Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 138
________________ १३८ २. आरती करते समय जिनवाणी और वेदी की तरफ पीठ नहीं होना चाहिये। ३. आरती करते समय आरती की ज्योति बुझना नहीं चाहिये। ४. आरती हाथ से गिरना नहीं चाहिये। ५. हाथ के नीचे से निकालकर की जाने वाली चक्र आरती में भी आरती हाथ से गिरना नहीं चाहिये। ६. आरती नृत्य, मर्यादा पूर्वक होना चाहिये। इसे आधुनिक डाँस का विषय न बनायें। ७. आरती पूर्ण होने पर हाथ जोड़कर नतमस्तक होकर बोलना चाहिये - "देव की आरती, गुरु की आरती, शास्त्र की आरती, जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु, बोलो श्री गुरु महाराज की जय......।" इसके बाद आरती टेबिल पर रखना चाहिये। इसके पहले आरती टेबिल या चौकी पर नहीं रखना चाहिये। प्रश्न - यदि अकस्मात् अथवा किसी का धक्का या हाथ लगने से आरती हाथ से गिर जाये तो क्या करना चाहिये? उत्तर - आवश्यक यह है कि आरती करने में अत्यंत सावधानी बरतना चाहिये कि किसी भी परिस्थिति में आरती हाथ से न गिरे। अन्य सभी साधर्मीजनों को भी ध्यान रखना चाहिये कि कोई सज्जन आरती कर रहे हों तो उनके पास से न निकलें। उन्हें आरती करने में पूरा सहयोग करें। क्योंकि आरती का गिरना अच्छा नहीं माना जाता। यदि किसी कारण से आरती हाथ से गिर जाती है तो तत्काल प्रायश्चित स्वरूप इच्छानुसार दान राशि दे देना चाहिये और भविष्य में ऐसा न हो इसका ध्यान रखना चाहिये। प्रश्न - समाज में कुछ स्थानों पर कुछ महानुभाव आरती नहीं करते हैं क्या यह उचित है? उत्तर - समाज के सभी महानुभावों को आरती करना चाहिये। हिंसा होती है ऐसा कहकर किसी क्रिया के प्रति विरोध पैदा नहीं करना चाहिये। घर-परिवार, खेती-किसानी, व्यापार -धंधे आदि में त्रस जीवों की हिंसा होती है। चैत्यालय में आरती सच्चे देव गुरू शास्त्र की महिमा और बहुमान के पवित्र अभिप्राय से की जाती है। अपनी भूमिका का विचार करके भक्ति पूर्वक आरती करना चाहिये। घर - व्यापार आदि की हिंसा का त्याग होने पर परिग्रह त्यागी, अनुमति त्यागी होने पर आरती आदि की क्रिया भी सहज छूट जाती है। अतः आरती चंदन प्रसाद प्रभावना को सहज स्वीकार कर अपनी सामाजिक निष्ठा का परिचय देना चाहिये। प्रश्न - चवर लेकर भी नृत्य करते हैं, इसमें क्या अभिप्राय होना चाहिये? उत्तर - वस्तुतः चँवर भगवान के अष्ट मंगल में से एक मंगल है। कटि सूत्र कुण्डलादि अलंकारों से युक्त अत्यंत विनम्र देवों द्वारा आजू - बाजू से भगवान के ऊपर चौंसठ चँवर दुराये जाते हैं। हम जो चँवर करते हैं इसमें सहज भक्ति पूर्ण नृत्य के साथ जिनवाणी पर चँवर दराने का अभिप्राय होना चाहिये। प्रश्न - चंवर करते समय क्या सावधानी रखना चाहिये? उत्तर - १.चँवर करते समय जिनवाणी के प्रति अतिशय भक्ति का भाव होना चाहिये। २. चँवर करते समय जिनवाणी और वेदी जी की तरफ पीठ नहीं होना चाहिये। ३. चँवर घुटनों से नीचे नहीं जाना चाहिये और हाथ से गिरना नहीं चाहिये।

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