________________ 47 बीजा अधिकारनी कडी ९२नी नीचेनी पंक्तिमा अत्युक्ति अलंकारमा पण कविनी मनोहर कल्पनानां दर्शन थाय छे. 'जे सिर वरि सोवन राषडी ए, झालइ सोइ करी राषडी ए.' कथनने सचोट बनाववा लावण्यसमय कहेवतोनो पण सुभग प्रयोग करे छे. तेमनी आ शक्तिनो परिचय पहेला अधिकारनी ७०मी कडीमां मळे छे. पत्नीना त्रासथी कंटाळी गयेल पति दैवने फरियाद करतां कहे छे : 'ए भरीय अणत्थिई तई मुझ मस्थिई भागी काइ कुहाडि.' कुहाडी तो खूब वपराया पछी, पोतार्नु बळ न चाले त्यारे भांगे. पत्नीना त्रासनी अतिशयतानुं अने तेनी सामे पतिनी निःसहायतार्नु आमां सरस सूचन थयुं छे. 'गुल गलिउ नइ साकर भेली' (1-54), 'शाणा आगलि सुंडल मांडई' (176), ए कहेवतो पण ध्यानपात्र छे. 5. समाजचित्र लावण्यसमयनी अन्य काव्यकृतिओनी जेम आ काव्यमां पण तत्कालीन समाजजीवननां केटलांक सुरेख चित्रो जोवा मळे छे.. नेमिकुमारना जन्मप्रसंगना वर्णन परथी लागे छे के ए जमानामां पुत्रजन्म वखते राजदरबारमा उत्सव ऊजवातो. ते प्रसंगे मुंगळ, भेरी, ढोल वगेरे वाजिंत्रो वागतां. भाट, चारणो अने बंदीजनो राजाओना गुणगान करता ने नट लोको खेल करता. शेरीओने शणगारवामां आवती. राजमहेल अने राजमार्गों पर आसोपालवनां तोरण बांधवामां आवतां. स्त्रीओ नवां बस्त्रो पहेरीने एकठी थती ने मधुर स्वरे गीतो गाती. राजमहेलमां आवनार लोकोनो पाननां बीडांथी सत्कार करवामां आवतो. ब्राह्मणो अने भाटचारणोने राजा तरफथी दान अपातुं. बाळ नेमिकुमारनां आभूषणो अने पहेरवेशना उल्लेखो पण काव्यमां मळे छे. ते परथी जणाय छे के राजकुंवरने नानी वयमां हाथमां कडली, केडे सोनानो कंदोरो, गळामां रत्नजडित हार अने माथे टोपी पहेराववामां आवतां. पोशाक अने आभूषणोना उल्लेख पण काव्यमां मळे छे. ते मुजब स्त्रीओ चीर, कमखा अने घाट के घाटडी ए वस्त्रो पहेरती तेमज माथे राखडी, अंबोडे गोफणो, कानमां झाल, गळामां सोनानो हार अने त्रोटी, कांडे चूडो ने कंकण तथा पगमां नूपुर ए आभूषणो धारण करती. पुरुषो माथे सोनानी खींटली, कानमां कुंडळ, गळामां हार अने बाहु पर बहेरखां ए आभूषण धारण करता. तेमां माणेकमोतीनो उपयोग थतो.