Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 114
________________ ५. जिनवाणी स्तुति ( लेखक - ब्र. बसन्त) कल्याणी हो । , तर्ज - माता तू दया करके....... हे जिनवाणी माता, तुम जग सद्ज्ञान प्रदान करो, तुम शिव सुखदानी हो । मिथ्यात्व मोह तम का चहुँ ओर अंधेरा है । माँ तुम बिन इस जग में कोई नहीं मेरा है । भव पार करो नैया, तुम जिनवर वाणी हो....हे..... चहुँ गति के दुःख भोगे, पल भर न सुख पाया । अति पुण्य उदय से माँ, तव चरणों में आया ॥ सुखमय कर दो मुझको, सुखमय हर प्राणी हो....हे..... शुद्धातम है, तुमने ही बताया है I रत्नत्रय की महिमा सुन, मन हरषाया है || मैं करूँ सदा वंदन, तुम सब गुणखानी हो....हे.... ६. जिनवाणी मोक्ष नसैनी है आतम जिनवाणी मोक्ष नसैनी है, जिनवाणी ॥ यह भवदधि से पार उतारन पर भव को सुखदानी है । मिथ्यातिन के मन ही न भावे, भविजन के मन आनी है | धर्म कुधर्म की समझ पड़ी जब, जुदी जुदी कर मानी है । वाजूराय भजो जिनवाणी, यह दुःखहरता सुखदानी है ॥ ७. श्री जिनवाणी महिमा · जिनवाणी माता दर्शन की बलिहारियाँ | टेक प्रथम देव अरिहंत मनाऊं गणधर जी को ध्याऊँ || कुन्दकुन्द आचार्य हमारे, तिनको शीश नवाऊँ.... जिनवाणी.... योनि लाख चौरासी माहीं, घोर महा दुःख पायो || ऐसी महिमा सुनकर माता, शरण तिहारी आयो.... जिनवाणी... जाने थारो शरणों लीनों अष्ट कर्म क्षय कीनों ॥ जामन मरण मेटके माता, मोक्ष महाफल दीनों.... जिनवाणी.... बार बार में विनॐ माता, मिहर जो मोपे कीजे ॥ पारसदास की अरज यही है, चरण शरण में लीजे.... जिनवाणी.... || ११४

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