Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 128
________________ १२८ भजन -८ ज्ञानी की ज्ञान गुफा में, निज भगवान बैठे हैं। भगवान बैठे हैं, स्वयं भगवान बैठे हैं ॥ ज्ञानी ने अपने ज्ञान में निज आत्मा देखा । पर से ही भिन्न स्वयं का शुद्धात्मा देखा ॥ ज्ञानी की शांत दशा में, ज्ञायक राम बैठे हैं..... ज्ञानी को अपने ज्ञान का बहुमान है आया । निज स्वानुभूति में निजातम राम को पाया । ज्ञानी के अंतर ध्यान में, परमात्म बैठे हैं..... ज्ञानी ने अपने ध्यान में धुव सत्ता को पाया। अंतर से लगन लगी है सिद्धात्मा पाया ॥ ज्ञानी की गुप्त गुफा में, आतम राम बैठे हैं..... सबसे ही सुंदर ज्ञान ही सुन्दरता को पाता । शुद्धात्मा की महिमा को निज ध्यान में ध्याता ।। ज्ञानी के केवलज्ञान मे सर्वज्ञ बैठे हैं..... सिद्धों की जाति का उसे निज अनुभव होता है। अपने ही शुद्ध स्वभाव का श्रद्धान होता है | ज्ञानी के ॐ नमः सिद्धं में सिद्ध बैठे हैं..... भजन - कोई राज महल में रोये, कोई पर्ण कुटी में सोये । अलग अलग हैं जन्म के अंगना, मरण का मरघट एक है। कोई हल्की कोई भारी, कोई गहरी कोई उथली । सब माटी की बनी गगरिया, न कोई असली न कोई नकली ॥ अलग अलग घट भरे गगरिया, पनघट सबका एक है..... कहीं फिरोजी कहीं है पीले, लाल गुलाबी काले नीले । भाँति भाँति की तस्वीरों में, रंग भरे हैं सूखे गीले ।। चेहरे सबके अलग अलग हैं, मोह का चूँघट एक है..... खेल रहे सब आँख मिचौली, सबकी सूरत देख सलोनी । सोच समझ कर दांव लगाते, टाले नहीं टलती जो होनी ॥ अलग अलग सब खेल खिलाड़ी, मिट्टी तो सबकी एक है..... सब जायेंगे आगे पीछे, हाथ पसारे आँखें मीचे । स्वर्ग नरक सब सांची बातें, पुण्य से ऊँचे पाप से नीचे ॥ आये तो सौ सौ अंगड़ाई, मौत की करवट एक है.....

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