Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 21
________________ __ आ उपरथी लावण्यसमयना गुरु कोण एवी शंका थवा संभव छे, परन्तु सुमतिसाधु, सोमसुन्दर, सोमगुण, इन्द्रनंदि, राजप्रिय, शुभरत्न, सुधानन्दन, रत्नमण्डन, जिनहंस आदि दस मुनिओने लक्ष्मीसागरसूरिए आचार्यपद आप्यानो उल्लेख मळे छे." सोमविमळ नामना साधुए वि. सं. १६०२मां रचेल ‘गच्छनायक पट्टावली सज्झाय'मां पण आ अगियार मुनिओने लक्ष्मीसागरसूरिए आचार्यपद आप्यानो उल्लेख छे." एटले ए सर्वे लावण्यसमयना गुरुभाई समजाय छे. तपागच्छनी पट्टावली मुजब लक्ष्मीसागरसूरिनी पाटे सुमतिसाधुसूरि आव्या छे. एमने विशे लावण्यसमयने अत्यन्त मान छे अने 'सुमतिसाधुसूरिविवाहला'मां सुमतिसाधुना दीक्षाना प्रसंगने एमणे रसिकताथी वर्णव्यो छे. लावण्यसमये गुरु तरीके लक्ष्मीसागरसूरि अने समयरत्नसूरि बनेनो उल्लेख को छे, एनो अर्थ कई रीते घटाववो ए प्रश्न रहे छे. परन्तु लावण्यसमयने दीक्षित थवा तैयार करनार समयरत्न हता. लक्ष्मीसागरसूरि पासे दीक्षा लीधा पछी अनेक . विषयोनुं अध्ययन पण एमने समयरत्ने कराव्यु छे. लक्ष्मीमागरसूरिनो स्वर्गवास वि. सं. १५३७मां थयेलो.“ए पछी लावण्यसमयना प्रेरक समयरत्नसूरि होय ए स्वाभाविक छे. आम पहेला गुरु समयरत्नसूरि छे, ज्यारे दीक्षागुरु लक्ष्मीसागरसूरि छे. शजय-प्रशस्तिमां "पूज्य पं. समयरत्न-शिष्य पं.लावण्यसमय" एवो उल्लेख छे. ए परथी भक्तसमुदाय पण लावण्यसमयने समयरत्नना शिष्य तरीके ओलखतो लागे छे. लावण्यसमये समयरत्नने माटे 'गिरूआ गुणवंत', 'गुरुराय', 'मुनीश्वरो' जेवा विशेषणोनो उपयोग को छे. वळी एक ज गुरुनो उल्लेख करे छे त्यां एओ समयरत्ननो ज उल्लेख करे छे. आ उपरथी पोताना गुरुभाई प्रत्ये लावण्यसमयने मान छे, एमने पोताना गुरु समान गणे छे, दीक्षागुरुने पण एओ अत्यन्त मान आपे छे, पण गुरु तरीके सौथी वधु मान तो समयरत्नने आपे छे, ए स्पष्ट छे. लावण्यसमय, अवसान क्यां अने क्यारे थयु ए विशे कशी माहिती मळती नथी, परंतु एटलुं चोकस कही शकाय के वि. सं. 1589 सुधी एओ हयात 15. “ऐतिहासिक राससंग्रह भाग २-सं. श्री विजयधर्मसूरि, सं. 1978 -प्रस्तावना 16. "ऐतिहासिक सज्झायमाला'' भाग 1 17. जैन गूर्जर कविओ, भाग 2 18. जैन गुर्जर कविओ, भाग 1 . 19. क्यारे स्वर्गस्थ थया ए जाणवा कई साधन उपलब्ध थयुं नथी.” (जै. गू. क. १-पृ. 70) "तपास करवा छतां कविनो देहोत्सर्ग काहां अने कया समये थयो ते काई जाणवामां आव्यु नथी.'' ('ऐतिहासिक राससंग्रह भा. २-सं. श्रीविजयधर्मसूरि-प्रस्तावना, पृ.१६)

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