Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 85
________________ अर्ह मित्यक्षरं ब्रह्म वाचकं परमेष्ठिनः । सिद्धचक्र स्य सद्बीजं सर्वतः प्रणमाम्यहम् ॥ ५ ॥ कर्माष्टक विनिर्मुक्तम् मोक्षलक्ष्मी निकेतनम् । सम्यक्त्वादिगुणोपेतं सिद्धचक्रं नमाम्यहम् ॥ ६ ॥ विघ्नौघाः प्रलयं यान्ति शाकिनी भूत पन्नगाः ।। विषं निर्विषतां याति स्तूयमाने जिनेश्वरे ॥ ७ ॥ इन्द्रध्वज पूजा श्री मज्जिनेन्द्रमभिवन्द्य जगत्त्रयेशं, स्याद्वादनायकमनंत चतुष्टयार्हम् । श्री मूलसंघसुदृशां सुकृतैकहेतु, जैनेन्द्रयज्ञ विधिरेष मयाभ्यधायि ॥ १ ॥ स्वस्ति त्रिलोकगुरवे जिनपुंगवाय, स्वस्ति स्वभाव महिमोदय सुस्थिताय । स्वस्ति प्रकाश सहजोर्जित दृङ्गमयाय,स्वस्ति प्रसन्न ललिताद्भुत वैभवाय ॥ २ ॥ स्वस्त्युच्छलद्विमलबोध सुधाप्लवाय, स्वस्ति स्वभाव परभाव विभासकाय । स्वस्ति त्रिलोक विततैकचिदुद्गमाय,स्वस्ति त्रिकाल सकलायत विस्तृताय ॥ ३ ॥ अर्हत्पुराण पुरुषोत्तम पावनानि, वस्तून्य नूनमखिलान्ययमेक एव । अस्मिन् ज्वलद्विमलके वल बोधवन्हौ,पुण्यं समग्रमहमेकमना जुहोमि ॥ ४ ॥ द्रव्यस्य शुद्धिमधिगम्य यथानुरूपं, भावस्य शुद्धिमधिकामधिगन्तुकामः । आलंबनानि विविधान्यवलम्ब्य वल्गन्,भूतार्थयज्ञ पुरुषस्य करोमि यज्ञम् ॥ ५ ॥ शास्त्र पूजा (गाथा) संपइ सुह कारण कम्मवियारण,भवसमुद्र तारण तरणम् । जिनवाणि नमस्यं सत्य पयस्यम्, सग्ग मोक्ख संगम करणम् ॥ १ ॥ सट्ट शालायभेयं सिद्धं पुराण ध्यान अवगहणं । वैचारित्रफलायणं प्रथमानुयोग एरस करणं ॥ २ ॥ उवाइ8 लोयदिढयं दह विहि प्रमाणस्स भणियं । करणाणुयोग एरस करणं द्वीपसमुदाय जिनवरगेहो ॥ ३ ॥ वैचारित्रफलायणं क्रियाणपर्म ऋद्धि सहय्याणं । उवासुग्गे सहय्याणं चरणाणुयोग एरस भणियं ॥ ४ ॥ मोक्खस्स करणं मोक्खं क्रिया मोक्खस्स कारणं मोक्खं । हेयं च हियसंती दिव्वाणुयोग एरस भणियं ॥ ५ ॥

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