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________________ सति सप्तमीनो प्रयोग पण क्यारेक मळे छे. उ. त., प्रहि ऊगमि परणवु करेसिइं (2-76). - (2) विशेषण-अविकारक विशेषणो विशेष्यनी पूर्वे अने पछी कोई पण जातना फेरफार विना ज प्रयोजाय छे. विकारक विशेषणनां पहेली विभक्तिनां एकवचननां रूप ए प्रस्ताव अछइ अति मोटउ (1-55), नान्हडली कडली (1-27), बीहुं त्रीजउं उपमान (2-13) ए प्रमाणे थाय छे. बहुवचनमां कवित ते रूडां होइसिइं (1-12), भट्ट भला (1-40) थाय छे. विशेष्यनी जेम त्रीजी अने सातमी विभक्तिना प्रत्यय इ-ई-ए विशेषणने पण लागे छे. उ. त., तिणई दुषिइं (1-44), इणि परि (1-26), मननई रंगि (2-3), सहीयरनइं टोलइ (2-87), मोटे मोटे मोतीडे जडी (2-52). __ संख्यावाचक-संख्यावाचक विशेषणोमां अध, साढा (बार); इक, इग, एक बि, बे, बेउ, बेहु; तिन्निचार, च्यारइ, च्यारि, चउ; सत्त, सात; अट्ठः नवः दह, दसः बारसोल; अढार, अढारह; छत्तीस; च्यालि, चउपन्न, चउप्पन्नह; सहि; चउसठि; एकोतरः बहुत्तरिः सई, सु, शत; सहस; लक्ख, लाष; कोडि-ए रूपो मळे छे. आवृत्तिवाचक-प्रथम, पहिलउं, बीजु, बिहुं, बिमणु, त्रीजउं, छठइं, अहमि, नवमइ ए रूपो मळे छे. - __अनिश्चित संख्यावाचकमां बहुलां, परघल, बहुत, अतिघण, घणाला ए विशेषण ध्यानपात्र छे. (3) सर्वनाम—हूं, तूं, ति-ते-तेह, ए-एह, जे, इ, आप, कु-को, सिउं वगेरे सर्वनामो एनां विविध विभक्तिजन्य रूपोमां प्रयोजायेला मळे छे.
SR No.032757
Book TitleNemirangratnakar Chand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Jesalpura
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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