Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 109
________________ १०९ संचरण, इनके आलोचना के १० दोष हैं - गुरुओं के पास लगे हुए दोषों की आलोचना करे सो सरल होकर न करे, कुछ शल्य रखे, उसके १० भेद किये हैं, इन दस से उपरोक्त ८४००० का गुणा करने पर ८,४०,००० होते हैं। आलोचना को प्रथम करके प्रायश्चित के १० भेद हैं, इनसे गुणा करने पर ८४,००,००० होते हैं। यह सब दोषों के भेद हैं, इन दोषों के अभाव से ८४ लाख उत्तर गुण होते हैं। चतुर्विधि संघ - मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका यह चार प्रकार का होने से चतुर्विधि संघ है। ११. अंग- १. आचारांग, २. सूत्र कृतांग, ३. स्थानांग, ४. समवायांग, ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग, ६. ज्ञातृधर्म कथांग, ७. उपासकाध्ययनांग, ८. अंत:कृत दशांग, ९. अनुत्तरोपपादिकांग, १०. प्रश्नव्याकरणांग,११. विपाक सूत्रांग। (बारहवां दृष्टिवाद नाम का अंग है,सभी मिलाकर द्वादशांग कहलाते हैं) १४ पूर्व- १. उत्पाद पूर्व, २. अग्रायणी पूर्व, ३. वीर्यानुवाद पूर्व, ४. अस्तिनास्ति प्रवाद पूर्व, ५. ज्ञान प्रवाद पूर्व, ६. सत्य प्रवाद पूर्व,७. आत्म प्रवाद पूर्व,८. कर्म प्रवाद पूर्व, ९. प्रत्याख्यान पूर्व, १०. विद्यानुवाद पूर्व, ११. कल्याणवाद पूर्व, १२. प्राणवाद पूर्व, १३. क्रिया विशाल पूर्व,१४. त्रिलोक बिन्दु सार पूर्व । सम्यक्त्व के १०भेद - १.ज्ञान, २. उपदेश, ३. अर्थ, ४. बीज,५. संक्षेप, ६. सूत्र,७. व्यवहार, ८. अवगाहन, ९. प्रवचन केवलि,१०. परम। सम्यग्दर्शन के ८गुण१.संवेग, २. निर्वेद, ३. निंदा, ४. गर्दा, ५. उपशम, ६. भक्ति, ७. वात्सल्य, ८. अनुकम्पा। अरिहंत भगवान १८ दोष रहित होते हैं - १. क्षुधा, (भूख) २. तृषा, (प्यास) ३. जन्म, ४. जरा, (बुढ़ापा) ५. मरण, ६. विस्मय, (आश्चर्य) ७. अरति, (पीड़ा) ८. खेद, ९. शोक, १०. रोग, ११. मद, (गर्व) १२. मोह, १३. राग १४. द्वेष,१५. भय, १६.निद्रा, १७. चिन्ता १८. स्वेद, (पसीना)। समवशरण की १२ सभाओं का वर्णन - १. समवशरण के मध्य भाग में बैठे हुए सर्वज्ञ वीतराग अरिहंत भगवान की दाहिनी बाजू में गणधर देव आदि सात प्रकार के मुनिराज बैठते हैं। २. दूसरे कोठे में कल्पवासिनी देवियां, ३. तीसरे में आर्यिकायें तथा मनुष्य स्त्रियां, ४. चौथे में ज्योतिषी देवों की देवियाँ, ५. पाँचवें में व्यंतरनी, ६. छटवें में भवनवासिनी देवियाँ, ७. सातवें में भवनवासी देव, ८. आठवें में व्यंतर देव, ९. नववें में ज्योतिषी देव, १०. दसवें में कल्पवासी देव, ११. ग्यारहवें में मनुष्य, चक्रवर्ती, मांडलीक आदि नरेश, विद्याधर आदि पुरुष बैठते हैं, १२ बारहवें कोठे में पशु - सिंह, मृग, हाथी, घोड़ा, मयूर, सर्प, बिल्ली, चूहा आदि तिर्यंच योनि के जीव परस्पर बैर का त्याग करके एक ही स्थान में बैठते हैं। २२ परीषह - १.क्षुधा, २. तृषा, ३. शीत, ४. उष्ण, ५.दंशमशक, ६. नाग्न्य,७. अरति, ८. स्त्री, ९. चर्या, १०. निषद्या, ११. शय्या, १२. आक्रोश, १३. वध, १४. याचना, १५. अलाभ, १६.रोग,१७. तृणस्पर्श, १८. मल, १९. सत्कार पुरस्कार, २०. प्रज्ञा, २१. अज्ञान, २२. अदर्शन यह २२ परीषह हैं। एक पूर्व की संख्या ७० लाख करोड़ वर्ष +५६ हजार करोड़ वर्ष = १ पूर्व में ७० लाख ५६ हजार करोड़ वर्ष होते हैं। (७०,५६,०००,०००,००,०००) ८ पहर में ६० घड़ी- १ पहर = ३ घंटा, ८ पहर =२४ घंटा। १घंटा = ६० मिनिट। २४ घंटा के मिनिट बनाओ। २४ गुणित ६० = १४४० मिनिट, १ घड़ी = २४ मिनिट, १४४० भागित २४ = ६० घड़ी।

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