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सूत्र जं जिन......श्लोकार्थसूत्र वह है जो जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहा गया है, उसको सुनकर शुद्ध भाव को ग्रहण करो, असूत्र को मत देखो अपना स्व स्वभाव शुद्धात्म स्वरूप ही सच्चा सूत्र है।
सिद्धांत नाम..... का अर्थ - सिद्धांत नाम किसे कहते हैं अर्थात् सिद्धांत का क्या स्वरूप है ? जिसमें "पूर्वापर विरोध रहित" पूर्व अर्थात् पहले और अपर अर्थात् बाद में निरूपित किया गया वस्तु स्वरूप का कथन विरोध रहित हो उसे सिद्धांत ग्रंथ कहते हैं। अभिप्राय यह है कि ग्रंथ में पहले के और बाद के कथन में कोई विरोध न हो वह सिद्धांत ग्रंथ कहलाता है।
सम्यग्दर्शन के आठ अंग१. निःशंकित, २. नि:कांक्षित, ३. निर्विचिकित्सा, ४. अमूढ दृष्टि, ५. उपगूहन, ६. स्थितिकरण ७. वात्सल्य, ८.प्रभावना।
यथा नाम तथा गुण......... का अर्थभगवान का जैसा नाम हो, वैसे उनमें गुण भी हों क्योंकि गुणों से नाम की शोभा है और नाम से गुणों की शोभा है अर्थात् गुणों से शोभित होता है नाम और नाम से शोभित होते हैं गुण; इसलिये वे भगवान धन्य हैं जिनके नाम भी वंदनीक हैं और गुण भी वंदनीक हैं। तारण पंथ में यथा नाम तथा गुण के धारी भगवान की आराधना वंदना की जाती
है।
नाम लेत पातक ........ स्तवन का अर्थजिनके नाम स्मरण करने से पाप कट जाते हैं, विघ्न बाधायें विनस जाती हैं, ऐसे जिनेन्द्र भगवान के नाम की महिमा का तीन लोक में वर्णन नहीं किया जा सकता अर्थात् उनकी महिमा अवर्णनीय है॥१॥ अनन्त गुणोंमय परम पद में स्थित श्री जिनवर भगवान-सिद्ध परमात्मा हैं, जिनके ज्ञान में आत्म स्वरूप ही ज्ञेय है, उसका ही निरंतर लक्ष्य है
और जो महान मोक्ष स्थान में अचल रूप से विराजमान हैं॥२॥ मोक्ष जाने की रास्ता गुरू के ज्ञान बोध के बिना अगम थी। सद्गुरू ने कृपा करके उस रास्ते का ज्ञान करा दिया यह ज्ञान इतना महान है कि मोक्षजाने की लाखों कोस की गैल (रास्ता) है किन्तु सद्गुरू द्वारा दिये गये ज्ञान से एक पल में ही मोक्ष पहुंच जाते हैं॥३॥श्री गुरू तारण तरण विघ्नों का विनाश करने वाले,भयों का हरण करने और भयों को नष्ट करने वाले हैं। जो भी जीव उनका नाम स्मरण करता है उसके कठिन से कठिन संकट भी दूर हो जाते हैं॥४॥ इस भयानक कठिन पंचम काल में मिथ्या मत छा रहे थे, ऐसे समय में श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज ने सम्यक् वस्तु स्वरूप को प्रकाशित कर सच्चा मोक्षमार्ग बताया है॥५॥ तीर्थंकर भगवन्तों की परम्परा से चला आ रहा यह धर्म है। केवलज्ञानी भगवान ने जो वस्तु का स्वरूप कहा है, उनकी स्याद्वाद अनेकान्तमय कही गई वाणी मिथ्या मान्यता को दूर करनेवाली है॥६॥धन्य है धन्य है जिन धर्म, जो सब धर्मो में सारभूत है जिसको इस पंचम काल में श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज ने दर्शाया है ॥ ७॥ श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज धन्य हैं, धन्य हैं। हे गुरूदेव ! तारण आपका नाम है अर्थात् स्वयं तिरना और जग के जीवों को तारना आपकी विशेषता है। जो भी मनुष्य आपका स्मरण करते हैं, उनके सभी काम सिद्ध होते हैं।॥ ८॥ यदि कदाचित् श्री गुरू तारण तरण स्वामी जी महाराज का इस पंचम काल में अवतरण नहीं होता तो इस मिथ्या संसार सागर से हम पार कैसे पाते? श्री जिन तारण स्वामी ने हमें समस्त रूढ़ियों और आडम्बरों से मुक्त कर संसार सागर से पार होने का सम्यक् मार्ग प्रशस्त किया है॥९॥