Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 58
________________ सं. १७४२मां माणिक्यविजये, सं. १७४४मां नयविजये, सं. १७५५मां विनयचन्द्रे, सं. 1729 थी 1762 दरम्यान जिनहर्षे, सं. १७९५मां उदयरत्ने, सं. १७९५मां देवविजये, सं. १८४५मां महानन्दे--एम केटलाय कविओए आ विषयनां बारमासीकाव्यो रच्यां छे. आ उपरांत सं. १५२४मां मतिशेखरे -- नेमिनाथ वसन्तफूलडां', सं. १५६२मां लावण्यसमये ' नेमिनाथ हमचडी' अने सोळमा शतकना अन्तभागमां विनयदेवसूरिए ' नेमिनाथ धवलविवाहलु ' रच्यां छे. आ बधां काव्योमा 'नेमिरंगरत्नाकर छन्द ' विशिष्ट भात पाडे छे. नेमिनाथना जन्मथी मांडीने तेमना किशोरवयनां पराक्रम, लग्न करवा माटेनो तेमनो इन्कार, उग्रसेन राजा अने शिवादेवीनी पुत्री राजिमती साथे नेमिनाथना लग्न कराववा माटे कृष्णनो प्रयत्न, वसंतखेल द्वारा गोपीओनी विनवणी, एमना आग्रहनो नेमिनाथे करेलो स्वीकार, लग्ननी तैयारी, लानप्रसंगे थनार जीवहत्याथी नेमिनाथने उत्पन्न थयेल निर्वेद अने तेमणे करेल संसारत्याग, आशाभंग राजिमतीनी विरहव्यथा, गिरनार पर जईने नेमिनाथे लीधेल दीक्षा अने करेली केवलज्ञाननी प्राप्ति, राजिमतीने अने संसारीओने नेमिनाथे आपेल उपदेश--- ए प्रसंगो तेमां लावण्यसमये विस्तारथी अने उमळकाथी आलेख्या छे. आ दरके स्थळे तेमनी उच्च वर्णनशक्तिनो परिचय थाय छे. गोपीओ नेमिकुमारने लग्न करवा वीनवे छे, तेनी सामे दलील करतां स्त्रीओ पतिने केवी रीते हेरान करे छे तेनु नेमिकुमार वर्णन करे छे. (अधिकार 1, कडी 59 -76). गृहजीवननुं अने स्त्रीस्वभावनुं आ तादृश चित्र लावण्यसमयनुं मौलिक सर्जन छे. नेमिनाथविषयक अन्य काव्यमां ते मळतुं नथी. तेने लीधे काव्यमां हास्यनी छांट उत्पन्न थाय छे अने काव्यना उद्देशने असरकारक बनाववामां ते उपयोगी नीवडे छे. ___ लग्नने अंगे थनार पशुओनी हत्यानी कल्पना आवतां ज नेमिकुमार लग्न कर्या विना लानना मांडवेथी पाछा फरे छे. . त्यारे राजिमतीनुं मन भांगीने भूका थई जाय छे. तेनी आ विरहावस्थानुं वर्णन लावण्यसमये बीजा कविओ करतां विस्तारथी कर्यु छे. (अधिकार 2, कडी 83 थी 111 ). 'कव्यां कवीश्वरि अविरल आगइ' ए पंक्तिमां कविए पोते जणाव्युं छे तेम वि. सं. ना पंदरमा शतकमां

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