Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 44
________________ 17. चतुर्विशति जिनस्तवन __ आ कृति वि. सं. 1587 पहेला रचाई होवानो संभव छे, कारण के आ कृतिनी शरूआतमां 'आदिनाथ भास सं. 1587' एवो उल्लेख छे.५१ 28 कडीनी आ कृतिमा प्रथमनी 24 कडीमां जैनोना चोवीस तीर्थंकरोनी, दरेक कडीमां एकेक तीर्थकरनी, स्तुति छे. एमांनी प्रथम 27 कडीओ मालिनी छन्दनी अने छेल्ली चार लीटीनी कडी हरिगीत छन्दनी छे. कवितुं छन्द प्रभुत्व उच्च कोटिनुं छे. प्राचीन मध्यकालीन गुजराती साहित्यमा अक्षरमेळ वृत्तोनो प्रयोग ओछो मळे छे अने अक्षरमेळ वृत्तोमां रचायेली सळंग कृति तो गणीगांठी छे." ए रीते तेमज तत्कालीन गुजराती भाषाना अभ्यासनी दृष्टिए उपयोगी होवाथी आ आखीये कृति अहीं आपी छे." वर्णसगाई, अन्तर्यमक तथा प्रासनी योजना, तेमज चार ज लीटीमां दरेक तीर्थकरनुं व्यक्तित्व सर्जवानी कविनी शक्तिने कारणे पण आ कृति नोंधपात्र छे. - मालिनी छंद कनकतिलक भाले, हार हीइ निहाले, ऋषभपय पषाले, पापना पंक टाले. अरचि नव रसाले फूटडी फूलमाले, नर भव अजूआले, राग नई रोग टाले. 1 अजित किणि न जीतु, जेहनई मान वीतु, अवनिवर वदीतु मानीइ मानवी तु. लहसि सुख निचीतु, पूजि रे मानवी तु... जु जिन मनि चीतउ मुकीइ मान-वीतु. 2 59. जैन गूर्जर कविओ-भाग 3, खंड 1 60. 'प्राचीन गुजराती साहित्यमां वृत्तरचना'-डॉ. भोगीलाल ज. सांडेसरा (ई. 1941) 61. आ कृति 'जनयुग' पु. 1 (पृ. 178-79, सं. मोहनलाल दलीचन्द देसाई) मां प्रसिद्ध थई छे पण ला. द. भा. सं. विद्यामंदिरना ग्रंथभंडारमांथी वधारे शुद्ध अने जूनी हस्तप्रतो नं. 5253 (त्रण पत्रनी) अने 4143 (बे पत्रनी) मळी होवाथी, ए परथी अहीं एर्नु संपादन करवामां आव्यु छे, अने ए हस्तप्रतने अनुक्रमे A अने B संज्ञा आपीने पाठमेद नोंध्या छे. कोई प्रतमां लख्यासंवत नथी पण लिपि (पडीमात्रा अने खडीमात्रा बनेनो उपयोग एमां थयो छे ए) उपरथी वि. सं. 1600 लगभग ए लखायाना संभव छे. बनेमां A प्रत वधारे जूनी छे. 1. A रिषभ AB पाय. 2. A कणि. B लहेसि. A मति. B चीतिउ.

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