Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 51
________________ कवितुं जीभलडीनुं गीत प्रीतमदासना ए ज प्रकारना गीतनी याद आपे एवं छे : 'जीव भणइ, सुणि जीभडली, पापइ पिंड भरावइ; आपसवारथ आघी थाइ, अम्हचइ काजि न आवइ, भइ. बापडली रे जीभडली, ढालि पडी तुं एहवइ, . खाटाखारा षटरस सेवइ, अरिहंत नाम न लेवइ, भइ. ध्यान धरूं जव सामी केलं, तव तुं सहीअ बोलावइ, जपमाला कर थिकी पडावइ, मझनई मांड डोलावइ, भइ. काया पुर पट्टण, हूं छउं राजा, तुं थापी पटरांणी, आज लगइ गुरुवचन विहूणी, मइ इसी अभगति जाणी, भइ. तुहइ नीलजपणउं न छांडइ, बोलइ छंदाचारा, भइ. तुं बंधावइ, तुं छोडावइ, तुझ जामलि कुण आवइ, नारि भली जेह ज प्रीअ भगती, घरनू सूत्र चलावइ, भइ. सावअ-लक्षण बहु गुणवंती, घणउं किस्यउं तुझ कहीइ, जीव भणइ, सनमारगि चालउ, तिम रूडइ निरवहीइ, भइ. जीव-सीखामण जिह्वा लागी, जिनगुण गावा लागी, कहइ लावण्यसमय वइरागी, पापभ्रंति सहू भागी. भइ". आम लावण्यसमय- साहित्यसर्जन ठीक ठीक विपुल छे. छन्द अने भाषा पर एओ घणो काबू धरावे छे. छन्दमां शब्दोने तो एओ धार्या प्रमाणे रमाडे छे ने प्रसंगोपात्त माधुर्य के ओजस प्रयोजे छे. अलंकारो, दृष्टान्तो अने सामान्य विधानोथी कोई पण विषयने तेओ दीप्तिवन्त बनावी मूके छे. एमनुं पांडित्य अने सामाजिक जीवनऊंडे ज्ञान एमनी कवितामा वारंवार प्रगट थाय छे. कोई पण प्रसंग, पात्र के भावना वर्णनने रसमय बनाववानी कळा एमने सहज छे. ए रीते लावण्यसमय मध्यकाळना प्रतिभाशाळी कवि छे. श्री. कनैयालाल मुनशी कहे छे तेम प्रथम पंक्तिना जैन कविओमां एमनुं स्थान घणुं ऊंचुं छे". 65. ला. द. भा. सं. विद्यामन्दिर-ह. प्र. नं. 533 649, 1595 66. 'नरसिंहयुगना कविओ.'

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