Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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________________ 'कुंअरि अंग करइ मांजणउं, सिंगारी सोहावी घणूं, पहिलू आंज्यां आछां नेत्र, पटउलू पहिरइ पानेत्र. 85 लंब वीणि लहकि गोफिणउ, रूअडू रंग राषडी तणउ, मने रंगिइं माता पूरिउ, शरि सहिथउ ते सिंदूरिउ. 86 नीलवटि टीली व्युतपति घणी, झालि झबूकि सोना तणी, मादलीयां वलीयां वेढलां, कंचू कसण कसि ते भला. 87 करि चूडी कंकण खलकती, शरि बावनचन्दन बहिकती, रिमिझिमि पयल करि झांझरां, जांणे मयण तणां पांजरां. 88 मुष जोइ आरिसा मांहि, वीजणडे वीजावि वाइ, सहीयर सहीयर सरसी मिलइ, टोलइ टोडर घालि गलइ. 89 उढी घूघरीआली घाट, वेगि' जोइ वरनी वाट.' 90 (खंड 4) नगरठद्वाना राजा सामे विमले करेला युद्धनुं जुस्सादार ने झडझमकथी भरपूर भाषामा करेलुं वेगभर्यु वर्णन आ बधां वर्णनोमां जुदी ज भात पाडे छे : 'झूझाला झूझइ वीर वडा, रणि रोसि भर्या भय भीम भडा. 44 नव खंड अखंड ति षंड करइ, भड घेले पांडे पंति धरइ. 46 घण गोला गोफिगि फार फिरइ, रणसागरि संध्या वीर तरइ, सिरि बाजि गुरज ते सुरज समी, पल खूटते खूट ते जाइ नमी. 47 मदभीभल गज गर्जित भमइ, असवार रसि समरि रमइ, दंतूसलि मूसलि सूंठि मुडइ, भड चंप्या कंप्या पुहवि पडइ. 49 तप तपता तपता प्रगट पड्या, करि काती राती के विकटा, भडतां भडतां लटकंति ढल्या, जण जाणे झूबि वृक्ष वटा. 50 घण घूम्या दूम्या घाय वडि, भयभीता जीता रानि रडइ, गयणे उडती अंगि अडि, समली जमली जम लीजत पडइ. 51 सुर किंनर कोटी लोक लषा, रण जोई होइ पंच पषा, कट कट्टरि कट्ट विकट कटा, गढ कूटी कीधा लोटवटा. 52 हय वाल्या ढाल्या वीर तपइ, रणझालि फालि टोप टपइ, दवि पक्खर पक्खर पंष पिरइ, तिम सक्खर सक्खर लक्ख वरइ. 53

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