Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 136
________________ १३६ तीर्थंकर, विनय बैठक, नाम लेत पातक कटें, प्रमाण गाथायें आदि अनेकों स्थलों पर सच्चे देव की आराधना और उनके गुणानुवाद करते हैं। __मंदिर विधि में गुरु उपासना - मंदिर विधि में तत्त्व मंगल की दूसरी गाथा में हम गुरु की महिमा का गान करते हुए विनय बैठक, नाम लेत पातक कटें, अबलवली, प्रमाण गाथायें आदि अनेक स्थलों पर गुरु की उपासना करते हैं। उनके रत्नत्रय आदि गुणों की आराधना करते हैं। मंदिर विधि में शास्त्र स्वाध्याय - मंदिर विधि में हम अत्यंत महत्वपूर्ण भाग शास्त्र सूत्र सिद्धांत की व्याख्या का वाचन करते हैं। जिसमें जिनेन्द्र भगवान की वाणी का सार, सूत्र की विवेचना और सिद्धांत की आराधना करते हैं। इस प्रकार मंदिर विधि से हम शास्त्र स्वाध्याय भी सम्पन्न करते हैं। मंदिर विधि में संयम - मंदिर विधि में संयम और संयमी साधुओं की महिमा का कथन है। तीर्थंकर भगवंतों के दीक्षा कल्याणकों की महिमा और संयम धर्म की प्रभावना का विवेचन है। श्रावकजन जितने समय तक मंदिर विधि में शुभ भावों पूर्वक बैठते हैं उतने समय तक मन और पाँच इन्द्रियों पर अंकुश रहता है यह इन्द्रिय संयम है। साथ ही किसी प्रकार भी जीव हिंसा का आचरण नहीं होता। पाँच स्थावर और एक त्रस इस प्रकार षट्कायिक जीवों पर दया भाव रहता है। किसी भी जीव की हिंसा नहीं होती यह प्राणी संयम है। इस प्रकार मंदिरविधि से संयम धर्म का पालन होता है। मंदिर विधि तपमंदिर विधि करने से मन की इच्छाओं का निरोध होता है। उतने समय तक किसी भी प्रकार की इन्द्रिय विषयों की प्रवृत्ति नहीं होती और रागादि परिणामों का भी शमन होता है। आत्म स्वरूप के लक्ष्य से तथा धर्म की महिमा प्रभावना के शुभ भाव सहित मन पर विजय होती है यह तप है। यह तप श्रावक की भूमिका के अनुरूप है। मंदिर विधि में दान - मंदिर विधि करने के पश्चात् जब प्रभावना का अवसर आता है तब श्रावकजन बढ़ चढ़कर दान पुण्य और प्रभावना करते हैं। प्रसाद वितरण तथा व्रत भण्डार अर्थात् दान स्वरूप प्रदान की गई राशि दान की प्रतीक है। इसके साथ - साथ विशेष अवसरों पर पात्र भावना, चैत्यालयों के लिये सामग्री भेट, चार दान की महिमा आदि यह मंदिर विधि के निमित्त से होने वाली दान की प्रभावना है। आरती - चँवर - आरती किसकी और क्यों की जाती है? - श्रावक को सच्चे देव, गुरु, धर्म,शास्त्र के प्रति भक्ति होती है। भक्ति पूर्वक मंदिर विधि करने से भावों में विशुद्धता प्रगट होती है, हृदय आत्म विभोर हो जाता है, तब अत्यंत श्रद्धा के भावों सहित ज्ञान की प्रकाशक जिनवाणी की आरती करते हैं। प्रश्न उत्तर

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