Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
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३९
श्री महावीराष्टक स्तोत्र यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचितः । समं भांति ध्रौव्य व्यय जनिलसंतोन्तरहिताः ।। जगत्साक्षी मार्ग प्रकटन परो भानुरिव यो । महावीर स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ १ ॥ आतानं यच्चक्षुः कमल युगलं स्पन्द रहितं । जनान्कोपापायं प्रकटयति वाभ्यन्तरमपि । स्फुटं मूर्तिर्यस्य प्रशमितमयी वातिविमला । महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ २ ॥ नमन्नाकेन्द्राली मुकुटमणि भाजालजटिलं । लसत्पादांभोजद्वयमिह यदीयं तनुभृताम् ॥ भवज्ज्वालाशान्तयै प्रभवति जलं वा स्मृतमपि । महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ३ ॥ यदच्र्चाभावेन प्रमदितमना दर्दुर इह । क्षणादासीत्स्वर्गी गुणगण समृद्धः सुख निधिः ॥ लभंते सद्भक्ताः शिवसुख समाजं किमु तदा। महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ४ ॥ कनत्स्वर्णाभासोऽप्यपगत तनुर्ज्ञान निवहो । विचित्रात्माप्येको नृपतिवर सिद्धार्थ तनयः ।। अजन्मापि श्रीमान् विगतभवरागोऽद्भुत् गतिर् । महावीर स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ५ ॥ यदीया वाग्गङ्गा विविध नय कल्लोल विमला। बृहज्ज्ञानाम्भोभिर्जगति जनतां या स्नपयति ।। इदानीमप्येषा बुधजनमरालैः परिचिता । महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ६ ॥ अनिर्वारोद्रेक स्त्रिभुवनजयी काम सुभटः । कुमारावस्थायामपि निजबलाद्येन विजितः ।। स्फुरन् नित्यानन्द प्रशम पद राज्याय स जिनः । महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ७ ॥ महामोहातङ्क प्रशमन पराकस्मिक भिषग् । निरापेक्षो बन्धुर्विदित महिमा मङ्गलकरः ॥ शरण्यः साधूनां भव भयभृतामुत्तमगुणो । महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ८ ॥

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