________________ अर्थान्तरन्यासः' रहि रानि मृगला तृण चरइ, माछी नीर विणासि करि, सज्जन सुखिइं रहि घर मांहि, त्रिहु निकारणि विरी थाइ.' (6-35) 'धन विण माणसनु मद टलइ, धन विण मोटाइ सवि गलइ, धन विण कोइ न मांनि बोल, धन विण थाशि रंक निरोल, धन लीवू तु लीधा प्राण, नीर वीइणउं जशू निवांण.' (खंड 7) कहेवतो: बाइनां फूल बाइनइ चडइ. (1-88) मागण मरण समाणउ जोइ. (2-9) अणतेडिउ जे परघरि जाइ, मान महुत नवि पामइ राय. (2-11) गाजवीज घण थोडा मेह. (3-63) गुलइ मरइ जे मानवी, तेह विस दीजइ कीम. (6-66) आमांनी केटलीक कहेवतो अत्यारे पण प्रचलित छे.. आ बधी वस्तुओने परिणामे डॉ. धीरजलाल शाहे का छे तेम, काव्यनो विशाळ पट अनेक चांदरणांथी आकाश दीपी ऊठे तेम दोपी ऊठे छे.५० लांबी मुसाफरी पण मार्गमां आवती अनेक हरियाळीओथी आनन्दजनक थई पडे छे, तेम आ बधां तत्त्वोने लीधे आ सुदीर्घ कृति रसिक नीवडे छे. 'विमलप्रबन्ध' रचाया पछी दश वर्षे, वि. सं. 1578 मां सामा पक्षना गच्छपति सौभाग्यनन्दीसूरिए ए- संस्कृतमां भाषान्तर कयु हतुं अने कविना काळ पछी 70-80 वर्षे कोई गृहस्थे एनी संख्याबन्ध नकलो करावी ए वखतना बधा भंडारोमां मोकली आपी हती, ए हकीकत आ कृतिनो प्रभाव ए जमानामां केटलो बधो हतो एनो पुरावो छे. 12. करसंवाद जैनोना प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव वरसी तपना पारणे श्रेयांसकुमारने त्यां पधारे छे. श्रेयांसकुमार पोते ऋषभदेवने वहोरावे छे. आ प्रसंगे श्रेयांसकुमारना जमणा अने डाबा हाथ वच्चे थतो कल्पित विवाद आ कृतिमां आपवामां आप्यो छे. बन्ने हाथ पोतपोतानी महत्ता बताववा दलीलो करे छे." 50. 'विमल प्रबन्ध-एक अध्ययन' 51. ला. द. भा. सं. विद्यामन्दिर-ह. प्र. नं. 6147. आ काव्य हजु अप्रसिद्ध छे.