Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 146
________________ ०१. ०२. ०३. ०४. ०५. ०६. ०७. ०८. ०९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. आध्यात्मिक जयघोष जय । वीतराग धर्म की अध्यात्मवादी संतों की शुद्धात्म देव की की जय । जिनवाणी मातेश्वरी की अहिंसा परमो धर्म की - जय । विश्व धर्म भगवान महावीर स्वामी के समवशरण की श्री गुरु तारण तरण मंडलाचार्य महाराज की आनन्द कन्द सच्चिदानन्द भगवान आत्मा की तारण स्वामी का शुभ संदेश सत्य अहिंसा को अपनाओ विश्व शांति का मूलाधार हमें बनाना लक्ष्य महान करुणा क्षमा अहिंसा दान मानव जीवन का उद्देश्य मुट्ठी बांधे आया जग धर्म कर्म जो यहाँ करेगा में पाप कषाय महा दुःखदाई दया करो और दान जीव अकेला आया जैसी करनी यहाँ करेगा जग में है यह सच्चा ज्ञान जो बोले सो धर्म जगत में - १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २६. २५. पाँच छह सात आठ नौ दस ग्यारह बारह तेरह चौदह पंद्रह सोला २७. - - नहीं धरम में बैर भाव के राग द्वेष को शुद्धातम का एक दो तीन चार - - - - दो है - — - - - जय जय ॥ जय ॥ तू स्वयं भगवान है ॥ - अपना जीवन सुखी बनाओ || एक मात्र अध्यात्म है । करना है आतम कल्याण ॥ मानवता की यह पहिचान || प्राणी सेवा साधु वेष ॥ हाथ पसारे जायेगा | वैसा ही फल पायेगा || इनको छोड़ो रे सब भाई || संयम तप पर ध्यान दो || और अकेला जायेगा ॥ वैसा ही फल पायेगा | जय हो चौदह ग्रन्थ महान || शुद्धात्म देव की जय || संतों का है यह संदेश | - - - 1 अभय होता एक । झगड़ा झांसा | घट घट में है बंधन तोड़ो । प्रेम प्रीति से दूर भगाओ । सबको अपने ध्यान धरो । मानव जीवन - - - - - - - - - - क्या बोला - जय तारण तरण ॥ ॥ तारणम् जय तारणम् - वन्दे श्री गुरु तारणम् ॥ - - - - जय ॥ जय || जय ॥ - गले लगाओ || सफल करो || गुरु तारण की जय जयकार | सत्य धर्म का देखो ठाठ वीतरागता धर्म हमारा || || तारण पंथी बच्चा बोला ॥ १४६ || ब्रह्म निवासा || नाता जोड़ो ||

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