Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________ भाषास्वरूप ' नेमिरंगरत्नाकर छन्द' भाषानी दृष्टिए महत्त्वनी कृति छे. तेनी ध्वनिमालामां ऋ के ळ देखाता नथी. तद्भव शब्दोमा अन्त्य के उपान्त्य स्वरयुग्मों अइ के अउ मांथी हजु ऐ के औ संयुक्त स्वरो विकस्या नथी, जो के एनुं उच्चारण थतुं हशे. ऐ अने औ संस्कृत तत्सम शब्दोमां सचवाया छे. उ. त., दैव (2-104), सौभाग्य (2-149) ऋ बहुधा रि मां रूपान्तरित थयो छे. उ. त., रिदय (1- 77, 1-78), रिधि (2-106) चरणान्त प्रासमां कोई वार इ अने य नो प्रास सधायो छे. उ. त., पाय ........ सुहाइ (2-69), जे इ - प्रतिसंप्रसारण सूचवे छे. क्वचित् लघुप्रयत्न य मळे छे. उ. त., देस्यू (1-55), सुणिज्यो (2-5), च्यारि (2-65), जाज्यो (2-71) - हनुं उच्चारण स्वरसहित जुएं मळे छे. उ. त., नान्हडली (1-27), एहवी (1-78), साहमा (2-10), तुम्हारउ (2-130) क्वचित् त्वरित उच्चारणने कारणे शब्दोना वर्णोनुं संकोचन थयुं छे. उ. त., ल्यावइ (1-74), नापु (1-84) क्वचित् र नो प्रक्षेप थयो छे. उ. त., त्रोडी (1-37), त्रूटइ (1-40) केटलाक अर्ध-तत्सम शब्दोमां विप्रकर्ष मळे छे. उ. त., दुरमति (1-1), भगतिइं (1-8), सिरिवछ्छ (1-29), कीरति (2-137) मूळ संस्कृत न नो प्रा. अप. द्वारा मध्य. गुजरातीमां ण चालु रह्यो छे, तेम अहीं पण कवियणजण (1 -2), हंसगमणि (1-3), पदमिणि (1-48), देसण (2--143) मळे छे. तेवी रीते मूळ संस्कृत र नो प्राकृत द्वारा चालु रहेलो ल मळे छे. उ. त., सुकुमाल (2-98), सुकमाला (2-140) बहुधा तद्भव शब्दोमां अने क्वचित् तत्सम शब्दोमां ज्यां ष आवे छे त्यां ख ना लेखनप्रतीक तरीके ते वपरायेलो छे. उ. त., चोषी (1-9), वषाणइ (1-10), पारषि परपई (1-11), शंष (1-31), मुषि (1-42), दिषाडइ (1-45), दष (2-132), राषजे (2-153)

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122