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________________ हब हब हब हबडी हाक पडइ, झब झब झब वीज षडाग विढइ, धब धब धब धींगड धीर धसइ, कमकमता कायर षेटि पिसइ. 54 रण रण रणकाहल रणकी चलइ, डम डम डम डमरू डमकी चलइ, ढम ढम ढम ढोल ढमक्की चलइ, चम चम चम चंग चमक्की चलइ. 55 भड भीषण रीषण रूपि थया, बालापण आपणा आज भया, जण धूजी मूंजी मांहि मिल्या, धरणीधर धोरी धुरि ढल्या. 56 भड उट्ठी अंगोअंगि इशु, तड तड तड त्रूटइ कसण कसु, सीह अग्गलि जंबूक जीव यशु, विमलग्गलि पंडीउ राउ तिशु. 57 तर तर तरडी दृष्टि करी, मुहि मरडी माणइ मूछि भरी, कड कड कड करडी दंतकुली, भड धायु पंडी पुठि वली. 58 रणघंघल मंगल तूर रवा, नफ्फेरी भेरी नाद नवा, जगि विमलमंत्रि जयलच्छि वरइ, बंदीजन जयजयकार करइ.' 61 __(खंड 8) आ दरेक स्थाने कवि छन्द उपर प्रभुत्व दर्शावे छे. सर्वत्र योग्य शब्द कृत्रिमता वगर पद्यमां गोठवाई जाय छे. प्रसंगोपात्त भाषामां माधुर्य अने ओजस सर्जाय छे. झडझमक उपरांत अलंकारोनो पण बहोळो उपयोग कवि करे छे. एने लीधे यादी जेवां वर्णनो रसिक थई पडे छे. ए रीते कन्या श्रीदेवीनां सामुद्रिक लक्षणोनुं वर्णन जोवा जेवं छे : 'चंदवदनि चंपक वनी, निर्मल हृदय विशाल, रामा राता अधर जस, संपत्ति सुख्ख रसाल. 3 मृगनयणी मृगकंघरी, मृगपेटी सुकुमाल, हंसगमणि सा सुन्दरी, भूपतिनि घरि भालि. 7 कृष्ण सरीखी सांमली, गोरी चंपक वांनि, अंग वदन कर कोमला, झीलइ रंग निधान. 10 कनक कमल पहि पिंगली, देहकंति झलकंति, मणिमाणिकसोवन तणां घर आभरण लहंति. 11 सत्थल कदलीथंभ जस, करचरणे नहीं रोम, विपुल गुह्य मणि गूढ जस नीलवटि लद्धउ सोम.' 15 (खंड 5)
SR No.032757
Book TitleNemirangratnakar Chand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Jesalpura
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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