Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 129
________________ १२९ भजन - १० रंग सुतो रंग मिल जाय, गुणारी जोड़ी नाहिं मिले। कागा कोयल एक ही रंगरा, बैठे एक ही डाल || कागो तो कड़वो बोले है, कोयल रस बरसाय..... हंसो बगुलो एक सरीखो, नहीं पड़े पहचान ॥ हंसो तो मोती चुगे, बगुलो तो मछली खाय..... हल्दी एक ही रंग री, एक ही हाट बिकाय || हल्दी के सर तो सागां रसीजे, के सर तिलक लगाय..... संध्या भोर एक ही रंग री, एक सूरज री छांव ।। संध्या तो नींदड़ली बुलावे, भोर तो जगत जगाय..... डोली अर्थी एक ही बांस री, एक ही कांधे जाय ।। डोली तो दुल्हन घर ल्यावे, अर्थी तो मरघट जाय..... त्यागी भोगी एक ही घर में, एक ही खाणों खायं ।। त्यागी तो करमाने काटे, भोगी तो करम बंधाय.... रावण विभीषण एक ही कुणवो, एक ही मात पिता ।। विभीषण तो राम भगत हो, रावण कुल को नसाय..... मेंहदी भांग एक ही रंग री, एक ही हाथ पिसाय ।। मेंहदी तो हाथ रचावे, भांग तो जगत नचाय..... संत सद्गुरु कह गया सगला, करो गुणा री पहिचान ॥ रंग तो एक दिन फीको पड़सी, गुण ही तो संग में जाय..... भजन - ११ जय जयकार मची है रे, गुरु तारण के द्वारे । तारण के द्वारे गुरु तारण के द्वारे....|| आतम की महिमा जानी है, जड़ से न्यारी पहिचानी है ॥ मुक्ति से रास रची है रे, गुरु..... अंतर में अब हुआ जागरण, सबके हृदय बसे जिन तारण || आतम ही शेष बची है रे, गुरु..... जय जयकार मची है घर घर, धर्म प्रभावना का है अवसर | संयम की पालकी सजी है रे, गुरु..... ब्रह्मानंद करो तैयारी, छोड़ो ये सब दुनियांदारी ॥ मंगल बधाई बजी है रे, गुरु.....

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