________________ 40 . छेल्ली कृति रची हती. ए रीते वि. सं. १५४६मां, कविनी पचीस वर्षनी जुवानवयमां, 'नेमिरंगरत्नाकर छन्द'नी रचना थयेली छे. 2. काव्यस्वरूप ___ आ काव्यनी केटलीक हस्तप्रतोनी पुष्पिकामां (A B, अने D हस्तप्रतोमां प्रथम अधिकारने अंते अने B हस्तप्रतमां बीजा अधिकारने अंते पण) एने 'छंद' तरीके ओळखावेल छे. आ रीते मध्यकाळमां झडझमकवाळी भाषामां अने एक के जुदा जुदा छन्दमां लखायेल काव्यने 'छन्द'नी संज्ञा आपवामां आवी छे. उ. त., रणमल्ल छन्द, मयण छन्द, गुणरत्नाकर छन्द वगेरे. परन्तु कविए काव्यमां ज स्पष्टपणे एनो 'प्रबन्ध' तरीके पण उल्लेख कयों छे. (जुओ प्रथम अधिकारनो आरंभनो श्लोक अने बीजा अधिकारनी कडी 155). संस्कृत साहित्यकृतिओमा 'प्रबन्ध'नो अर्थ सुसंकलित, सुव्यवस्थित साहित्यरचना एटलो ज छे.' कालिदासे 'मालविकाग्निमित्र'ना प्रारंभना प्रास्ताविक भागमां 'प्रबन्ध'नो अर्थ 'काव्यनाटकादिक रचना' एवो को छे. वासवदत्ताना प्रणेता सुबन्धुए 'कथात्मक रचना'ने माटे 'प्रबन्ध' शब्दनो प्रयोग को छे. विक्रमनी चौदमीथी सोळमी सदीमां संस्कृतमा केटलाक प्रबंधो रचाया छे. तेमांना 'कुमारपालप्रबन्ध' जेवा प्रबंधो पद्यमां, तो मेरुतुंगनो 'प्रबन्धचिन्तामणि' अने राजशेखरनो 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध' गद्यमां छे. बल्लालनो 'भोजप्रबन्ध' गद्यपद्यमिश्रित छे. आमांथी केटलाकमां एक ज ऐतिहासिक व्यक्तिनुं चरित्र विगते आलेखवामां आव्युं छे, तो 'प्रबन्धचिन्तामणि' के 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध'मां जुदी जुदी ऐतिहासिक व्यक्तिओना प्रसंगो निरूपवामां आव्या छे. प्राचीन-मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां पण केटलाक प्रबंधो रचाया छे. तेमांना पद्मनाभरचित 'कान्हडदे प्रबन्ध' (वि. सं. 1512) अने लावण्यसमयरचित 'विमलप्रबन्ध' (वि. सं. 1568) नुं वस्तु चरित्रात्मक अने ऐतिहासिक छे. एमां बीजा रसो साथे मुख्य रस वीर छे. आख्यानमां कडवां पडवामां आवतां तेने बदले तेमां लांबा विभाग के खंड पाडवामां आव्या छे, अने दूहा, चोपाई जेवा मात्रामेळ छन्दोनो मुख्यत्वे उपयोग करवामां आव्यो छे. 1. अनुज्झितार्थसंबन्धः प्रबन्धो दुरुदाहरः-शिशुपालवध 2-73 * 2. प्रथितयशसा भाससोमिल्लकविपुत्रादीना प्रबन्धानतिक्रम्य वर्तमानकवेः कालिदासस्य क्रिया यां कथं. परिषदो बहमानः-मालविकाग्निमित्र, अंक 1