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________________ चातुर्मास कोशाने घेर गाळवानो आदेश आप्यो. पोताना प्रेमाने पाछो आवतो जोईने कोशाने आनन्द थयो, एने चळाववा एणे खूब प्रयत्न कर्या, परन्तु स्थूलिभद्रे तो हवे काम उपर विजय मेळव्यो हतो. कोशाना बधा प्रयत्नो सामे अडग रही, नियत समय सुधी एना घरमां रही, एने प्रतिबोध पमाडी, एओ गुरु पासे आव्या. आ रसिक प्रसंगने आ काव्यमां गूंथवामां आव्यो छे. आये काव्य शब्दलालित्यथी भरपूर छे. एमांनी वर्णसगाई, अंतर्यमक तथा प्रासनी तेमज अगाउनी कडीनी छेल्ली लीटीना शब्दने पछीनी कडीनी शरूआतमां सांकळी लेवानी योजना कवि- छंदप्रभुत्व अने भाषाप्रभुत्व दधेि छे. कविनी आ प्रकारनी वर्णन करवानी अने रस जमाववानी शक्ति काव्यमां स्थळे स्थळे देखाय छे. स्थूलिभद्रने चळाववा माटे शणगार सजी कोशा प्रयत्न करे छे एनुं वर्णन सरस छे : 'कवि कहइ केती–परि जेती, लहइ कोशा कामिनी, पहिरंति चरणा चीर चोली भावभोली भामिनी; कर चूडि खलके, नेउर रणके, पाय धमके घूघरी, झव झालि अबके झूमणां ने खींटली खलके खरी. भोलावया रे भाव भला देखाडती, ___ मरकलडइ रे मानवनां मन पाडती; प्रीय-पाए रे लाडे सीस लगाडती, वर वेणा रे वंस विशेष वजाडती. वर वेणा वाइ, गीत गाइ, भेर भूगल वजए; दोंदी किं सद्धइ, निवल महइ, वंश-सहे वजए; चचपट्ट चूपट, ताल मेलति, करति अलवि थिनगनि, धिधिकटि परगटि, पाय पाडि, पाय परतई पदमिनी.२२ कोशाना प्रयत्न निष्फळ जाय छे. स्थूलिभद्रनो उपदेश एना अन्तरमां खूपी जाय छे. एनुं वर्णन पण सचोट छ : . 'ए तो तृषा रे, सायर परितृप्ति नहीं ए तो जीवीय रे, संध्या-राग जिस्युं लही; 32-33. 'गुजराती साहित्वना स्वरूपो'-डा, मंजुलाल र. मामूदार
SR No.032757
Book TitleNemirangratnakar Chand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Jesalpura
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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