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: श्लोक: देव देवं नमस्कृतं, लोकालोक प्रकासकं । त्रिलोकं भुवनार्थं जोति, उवंकारं च विन्दते ॥ अज्ञान तिमिरान्धानां, ज्ञानांजनश्लाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन, तस्मै श्री गुरवे नमः ||
श्री परम गुरवे नमः, परम्पराचार्येभ्यो नमः || विशेष : तत्त्व मंगल के पश्चात् प्रथम दिन श्री ममलपाहुड जी ग्रंथ का धम्म आयरन फूलना तथा श्री तीनों बत्तीसी का पृष्ठ क्रमांक ६४ पर निर्देशित अस्थाप की विधि के अनुसार अस्थाप करें तत्पश्चात् धर्मोपदेश का वाचन करें। शेष दिनों में प्रात: काल धम्म आयरन फूलना, श्री पंडितपूजा जी, श्री कमल बत्तीसी जी की गाथायें पढ़ें । रात्रि में लघु मंदिर विधि करें, तत्त्व मंगल और विनती फूलना या अन्य कोई भी फूलना का वांचन करने के पश्चात् श्री मालारोहण जी ग्रंथ की प्रतिदिन ३-३ गाथाओं का वांचन करें।
श्री धर्मोपदेश: श्री धर्मोपदेश अतुल, अनिर्वचनीय और महादीर्घ कहें केवली पुरुष कहने सामर्थ्य, त्रैलोक्यनाथ, अचिन्त्य चिंतामणि चिन्ता कर रहित हैं। वे भगवान स्वयं ज्ञाता,सिद्ध के जावन हारे, तीन ज्ञान मय उत्पन्न होय हैं। परिहरै लिंग-जो तीन लिंग को परिहार कर फिर जन्म नहीं धरै हैं।
अचिन्त्य व्यक्त रूपाय, निर्गुणान् महात्मने ।
जगत सर्व आधार, मूर्ति ब्रह्मने नमः ॥ ऐसे ब्रह्म स्वरूप मूर्ति को मैं नमस्कार करता हूँ। फिर भगवान का उपदेश्या धर्म कैसा है ?
धर्मं च आत्म धर्मं च, रत्नत्रयं मयं सदा । चेतना लक्षणो जेन, ते धर्म कर्म विमुक्तयं ॥
(श्री तारण तरण श्रावकाचार जी गाथा -१६९) उन भगवान ने आत्म धर्म रूप धर्म की प्रवर्तना की, जिससे अनेकानेक भव्य प्राणी रागादिक विभाव परिणामों को शमन करके आत्म संयम द्वारा शुभ गति को प्राप्त भये हैं। वे भगवान तथा उनका कथित यह जिन धर्म अपने शरण में आये हुए प्राणी मात्र पर सहज स्वभाव ही से दयालु और अनेक सिद्धि का करनहारा
उल्टो जीव अनादि को, अब सुल्टन को दाव ।
जो अबके सुल्टे नहीं, तो गहरे गोता खाव ॥ पंचमज्ञान धर्तार, विवेक संपूर्ण, दया दृष्टि, दयाल मूर्ति, कृपानिधान,सौ इन्द्र कर वंदित, श्री परम गुरू तीर्थंकर भगवान आप तरै औरन को तारे हैं।
भवणालय चालीसा, व्यंतर देवाण होति बत्तीसा।
कम्पामर चौबीसा, चंदो सूरो णरो तिरियो । ऐसे सौ इन्द्र कर वन्दित श्री परम गुरु, तिनको चलो सम्यक्त्व उपदेश, सो एक उपदेश - अनंत प्रवेश। सम्यक्त्व उपदेश कैसा है - जिस उपदेश की धारणा से अनंते जीव मुक्ति प्रवेश होते आये हैं और होवेंगे। सो कैसी है सम्यक्त्व की महिमा -