________________ 30 मोडोधा मंकड जिम खेले, रडवडिया रेवंत; मंडलिक मान मूकाव्या, कियो परदळनो अन्त.' (खंड 6) आ लोककथानक विशे मध्यकाळमां आपणे त्यां घणां काव्य लखायां छे, तेमां आ काव्य एना सांप्रदायिक रंगोने लीधे विशिष्ट स्थान धरावे छे. 16. सुमतिसाधुसूरि विवाहलो लावण्यसमय पोतानी कृतिओमां पोताना गुरु तरीके जेमनो वारंवार उल्लेख करे छे ते सुमतिसाधुनी दीक्षानो प्रसंग 92 कडीना आ काव्यमां 'विवाहला'ना जेटल उमंगथी अने गौरवथी वर्णववामां आव्यो छे. शब्दलालित्य अने प्रवाही छन्दने कारणे ए चित्तने प्रसन्न करी जाय एवो छे. दीक्षाना वरघोडानुं वर्णन तादृश छे : 'चउरी गूडर ताडिआ ए, तलिया तोरण चंग तु, माहाजन सहू जीमाडीइ ए, मंदरि मोटउ जंग तु. कुंवर हिव सिणगारीइ ए, मस्तकि भरीउ खूप तु, बांहे सोवन–बहिरखा ए, दीसइ रूअलडउं रूप तु. कडिं नवरंग पछेवडउ ए, ओढणि आछउं चीर तु, सार तुरंगम आणिउ ए, चडिउ बावनवीर तु. कामिणि मुखि मंगल भणइं ए, भट्ट भणइ बहु छंद तु, लूण उतारई बहिनडी ए, कुंअर अति आणंद तु. वर पोसालई आविउ ए, दुरिअ गयां सवि दूरि तु, श्रीरत्नशेखरसूरि वंदिआ ए, मनह मनोरथ पूरि तु.' एवी ज रीते मात्र थोडी ज लीटीओमां गुर्जर नारीनु सुरेख चित्र कविए सज्यु छ : 'ज्ञालि झबूकई गालि रे, जाणे ससि नइ सूर रे; रागवसिई सेवा करई ए, अतिघण तेजनउं पूर रे. मस्तकि सोहइ राषडी, आंखडी अति अणिआली रे, ओढणि आछी चूनडी, पहिरणि नवरंग फालि रे. साव सुलक्षण सारिअ, सारिअ काजलरेष रे, रूपिई रंभा अवतारिअ, दीसइ रूअडलउ वेस रे.' आ कृतिनो रचनासमय उपलब्ध नथी.१८ 58. आ काव्य ‘ऐतिहासिक राससंग्रह भाग 1' मां प्रसिद्ध थयेळं छे.