________________ के नथी कशो धूंधवाट; मात्र सूत्रो टांकीने गुजरातीमा एनो अर्थ समजाव्यो छे. काव्यने छेडे एमणे आ प्रमाणे कयुं छे : "क्रोध नथी पोषिउ मइ रति, वात कही छइ सघली छती, बोलिउ श्री सिद्धांतविचार, निंदानु सिउ अधिकार. 73 जे जिम जाणउ ते तिम करउ, पण जिनधर्म खरउ आदरउ."३१७४ ___ आ उपरथी स्पष्ट कही शकाय एम छे के लावण्यसमय मात्र धर्मरत के धर्मचुस्त साधु नहि, पण स्वस्थ, बहुश्रुत अने रसिक विद्वान हता. धर्म जेटलो ज समाजमां एमने रस हतो. एमनुं व्यक्तित्व विद्वत्ता अने रसिकताथी मान मेळवे तेवू छे, तो निर्मळ साधुताथी पूजाय तेवं छे. कवन लावण्यसमये प्रबन्ध, रास, चोपाई, छन्द, संवाद, हरियाळी, हमची, सज्झाय, स्तवन, एम अनेक प्रकारनी कृतिओ रची छे. एमांथी केटलीक कृतिओ जैन गृहस्थोना जीवनप्रसंगने लगती छे, केटलीक कृतिओ जैन साधुपुरुषो विशे छे, तो केटलीकमां जैन तीर्थंकरोतुं गुणानुदर्शन छे. 'विमलप्रबन्ध' जेवी कृतिमा इतिहासने तो 'देवराजवच्छराज चोपाई 'मां लोककथाने गूंथी देवामां आवेल छे. केटलीक कृतिओ आठदस कडीनी छे, तो केटलीक सारी रीते मोटी छे. आमांनी केटलीक कृतिओ सामयिकोमा अने पुस्तकाकारे प्रसिद्ध थयेल छ, परन्तु मोटा भागनी अप्रसिद्ध छे. मोटा भांगनी कृतिओमां रचनासमय मळी रहे छे. .. 1. सिद्धांत चोपाई आ कृतिनी रचना वि. सं. १५४३ना कार्तिक सुदि 8 ने रविवारे थई छे. एमां 181 कडी छे : 'ए चउपइ रची अभिराम, लुंकट-वदन-चपेटा नाम. 179 संवत्सर दह पंच विशाल, त्रिताला वरषे चउसाल, काती शुदि आठमी शुभ (रवि)वार, रची चउपइ बहुत विचार. 180 // 181 // इति श्रीसिद्धांत चतुष्पदी / लुकटवदने चपेटा विधाना / लिखिता परोपकाराय // 29 22. जनयुग', पुस्तक 5, अंक 9-10 (वि. सं. १९८६)मा प्रकाशित. 23. 'जैनयुग', पु. 5 अने 'जैन गुर्जर कविओ'-१