Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 25
________________ २५ हां जिन उवन उवन मिलिये, जिहि उवन सिद्धि चलिये । हां जिन समय सरनि सरिये, जिहि उवन मुक्ति मिलिये ॥ ८ ॥ हां जिन ममल भाव रमिये, जिहि सहज सिद्धि चलिये । हां जिन समय समय मिलिये, जिहि रमन मुक्ति चलिये ॥ ९ ॥ हां जिन सहयार सहज मिलिये, सहयार कम्मु गलिये । हां जिन गुप्ति न्यान मिलिये, जिहि रमन मुक्ति मिलिये ॥ १० ॥ हां जिन षिपक भाव षिपिये, हां जिन विंद रमन रमिये । हां जिन कमल कलन मिलिये, जिहि मुक्ति रमन रमिये ॥ ११ ॥ अन्मोय तरन मिलिये, तं विंद कमल रमिये । अरी मै न्यान रमन रमिये, जिननाथ सिद्धि मिलिये ॥ १२ ॥ सम समय मुक्ति मिलिये, हां जिन उत्तु वयन धरिये ॥ १३ ॥ जब जिनु रयन रमन जिन उवने, अन्मोय न्यान चितु लायौ । तं दिप्ति दिस्टि पिऊसब्द रमन जिनु, सह समय मुक्ति सिहु पायौ । अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ १४ ॥ तं तारन तरन समथु, अब मैं पाए हैं स्वामी, अर्क अर्क दर्संतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ १५ ॥ तं अर्क विंद संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अब परम अगम दर्संतु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अब समउ न विहडै सोई, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ १६ ॥ उत्पन्न मुक्ति संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । तं विंद कमल संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ उत्पन्न अर्क संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अर्क अनन्तानन्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ १७ ॥ (४) उत्पन्न रंजु भय षिपक रमन जिनु, नन्द नन्द सुइ पाए । हिययार रंजु तं अमिय रमन जिनु, आनन्द मुक्ति रमि पाए | अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ १८ ॥ जिन जिनयति जिनय जिनेंदु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अब समउ न विहडै सोइ, अब मैं पाए हैं..॥१९॥ नन्द अनन्द संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अन्मोय न्यान संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २०॥ अलषु लषु जिनदेउ, अब मैं पाए हैं स्वामी । अगम गमिऊ जिन नन्दु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २१॥ तं गुप्ति रमन जिन नन्दु, अब मैं पाए हैं स्वामी । उत्पन्न नन्त दर्संतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २२ ॥ उववन्न मुक्ति संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । उववन्न कमल जिन रत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २३॥ कमल कमल रस उत्त, अब मैं पाए हैं स्वामी । तं विंद रमन संजुत्त, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २४ ॥ सहयार रंजु वैदिप्ति रमन जिनु, अगम अगम दिपि पाए । अगम अगोचर अलष रमन जिनु, तं सिद्धि रमन जिन राए ॥ २५ ॥ जिन जिनयति जिनय जिनुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । विद कमल रस उत्तु, अब मैं पाए हैं...॥ २६॥ सुइ सोलहि संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । तित्थयर भाव उवलद्ध, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २७ ॥ सुइ लष्यन कलस जिनुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी। निधि दिप्ति रमन जिन उत्तु, अब मैं पाए हैं...|| २८॥

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