________________ रोमनगर पर विमले चडाई करी ते वखते एनी सेनाना हाथीओनुं वर्णन पण आ प्रकारचें. छे : अंगि रंगि रूडा चित्रांम, के मयगल जयमंगल नाम, फूंकफोड के सांकलत्रोड, के विषछोड महामदमोड. 48 ' पर्वतढोल धरणिधंधोल, परदलबोल कि विरीरोल, एकताल के दुर्जनसाल, के विषकाल चमरबंबाल. 49 गढगंजण भंजण वड ठाम, सिंघलीयाला साचा नाम, वाट मयगल मदकल्लोल, चिहु पाशे चालि चकडोल.' 50 (खंड 7) क्यारेक तो वर्गनने तादृश बनाववा कवि उपराउपरी अलंकारो प्रयोजे छे. भीमदेवनी सभानुं वर्णन एजें सुन्दर उदाहरण छ : ' तां चंदा नि तां चांद्रिणी, दीपइ दीप-झलामल घणी, तारा तेज तणां तां पूर, जं नवि ऊआइ अम्बरि सूर, 41 सोहि सभा मद्धि सुरि घणी, विसहर विकट शेष जिम फणी, तरुअरि कल्पवृक्ष उयम सीम, मणिमाहिइं चिंतामणि जिम, 42 भूपति मांहि रह्या ज्यम रांम, रूपवंत शरि सोहि काम, दातारिइं अवतरिउ कर्ण, उपइ सकल सभा आभर्ण; 43 साहसि सूरु विक्रम वीर, मेरु सरीषु महीअलि धीर, न खमि तेज भीम ते भयु, मझ मत्था ऊपहरु थयु. 44 सभा सरोवर सोहइ कमल, भीम हशी बोलावि विमल.' 45 (खंड 6) कविना मोटा भागना अलंकारो रूढ छे, छतां एमां कोई कोई वार मौलिकता अने प्रतिभाना चमकारा देखाय छे. उ. त., भीमदेवे विमलती समृद्धि जोइ त्यारे 'जव दीडउं घरनूं बारणउं, स्वर्गविमान करिउं पारणउं.' (6-49) श्रीदेवीना झांझर माटेनी उत्प्रेक्षा पण चमकृतिभरी छे : ' रिमिझिमि पयल करि झांझरां, जांणे मयणतणां पांजरां.' (5-88) भीमनी सभामां बेठेला विमल माटेनी उपमा पण मनोहर छ : 'सभासरोवर सोहइ कमल, भीम हशी बोलावि विमल.' (6-45) आ दीर्घ काव्यमां कवि प्रसंगवशात् अर्थान्तरन्यास-सामान्य विधान अने कहेवतो पण प्रयोजे छे. उ. त.,