Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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________________ भविष्यार्थ आज्ञार्थ-भविष्यार्थ आज्ञार्थमां बी. पु. ए. व.मां राषजे, दापजे (2-153) अने ब. व. मां सुणिज्यो, धरज्यो, जाज्यो जेवां रूपो प्रयोजायां छे. प्रेरकनो प्रयोग मूळ धातुना उपान्त्य अ नो आ थईने के मूळ धातुने आव अने आड प्रत्यय लागीने बनेलां प्रेरक रूपो आ कृतिमां मळी आवे छे. उ. त., वालइ, तारइ, ऊडाडी, नमाडी, रमाडी,रिमाडया, दिषाडइ, परणावउं, सुणाविउ, हरषावउ, मनाव्या. कृदंत वर्तमान, भूत, हेत्वर्थ, संबंधक अने विध्यर्थ के सामान्य कृदन्त अहीं जोवा मळे छे. वर्तमान कृदन्तमां रमतु, जातउ, ऊपजतु (ए. व.), माता, रोतां, जिमतां (ब. व.) उपरांत सं. ०अन्त् (एनुं निर्बळ रूप अत्) मांथी प्राकृतमा विकसेला अन्त अंगथी बनेला झलकंती, वहंतु, धृजंतउ, वाजंति, बोलंति, माचंता, नाचंता, विहरंता, पडतां, करंतां रूप पण ठीक ठीक संख्यामां मळे छे. सं. कर्मणि रूप बनावता य् नो विकास ई पण केटलांक वर्तमान कृदन्तनी पूर्वे आवी मळयो छे. उ. त., वदीता, कहीतां. भूतकृदंतमा हुउ, कीधउ, गयु, तुटउ, दिउ, दीठउ, चडीउ, वूठउ, पूरिउ जेवां रूपो पुंल्लिंग एकवचनमां अने समाया, आया, आव्या, डरिया, त्राठा, नाठा, पइठा, नठा, तेडया, जनम्या जेवां रूपो पुंल्लिंग बहुवचनमां मळे छे. मराठीनी जेम प्राकृत भूतकृदंतना इल्ल प्रत्ययवाळां रूपो पण तेमां प्रयोजायेलां छे. नपुंसक ए. व.मां लागउं, करिउं, नीठउं, दीठउं, लीधं, थy, जोयउं, हतूं, नडतूं अडतूं अने नपुंसक ब. व.मां काढीयां, जीतां, कीधां, ग्यां, पइठां जेवां रूपो मळे छे. स्त्री. ए. व. मां चडी, ऊपाडी, दीधी, पइठी, कही, हुति अने स्त्री. ब. व.मां सिणगारी, परिवरी, सनकारी जेवां रूपो मळे छे. सौराष्ट्रमा व्यापक आणी प्रत्ययवाळां रूपो पण स्त्री. ए. व. अने ब. व. मां मळे छे. उ. त., कहाणी (1-85), ऊजाणी (1-72). सामान्य रीते भूतकृदंत क्रियापदनुं काम सारे छे. हेत्वर्थमां करिवा, तरिया, वरवानु, करवानु, सूवा जेवां रूपो मळे छे. * संबंधकमां कही, लोपी, टाली, पामी, प्रणमीय जेवां रूपो मळे छे. अप

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