Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ 37 पान पदारथनी वेलडी, दूध दहीं दीसई सेलडी, . साकर सरस सर सरस झरइं, उत्तम पर-उपगारी सरइं.' (खंड 3) 19. प्रकीर्ण आ उपरांत लावण्यसमये केटलीक नानी कृतिओ रची छे, तेमांथी नीचेनी कृतिओ विशे -- ऐतिहासिक राससंग्रह 'नी प्रस्तावनामा नोंध छ : 1. गौतमरास, 2. गौतमछन्द, 3. जीराउला पार्श्वनाथ विनति, 4. पंचतीर्थस्तवन, 5. राजिमतीगीत, 6. दृढप्रहारीनी सज्झाय, 7. कर्माशाहे करावेला उद्धारनी प्रशस्ति, 8. पंचविषय स्वाध्याय, 9. आठमनी सज्झाय, 10. सात वारनी सज्झाय, 11. पुण्यफलनी सज्झाय, 12. आत्मबोध सज्झाय 13. चौद स्वप्ननी सज्झाय, 14. दाननी सज्झाय, 15. श्रावकविधि सज्झाय, अने 16. ओगणत्रीस भावना. 'जैन गूर्जर कविओ' भाग १मां आ सिवाय बीजी केटलीक कृतिमओनी नोंध छः 1. मनमांकड सज्झाय, 2. हितशिक्षा सज्झाय, 3. पार्श्वनाथजिनस्तवन प्रभाती, 4. आत्मप्रबोध, 5. नेमराजुल बारमासो, अने 6. वैराग्योपदेश". ए ज पुस्तकना भाग 3 खंड १मां 1. गर्भवेली-(११४ कडी) अने 2. गौरीसांवली गीतविवाद ए बे कृतिओनो उल्लेख छे. आ बधी कृतिओमा कविनो धर्मप्रेम, वैराग्य अने भक्तिभाव जोवा मळे छे. __ आ उपरांत कविनां केटलांक गीत अने हरियाळीओ हस्तप्रतोमां मळे छे. कविनी हरियाळीनो नमूनो जोवा जेवो छ : 'बीज विण वधइ केलि, केलि नही उजलवन्तउ, ऊजलवन्तउं हंस, हंस नही जलि उपन्नउं, जलि ऊपनउं कमल, कमल नही जलि सीदाइ, जलि सीदाइ अग्नि, अग्नि नही सहू को खाइ, सहू को खाइ अन्न, न फल तसु को कहइ; लावण्यसमय मुनिवर भणइ. जाण पुरुष लीलां करइ." 63. आ उल्लेखमांनी कृति नं. 4, 5, 6 शा. भीमशी माणेक प्रकाशित 'सज्झायमाला'मां मळे छे. 64. ला, द भा. सं. विद्यामन्दिर-ह. प्र. नं. 8460

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122