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तृतीय आशीर्वाद -
वे दो छण्ड विरक्त चित्त दिढ़ियो, कायोत्सर्गामिनो । केवलिनो नृत लोय लोय पेख पिखणं, दलयं च पंचेन्द्रिनो । धर्मो मार्ग प्रकाशिनो जिन तारण तरो, मुक्तेवरं स्वामिनो । सुयं देव जुग आदि तारण तरो, उववन्नं 'श्री संघं' जयं ॥
(जयन् जय बोलिये-जय नमोऽस्तु - ३ बार)
: श्लोक : सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारकं । प्रधानं सर्व धर्माणां, जैनं जयतु शासनम् ॥
आशीर्वाद (अन्तिम) उत्पन्न रंज प्रवेश गमनं, छद्मस्थ स्वभाव । सुक्खेन,सुक्खेन ये दु:खानि काल विलयंति ॥
॥जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु ॥ अप्प समुच्चय जानिये, ऋषि यति मुनि अनगार |
पद पस्सय कर्महिं खिपैं,सिद्ध होय तिहिवार || सिद्ध जाँय देवन के दाता, गुरू के उपदेशे, अपने धर्म के निश्चय, अपनी धारणा के परिचय केतेक जीव निश्चय - निश्चय ब्यासी हजार वर्ष पश्चात् दु:खम - दु:खम काल खिपाय चौथे काल के आदि में पद्मपुंग राजा के यहाँ महापद्म तीर्थंकर देव, अन्मोयं स्वयं स्वयं मुक्ति गामिनो, मुक्ति के विलास असंख्यं गुणं निर्भय बली समर्थ धर्म |श्री जिनेन्द्र देव के वचन सत्य हैं, ध्रुव हैं, प्रमाण हैं -
॥ जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु ॥
॥ चौबीस तीर्थकर भगवान की-जय ॥ ॥ श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य महाराज की-जय॥
: अबलबली : जय गुरू अबलबली उवन कमल, वयन जिन ध्रुव तेरे । अन्मोय शुद्धं रंज रमण, चेत रे मण मेरे ॥ जय तार तरण समय तारण, न्यान ध्यान विवंदे । आयरण चरण शुद्धं, सर्वन्य देव गुरू पाये ॥ जय नन्द आनन्द चेयानन्द, सहज परमानंदे । परमाण ध्यान स्वयं, विमल तीर्थंकर नाम वन्दे || जय कलन कमल उवन रमण, रंज रमण राये । जय देव दीपति स्वयं दीपति, मुकति रमण राये ।। गुरु तोहि ध्यावत सुख अनंत स्वामी, तारण जिन देवा। उत्पन्न रंज रमण नन्द जय, मुक्ति दायक देवा ।।
| आचार्य दाता, सहाई दाता, प्यारो दाता॥