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________________ उपोद्घात प्रतपरिचय अने संपादनपद्धति कवि लावण्यसमय नरसिंह युगना समर्थ कवि छे अने प्रथम पंक्तिना जैन कविओमां घj ऊंचुं स्थान धरावे छे. एमणे नानी-मोटी त्रीसेक कृतिओ रची छे. एमांथी केटलीक कृतिओ प्रसिद्ध थई चूकी छे, पण मोटा भागनी कृतिओ अप्रसिद्ध छे. कविनो नेमिरंगरत्नाकर छंद' गुणवत्तावाळी कृति छे अने ए हजु अप्रसिद्ध छे. मध्यकालीन गुजराती भाषा, साहित्य अने सांस्कृतिक इतिहासना अभ्यासमां ए उपयोगी थई पडे एम छे. एना संपादन माटे नीचेनी हस्तप्रतोनो उपयोग करवामां आव्यो छे. 1. A प्रत -सागरगच्छना जैन ज्ञानभंडारनी आ हस्तप्रत पाटणना श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरमाथी प्राप्त थई छे. त्यांना ग्रंथभंडारमा एनो क्रमांक 9726 (डा. 210) छे. एमां कुल 9 पत्र छे. पत्रनुं माप 10.5"x 4.4" छे. पत्र 1 अने 2 नी आगळपाछळ दरेक पृष्ठ पर 11 लीटी छे, पत्र 3 थी 8 नी आगळपाछळ दरेक पृष्ठ पर 13 लीटी छे, ज्यारे छेल्ला पत्रमा आगळनी बाजुए 13 अने पाछळ 12 लीटी छे. दरेक पाननी पाछळनी जमणी बाजुए हांसियामां नीचे पत्रांक 1 थी 8 काळी शाहीमां अने पत्रांक 9 लाल शाहीमां लखेल छे. दरेक पृष्ठनी डाबी अने जमणी बाजुए लाल शाहीथी आशरे 0.6" नो हांसियो पाडेलो छे अने दरेक पृष्ठनी उपरनीचे पण 0.6" जग्या कोरी राखेली छे. दरेक पृष्ठनी वच्चे कलशाकृति छे अने एमां लाल गोळ वर्तुल मूकेल छे, तेमज संख्यांकवाळां पृष्ठोनी डाबी अने जमणी बाजुए पणं हांसियामां बच्चे गोळ वर्तुळ मूकेलां छे. आखीये प्रत एक ज हाथे देवनागरी लिपिमा लखायेली छे, तेमज अखंड अने सुवाच्य छे. प्रतनो मोटो भाग पडीमात्रामां छे, पण कोई कोई स्थळे खडी मात्रा मळे छे. अक्षरो काळी शाहीमां लखायेला छे, पण शरूआतमां " // एद० श्रीगौतमाय॥" एटला अक्षरो, दंड अने कडीओनी संख्या ( पहेला अधिकारमा 1 थी 66 अने बीजा अधिकारमा 1 थी 115) लाल शाहीमां छे. प्रतमां पुष्पिका के लेखनसंवत नथी.
SR No.032757
Book TitleNemirangratnakar Chand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Jesalpura
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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