Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 68
________________ स्ववाचक-आप, आपई, आपुलइ अनिश्चित-कु, को, कोइ, कांइ, कइ, किंपि, केवि, सवि, सहू, केता प्रश्नवाचक-सिउं, सिउ, स्या, किसिइं संबंधक -- जे, जे-ते, जं-तं / साधित रूपोमा इसिउं, इसिउ, :एहवी, जेवड, त्रेवडी, किसिउं, एतइ, एतलइ, केता, जिस्यां ए विशेषणात्मक रूपो वपरायां छे. (4) क्रियापद--क्रियापदनां त्रणे काळनां रूप मळे छे. वर्तमानकाळ-कर्तरि रूप पु. ए. व. ब. व. 1 बोलउँ, कहउं, मागं, जंपूं कहीइ, थइइ, कहीयइ, लहीयइ 2 डरइ. आणइ, झषइ, कहि मानउ, जाणउ 3 करइ, चालइ, अछइ, पडए करइ, करए, धूजई, लडथडए, रडइए कर्मणि रूप कर्मणि रूप मुख्यत्वे त्री. पु. ए. व. अने ब. व. मां मळे छे. तेनां संख्याबंध रूप प्रयोजायां छे. उ. त., दीजइ (2-29), जोइइ (1-64), मुंकीइ (2-40), चूरियइ (2-40) इत्यादि. कर्मणिर्नु नपुं रूप कहाइ (2-31), सुहाइ (2-42), षमाइ (2-131) वगेरे पण आ. कृतिमां मळे छे. दीजइ (2-46), कीजइ (2104), लीजइ (2-103), थाइ (2-126) वगेरेनो अर्थ कर्तरि पण थई चूक्यो छे. ____ भविष्यकाळ-कर्तरि ब. व. गाइसु, करसिउं, करिसु, कहिसिउं, देस्यूं खासिउ, जासिउ 3 करसिइ, करेसिइ, बोलसिइ जोसिइ, जोइसिई, वधेसिइं होसिइ, हुसिइ आज्ञार्थ (1) शुद्ध आज्ञार्थ- शुद्ध आज्ञार्थमां बीजा पुरुष एकवचनमां कहइ, कहि, कर, करि, सुणि, पालि, आपे, कापे इत्यादि अने बहुवचनमा जोउ, थाउ, जाणउ, करु, आपु, रहु इत्यादि रूप मळे छे. . शुद्ध आज्ञार्थमां बी. पु. ए. व.मां कर्मणिनां रूपोनो पण प्रयोग थयो छे. उ. त., कीजइं (1-58), कीजइ (1-83), लीजइ (2-107). ا م م له

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