126, 2-128) पु. सांधा सा (1-6) सर्व. ते. सं. सा। साषइ (2-104) वर्त. त्री. पु. ए व. सहन करे छे, सांखे छे साजनउं (2-34) नपु. साजणु, सज्जनोनो समूह-जानमां भाग लेनारो साढा (2-114) वि. साडा. सं. स + अर्ध सादरि (2-1) पु. आदरथी, सन्मानपूर्वक स+ आदर + इ साधारा (2-84) वि. आधाररूप. स + आधार सामलवन (1-21, 2-77) वि. श्याम __ वर्णना. सं. श्यामल + वर्ण सामि (1-20) पु. स्वामी सामिणि (2-2) स्त्री. स्वामिनी सायर (1-35) पुं. सागर सार (2-6, 2-7) वि. श्रेष्ठ, सुन्दर सारद (1-1) स्त्री. सरस्वतीदेवी. सं. शारदा सारा (1-19) . सार, साररूप. सं. सार सारी (2-65) वि. बधी / सारे (1-13) वि. उत्तम. सा. वि ए. नो . प्रत्यय विशेष्यने बदले विशेषणने लागेलो छे सालणउं (1-65) नपु. अथाणु सालणां (2-42) नपुं, ब. व. अथाणां सालि (2-41) स्त्री. चोखा. सं. शालि सावय (2-145) पु. श्रावक साही (1-56) सं. भू. पकडी सांडसीए (2-126) स्त्री. साणसी वडे. सं. संदंशिका सिइं ( 2-106) सर्व. शे, शा कारणथी सिउ (1-68) वि, शो, केवो. सं. कीदृशकः > प्रा. केरिसओ > मध्य. गुज. किसिउ, सिउ, स्यू सिङ (1-12, 1 19, 1-68) नाम. अ. शु, साथे. सं. सहितम् > प्रा. सहिअं > अप. सहिउंना विकासमां सिउ (1-82, 1-84, 2-99, 2-104, 2-106, 2-127) सर्व. शुं (प्रश्नवाचक), शा माटे. सं. कीदृशकम् > प्रा. केरिस > मध्य.. गुज. किसिउं, सिउँ, स्यू सिरिवछ्छ (1-79) पुं. श्रीवत्स, बाळकोना कल्याण अर्थे पहेराववामां आवतो हार सिली (2-45) स्त्री. सळी (दांत खोतरवा माटे). सं. शलाका सिंगारा (1-16) पु. शणगार, शोभा. सं. शृंगार सीका (1-38) नपुं. ब. व वस्तुओ राखवा माटे अद्धर लटकाववामां आवती छाबडी के टोपलो के एने मळतं कोई साधन. सं. शिक्य सीलह (1-80) नपु. शीलमां, शीलनी बावतमां, चारित्र्यमां सीहला (2-19) पुं. सिंह सु (1-80) वि. सो, 100 सु (2-42) सर्व. ते. सं. सः सुकमाल (2-98) वि. सुकुमार, कोमळ सुकमाला (2-140) जुओ 'सुकमाल' सुकुलीणी (1-79) वि. सारा कुळनी, कुळ वान. सं. सुकुलीन सुचंगा (1-26) वि. सुंदर सं. सु + चंग सुट्ठी (2-145) वि. उत्तम, श्रेष्ठ. सं. सुष्ठु सुणि (1-5) अ.क्रि. आ.बी पु. ए. व. सांभळ सुणिज्यो (1-8) आ. बी. पु. ब. व. सुणजो, सांभळजो (2-75) भू. कृ. सांभळया. इल्ल भू. नो प्रत्यय सुधिइं (1-9) स्त्री. शुद्धिथी सुपन (1-20) नपुं. स्वप्न. सुपरिकरे (1-25) पु. समूहमां, एकठा थयेलामां. सं. परिकरः सुर (1-35) पु. देवो सुहकर (2-157) वि. सुख आपनार. सं. सुखकर सुहकरो (2-154) जुओ 'सुहकर' सुहाणी (1-86) वि. सोहामणी, सुशभित
