Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 34
________________ मोटां मादलीआं वांकडी, माय तणि मांनि मोजडी, अलजइआं आण्यां अंगलां, काने कनक तणां वेटलां. 24 पाये घूधरडी घमघमइ, बालूअडु ते अंगणि रमइ, . साहामूं जोइ करती काम, माडी हैअडि धरती हाम. 25 करइ काम हालरडां गाइ, माता हैअडि हर्ष न माइ, पोढउ थातु पगलां भरइ, पंच वरस जव वुल्यां परइ.' 25 - ( खंड 3) पछी एने भणाव्यो, परणाव्यो, त्यारे छेवटे 'आज अम्हारू वडपण इशृं, बेटइ ए ते बोलिउं किशउ, बलतइ बोलइ साहामु धशउ, जै बेटउ अनेषिइं वशउं. 41 वहूअरना तव माग्या पड्या, मनवंछित मनोरथ फल्या. 42 (खंड 3) आवां प्रसंगचित्र अने स्वभावचित्र साथे कवि कलियुगनी लोकस्थितिनां चित्रो पण वेगथी सर्जे छ : 'जोउ कलियुग केरु अपाय, लोभिइ वाधइ रंकह राय. 77 यौवन माटइ मोडइ अंग, परनारीशू झाझा रंग, घरघरणीशू नावि घाटि, करइ वेठि नर फोकट माटि. 78 मनि मिल नितु करइ सनांन, वधइ जीव नि आपि दांन, धन ऊधारि करणि करइ, विण आलइ रणिउ थै मरइ. 79 जे जाणइ जे माहारु मित्र. जाते दिनि ते थाइ शत्र. 81 वसुधां हशि घणा विषवाद, सागर मेल्हे शि मर्याद. 83 को कहिनइ नवि मांनइ गणइ, सहू चालइ छंदिइ आपणइ. 85 विनय गयु वाधिउं अभिमान, लखपरि लोभिई मांडइ कान. 86 हाट घाट ते मांड्यां जाल, करइ कूड ते नान्हां बाल, .. मोटां नगर गयां ते घठी, रा लोभी कर मागइ हठी.' 87 ( खंड 3) लग्नोत्सुक श्रीदेवीनुं कर्णमधुर शब्दोमा करवामां आवेलुं वर्णन पण नोंधपात्र छे;

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