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________________ लहुअ चंपक परिमल आवास, लहु चिंतामणि पूरे आश; लहुओ पण पोते गुण बहु, एह राजे हुए सुखीआं सहु.' (खंड 1) वच्छराज उजेणीमां सोमदत्त वणिकनुं घर भाडे लई रहे छे त्यारे कवि कर्मनी गहनता आ रीते रजू करे छे : 'सोमदत्त-घर इण परे रह्यां, करम-वसे दुखियारां थयां; करम करे ते न करे कोय, राज करे ते रळता जोय. आगे करमें घणा रोळव्या, नंदिषेण सरखा भोळव्या; करमें रावण पडीओ चूक, सीताहरण रण कीधो भूक. कीचक पडीआ पंडव पास, पंडव पंच गया वनवास; करम तणी शी कीजे वात, रविरथ हयवर सरज्या सात. करमें पेख कलंकित चंद, मरण लहे भालडी मुकुंद; करमविपाक कीसुं हुं भ', नळ रांधे पर घर रांधणुं. करमें कदरथी चंदन बाल, नरग गयो श्रेणिक भूपाल; करमें बलि घाल्यो पाताल, दुःख सह्यां तिम गय सुकुमाळ.' (खंड 2). कविनां आ दृष्टांतो एमना पौराणिक ज्ञाननी साक्षी पूरे छे. देवराज अने वच्छराज वच्चे थयेला युद्धनुं जुस्सादार भाषामां आवेलुं वेगभयु वर्णन कविनी वर्णनशक्तिनो सारो नमूनो छ : 'बिहु दळ घाव वण्या नीसाणे, ने रण वागां तूर; कोह करंता बे दळ झुझे, शूरमें चढिया शूर. घोडे घोडा रथ रथीआ-शु, गयवर गयवर साथि; खडगयधर खडगयधर साथि, पायक पायक साथि. हाकबूक मुख अहनिश जंपे, मेहेले खडगप्रहारः वीर वडा झूझता देखी कायर छंडे थहार. बिहुं दळे भाट सरंगमि चडिय बोले बहुविध छंद; भास दूहवीता गयंवर अतिहिं करे आक्रंद. रयण दीसनी विगती न लाभे, आप–पर नवि सूझे; रोसे चड्या रण राउत केरा मस्तक विण धड झूझे. तव वछराज मूके सिंहनाद, सुहड छंडाव्या छीक; महवडी पेसी सडसड सूडे, वहे रुधिरनी नीक.
SR No.032757
Book TitleNemirangratnakar Chand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Jesalpura
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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