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________________ 'पहेलो अक्षर लाभनो ए, मा० बीजो भवनो जाणी, त्रीजो पुण्यवन्त बीजलं ए, मा० आगलि समय ठवेइ.' सिंधु देशना चंद्रावतीनगरीना वीरसेन राजा अने एनी राणी धारिणीना बे पुत्रो देवराज अने वच्छराजमांथी मोटो पुत्र देवराज पिताना मृत्यु पछी गादीए आवतां नाना भाई वच्छराजने मारी नाखवा- कावतरं करे छे. ए जाणतां ज वच्छराज माता अने बहेननी साथे नासी छूटे छे अने माळवामां उजेणीनगरीमां सोमदत्त वणिकने त्यां रही, अद्भुत पराक्रमो करी श्रीदत्ता, रत्नावती अने कनकवती ए त्रण राजकुंवरीओने परणी, मोटा भाईने युद्धमा हरावी सिंधुदेशनुं राज्य मेळवे छे एर्नु एमां छ खंडमां अने चोपाई, दुहा, गाथा तेमज वस्तु छन्दमां अने पवाडानी देशीमां विस्तारथी वर्णन करवामां आव्युं छे. रासमां कविए प्रसंगोपात्त शृङ्गार, वीर अने अद्भुत रस जमाव्यो छे अने तक मळतां समाजचित्रो आलेख्यां छे. ए रीते खंड पहेलानुं ज्ञातिओनुं तथा खंड चोथार्नु भोजनसामग्रीचें वर्णन तत्कालीन समाजजीवन पर प्रकाश पाडे एवं छे. कविनी दृष्टांतकला अने समान्य विधानो योजवानी शक्तिनो पण आ रास वांचतां वारंवार परिचय थाय छे. वीरसेन राजा अने धारिणीदेवीनी प्रीतिनुं वर्णन करतां कवि कहे छे : 'जिसी प्रीति गौरी ने शंभु, जिसी प्रीति माछलडी-अंबु, जिसी प्रीति मधुकर-केतकी, जिसी प्रीति गयवर-सल्लकी, जिसी प्रीति इंद्राणी-इंद्र, जिसी प्रीति कमलिनी-दिणंद. जिसी प्रीति चंदा-चांद्रणी, तिसी प्रीति राजा-धारणी.' (खंड 1) वच्छराजना गुणोनुं वर्णन करती वखते पण कवि आ ज कला अजमावे छे : 'गुणे करीने अति अभिराम, लहुओ वच्छराज तस नाम: राजा पदवी एहने होय, मनह मनोरथ पूजे तो य. लहुअ लगे वछराज विनीत, चतुर तणां चमकावे चित्त; . अवगुण अंग थीको परिहरे, लहुअ लगे लक्षण आदरे लहुओ रवि सोहे अतिघणो, दश दिशि तेज तपे जेह तणो; लहुओ मृगपति मयगल भिडे, लहुअ दीप तिमरनें नडे;
SR No.032757
Book TitleNemirangratnakar Chand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Jesalpura
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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