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________________ . 100 हिअ सुहेली (1-60) वि. सोह्यली, सुखकारक. शक्या नहि.' ( हेमचन्द्राचार्यकृत सं. सुख > प्रा. सुह + इल्ल 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित') सुंडल (1-76) पु. सुंडलो, टोपलो हवइं (1-15) क्रि वि. जुओ 'हिवइ' सुंहालां (1-28, 1-61, 2-73) वि. हाट (2-61) स्त्री. दुकान. सं. हट्ट सुवाळां, कोमळ. सं. सुकुमार हियडइं (1-5) नपुं. हैयामां, हृदयमां. सं. सूह (2-87) वर्त. त्रो. पु. ए. व. सूए छे / हृदयम् > प्रा. हिअअं > अप. सूइ (2-125) स्त्री. सोई (शूळो) सं. शूचि सूषडी (2-91) स्त्री. एक जातनुं पकवान सेरो (1-23) स्त्री. महोल्लो. प्रा. दे. सेरी हिली (1-72) स्त्री. (हे) सखी. सं. हला, सोइ (1-10, 1-11, 2-92, 2-98, __ अप. हेल्लि 2-101) सवे. ते. सं. सः + अपि = हिव (1-12) जुओ हिवई' सोऽपि > प्रा. सोवि > अप. सोइ / हिवइ (1-2, -84, 2-157) क्रि. वि. सोग (2-136) पु. शोक हवे अत्यारे. सं. अथबा > प्रा. सोरी (2-27) नपु. सोरीपुर(ना) भहवा > अप. अहव नी आदि सोवन (2-41) वि. सारा वर्णना-रंगना, श्रुतिनो लोप थतां अने सा. वि. ऊजळा. सं. सु + वर्ण ए. व. नो प्रत्यय इ लागतां हवइ; सोवन (2-45, 2-58, 2-92, 2-94) व्यत्ययथी हिव+ सा. वि. ए. व. नो वि. सोनानी, सोनेरी. सं. सुवर्ण प्रत्यय इ. सोवन (2-115) स्त्री. सोनामहोर। सोह (1-20, 2-88, 2-160) स्त्री. शोभा / हीजाडी (1-31) सं. भू. कृ. हेत लावी (हेज = हेत) स्वरमंडल (1-23) स्त्री. एक प्रकारनी वीणा हीर (2-88) नपुं. रेशम सं. स्वरमंडलिका हीवइ (1-58) जुओ 'हिवइ' स्या (1-11) सर्व. शा (प्रश्नवाचक). जुओ। _ 'सिउ' हुउ (1-13) भू. कृ. थयो. सं. भूतकः > प्रा. हूअओ > अप. हूअउ > हइ (२-१११)वर्त. बी. पु. ए. व. छे. हिंदी है मध्य. गुज. हुअउ, हउओ, हुओ पण हउं (1-2) सर्व. हुं. सं. अहकम् > प्रा. हुसिइ (1-59) भवि. ए. व. थशे, थवानी अहअं > अप. हडं हुंती (1-78) भू. कृ. हती हत्थिई (2-111) पु. हाथमां हउ (2-55) जुओं 'हुउ' हरषह (2-26) पु. हरखनी,आनंदनी. ह हूंकी (1-68) सं. भू. कृ. हाक मारी, गर्जना करी छ. वि. ए. नो प्रत्यय हेरूं (1-15) अ. क्रि: प. पु. ए. व. जोउ, हरिची (1-30) पु. हरिनी. ची छ. वि. फरु. सं. हेरिक (जासूस) ए. व.(स्त्री.)नो प्रत्यय हेषारव (2-138) पु. हण हणाट हरि जिम (1-47) वांदरानी जेम. पछी नेमि - हेसमी (2-39) स्त्री. एक जातर्नु पकवान नाथे पोतानी वाम भुजा लांबी धरो होइ (2-82) वर्त. त्री. पु. ए. व. होय राखी, एटले कृष्ण वृक्षने वानर वळगे होइसिइं (1-12) अ. क्रि. भवि. त्री. पु. तेम सर्व बळ वडे वळगी पड्या, पण ब. व. हशे. सं. भविष्यति > प्रा. नेमिकुमारना भुजस्तंभने ते नमावी होस्सइ>मध्य. गुज. होसइ, हुसइ पण
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