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________________ पाटणना पहेला भीभदेव सोलंकीना वीर, मुत्सद्दी अने कलाप्रेमी मन्त्री विमलशानुं चरित्र एमां विस्तारथी आलेखवामां आव्युं छे. प्रथम त्रण खंडमां विमलना पूर्वजो, एमनां पराक्रमो तथा श्रीमाळी ओसवाळ अने पोरवाड वणिकोनी उत्पत्तिनु वर्णन करवामां आव्युं छे. चोथा खंडमां विमलना जन्म, बाळपण अने विद्याभ्यासनुं तेमज पांचमा खेडमां श्रीदेवी साथे एना लग्ननुं वर्णन करवामां आव्युं छे. छठा खंडमां विमले पाटणना राजा भीमदेवने पोतानी बाणविद्याथी प्रसन्न करी दंडनायकनी पदवी प्राप्त कर्या, तेमज दुश्मनोनी कानभंभेरणीथी भीमदेवे विमलनु कासळ काढवा करेली युक्तिओ अने एमां विमले मेळवेल विजयनुं वर्णन करवामां आव्युं छे. सातमा खंडमां पाटण छोडी विमले चन्द्रावतीनगरीनु राज्य मेळवी, त्यां स्थिर थई, रोमनगरना सुलतान पर विजय मेळव्यानु, तथा आठमा खंडमां विमले ठठानगरना राजाने हरावी गुर्जरनरेश भीमदेवनी भेट मेळव्यानुं अने चन्द्रावतीने नवेसरथी वसाव्यानुं वर्णन छे. छेल्ला नवमा खंडमां विमले मुश्केलीओनो सामनो करी आबु उपर 'विमलवसही'नां प्रख्यात देरासर बंधाव्यानी विगत छे. ___आम, विमलनुं समग्र चरित्र आ प्रबंधमां आलेखवामां आव्युं छे, पण “जैन कविओए लखेलां अन्य जीवनचरित्रोनी जेम सांप्रदायिक अने धार्मिक वर्णनोथी ते मुक्त नथी. आबु पर्वत उपर बंधावेलां जगप्रसिद्ध 'विमलवसही'नां मन्दिरोने कारणे विमळ जैनोमां आदरणीय अने अनुकरणीय व्यक्ति तरीके प्रशंसायेल छे; आजे पण प्रशंसा पामे छे. आथी एना प्रत्येक कार्यमां लावण्यसमयने अद्भुतता जोवा मळे अथवा आ इष्ट व्यक्ति विशे एवां एवां कार्योनो उल्लेख थाय जेनाथी जैन धर्मनी प्रतिष्ठा वधे, ए आ चरितना आलेखन पाछळनी कविनी दृष्टि छे....आथी 'विमलप्रबंध'ना सुदीर्ध विस्तारमा कथाओ, वर्णनो, धार्मिक उत्सवो, लांबा उपदेशो वगेरे विशेषपणे जोवा मळे छेइतिहासतत्त्व ओळु.५४० आ रीते जैन धर्मनो प्रताप वधारवानो कविनो उद्देश होई, आ प्रबंध सांप्रदायिकताथी रंगायेलो छे. एम छतां तक मळतां कविए एमां अढार वर्ण, विद्याभ्यासनी पद्धति, सामुद्रिक लक्षणो, लग्नना रीतरिवाज, भोजन, कलियुगनां लक्षणो, अस्त्रशस्त्र, अश्वप्रकार, स्त्रीनी चोसठ कला, शुकन-अपशुकन, नगररचना, रागरागणी, जुदा जुदा देश, भाषाना भेद इत्यादि विशे सारी माहिती पीरसी छे. तत्कालीन समाजजीवनना अध्ययन माटे ए उपयोगी सामग्री पूरी पाडे छे, पण एर्नु य प्रमाण एटलं मोटुं छे के तेथी वस्तुनो प्रवाह शिथिल लागे छे अने रसक्षति थाय छे. तेथी ज तो 15. 'विमलप्रबन्ध-एक अध्ययन'-डॉ. धीरजलाल ध. शाह
SR No.032757
Book TitleNemirangratnakar Chand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Jesalpura
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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