________________ 'धर्म करु चितु मम माहि, आलस वइरी आगलि थाइ; पापी परहु करी न सकाइ, रातिदिवस इम आलि जाइ. 16 आरति न टली एकु वार, जनम मरण वचि एक लगार, भवसागरि हूं भमिउ अपार, तुझ विण सामी कुहु कुण तारइ. 17 घरघरणीनि भारिइं जूतु , आगइ जनम धणाइ विगूतु, महिआं मोहनिद्राभरि सूतु, पापकरमि कलि-कादमि खूतु. 18 बालपणइ क्रीडारसि हूंतु, यौवनवय युवतीमुखि जूतु, वडपणि व्याधि घणी जोगवतु, धर्महीण भव इम भोगवतु.' 19 एनो रचनासमय वि. सं. 1545 चैत्र सुदि 11 ने गुरुवार छे. काव्यमां एनो उल्लेख चमत्कृतिपूर्वक थयो छ : 'पहिलु तिथिनी संख्या जाण, संवत जाणु इणि अहिनाण, बाणवेद जउ वांचउ वाम, जांणउ वरष तणो तुमे नाम. 117 वासुपूज्य जिणवर बारमु, चैत्र थको मास जिने नमो, अजुआली इग्यारशि सार, तहीई सुरगुरु गिरुउ वार. 1118 कोई हस्तप्रतमां आ कृतिनी 119, तो कोई हस्तप्रतमां 121-122 कडीओ मळे छे. 3. स्थूलिभद्र एकवीसो आ काव्यनी रचना वि. सं. १५५३ना दिवाळीना दिवसोमां थई छ : 'संवत पंनर त्रिपनइ, संवत्सरे दिवस दीवाली तणउ, थूलिभद्र गायु मय सुणायु एकवीसु ए भणउ.'' एमां एकवीस कडीओ छे. स्थूलिभद्र एक मोटा जैन आचार्य थई गया. एओ पूर्वाश्रममां पाटलिपुत्रमा नन्दराजाना मन्त्री शकटालना पुत्र हता. पाटलिपुत्रनी कोशा नामनी एक प्रसिद्ध गणिकाना प्रेममां पडीने एओ एना घरमां बार वर्ष सुधी रह्या हता. पिताना मृत्यु पछी राज्यखटपट जोईने एमने संसार उपर वैराग्य थयो अने एमणे तुरत ज संभूतिविजय गुरु पासे जईने दीक्षा लीधी. दीक्षा लीधा पछी एमना वैराग्यनी कसोटी करवा गुरुए एमने पहेलो 29. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदाबाद-ह. प्र. नं. 1669 30. अप्रसिद्ध. 31. 'जैन गूर्जर कविओ'-भाग 1