Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ ८२ सम्मत्त.......श्लोकार्थजिस पुरुष के हृदय में सम्यक्त्व रूपीजल का प्रवाह निरंतर प्रवर्तमान है, उसके कर्मरूपी रज-धूल का आवरण नहीं लगता तथा पूर्व काल में जो कर्म बंध हुआ हो वह भी नाश को प्राप्त होता है। गतोत्सर्पिणी के चतुर्थ कालान्तर्गत....अतीत की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर श्री अनंतवीर्य स्वामी जी से श्रद्धा, ज्ञान, धर्म और वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर होने का प्रसाद अर्थात् धर्म संस्कार श्री आदिनाथ जी को प्राप्त हुआ। वे क्या प्रसाद लेकर उत्पन्न हुए? उसका विवरण इस प्रकार है जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु का अर्थ - जय जयकार करो, जय हो, नमस्कार हो, स्वीकार है, यह तो शाब्दिक अर्थ हुआ किन्तु जब हम श्रद्धा से यह बोलते हैं तब हृदय वीणा के तार झनझना उठते हैं सच्चा अर्थ तो वही है। पंच परमेष्ठी के १४३ गुण, अर्हन्ता छय्याला........श्लोकार्थअरिहंत परमेष्ठी के ४६ गुण, सिद्ध के ८ गुण, आचार्य के ३६ गुण, उपाध्याय के २५ गुण और साधु के २८ गुण इस प्रकार पंच परमेष्ठी के १४३ गुण होते हैं। छह यंत्र की पूजाअरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु यह पंच परमेष्ठी और एक जिनवाणी यह छह यंत्र कहलाते हैं। पचहत्तर गुण, बारा पुंज........ श्लोकार्थबारह पुंज अर्थात् ५ परमेष्ठी, ३ रत्नत्रय, ४ अनुयोग तथा सिद्ध के ८ गुण, सोलह कारण भावना (१६), दसलक्षण धर्म (१०), सम्यग्दर्शन के ८ अंग, सम्यग्ज्ञान के ८ अंग और १३ प्रकार का चारित्र यह ७५ गुण हैं। ये पचहत्तर गुण.....श्लोकार्थजो जीव इन पचहत्तर शुद्ध गुणों के द्वारा ज्ञान लक्ष्मी से शुद्ध, जानने वाले ज्ञायक स्वभाव का वेदन करते हैं, मुक्ति स्वभाव में दृढ़ होते हैं, वे जीव इन गुणों की आराधना कर सिद्धि की सम्पत्ति प्राप्त करते हैं। ३पात्र, उत्तम जिन.......श्लोकार्थजिनेन्द्र भगवान के रूप के समान वीतरागी भावलिंगी साधु उत्तम पात्र हैं। मति श्रुत ज्ञान जिनका शुद्ध हो गया वे देशव्रती श्रावक मध्यम पात्र हैं और तत्त्व के श्रद्धानी अविरत सम्यक्दृष्टि जघन्य पात्र हैं। ५३ क्रिया, गुण वय .....श्लोकार्थमूलगुण -८, व्रत-१२, तप-१२, समताभाव -१, दर्शन आदि प्रतिमा -११, दान-४, पानी छानकर पीना-१, रात्रि भोजन त्याग-१, सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र की साधना-३, इस प्रकार श्रावकों की ५३ क्रियायें कही गई हैं। एक पूर्व की संख्या, सत्तर लाख..... दोहा का अर्थसत्तर लाख करोड़ और छप्पन हजार करोड़ वर्ष को मिलाने पर जो योग आता है वह एक पूर्व की संख्या जानो। सत्तर लाख छप्पन हजार करोड़ (७०,५६,०००,०००००००) वर्ष का एक पूर्व होता है। ऋषीश्वर जाति के लोकांतिक देवयह देव पाँचवें ब्रह्म स्वर्ग में निवास करते हैं, बाल ब्रह्मचारी होते हैं, एक भवावतारी होते हैं। भगवान के मात्र दीक्षा कल्याणक के समय वैराग्य भावना की अनुमोदना करने के लिये आते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147