________________ विक्रमनी सोळमी सदीनी शरूआतमां अमदावादना लोकाशाह (वि. सं. 1508) नामना साधुए जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदायना प्रचलित रीतरिवाजो अने जैनोनी आवश्यक क्रियाओ, प्रतिमापूजा वगैरेनो विरोध करी नवो पन्थ स्थाप्यो हतो. लोकाशाहना आ नवा मत--सिद्धांतो- 'सिद्धांत चोपाई (लुंकावदन-चपेटा) मां खण्डन तेमज पोताना मतनुं प्रतिपादन छे. कविनी बावीस वर्षनी युवानवये आ कृतिनी रचना थई छे छतां एमां लगार पण क्रोध के निंदानो भाव नथी. मात्र शास्त्रना सिद्धांत बतावीने पोतानो प्रश्न खरो छे अने सामो पक्ष खोटो छे एम सिद्ध करवानो एमां प्रयत्न करवामां आव्यो छे." दृष्टांतो द्वारा विषयने असरकारक बनाववानी कविनी शक्तिनुं पण एमां दर्शन थाय छे : 'मदि झिरतु मयगल किहाँ, किहां आरडतूं ऊंट, पुण्यवंत मानव किहां, किहाँ अधमाधम खूट. 152 राजहंस वायस किहां, (किहां) भूपति किहां दास, सपतभूमि मंदिर किहां, किहां उडवसे वास. 153 मधुरा मोदक किहां लवण, किहां सोनूं किहां लोह, किहां सुरतरु किहां कयरडु, किहां उपशम किहां कोह. 154 किहां टंकाउलि हार वर, किहां कणयरनी माल, शीतल विमल कमल किहां, किहां दावानल झाल. 155 भोगी भिक्षाचर किहां, किहां लहिवू किहां हाणि, जिनमत लुका-मत प्रतिइं एव९ अंतरि जाणि."" आ कृतिनी हस्तलिखित अनेक नकलो थई छे, ए एनो जैन समाजमां थयेलो प्रचार बतावे छे. 2. गौतमपृच्छा चउपइ आ कृति सांप्रदायिक अने उपदेशप्रधान छे. प्राकृत ‘गौतमपृच्छा' प्रकीर्णकने आधारे एनी रचना थई छे. भगवान महावीरना प्रथम शिष्य गौतम गणधरना मनमां जैन सिद्धांतो अंगे केटलाक संशय थयेला, तेना निवारणार्थे एमणे केटलाक प्रश्नो महावीरने पूछेला. आ प्रश्नो तेमज एना उत्तरनी गूंथणी आ 'चउपइ'मां छे. एमां कविना अंतःकरणनां वैराग्य अने भक्तिभाव ऊभराई जतां जणाय छे :28 24. 'ऐतिहासिक राससंग्रह' -भाग २–प्रस्तावना. 25. 'नरसिंहयुगना कविओ' 26. 'जनयुग', पुस्तक 5, अंक 9-10 27. आ कृति 'सज्झायमाला' (शा. भीमशी माणेक प्रकाशित) मां प्रसिद्ध थई छे. 28. 'नरसिंहयुगना कविओ,'