Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 140
________________ प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर - प्रश्न उत्तर - II - - ।। - - - - - खौर का चंदन अनन्त चतुष्टय, रत्नत्रय और सिद्ध स्वरूप का प्रतीक किस प्रकार हुआ ? तीन अंगुलियों से अर्धचन्द्राकार आकृति बनाने पर चार रेखायें बनती हैं जो अनन्त चतुष्टय की सूचक हैं। दो अंगुलियों से खड़ी रेखा खींचने पर तीन रेखायें बनती हैं जो रत्नत्रय की सूचक हैं और विन्दी सिद्ध स्वरूप का बोध कराने वाली है। प्रसाद - प्रभावना १४० प्रसाद वितरण क्यों किया जाता है ? प्रसाद, दान की प्रभावना स्वरूप बांटा जाता है। प्रसाद बांटने से भावों में उसी प्रकार निर्मलता आती है जैसे किसी साधर्मी को आहार आदि कराने में निर्मलता आती है। प्रसाद किस प्रकार का होना चाहिये ? प्रसाद शुद्ध होना चाहिये तभी प्रभावना की श्रेणी में आयेगा। शुद्ध प्रसाद इस प्रकार होना चाहिये - प्रश्न पानी वाले नारियल प्रसाद में वितरण करना चाहिये क्या ? उत्तर १. समान्यतया सूखे भेला का या सूखे नारियल का प्रसाद । २. घर में तैयार किये हुए अथवा किसी विश्वास पात्र जैन परिवार से छने हुए शुद्ध दूध से तैयार करवाये हुए मावा का बना हुआ प्रसाद । ३. सूखे नारियल का कीस तैयार करके शुद्ध चासनी में डालकर जमाया हुआ प्रसाद । ४. साफ किये हुए काजू, किसमिस, बादाम, चिरोंजी (चारोली) और खारक। इन पंच मेवा को पैकेट में पैक करके बांटा जाने वाला प्रसाद । प्रसाद प्रभावना लाकर चैत्यालय में कहाँ रखना चाहिये ? प्रसाद वेदी जी पर या वेदी जी के सामने अथवा जमीन पर नीचे नहीं रखना चाहिये। किसी उचित स्थान पर प्रसाद रखने की व्यवस्था बनाना चाहिये । - कौन कौन सी वस्तुएँ प्रसाद में नहीं बांटना चाहिये ? निम्नलिखित वस्तुएँ प्रसाद के रूप में नहीं बांटना चाहिये क्योंकि यह वस्तुएँ प्रसाद प्रभावना के योग्य नहीं है - बतासा, मिश्री, शकर की चिरोंजी, बाजार होटल की मिठाई, पेड़ा आदि प्रसाद में नहीं बांटना चाहिये। नहीं, पानी वाले नारियल सचित्त होते हैं इसलिये इनको प्रसाद प्रभावना में वितरण करना ही नहीं चाहिये। क्योंकि पानी वाले नारियल के पानी की मिठास से चींटी आदि जीव एकत्रित होते हैं जिससे हिंसा का दोष लगता है। कुछ लोग या बच्चे चैत्यालय जी में प्रसाद खा लेते हैं क्या यह उचित है ? नहीं, चैत्यालय धर्म आराधना का पवित्र स्थल होता है। प्रसाद आदि खाने से धर्मायतन अपवित्र हो जाता है। इसलिये चैत्यालय जी में प्रसाद आदि कोई भी वस्तु नहीं खाना चाहिये। बच्चों को चैत्यालय में प्रसाद नहीं खाने की प्रेरणा देकर सुसंस्कार सिखाना चाहिये जिससे उनका भविष्य उज्जवल बने तथा बच्चों को खाने के लिये बिस्किट आदि मंदिर में नहीं लाना चाहिये ।

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