Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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________________ सुणि सुन्दरि रे, जोव्वण जलबुदबुद समो, इम जाणि रे, आलि कहो किम नींगमो ? किम नींगमुं दिन आलिं माटे, एणि वाटे जग जयों; रसभोग केरां, अति भलेरां, भोगवि थिर कुण रह्यो ? संसार पडीयो, विषय नडीयो, जीव जो चेते नहीं, आवीओ ठालो, गयो भूलो, धरम विण नर भव वही.' 4. नवपल्लवपार्श्वनाथ-स्तवन कविए वि. सं. १५५८मां नवपल्लवपार्श्वनाथनी यात्रा करी हती ते प्रसंगे आ काव्य रचायेलं छे : 'संवत पन्नर अठावन्नि रे, चैत्र वदि चउसाल, ए तु मुनि लावण्यसमय नवपल्लव कीधी जात्र रसाल." आ नानकडा काव्यमा जैनोना त्रेवीसमा तीर्थंकर पार्श्वनाथनुं स्तवन छे. कविनो भक्तिभाव एमां ऊभराय छे. 5. आलोयण विनति करेलां पापोनी आलोचना जैनोना प्रथम तीर्थंकर आदीश्वर समक्ष एमां करवामां आवी छे. एमां 57 कडी छे. एनी रचना वि. सं. १५६२मा वामजनगरमां थयेली छे. : 'संवत पंनर बासठइ आदीसर रे अलवेसर साषि तु, वामज माहे वीनवइ सीमंधर रे देव दरिषण दापि तु.१ 54 एमां कविनी झळहळती साधुता अने ऊभराई जतो भक्तिभाव मालूम पडी आवे छे. 6. नेमनाथ हमचडी आ कृतिनो रचनासमय वि. सं. 1562 छे : 'संवत पनर बासठे रे गायु नेमिकुमारो, मुनि लावण्यसमय इम बोलइ, वरतिउ जयजयकारो'. पण केटलीक हस्तप्रतमां रचनासमय वि. सं. 1564 छ : 'संवत पनर चउसठइ रे गाया नेमिकुमारो, मुनि लावण्यसमइ इम बोलइ, वरतिउ जयजयकारो'. 34. ऐतिहासिक राससंग्रह' भाग 2; ला.द.भा.सं.मंदिर-ह. प्र. नं. 6995. आ काव्य अप्रसिद्ध छे. 35. जैन गूर्जर कविओ'-भाग 1; ला.द.भा.सं.मंदिर-ह. प्र. नं. 3351 36. 'मरसिंहयुगमा कविओ.' आ काव्य अप्रसिद्ध छे. 37. 'जैन गूर्जर कविओ'-भाग 1. 38. ला. द. भा. सं. मंदिर -ह. प्र. नं. 6211. आ काव्य अप्रसिद्ध छे,

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